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भारत में बुजुर्गों की देखभाल

Lokesh Pal April 18, 2025 02:37 19 0

संदर्भ

देश में आबादी की बढ़ती आयु के साथ, वृद्धावस्था देखभाल सेवाओं की माँग में तेजी से वृद्धि हुई है।

वृद्धावस्था चिकित्सा देखभाल से तात्पर्य विशेष चिकित्सा और गैर-चिकित्सा देखभाल से है, जो वृद्धों, विशेष रूप से 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की स्वास्थ्य, कार्यात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रदान की जाती है।

वृद्ध कौन है?

  • वृद्ध व्यक्तियों पर राष्ट्रीय नीति, 1999 तथा वरिष्ठ नागरिकों के लिए राष्ट्रीय नीति, 2011, 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों को वृद्ध घोषित करती है तथा उनके कल्याण, स्वास्थ्य देखभाल, वित्तीय सुरक्षा और सामाजिक समावेशन पर ध्यान केंद्रित करती है।

  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या वर्ष 2021 में लगभग 761 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2050 तक 1.6 बिलियन हो जाने का अनुमान है।
  • जनगणना वर्ष 2011 के अनुसार, जन्म के समय लिंगानुपात 940:1,000 है, जो लड़कों की ओर अधिक झुका हुआ है; बुजुर्ग जनसंख्या (60+) के लिए, यह 1,033:1,000 है तथा अनुमान है कि वर्ष 2026 तक यह बढ़कर 1,060:1,000 हो जाएगा।

भारत में वृद्ध जनसंख्या की स्थिति (नीति आयोग रिपोर्ट, 2024)

  • कुल जनसंख्या का 12% हिस्सा वृद्ध लोगों का है और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह संख्या 319 मिलियन तक पहुँच जाएगी, जो प्रति वर्ष लगभग 3% की दर से बढ़ेगी।
  • वृद्ध आबादी में कुल लैंगिक अनुपात 1,065 है।
  • कुल बुजुर्गों में से 58% महिलाएँ हैं, जिनमें से 54% विधवाएँ हैं।
  • समग्र निर्भरता अनुपात प्रति 100 कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या पर 62 है।
  • 10 में से 7 वृद्ध ग्रामीण इलाकों में रहते हैं।

जनसांख्यिकीय बदलाव तथा वृद्धावस्था देखभाल की बढ़ती माँग

  • वृद्धों की जनसंख्या में तीव्र वृद्धि: भारत में वृद्धों (60+ वर्ष) की संख्या वर्ष 2022 में 149 मिलियन थी और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह 319 मिलियन तक पहुँच जाएगी, जो कुल जनसंख्या का लगभग 20% है।

  • जीवन प्रत्याशा में वृद्धि और प्रजनन क्षमता में गिरावट: जीवन प्रत्याशा 35.8 वर्ष (1950) से बढ़कर 75 वर्ष (वर्ष 2050 के लिए अनुमानित) हो गई है, जबकि प्रजनन क्षमता 5.9 (1950) से घटकर वर्तमान में लगभग 2.0 हो गई है।
    • संकुचित युवा (Shrinking Youth) आधार और बढ़ता वृद्ध निर्भरता अनुपात (वर्ष 2050 तक 61.2 होने का अनुमान)​।
  • बुजुर्गों में बीमारी का प्रसार अत्यधिक है: 75% वृद्ध कम-से-कम एक जीर्ण बीमारी से पीड़ित हैं तथा 23.3% बहु-रुग्णता का अनुभव करते हैं।
    • डिमेंशिया, अल्जाइमर और हृदय संबंधी बीमारियों जैसी अपक्षयी बीमारियाँ बढ़ रही हैं, जिनके लिए विशेष दीर्घकालिक देखभाल की आवश्यकता होती है।
  • अपर्याप्त वृद्धावस्था अवसंरचना तथा कार्यबल: बढ़ती माँग के बावजूद, वृद्धावस्था देखभाल शहर-केंद्रित और खंडित बनी हुई है।
    • नेशनल सेंटर फॉर एजिंग (चेन्नई) में प्रतिदिन 800-1000 मरीज आते हैं, जो कि बहुत बड़ी अप्राप्ति माँग को दर्शाता है।
    • इस बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत में पर्याप्त वृद्धावस्था विशेषज्ञ और प्रशिक्षित नर्सों की कमी है।
  • बदलते पारिवारिक ढाँचे से अनौपचारिक वृद्ध सहायता में कमी आती है: एकल परिवारों और युवाओं के पलायन की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण बुजुर्ग अकेले रह जाते हैं।
    • तमिलनाडु हेल्पलाइन पर बुजुर्गों को छोड़ने की बढ़ती घटनाओं की रिपोर्ट है, जिनमें से कई को अस्पतालों या सार्वजनिक स्थानों पर छोड़ दिया जाता है।

वृद्ध जनसंख्या का झुकाव महिलाओं की ओर क्यों है?

लॉग्ट्यूिडनल एजिंग स्टडी ऑफ इंडिया (LASI) के आँकड़ों के अनुसार, भारत में बुजुर्ग आबादी में 58% महिलाएँ हैं और एक बड़ा हिस्सा विधवाओं का है।

  • महिलाओं में उच्च जीवन प्रत्याशा: महिलाएँ जैविक लाभों और कम जोखिम लेने वाले व्यवहार के कारण पुरुषों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहती हैं।
  • सामाजिक मानदंड और लैंगिक आधारित जीवनकाल: पुरुष अक्सर तनाव, शराब, तंबाकू के उपयोग के कारण जीवनशैली से संबंधित बीमारियों (जैसे- हृदय रोग) का अनुभव पहले करते हैं, जो पुरुषों की जीवन प्रत्याशा को कम करने में योगदान देता है।
  • जनसांख्यिकीय संक्रमण पैटर्न: वैश्विक और भारतीय रुझान दिखाते हैं कि जैसे-जैसे प्रजनन क्षमता घटती है और दीर्घायु में सुधार होता है, महिलाएँ वृद्ध (75+) आबादी का बड़ा हिस्सा बनती हैं।

भारत में बुजुर्गों के सामने आने वाली चुनौतियाँ

  • स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ
    • बीमारियों का बढ़ता बोझ: 75% बुजुर्ग एक या एक से अधिक जीर्ण बीमारियों से पीड़ित हैं, और 23.3% बहु-रुग्णता (कई सह-मौजूदा स्थितियाँ) से पीड़ित हैं।
      • सामान्य बीमारियाँ: मधुमेह, उच्च रक्तचाप, गठिया, मनोभ्रंश, कैंसर​​।
    • स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच: केवल 18% बुजुर्गों के पास स्वास्थ्य बीमा है; अधिकांश को उच्च ‘आउट-ऑफ-पॉकेट’ व्यय (OOPE) उठाना पड़ता है।
      • वृद्धावस्था देखभाल मुख्यतः शहरी तृतीयक केंद्रों तक ही सीमित है; ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी पहुँच कमजोर बनी हुई है।
    • सीमित प्रशिक्षित कार्यबल: चिकित्सकों, प्रशिक्षित नर्सों और फिजियोथेरेपिस्टों की कमी बनी हुई है।
  • सामाजिक चुनौतियाँ
    • अलगाव और परित्याग: एकल परिवारों और युवाओं के पलायन के कारण वृद्धों के लिए  देखभाल की व्यवस्था नही हो पाती है।
    • बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार: कम-से-कम 5% बुजुर्गों ने शारीरिक, भावनात्मक या वित्तीय दुर्व्यवहार का अनुभव किया है।
    • अधिकारों और योजनाओं के बारे में कम जागरूकता: माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम (2007) के बारे में केवल 12% लोग ही जानते हैं।
      • 28% लोगों को वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली किसी भी रियायत के बारे में जानकारी है।
  • आर्थिक चुनौतियाँ
    • वित्तीय सुरक्षा का अभाव: 78% बुजुर्गों के पास कोई पेंशन कवरेज नहीं है।
      • अनेक लोग बिना वेतन के कार्य करते रहते हैं, विशेषकर कृषि में ग्रामीण क्षेत्रों में 65% बुजुर्ग अभी भी सेवानिवृत्ति के बाद कार्य करते हैं।
    • उच्च स्वास्थ्य सेवा लागत: अस्पताल में भर्ती मरीजों की देखभाल के लिए औसत OOPE ₹31,933 है जो ऋणग्रस्तता का मुख्य कारण (शहरी भारत में 26%)​ है।
  • बुनियादी ढाँचा और सेवा अंतराल
    • सार्वजनिक स्थानों पर आयु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे की कमी (जैसे- रैंप, हैंडरेल, सुलभ परिवहन)​।
    • बुनियादी ढाँचे की कमी
      • आयु-अनुकूल अस्पताल (गिरने से बचने हेतु सुरक्षित डिजाइन के साथ)।
      • वृद्धावस्था वार्ड और डे-केयर सेंटर।
      • सहायक रहने और दीर्घकालिक देखभाल सुविधाएँ​।
  • उपेक्षित निवारक देखभाल और पोषण
    • वयस्कों के लिए टीकाकरण (जैसे- न्यूमोकोकल, फ्लू) मुख्यधारा में नहीं है; 60 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक दूसरे व्यक्ति को सह-रुग्णताएँ हैं, जो जोखिम को बढ़ाती हैं।
    • पोषण संबंधी मुद्दे
      • 27% कम वजन वाले, 22% अधिक वजन वाले।
      • 4.7% एनीमिया से पीड़ित; ग्रामीण बुजुर्गों में खाद्य असुरक्षा बढ़ रही है।

भारत में वृद्धावस्था देखभाल का विकास

  • वर्ष 1970 के दशक के अंत में: डॉ. वी.एस. नटराजन ने चेन्नई के सरकारी जनरल अस्पताल में भारत की पहली जेरिएट्रिक आउटपेशेंट यूनिट की स्थापना की।
  • वर्ष 1996: डॉ. नटराजन ने मद्रास मेडिकल कॉलेज में जेरिएट्रिक्स में दो सीटों के साथ पहला एमडी कोर्स शुरू किया, जो बुजुर्गों की देखभाल में विशेष चिकित्सा शिक्षा की शुरुआत थी।
  • वर्ष 1999: वृद्ध व्यक्तियों पर राष्ट्रीय नीति ने पहली बार वृद्धावस्था को एक अलग स्वास्थ्य सेवा की आवश्यकता के रूप में मान्यता दी।
  • वर्ष 2007: माता-पिता के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम पारित किया गया, जो बुजुर्गों को त्यागने के खिलाफ कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
  • वर्ष 2010: बुजुर्गों के स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPHCE) बुजुर्गों को विशेष स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए शुरू किया गया।

भारत में वृद्ध जनसंख्या का प्रभाव

  • स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दबाव: स्वास्थ्य सेवाओं, विशेष रूप से वृद्धावस्था और दीर्घकालिक देखभाल की माँग में वृद्धि।
    • लगभग 75% बुजुर्गों को पुरानी बीमारियाँ हैं, और 23.3% बहु-रुग्णता का सामना करते हैं।
  • परिवारों और देखभाल करने वालों पर दबाव: एकल परिवारों में वृद्धि और युवाओं के पलायन ने कई बुजुर्गों को अलग-थलग या परित्यक्त कर दिया है।
    • जीवनसाथी या बुजुर्ग देखभाल करने वालों पर भावनात्मक और वित्तीय बोझ बढ़ता है।
  • आर्थिक बोझ: बुजुर्गों को उच्च OOPE (जैसे- इनपेशेंट देखभाल के लिए ₹31,933) भुगतना पड़ता है।
    • 78% बुजुर्गों को पेंशन नहीं मिलती; कई कम वेतन वाले/अवैतनिक क्षेत्रों में काम करना जारी रखते हैं।
    • स्वास्थ्य सेवा, सहायता प्राप्त जीवन और सहायता सेवाओं की अधिक खपत से सार्वजनिक और निजी खर्च बढ़ सकता है।
  • श्रमबल और उत्पादकता में कमी: बुजुर्गों की बढ़ती आबादी और घटती प्रजनन दर (TFR ~2.0) उच्च निर्भरता अनुपात की ओर ले जाती है। इसके वर्ष 2050 तक 61.2 तक पहुँचने का अनुमान है।
    • कामकाजी आयु वर्ग की आबादी में कमी से आर्थिक उत्पादकता और कर आधार प्रभावित होता है।
  • आयु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता: अधिकांश सार्वजनिक स्थान और परिवहन बुजुर्गों के अनुकूल नहीं हैं: रैंप, हैंडरेल, बेंच या सुलभ शौचालयों की कमी।
    • सुरक्षित आवास, सहायता प्राप्त रहने और वरिष्ठ गतिविधि केंद्रों की बढ़ती माँग।
  • बढ़ी हुई भेद्यता: बुजुर्ग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, उदाहरण के लिए, वर्ष 2018 में 65+ में 31,000 गर्मी से संबंधित मौतें हुईं।
    • इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से बुजुर्ग महिलाएँ दुर्व्यवहार, धोखाधड़ी और उपेक्षा के प्रति भी संवेदनशील होती हैं।

सरकारी पहल

  • वृद्ध व्यक्तियों पर राष्ट्रीय नीति (NPOP), 1999
    • उद्देश्य: वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण, सम्मान और वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPHCE), 2010
    • उद्देश्य: सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के माध्यम से बुजुर्गों के लिए सुलभ, सस्ती और विशिष्ट स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना।
  • आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY), 2018
    • उद्देश्य: बुजुर्गों सहित सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करना।
    • वर्ष 2024 में, 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों तक विस्तारित किया जाएगा।
    • द्वितीयक और तृतीयक अस्पताल में भर्ती होने के लिए प्रति परिवार वार्षिक रूप से ₹5 लाख तक की सहायता प्रदान करता है, जिसमें कई बुजुर्ग-विशिष्ट स्थितियाँ (जैसे- मोतियाबिंद सर्जरी, संयुक्त प्रतिस्थापन) शामिल हैं।
  • माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (संशोधित 2019)
    • उद्देश्य: बुजुर्गों को उनके परिवारों से वित्तीय और भावनात्मक सहायता सुनिश्चित करना।
      • बच्चों या कानूनी उत्तराधिकारियों को माता-पिता/वरिष्ठ नागरिकों के लिए भरण-पोषण (₹10,000/माह तक) प्रदान करना अनिवार्य करता है।
  • राष्ट्रीय वयोश्री योजना, 2017
    • उद्देश्य: गरीबी रेखा से नीचे (BPL) परिवारों के बुजुर्गों को सहायक उपकरण प्रदान करना।
  • अटल वयो अभ्युदय योजना (AVYAY), 2021
    • उद्देश्य: वृद्धजन कल्याण योजनाओं को समेकित एवं विस्तारित करना।
  • सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ
    • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS): ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2007 में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistance Programme- NSAP) का हिस्सा।
      • 60 वर्ष से अधिक आयु के BPL बुजुर्गों को मासिक पेंशन (केंद्र सरकार द्वारा 200-500 रुपये, राज्यों द्वारा पूरक) प्रदान की जाती है।
    • अन्नपूर्णा योजना: IGNOAPS के अंतर्गत न आने वाले निराश्रित बुजुर्गों को प्रत्येक महीने 10 किलो मुफ्त अनाज दिया जाता है।
    • प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY): वरिष्ठ नागरिकों को एकमुश्त निवेश करने पर गारंटीड रिटर्न देने वाली पेंशन योजना।
    • एल्डरलाइन (14567): वरिष्ठ नागरिकों की शिकायतों के समाधान के लिए राष्ट्रीय हेल्पलाइन।

सिल्वर इकॉनमी (Silver Economy)

  • सिल्वर इकॉनमी से तात्पर्य बुजुर्ग नागरिकों से संबंधित सार्वजनिक और उपभोक्ता व्यय से उत्पन्न होने वाले आर्थिक अवसरों से है। 
  • इसमें वे उत्पाद और सेवाएँ शामिल हैं, जिन्हें वे सीधे खरीदते हैं और वे अप्रत्यक्ष आर्थिक गतिविधियाँ, जिन्हें वे प्रोत्साहित करते हैं।

भारत में बुजुर्गों की देखभाल के लिए आगे की राह

  • वृद्धावस्था स्वास्थ्य सेवा को मजबूत करना: स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के सभी स्तरों में वृद्धावस्था देखभाल को एकीकृत करना, वयस्कों के टीकाकरण (जैसे- न्यूमोकोकल, फ्लू के टीके) को शुरू करना।
    • निवारक और चिकित्सीय देखभाल में आयुष प्रणालियों को शामिल करना।
  • कुशल कार्यबल का निर्माण करना: सभी मेडिकल कॉलेजों में वृद्धावस्था चिकित्सा विभाग स्थापित करना।
    • अल्पावधि पाठ्यक्रमों के माध्यम से वृद्धावस्था नर्सों, फिजियोथेरेपिस्ट और प्राथमिक देखभाल चिकित्सकों को प्रशिक्षित करना।
    • तमिलनाडु के बुजुर्ग देखभालकर्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम जैसी राज्य-स्तरीय पहलों को आगे बढ़ाना।
  • आयु-अनुकूल बुनियादी ढाँचा विकसित करना: रैंप, लिफ्ट, हैंडरेल और शौचालयों के साथ सुरक्षित, सुलभ सार्वजनिक स्थान सुनिश्चित करना।
    • किफायती और विनियमित सहायक आवास और वरिष्ठ आवास के विकास को प्रोत्साहित करना।
  • वित्तीय सुरक्षा बढ़ाएँ: IGNOAPS तथा PMVVY के तहत पेंशन कवरेज का विस्तार करना और समय पर वितरण सुनिश्चित करना।
    • रिवर्स मॉर्गेज, बुजुर्गों के अनुकूल कर छूट तथा किफायती बीमा उत्पादों को बढ़ावा देना।
    • देखभाल और स्वयंसेवी भूमिकाओं में बुजुर्गों के अवैतनिक योगदान को मान्यता देना तथा उसका मुद्रीकरण करना।
  • मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक समावेश पर ध्यान केंद्रित करना: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को प्राथमिक देखभाल में एकीकृत करना।
    • स्कूल स्तर पर जागरूकता अभियान संचालित कर अंतर-पीढ़ीगत संबंधों को बढ़ावा देना।
    • सामुदायिक सहभागिता के लिए वरिष्ठ गतिविधि केंद्र (Senior Activity Centres- SAC) और सहकर्मी सहायता समूह स्थापित करना।
  • डिजिटल डिवाइड को समाप्त करना: वरिष्ठ नागरिकों के लिए किफायती डिजिटल उपकरणों तक पहुँच में सुधार करना।
    • बुजुर्गों को स्वास्थ्य, बैंकिंग और सरकारी सेवाओं तक पहुँचने में मदद करने के लिए डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम संचालित करना।
    • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organization- NSSO) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के केवल 13% लोगों ने कभी इंटरनेट का उपयोग किया है।
  • कानूनी और नीति कार्यान्वयन को मजबूत करना: माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम (2007) के तहत न्यायाधिकरण के मामलों में तेजी लाना।
    • बुजुर्गों से संबंधित सभी योजनाओं, सेवाओं और सहायता के लिए वन-स्टॉप पोर्टल शुरू करना।
  • नवाचार और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना: बुजुर्गों के लिए घर, डिजिटल प्लेटफॉर्म और देखभाल संबंधी बुनियादी ढाँचे के निर्माण में CSR भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
    • बुजुर्गों की तकनीक, टेलीमेडिसिन और वृद्धावस्था संबंधी सहायता में स्टार्ट-अप और नवाचारों का समर्थन करना।
    • सिल्वर इकोनॉमी का विकास करना, जिसके वर्ष 2027 तक $7B से $21B तक बढ़ने का अनुमान है।

निष्कर्ष

भारत की वृद्ध आबादी को स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा और प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने वाली एक मजबूत, समावेशी वृद्ध देखभाल प्रणाली की आवश्यकता है। नीतियों को मजबूत करना, ग्रामीण-शहरी अंतर को पाटना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना वर्ष 2050 तक बुजुर्गों के लिए सम्मान और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

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