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SC , ST और OBC रिपोर्ट में देरी

Lokesh Pal April 28, 2025 02:38 12 0

संदर्भ

SC, ST और OBC राष्ट्रीय आयोगों की एक दर्जन से अधिक वार्षिक रिपोर्टें लंबित हैं, जिनमें दो से सात वर्ष तक की देरी हो रही है, जिससे समय पर नीतिगत हस्तक्षेप में बाधा उत्पन्न हो रही है।

विलंब के मुख्य कारण

  • कार्रवाई रिपोर्ट के कारण प्रक्रियागत विलंब: सरकार द्वारा विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट संलग्न करने की आवश्यकता ने इन रिपोर्टों को सार्वजनिक करने की प्रक्रिया में काफी विलंब किया है।
  • संसाधन की कमी और कम प्राथमिकता: आयोगों के पास सीमित संसाधन तथा नोडल मंत्रालयों द्वारा अपर्याप्त प्राथमिकता निर्धारण के कारण रिपोर्टों को अंतिम रूप देने तथा प्रस्तुत करने में देरी होती है।

रिपोर्ट में देरी का प्रभाव

  • सिफारिशों की प्रासंगिकता में कमी: विलंबित रिपोर्ट अक्सर महत्त्वपूर्ण सिफारिशों को अप्रासंगिक बना देती हैं, जिससे हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए नीति निर्माण पर उनका प्रभाव कम हो जाता है।
  • संवैधानिक जनादेश का कमजोर होना: जब रिपोर्ट को तुरंत सार्वजनिक नहीं किया जाता है, तो SC, ST और OBC समुदायों की सुरक्षा तथा कल्याण सुनिश्चित करने के लिए इन आयोगों की संवैधानिक भूमिका कमजोर हो जाती है।
  • नीतिगत सुधारों के लिए छूटे अवसर: आरक्षण दिशा-निर्देश, क्रीमीलेयर मानदंड और कल्याणकारी योजनाओं सहित महत्त्वपूर्ण नीतिगत क्षेत्र अद्यतन आँकड़ों तथा समय पर सुझावों की कमी से ग्रस्त हैं। 
  • जवाबदेही का कमी: हाशिए पर पड़े समूहों के लिए सुरक्षा उपायों और संरक्षण को लागू करने में केंद्र तथा राज्य सरकारों दोनों के लिए जवाबदेही तंत्र में विलंब होता है।

रिपोर्टिंग प्रक्रिया में तेजी लाने के तरीके

  • संस्थागत क्षमता को मजबूत करना: रिपोर्ट संकलित करने पर वर्ष भर कार्य करने के लिए आयोगों को विशेषज्ञों की समर्पित टीम और पर्याप्त वित्तीय संसाधन आवंटित किए जाने चाहिए।
  • कार्रवाई-संबंधी रिपोर्टिंग को सुव्यवस्थित करना: आयोग की रिपोर्ट के प्रारूपण के साथ-साथ कार्रवाई-संबंधी रिपोर्टों के समानांतर प्रसंस्करण से संसद में प्रस्तुतिकरण और पटल पर रखे जाने के बीच के अंतराल को कम किया जा सकता है।
  • नोडल मंत्रालयों द्वारा प्रस्तुत करने को प्राथमिकता देना: विभिन्न आयोगों की देख-रेख करने वाले मंत्रालयों को समय पर प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए इन रिपोर्टों को संसाधित करने और उन्हें तुरंत प्रस्तुत करने को उच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • विधायी समय सीमा निर्धारित करना: रिपोर्ट प्रस्तुत करने, समीक्षा करने और उन्हें प्रस्तुत करने के लिए वैधानिक समय सीमाएँ शुरू करने से जवाबदेही को संस्थागत बनाया जा सकता है और अत्यधिक विलंब को रोका जा सकता है।
  • रिपोर्टिंग प्रक्रिया को डिजिटल बनाना: रिपोर्ट तैयार करने, समीक्षा करने और प्रकाशित करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का लाभ उठाने से मैनुअल प्रक्रियाओं में लगने वाले समय में काफी कमी आ सकती है।

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग

पहलू

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC)

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC)

परिचय अनुसूचित जातियों के अधिकारों की रक्षा करता है। अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों और सुरक्षा उपायों की रक्षा करता है। अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण और अधिकारों के लिए कार्य करना।
स्थापना वर्ष 2004 (पहले अनुसूचित जनजातियों के साथ संयुक्त, 89वें संशोधन के बाद अलग)। वर्ष 2004 (89वें संशोधन के बाद SC और ST आयोग से अलग)। वर्ष 1993 (सांविधिक); वर्ष 2018 में संवैधानिक निकाय बन गया (102वाँ संशोधन)।
निकाय  अनुच्छेद-338 के तहत संवैधानिक निकाय। अनुच्छेद-338A के तहत संवैधानिक निकाय। अनुच्छेद-338B के तहत संवैधानिक निकाय (2018 के बाद)।
नोडल मंत्रालय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय जनजातीय कार्य मंत्रालय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय
भूमिका
  • अनुसूचित जातियों के लिए सुरक्षा उपायों की निगरानी करना।
  • शिकायतों की जाँच करना।
  • अनुसूचित जाति कल्याण हेतु योजना पर सलाह देना।
  • अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षा उपायों की निगरानी करना।
  • उल्लंघनों की जाँच करना।
  • अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
  • OBC के लिए शिकायतों और कल्याणकारी उपायों की जाँच करना।
  • OBC आरक्षण पर सलाह देना।
  • ओबीसी सूची में शामिल करने/बहिष्कृत करने की सिफारिश करना।

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