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भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को किया निलंबित

Lokesh Pal April 25, 2025 02:56 129 0

संदर्भ

भारत की सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (Cabinet Committee on Security-CCS) ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान से जुड़े आतंकवादी हमले के जवाब में 5 सूत्री कार्य योजना लागू की है।

सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (Cabinet Committee on Security-CCS) के बारे में

  • यह राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा नीति और संबंधित नियुक्तियों से संबंधित मामलों पर चर्चा और निर्णय लेने के लिए एक प्रमुख निकाय है।
  • उद्भव: वर्तमान CCS संरचना के समतुल्य एक समिति का गठन पहली बार स्वतंत्र भारत में वर्ष 1947 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा किया गया था।
    • वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध के बाद ही समिति ने सुरक्षा पर कैबिनेट समिति की वर्तमान औपचारिक संरचना को अपनाया। 
  • यह संविधानेतर निकाय (Extra–Constitutional Body) है।
  • संरचना: प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं तथा गृह, रक्षा, वित्त और विदेश मामलों के मंत्री इसके सदस्य हैं।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) इसके अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मामलों पर सचिव स्तर के समन्वयक के रूप में कार्य करता है।

संबंधित तथ्य

  • पाकिस्तान के बुनियादी ढाँचे, राजनयिक उपस्थिति और सीमाओं के पार आवाजाही को लक्षित करने के लिए 5-सूत्रीय कार्य योजना को लागू किया गया है।
  • पाकिस्तान ने वर्ष 1972 के शिमला समझौते को निलंबित कर दिया है और चेतावनी दी है कि भारत द्वारा सिंधु नदी के जल के किसी भी हिस्से को मोड़ना ‘युद्ध की कार्रवाई’ माना जाएगा।

पाकिस्तान के खिलाफ भारत की 5 सूत्री कार्य योजना

  • सिंधु जल संधि का निलंबन।
  • अटारी-वाघा सीमा चेक पोस्ट को बंद करना।
  • पाकिस्तानियों के लिए सार्क वीजा छूट योजना (SAARC Visa Exemption Scheme-SVES) को रद्द करना।
  • पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों का निष्कासन।
  • राजनयिक कर्मियों की संख्या में कमी।

भारत की 5 सूत्री कार्य योजना के बाद पाकिस्तान द्वारा घोषित प्रमुख निर्णय

  • शिमला समझौते का निलंबन।
  • राजनयिक कर्मियों की संख्या में कमी।
  • भारतीयों के लिए सार्क वीजा छूट योजना (SAARC Visa Exemption Scheme-SVES) को रद्द करना।
  • भारत के सैन्य राजनयिकों को अवांछित व्यक्ति घोषित किया गया है।
  • अटारी-वाघा सीमा को व्यापार के लिए बंद करना।

शिमला समझौते के बारे में

  • शिमला समझौता वर्ष 1971 के युद्ध के बाद जुलाई 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित किया गया था, जिसका उद्देश्य शांति पुनर्स्थापन करना और संबंधों को सामान्य बनाना था।
  • समझौते के सिद्धांत
    • द्विपक्षीय समाधान: प्रत्यक्ष द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से शांतिपूर्ण तरीके से हल किए जाने वाले मुद्दे।
    • पारस्परिक सम्मान: संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और गैर-हस्तक्षेप पर जोर देना।
    • लोगों के बीच संपर्क: मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान और सहयोग को बढ़ावा देना।
  • समझौते के प्रमुख प्रावधान
    • जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LOC) का सम्मान करना और इसका उल्लंघन करने से बचना।
    • 30 दिनों के भीतर सैनिकों को युद्ध-पूर्व स्थिति में वापस बुलाना।
    • राजनयिक संबंध, व्यापार और संचार संपर्कों का पुनर्स्थापन।
    • भारत ने 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा किया और कब्जे वाले क्षेत्रों को वापस किया।
    • स्थायी शांति और जम्मू-कश्मीर समाधान के लिए भविष्य की बैठकों के लिए प्रतिबद्धता।

शिमला समझौते के निलंबन के निहितार्थ

  • द्विपक्षीय ढाँचे को कमजोर करता है: शिमला समझौता लंबे समय से कश्मीर पर भारत की “नो थर्ड पार्टी” नीति की नींव के रूप में कार्य करता रहा है।
    • इसके निलंबन से कश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण की संभावना पुनः खुल गई है, जिसका भारत लगातार विरोध करता रहा है।
  • नियंत्रण रेखा पर समझ को अस्थिर करता है: नियंत्रण रेखा की पुष्टि और सम्मान करने में समझौते की केंद्रीय भूमिका अब खतरे में पड़ गई है।
    • इससे सैन्य तनाव बढ़ सकता है, युद्ध विराम का उल्लंघन हो सकता है या सामरिक त्रुटियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • राजनयिक संबंध टूटने का संकेत: वाघा बंद करने, वीजा प्रतिबंध और राजनयिकों के निष्कासन के साथ, यह कदम आधिकारिक संचार के लगभग पूर्ण पतन का प्रतीक है।
  • वर्ष 1971 के बाद के लाभों का समाप्त होना: शिमला ढाँचे ने तनावों के बावजूद दशकों तक युद्धों को टालने में मदद की।
    • इसका निष्क्रिय होना वर्ष 1971 से पहले की दुश्मनी की ओर लौटने का संकेत है, जहाँ दोनों पक्ष बलपूर्वक रुख पर अधिक निर्भर करते हैं।
  • तनाव बढ़ने और अलग-थलग पड़ने का जोखिम: भारत के IWT कदम को “युद्ध की कार्रवाई” के बराबर बताकर पाकिस्तान बयानबाजी को और बढ़ा रहा है।
    • हालाँकि, पाकिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ने का जोखिम है, क्योंकि बार-बार होने वाली आतंकी घटनाओं के बाद भारत के रुख को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक समर्थन मिलने की संभावना है।

सिंधु जल संधि (IWT) के बारे में

  • प्रारंभ: वर्ष 1960 में हस्ताक्षरित, विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता की गई।
  • नदियाँ: छह हिमालयी नदियों को विभाजित करती हैं:-
    • भारत का अप्रतिबंधित उपयोग: पूर्वी सहायक नदियाँ (सतलुज, ब्यास, रावी)।
    • पाकिस्तान का उपयोग: पश्चिमी सहायक नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब)।
  • विवाद समाधान तंत्र: स्थायी सिंधु आयोग (PIC) के माध्यम से समाधान। यदि समाधान नहीं होता है, तो तटस्थ विशेषज्ञ के पास मामला ले जाया जाता है। यदि दोनों पूर्ववर्ती चरण विफल हो जाते हैं, तो अंतिम चरण मध्यस्थता न्यायालय (CoA) है।

सिंधु नदी पर प्रमुख विवादित परियोजनाएँ

  • किशनगंगा जलविद्युत परियोजना (330 मेगावाट): झेलम नदी पर स्थित, पाकिस्तान ने वर्ष 2006 में आपत्ति जताई थी।
  • रातले जलविद्युत परियोजना (850 मेगावाट): चिनाब नदी पर स्थित, पाकिस्तान ने संधि के साथ इसके डिजाइन अनुपालन पर सवाल उठाया था।

सिंधु जल संधि (IWT) निलंबन का पाकिस्तान पर प्रभाव

  • जल की कमी और कृषि संकट: पाकिस्तान को 80% जल सिंधु नदी प्रणाली (झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज) से प्राप्त होता है।
    • कृषि सकल घरेलू उत्पाद में 23% का योगदान देती है और ग्रामीण पाकिस्तानियों में से 68% को रोजगार देती है।
    • 154.3 मिलियन एकड़ फीट (MAF) जल/वर्ष पाकिस्तान के 90% खाद्य उत्पादन के लिए सिंचाई में सहायता करता है।
    • निलंबन जोखिम: कम जल प्रवाह → फसल विफलताएँ, खाद्यान्न की कमी, ग्रामीण बेरोजगारी।
  • आर्थिक और खाद्य सुरक्षा परिणाम: प्रमुख फसलें (गेहूँ, चावल, कपास) सिंधु नदी के जल पर निर्भर हैं।
    • पंजाब और सिंध (पाकिस्तान का अन्न भंडार) पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ेगा। 
    • खाद्य मुद्रास्फीति और व्यापार घाटा और भी खराब होने की संभावना है।
  • जल भंडारण की कमजोर क्षमता: पाकिस्तान अपने वार्षिक जल हिस्से का केवल 10% ही संगृहीत करता है (मंगला और तरबेला बाँधों में 14.4 MAF जल है)।
    • कोई वैकल्पिक स्रोत नहीं: भूजल का पहले ही अत्यधिक दोहन हो चुका है।
  • राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता: जल की कमी से विरोध प्रदर्शन, अंतर-प्रांतीय संघर्ष (सिंध बनाम पंजाब) हो सकते हैं।
    • आर्थिक मंदी से पाकिस्तान का ऋण संकट और गहरा हो सकता है।
  • दीर्घकालिक परिणाम: यदि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद पर लगाम लगाने में विफल रहता है तो कूटनीतिक अलगाव उत्पन्न हो सकता है।
    • जलवायु परिवर्तन से जल संकट और बढ़ जाता है, पाकिस्तान सबसे अधिक जल संकट से ग्रसित देशों में से एक है।

सिंधु संधि निलंबन का भारत पर प्रभाव

  • कूटनीतिक लागत और क्षेत्रीय प्रतिक्रिया: भारत को विश्व स्तर पर सम्मानित जल-साझाकरण संधि को कमजोर करने के लिए आलोचना का जोखिम है, जिससे एक जिम्मेदार क्षेत्रीय शक्ति के रूप में इसकी छवि प्रभावित होती है।
  • कश्मीर और जल विवादों का अंतरराष्ट्रीयकरण: इस कदम से कश्मीर और जल मुद्दों पर नए सिरे से अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित हो सकता है, जिससे द्विपक्षीयता पर भारत के रुख को चुनौती मिल सकती है।
  • तकनीकी और रसद तत्परता की आवश्यकता: पश्चिमी नदी के जल के अपने हिस्से का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए भारत को बाँध एवं सिंचाई के बुनियादी ढाँचे में वृद्धि करनी चाहिए।
    • बगलिहार, किशनगंगा और रातले जैसी परियोजनाओं पर विवाद हुआ है; ऐसे और अधिक भंडारण ढाँचों की आवश्यकता है।
  • सुरक्षा और सीमा तनाव बढ़ सकता है: निलंबन से विशेषकर कश्मीर जैसे संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्य वृद्धि हो सकती है या आतंकवादी गतिविधियाँ भड़क सकती हैं।

सार्क वीजा छूट योजना (SAARC Visa Exemption Scheme) के बारे में

  • लॉन्च: वर्ष 1992 में, चौथे SAARC शिखर सम्मेलन (इस्लामाबाद, 1988) में लिए गए निर्णय के अनुसार लॉन्च किया गया।
  • उद्देश्य: एक विशेष यात्रा दस्तावेज प्रदान करना, जो SAARC सदस्य देशों में यात्रा करते समय कुछ श्रेणियों के लोगों को वीजा की आवश्यकता से छूट देता है।
  • SAARC सदस्य: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका।
  • वीजा स्टिकर
    • संबंधित सदस्य राज्यों द्वारा जारी किया गया।
    • आम तौर पर 1 वर्ष के लिए वैध।
    • शहर-विशिष्ट सीमाओं के बिना यात्रा की अनुमति देता है।
    • पुलिस रिपोर्टिंग और अतिरिक्त प्रवेश फॉर्म से छूट।
  • समीक्षा तंत्र: सदस्य देशों के आव्रजन अधिकारियों द्वारा कार्यान्वयन की समय-समय पर समीक्षा की जाती है।

भारत-पाकिस्तान संबंध की पृष्ठभूमि

  • शत्रुता का चरण (1947 – 2001)
    • विभाजन के परिणाम और कश्मीर संघर्ष: विभाजन के कारण बड़े पैमाने पर पलायन और हिंसा हुई।
      • वर्ष 1947 में कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध हुआ, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान ने एक हिस्से पर नियंत्रण हासिल कर लिया, जिससे तनाव जारी रहा। 
      • वर्ष 1949 में कराची समझौते ने संयुक्त राष्ट्र के सैन्य पर्यवेक्षकों की देख-रेख में युद्ध विराम रेखा स्थापित की और क्षेत्र में जनमत संग्रह की सिफारिश की, हालाँकि ऐसा कभी नहीं हुआ।
    • युद्ध और समझौते: वर्ष 1965 और वर्ष 1971 में हुए संघर्षों के बाद संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप और ताशकंद समझौते तथा शिमला समझौते जैसे समझौते हुए।
      • भारत ने वर्ष 1984 में सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र को सुरक्षित किया (ऑपरेशन मेघदूत)।
    • आतंकवाद और परमाणु परीक्षण: कश्मीर में उग्रवाद को पाकिस्तान का समर्थन, वर्ष 1998 में सफल परमाणु परीक्षण और वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध इस अवधि की पहचान थी।
      • वर्ष 2001 में भारतीय संसद पर हमले ने शत्रुता को और तीव्र कर दिया।
  • शांति चरण (2001-2008)
    • शांति के प्रयास: विभिन्न विफलताओं के बावजूद, लाहौर घोषणा-पत्र और वाजपेयी के सिद्धांतों जैसी पहलों का उद्देश्य संबंधों को बेहतर बनाना था।
    • समग्र वार्ता प्रक्रिया: वर्ष 2004 में शुरू हुई, जिसमें व्यापार और गैस पाइपलाइनों पर समझौते शामिल थे, जिसमें प्रगति के संकेत मिले।
    • मुंबई हमले: हालाँकि, वर्ष 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों ने संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया।
  • निष्क्रिय संबंधों का चरण (2008 – 2015)
    • कम वार्ता: इस चरण में कम-से-कम संवाद और विश्वास स्थापित करने के प्रयास देखे गए, चर्चाएँ अक्सर रुक जाती थीं।
    • ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति: भारत ने क्षेत्रीय सहयोग को प्राथमिकता दी, जिसके परिणामस्वरूप कुछ सकारात्मक संकेत और यात्राएँ हुईं।
    • भारतीय प्रधानमंत्री (PM) की पाकिस्तान यात्रा: वर्ष 2015 में, भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा ने एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का संकेत दिया।
  • नए सिरे से दुश्मनी का दौर (वर्ष 2015 – वर्तमान)
    • बढ़ती शत्रुता: हमलों और तनावों से चिह्नित, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) जैसी परियोजनाओं से और भी बढ़ गई।
    • हमलों की शृंखला: वर्ष 2019 में पुलवामा हमले सहित आतंकवादी हमलों ने भारतीय वायु सेना के बालाकोट हवाई हमलों और कूटनीतिक तनाव को जन्म दिया।
    • अप्रैल 2025: पहलगाम आतंकी हमले में 26 लोग मारे गए।
      • भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया, राजनयिकों को निष्कासित कर दिया, अटारी सीमा बंद कर दी।

भारत-पाकिस्तान संबंधों में संघर्ष के मुख्य मुद्दे

  • जम्मू और कश्मीर विवाद
    • उत्पत्ति: पाकिस्तान समर्थित कबायली आक्रमणों के बाद वर्ष 1947 में जम्मू और कश्मीर रियासत के भारत में विलय से उपजा है।
    • भारत का रुख: कानूनी रूप से शामिल किया गया क्षेत्र; कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
    • पाकिस्तान का रुख: इसमें सशर्त शामिल होना था और अंतिम स्थिति निर्धारण के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनिवार्य जनमत संग्रह की आवश्यकता है।
    • नियंत्रण रेखा (LOC): वर्ष 1949 के युद्ध विराम के बाद स्थापित और शिमला समझौते (1972) द्वारा इसकी पुष्टि की गई। 

  • सीमा पार आतंकवाद
    • संघर्ष की प्रकृति: पाकिस्तान पर कश्मीर में छद्म युद्ध छेड़ने और भारत को अस्थिर करने के लिए आतंकवाद को राज्य की नीति के रूप में प्रयोग करने का आरोप है।
    • प्रमुख घटनाएँ
      • वर्ष 2001 का संसद पर हमला
      • वर्ष 2008 का मुंबई हमला
      • वर्ष 2016 का पठानकोट और उरी हमला
      • वर्ष 2019 का पुलवामा हमला
    • भारत का पक्ष: आतंकवाद और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते; आतंकी ढाँचे को नष्ट करने का आह्वान।
    • पाकिस्तान का जवाब: इसमें शामिल होने या राज्य के समर्थन से इनकार; स्वयं को भी आतंकवाद का शिकार बताता है​।
  • सर क्रीक विवाद (Sir Creek Dispute)
    • स्थान: गुजरात (भारत) और सिंध (पाकिस्तान) के बीच भारत-पाकिस्तान सीमा पर 96 किलोमीटर लंबा ज्वारीय मुहाना।
    • मुख्य मुद्दा: सीमा सीमांकन पर विवाद; भारत थलवेग सिद्धांत (Thalweg Principle) (मध्य-चैनल रेखा) का आह्वान करता है, जबकि पाकिस्तान पुराने मानचित्रों के आधार पर पूरी खाड़ी पर अपना दावा करता है।
    • महत्त्व: समुद्री सीमा और अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) के लिए रणनीतिक दौर।
    • स्थिति: वार्ता के छह दौर पूर्ण हो चुके हैं; अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ है​।
  • सियाचिन ग्लेशियर संघर्ष
    • उत्पत्ति: ऑपरेशन मेघदूत (1984) में भारत ने सियाचिन में रणनीतिक चोटियों पर पहले से अधिकार कर लिया था।
    • भारत का दावा: सैन्य नियंत्रण और रणनीतिक आवश्यकता पर आधारित।
    • पाकिस्तान का दृष्टिकोण: भारत के अधिकार को अवैध मानता है; वापसी की माँग करता है।
    • मुद्दा: लड़ाई के बजाय ऊँचाई और मौसम के कारण भारी संख्या में सैनिकों की मृत्यु होती है। बातचीत के प्रयासों के बावजूद, यह एक सैन्यीकृत क्षेत्र बना हुआ है​।
  • सिंधु जल संधि (IWT) के तहत जल विवाद
    • पुलवामा और पहलगाम हमलों के बाद भारत ने संधि दायित्वों को निलंबित करने पर विचार किया।
  • व्यापार और पारगमन प्रतिबंध
    • व्यापार संबंध: राजनीतिक तनाव के कारण अत्यधिक प्रतिबंधित और निलंबित।
    • एमएफएन का दर्जा रद्द: पुलवामा के बाद, भारत ने पाकिस्तान को दिया गया ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (Most Favoured Nation-MFN) का दर्जा रद्द कर दिया।
    • LOC व्यापार: सीमित और प्रतीकात्मक; दुरुपयोग और तस्करी के आरोपों से घिरा हुआ।
  • चीन कारक (CPEC एवं सामरिक गठबंधन)
    • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China-Pakistan Economic Corridor-CPEC): पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) से होकर गुजरता है।
    • भारत का रुख: क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन; रणनीतिक चिंताएँ बढ़ाता है।
    • पाकिस्तान की रणनीति: क्षेत्रीय स्तर पर भारतीय प्रभाव के प्रतिकार के रूप में चीन का उपयोग करना।

भारत-पाकिस्तान सीमा

  • कुल सीमा की लंबाई: 4 भारतीय राज्यों: जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, पंजाब, राजस्थान, गुजरात द्वारा साझा की जाने वाली 3,323 किमी. लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा।
  • सीमा खंड
    • अंतरराष्ट्रीय सीमा (IB): अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त आधिकारिक सीमा।
      • गुजरात से जम्मू तक विस्तृत है।
    • नियंत्रण रेखा (LOC): वर्ष 1949 में युद्ध विराम रेखा पर सहमति बनी, जिसका नाम शिमला समझौते (1972) में LOC रखा गया।
      • जम्मू और कश्मीर को भारत प्रशासित और पाकिस्तान प्रशासित भागों में विभाजित करता है।
    • वास्तविक ग्राउंड पोजिशन लाइन (Actual Ground Position Line-AGPL): NJ9842 से सियाचिन ग्लेशियर तक फैली हुई है।
      • इसे भारत के नियंत्रण पोस्ट ऑपरेशन मेघदूत (1984) द्वारा चिह्नित किया गया था।
  • सीमा सुरक्षा
    • अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल)।
    • नियंत्रण रेखा और AGPL पर भारतीय सेना।
  • महत्त्वपूर्ण चेकपॉइंट
    • वाघा-अटारी: मुख्य आधिकारिक क्रॉसिंग पॉइंट; कूटनीतिक रूप से प्रतीकात्मक।
    • मुनाबाओ-खोखरापार: राजस्थान-सिंध सेक्टर में रेल संपर्क (थार एक्सप्रेस)।
    • उरी-मुजफ्फराबाद और पुंछ-रावलकोट: क्रॉस-LOC बस/व्यापार बिंदु।
  • सीमा बाड़ लगाना और निगरानी प्रणाली
    • घुसपैठ, तस्करी और अवैध क्रॉसिंग को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा (IB) और नियंत्रण रेखा (LOC) के प्रमुख हिस्सों पर कंटीले तारों की बाड़ लगाई गई है।
    • रात में दृश्यता में सुधार करने और अँधेरे में आवाजाही के जोखिम को कम करने के लिए लंबे हिस्सों में फ्लडलाइट का उपयोग किया जाता है।
    • भारत-पाकिस्तान सीमा के नदी के किनारों पर लेजर दीवारें।
    • रात की निगरानी बढ़ाने और कम दृश्यता की स्थिति में आवाजाही का पता लगाने के लिए ग्राउंड-आधारित सेंसर, सीसीटीवी और थर्मल इमेजिंग डिवाइस लगाए गए हैं।
    • कोहरे युक्त और पहाड़ी इलाकों में ड्रोन और यूएवी वास्तविक समय की गतिविधि पर नजर रखने में मदद करते हैं।

भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच संबंध

  • साझा सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध
    • साझा विरासत: भारत और पाकिस्तान सदियों तक विभिन्न साम्राज्यों (मुगल, ब्रिटिश राज) के अधीन एक सांस्कृतिक और राजनीतिक इकाई थे।
      • वे भाषायी जड़ें साझा करते हैं, खासकर पंजाबी, उर्दू, हिंदी और एक साझा इंडो-इस्लामिक संस्कृति।
    • धार्मिक और आध्यात्मिक विरासत: दोनों देश बुल्ले शाह, वारिस शाह और अमीर खुसरो जैसे सूफी संतों, आध्यात्मिक कवियों और संगीतकारों का सम्मान करते हैं।
      • तीर्थयात्रा आदान-प्रदान निम्नलिखित के लिए होता है:
        • ननकाना साहिब (पाकिस्तान) – गुरु नानक का जन्मस्थान।
        • अजमेर शरीफ (भारत) – मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह।
  • सांस्कृतिक समानताएँ और लोकप्रिय आदान-प्रदान
    • सिनेमा और संगीत: बॉलीवुड की फिल्में, अभिनेता और संगीत पाकिस्तान में काफ़ी लोकप्रिय हैं।
      • पाकिस्तानी टीवी धारावाहिक, कोक स्टूडियो संगीत और कलाकारों को भारत में व्यापक रूप से पसंद किया जाता है।
      • प्रतिबंधों या प्रतिबंधों के बावजूद साझा प्रशंसा प्रायः जारी रही है।
    • साहित्य और कला: दोनों देशों के लेखक और कवि, जैसे- फैज अहमद फैज, सआदत हसन मंटो, गुलजार, अमृता प्रीतम को सीमाओं के पार भी पसंद किया जाता है।
      • कला उत्सव, पुस्तक मेले और मुशायरों ने सांस्कृतिक सबंध स्थापित करने का प्रयास किया है।
  • व्यक्तिगत और मानवीय बंधन
    • सीमा पार के परिवार: विभाजन के कारण कई परिवार विभाजित हैं, फिर भी वे भावनात्मक संबंध बनाए रखते हैं।
      • इन परिवारों के बीच विवाह, मुलाकातें और पत्र-व्यवहार जारी है।
    • सार्वजनिक भावना: नागरिक अक्सर दूसरी ओर से आने वाले आगंतुकों के प्रति गर्मजोशी दिखाते हैं:
      • लाहौर में रेस्तराँ मालिकों और दिल्ली में टैक्सी चालकों ने स्नेह के प्रतीक के रूप में एक-दूसरे के देशवासियों के बिल माफ कर दिए हैं।
      • क्रिकेट प्रशंसक अक्सर टूर्नामेंट के दौरान आपसी प्रशंसा व्यक्त करते हैं।
  • औपचारिक जन-से-जन पहल
    • क्रॉस-LOC बस सेवाएँ: श्रीनगर-मुजफ्फराबाद और पुंछ-रावलकोट बस मार्ग 2000 के दशक में LOC के पार बसे परिवारों के लिए खोले गए थे।
    • क्रॉस-LOC व्यापार: वर्ष 2008 में वस्तु विनिमय प्रणाली के तहत शुरू किया गया, जो सप्ताह में कुछ दिन और विशिष्ट वस्तुओं तक सीमित था।
      • सुरक्षा और तस्करी की चिंताओं के कारण व्यापार में व्यवधान का सामना करना पड़ा है।
    • ट्रैक-II कूटनीति: परस्पर समझ को बढ़ावा देने के लिए बुद्धिजीवियों, सेवानिवृत्त अधिकारियों, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित किया जाता है।
      • ‘अमन की आशा’ अभियान जैसी पहलों ने मीडिया और सार्वजनिक जुड़ाव के माध्यम से दोस्ती को बढ़ावा देने का प्रयास किया।

भारत-पाकिस्तान संबंधों में चुनौतियाँ

  • कश्मीर विवाद और क्षेत्रीय दावे: वर्ष 1947-48 के युद्ध के बाद से मुख्य अनसुलझा मुद्दा, जिसमें पाकिस्तान समर्थित आदिवासी ‘मिलिशिया’ ने जम्मू और कश्मीर पर आक्रमण किया था।
    • हालाँकि महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए (26 अक्टूबर 1947), पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनिवार्य जनमत संग्रह की माँग करना जारी रखता है।
  • सीमा पार आतंकवाद और गैर-राज्य अभिकर्ताओं का उपयोग: पाकिस्तान द्वारा लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी समूहों का निरंतर समर्थन जारी है।
    • इन हमलों ने समग्र वार्ता और व्यापक द्विपक्षीय वार्ता सहित शांति वार्ता को बार-बार बाधित किया है।
  • संवाद तंत्र का टूटना: हालाँकि समग्र वार्ता प्रक्रिया (1997), आगरा शिखर सम्मेलन (2001) और लाहौर घोषणा (1999) जैसे ढाँचों ने उम्मीद जगाई थी, लेकिन आतंकवादी घटनाओं के कारण ये सभी पटरी से उतर गए।
    • पठानकोट (2016) और पुलवामा (2019) के बाद, सभी उच्च-स्तरीय संपर्क समाप्त हो गए।
  • सिंधु जल संधि में टकराव: मूल रूप से सहयोग के प्रतीक के रूप में देखी जाने वाली सिंधु जल संधि (1960) अब अप्रभावी है।
    • भारत पाकिस्तान पर बाँध परियोजनाओं (जैसे- किशनगंगा, रातले) में बाधा डालने और मध्यस्थता तंत्र का दुरुपयोग करने का आरोप लगाता है।
  • सैन्यीकरण और सीमा तनाव: नियंत्रण रेखा (LOC) और सियाचिन ग्लेशियर पर भारी सैन्यीकरण जारी है।
    • फरवरी 1999 में लाहौर यात्रा के बावजूद, कारगिल में घुसपैठ कुछ ही महीनों बाद हुई, जिसे भारत द्वारा विश्वासघात के रूप में देखा गया।
  • वैचारिक और राजनीतिक शत्रुता: पाकिस्तान की पहचान भारत के विरोध से संबंधित है, अक्सर वह स्वयं को एक प्रतिपक्ष के रूप में देखता है।
    • पाकिस्तान में नागरिक-सैन्य असंतुलन नीतिगत असंगति का कारण बनता है, खासकर विदेशी मामलों में सेना के प्रभुत्व के कारण।
  • चीन-पाकिस्तान धुरी और भू-रणनीतिक चिंताएँ: चीन द्वारा पाकिस्तान का समर्थन (जैसे- POK के माध्यम से CPEC) भारत पर अतिरिक्त रणनीतिक दबाव बनाता है।
    • भारत चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का विरोध करता है, इसे संप्रभुता का उल्लंघन मानता है।

भारत-पाकिस्तान संबंधों में आगे की राह

  • सख्त परिसीमन: आतंक और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते हैं: भारत का आधिकारिक रुख इस बात की पुष्टि करता है कि सार्थक वार्ता केवल आतंक और हिंसा से मुक्त वातावरण में ही संभव है।
    • किसी भी तरह की वार्ता पाकिस्तान द्वारा अपनी धरती से संचालित आतंकवादी समूहों के विरुद्ध सत्यापन योग्य कार्रवाई पर निर्भर होनी चाहिए।
  • संरचित वार्ता तंत्र का पुनरुद्धार: यदि परिस्थितियाँ अनुमति देती हैं, तो दोनों देश व्यापक द्विपक्षीय वार्ता (CBD), ट्रैक-II कूटनीति और तकनीकी-स्तरीय वार्ता (जैसे- जल-बँटवारा, व्यापार) जैसी औपचारिक और चरणबद्ध प्रक्रिया के माध्यम से फिर से जुड़ सकते हैं।
    • CBD की शुरुआत वर्ष 2015 में सुषमा स्वराज की यात्रा के दौरान की गई थी; समग्र वार्ता जैसी पहल के ढाँचों ने भी कई द्विपक्षीय मुद्दों को संबोधित किया था।
  • लोगों के बीच आपसी जुड़ाव को मजबूत करना: राजनयिक ठहराव के बावजूद, सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना, छात्रों/वरिष्ठ नागरिकों के लिए वीजा उदारीकरण, धार्मिक तीर्थयात्रा आदि से विश्वास का पुनर्निर्माण किया जा सकता है।
    • जहाँ संभव हो, खेल, कला और मीडिया सहयोग को प्रोत्साहित करना।
  • सिंधु जल संधि का पारदर्शिता के साथ पुनर्मूल्यांकन: हालाँकि भारत ने असंतोष व्यक्त किया है, अनुच्छेद XII के तहत संशोधन द्विपक्षीय परामर्श के माध्यम से संभव है।
    • दोनों पक्ष विवाद समाधान, जलविद्युत समन्वय और जलवायु से जुड़े जल प्रशासन के लिए संयुक्त तंत्र की खोज कर सकते हैं।
  • सीमा पर विश्वास-निर्माण उपाय (Confidence-Building Measures-CBMs): नियंत्रण रेखा और सियाचिन पर सैन्य हॉटलाइन संचार, अभ्यास के लिए अग्रिम सूचना, पर्यवेक्षक-स्तरीय समन्वय जैसी पहलों से सामरिक गलतफहमियों को कम किया जा सकता है।
    • वर्ष 1991 और वर्ष 2003 के युद्ध विराम समझौते और सैन्य CBMs ने अस्थायी रूप से तनाव कम करने में मदद की।
  • बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से जुड़ना: SAARC, SCO और UN कम जोखिम युक्त वार्ता शुरू करने के लिए तटस्थ स्थल के रूप में कार्य कर सकते हैं।
    • उदाहरण: ‘हार्ट ऑफ एशिया’ प्रक्रिया और सार्क शिखर सम्मेलन के दौरान पहले भी इस तरह की प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जा चुका है।
  • पाकिस्तान में आंतरिक स्थिरता और नागरिक नियंत्रण को बढ़ावा देना: द्विपक्षीय संबंधों में दीर्घकालिक स्थिरता पाकिस्तान की विदेश नीति में सैन्य प्रभुत्व को कम करने पर निर्भर हो सकती है।
    • जब शांति के लिए वास्तविक उद्देश्य हो तब भारत नागरिक नेतृत्व वाली पहल को प्रोत्साहित कर सकता है और उस पर प्रतिक्रिया दे सकता है।

निष्कर्ष  

हाल ही में पहलगाम हमले के मद्देनजर भारत के निर्णायक कदम (सिंधु जल संधि को निलंबित करना, सीमा बंद करना और राजनयिक संबंधों को कमतर करना) सीमा पार आतंकवाद के प्रति जीरो-टाॅलरेंस के दृष्टिकोण की ओर एक दृढ़ बदलाव का संकेत देते हैं। हालाँकि शांति अभी भी वांछनीय है, सुरक्षा और जवाबदेही अब किसी भी भविष्य की भागीदारी के लिए अपरिहार्य आधार रेखा बन गई है।

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