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भारत-सऊदी अरब संबंध

Lokesh Pal April 24, 2025 03:21 15 0

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के निमंत्रण पर सऊदी अरब की दो दिवसीय यात्रा पर गए।

संबंधित तथ्य

  • अतीत में उच्च-स्तरीय यात्राएँ: मोदी की यह यात्रा वर्ष 1947 के बाद से छठी बार है, जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री सऊदी अरब गया है।
  • पूर्व प्रधानमंत्रियों की यात्राओं का घटनाक्रम
    • जवाहरलाल नेहरू: वर्ष 1955 में सऊदी अरब की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री।
    • इंदिरा गांधी: 27 वर्ष  बाद वर्ष 1982 में सऊदी अरब की यात्रा की।
    • मनमोहन सिंह: वर्ष 2010 में अपनी यात्रा की, जिसमें पिछली यात्रा से 28 वर्ष का अंतराल था।
  • भारत की विदेश नीति में सऊदी अरब का महत्त्व: प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा सऊदी अरब की उनकी तीसरी यात्रा है, इससे पहले वे वर्ष 2016 तथा वर्ष 2019 में सऊदी अरब की यात्रा कर चुके हैं।

भारत तथा सऊदी अरब के संबंधों में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ

  • वर्ष 2006 दिल्ली घोषणा: ऊर्जा, व्यापार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं राजनीतिक मुद्दों में सहयोग।
  • वर्ष 2010 रियाद घोषणा: आतंकवाद-रोधी, धन शोधन-रोधी, मादक पदार्थों, मानव तस्करी और रक्षा सहयोग पर ध्यान केंद्रित करना।
  • रणनीतिक भागीदारी परिषद (Strategic Partnership Council- SPC): यह भारत और सऊदी अरब के मध्य वर्ष 2019 में स्थापित एक उच्च-स्तरीय मंच है, जो उनके द्विपक्षीय संबंधों को मार्गदर्शन प्रदान करने और बढ़ाने के लिए है।
    • ब्रिटेन, फ्राँस और चीन के बाद भारत चौथा देश है, जिसके साथ सऊदी अरब ने ऐसी रणनीतिक साझेदारी बनाई है।

यात्रा के मुख्य परिणाम

  • रणनीतिक साझेदारी मजबूत होना: भारत-सऊदी अरब रणनीतिक साझेदारी परिषद (SPC) की दूसरी बैठक जेद्दा में भारत और सऊदी अरब की सह-अध्यक्षता में हुई।
    • रणनीतिक साझेदारी परिषद की पहली शिखर बैठक 11 सितंबर, 2023 को हुई थी।
  • रणनीतिक साझेदारी परिषद का विस्तार: दोनों नेताओं ने दो नई मंत्रिस्तरीय समितियों की स्थापना के साथ रणनीतिक साझेदारी परिषद के विस्तार का स्वागत किया।
  • भारत-सऊदी अरब SPC के तहत अब चार समितियाँ इस प्रकार होंगी:
    • राजनीतिक, वाणिज्य दूतावास और सुरक्षा सहयोग समिति, 
    • रक्षा सहयोग समिति, अर्थव्यवस्था, 
    • ऊर्जा, निवेश और प्रौद्योगिकी समिति एवं 
    • पर्यटन और सांस्कृतिक सहयोग समिति।
  • निवेश पर उच्च स्तरीय टास्क फोर्स (High Level Task Force on Investment- HLTF): भारत में प्रमुख क्षेत्रों में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की सऊदी अरब की प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाते हुए दोनों देशों ने दो रिफाइनरियों पर सहयोग के माध्यम से निवेश प्रवाह में तेजी लाने पर सहमति व्यक्त की और कराधान जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की।
  • समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding- MoU) पर हस्ताक्षर
    • शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए अंतरिक्ष गतिविधियों के क्षेत्र में अंतरिक्ष विभाग, भारत और सऊदी अंतरिक्ष एजेंसी के बीच समझौता ज्ञापन।
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत गणराज्य और स्वास्थ्य मंत्रालय, सऊदी अरब के बीच स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग पर समझौता ज्ञापन।
    • डाक विभाग, भारत और सऊदी पोस्ट कॉरपोरेशन (Saudi Post Corporation- SPL) के मध्य द्विपक्षीय समझौता।
    • एंटी-डोपिंग और रोकथाम के क्षेत्र में सहयोग के लिए भारत की राष्ट्रीय एंटी-डोपिंग एजेंसी (National Anti-Doping Agency of India- NADA), भारत और सऊदी अरब एंटी-डोपिंग समिति (Saudi Arabia Anti-Doping Committee- SAADC) के बीच समझौता ज्ञापन।

भारत-सऊदी अरब संबंधों की पृष्ठभूमि

  • स्वतंत्रता के बाद (वर्ष 1947-2000): राजनयिक संबंध वर्ष 1947 में स्थापित हुए, लेकिन ये संबंध मुख्यतः लेन-देन पर आधारित रहे, जो तेल आयात और श्रम प्रवास पर केंद्रित थे।
    • शीतयुद्ध का दौर: सऊदी अरब ने अमेरिका के साथ गठबंधन किया; भारत ने गुटनिरपेक्षता नीति का अनुसरण किया।
    • साझा सभ्यतागत संबंधों के बावजूद, भारत का अतीत का दृष्टिकोण संकोचपूर्ण और पाकिस्तान-केंद्रित दृष्टिकोण से चिह्नित था।
  • संबंधों का सामान्यीकरण (2006)
    • सऊदी अरब के क्राउन अब्दुल्ला की पहली यात्रा, वर्ष 2006 में भारत की ऐतिहासिक यात्रा (51 वर्षों में पहली) थी।
  • संबंधों का विघटन: भारत ने धीरे-धीरे सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों को पाकिस्तान संबंधी चिंताओं से अलग कर दिया।
  • 21वीं सदी का परिवर्तन: भारत की “लुक वेस्ट” नीति और सऊदी अरब के विजन 2030 के तहत संबंधों का विस्तार हुआ, जिससे संबंध रणनीतिक साझेदारी तक पहुँच गए।

भारत-सऊदी अरब और उनकी रणनीतिक साझेदारी का महत्त्व

  • व्यापार और निवेश: सऊदी अरब भारत का पाँचवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि भारत सऊदी अरब का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में, सऊदी अरब से भारत का आयात 31.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर और निर्यात 11.56 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
    • अगस्त 2023 तक, सऊदी अरब में भारतीय निवेश लगभग 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। जबकि सऊदी अरब ने अपने सार्वजनिक निवेश कोष (PIF) और अन्य सऊदी समर्थित संस्थाओं के माध्यम से भारत में लगभग 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
  • ऊर्जा भागीदारी: सऊदी अरब भारत के लिए कच्चे तेल और पेट्रोलियम का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।
    • विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत ने वित्त वर्ष 2023-24 में सऊदी अरब से 33.35 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) कच्चे तेल का आयात किया।
    • इसके अतिरिक्त, सऊदी अरब द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस (LPG) का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता था, जो इसी अवधि के दौरान भारत के कुल LPG आयात का 18.2% था।
  • रक्षा संबंध: दोनों देशों ने वर्ष 2024 में अपना पहला संयुक्त भूमि सेना अभ्यास, ‘एक्स-सदा तनसीक-I’ आयोजित किया।
    • फरवरी 2024 में, मुनिशन इंडिया लिमिटेड और एक स्थानीय सऊदी भागीदार के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे 225 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के तोपखाने गोला-बारूद की आपूर्ति की सुविधा मिली, जो रक्षा उत्पादन और निर्यात में बढ़ते सहयोग को उजागर करता है।
  • हज कोटा: भारत में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी है और सऊदी अरब हज यात्रा को सुविधाजनक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • वर्ष 2025 के लिए भारत का हज कोटा वर्ष 2014 में 1,36,020 से बढ़कर 175,025 हो गया है, जिसमें 1,22,518 तीर्थयात्रियों की व्यवस्था को अंतिम रूप दिया गया है।
  • भारतीय प्रवासी: सऊदी अरब में लगभग 2.7 मिलियन भारतीय रहते और कार्य करते हैं, जो उन्हें किंगडम में सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय बनाता है।
  • समुद्री सुरक्षा सहयोग: भारत और सऊदी अरब समुद्री मार्गों को सुरक्षित करने और अदन की खाड़ी में समुद्री डकैती का मुकाबला करने के लिए मिलकर कार्य करते हैं।
    • उदाहरण: अल मोहद अल हिंदी जैसे द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास, रणनीतिक होर्मुज जलडमरूमध्य की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • रणनीतिक क्षेत्रीय प्रभाव: सऊदी अरब मध्य पूर्व की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खासकर इजरायल-फिलिस्तीनी शांति प्रक्रिया में।
  • चीनी प्रभाव का मुकाबला करना: भारत पश्चिम एशिया में चीन की बढ़ती भू-राजनीतिक उपस्थिति को संतुलित करने के लिए सऊदी अरब के साथ जुड़ना आवश्यक मानता है।
  • पाकिस्तान पर प्रभाव: भारत आतंकवाद विरोधी वार्ता को आगे बढ़ाने के लिए पाकिस्तान पर सऊदी अरब के प्रभाव का लाभ उठा सकता है।

भारत और सऊदी अरब संबंधों में चुनौतियाँ

  • व्यापार असंतुलन: मजबूत आर्थिक संबंधों के बावजूद, भारत, सऊदी अरब के साथ महत्त्वपूर्ण व्यापार घाटे में है, जिसका मुख्य कारण कच्चे तेल का आयात है।
    • आईटी, फार्मास्यूटिकल्स और कृषि में संभावनाओं के बावजूद गैर-तेल व्यापार अवरुद्ध बना हुआ है।
  • भू-राजनीतिक चुनौतियाँ
    • ईरान और सऊदी अरब के मध्य संतुलन: भारत ईरान को नहीं छोड़ सकता (चाबहार और मध्य एशिया तक पहुँच के कारण)। लेकिन सऊदी अरब को अलग-थलग करने का जोखिम भी नहीं उठा सकता (तेल, निवेश, प्रवासी धन प्रेषण)।
    • सऊदी अरब में चीन का बढ़ता प्रभाव: बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में सऊदी अरब की भागीदारी, क्षेत्र में चीन के प्रभाव को बढ़ाती है, जो सीधे भारत के IMEC (भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर) दृष्टिकोण के साथ प्रतिस्पर्द्धा करती है।
      • सऊदी अरब तेजी से चीनी ड्रोन खरीद रहा (जैसे- विंग लूंग) है।
    • सऊदी अरब के पाकिस्तान के साथ संबंध: सऊदी अरब लंबे समय से पाकिस्तान का सहयोगी रहा है, जो वित्तीय सहायता, तेल सब्सिडी और रक्षा सहायता प्रदान करता है। इससे आतंकवाद (जैसे- जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा) जैसे मुद्दों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के भारत के प्रयासों में जटिलता आती है।
  • श्रम संबंधी चिंताएँ
    • सऊदीकरण/निताकत नीतियाँ: सऊदी अरब द्वारा निताकत कार्यक्रम के माध्यम से स्थानीय रोजगार को प्राथमिकता देने के प्रयास ने भारतीय प्रवासियों के लिए रोजगार के अवसरों को कम कर दिया है।
      • सऊदीकरण/निताकत नीतियों के तहत कंपनियों और उद्यमों को अपने कार्यबल में एक निश्चित स्तर तक सऊदी नागरिकों को शामिल करना आवश्यक है।
    • कफाला प्रणाली सुधार: सऊदी अरब ने कुछ प्रतिबंधों में ढील दी है, लेकिन भारतीय मजदूरों को अभी भी शोषणकारी कामकाजी परिस्थितियों, वेतन में देरी और सीमित कानूनी उपायों का सामना करना पड़ रहा है।
  • ऊर्जा सुरक्षा चिंताएँ
    • तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलता: भारत अपने कच्चे तेल का लगभग 18% सऊदी अरब से आयात करता है, जिससे यह ओपेक+ के उत्पादन में कटौती और कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
      • ओपेक+ का तात्पर्य पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) और सऊदी अरब सहित 10 अन्य प्रमुख तेल उत्पादक देशों के गठबंधन से है।

आगे की राह 

  • व्यापार और आर्थिक विविधीकरण
    • रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (Strategic Petroleum Reserves- SPR): सऊदी अरब के निवेश से भारत की कच्चे तेल भंडारण सुविधाओं का विस्तार करना ताकि कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचा जा सके।
    • भारत सरकार और रिफाइनर तेल खरीद के लिए गुयाना जैसे नए स्रोत बाजारों के साथ सक्रिय रूप से चर्चा कर रहे हैं।
  • रुपया-रियाल व्यापार: डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए स्थानीय मुद्राओं में द्विपक्षीय व्यापार करने के लिए व्यापक चर्चा होनी चाहिए।
  • कौशल विकास भागीदारी: भारत सऊदी अरब की तेल-पश्चात् अर्थव्यवस्था के लिए भारतीय श्रमिकों के लिए एआई, स्वास्थ्य सेवा, निर्माण प्रौद्योगिकी आदि जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन कर सकता है।
  • IMEC में तेजी लाएँ: भारत को चीन के BRI के विकल्प के रूप में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर (India-Middle East-Europe Corridor- IMEC) को पूर्ण करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे में तेजी लाने की जरूरत है।
  • रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना: भारत को जीसीसी जुड़ाव को गहरा करते हुए ईरान संबंधों को संतुलित करना चाहिए।
  • अंतरिक्ष सहयोग को मजबूत करना: सऊदी अंतरिक्ष एजेंसी उपग्रह प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष अनुसंधान और क्षमता निर्माण जैसे क्षेत्रों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के साथ रणनीतिक सहयोग की संभावना तलाश सकती है, जिससे विज्ञान और प्रौद्योगिकी में द्विपक्षीय सहयोग मजबूत होगा।

निष्कर्ष

भारत-सऊदी अरब के रिश्ते अब केवल तेल तक सीमित नहीं रह गए हैं। यह भू-राजनीतिक, ऊर्जा परिवर्तन और आर्थिक लचीलेपन के भविष्य को आकार देने से संबंधित हैं।

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