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भारत में मध्यस्थता पारिस्थितिक तंत्र और उसकी वैश्विक भूमिका

Lokesh Pal April 28, 2025 05:15 10 0

संदर्भ:

भारत का लक्ष्य अपने मध्यस्थता पारिस्थितिक तंत्र को मजबूत करना है, लेकिन मुख्य उद्देश्य वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए विशिष्ट प्रशिक्षण के साथ विशेष, विविध मध्यस्थों को विकसित करने की ओर होना चाहिए।

भारत में मध्यस्थता

  • वाणिज्यिक विवादों में वृद्धि: भारत की आर्थिक उन्नति ने स्वाभाविक रूप से विकास में प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में भारतीय मध्यस्थता की क्षमता पर चर्चा को बढ़ावा दिया है। घरेलू और सीमापार व्यापार में वृद्धि ने वाणिज्यिक विवादों को अपरिहार्य बना दिया है।
  • बोझिल न्यायिक प्रणाली: भारतीय न्यायिक तंत्र अत्यधिक बोझिल और अकुशबना हुआ है, तथा बड़ी धनराशि वाले गैर-संवेदनशील और तकनीकी विवादों से जूझ रहा है
  • मध्यस्थ संस्थाएँ: वाणिज्यिक मध्यस्थता, विशेष रूप से विशिष्ट मध्यस्थ संस्थाओं के माध्यम से, एक लोकप्रिय समाधान के रूप में उभरी है। हालाँकि, महत्त्वपूर्ण प्रश्न बने हुए हैं: क्या भारतीय मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र अपनी अपेक्षाओं पर खरा उतर रहा है?; क्या भारत मध्यस्थता का वैश्विक केंद्र बन सकता है ?; आदि | 
  • विधायी सुधारों से परे: जबकि चर्चाओं में प्रायः विधायी सुधारों और न्यायिक हस्तक्षेप को न्यूनतम करने पर बल दिया जाता हैमध्यस्थों – प्रमुख हितधारकों – की भूमिका अक्सर गंभीर जाँच से बच जाती है।
  • मानव पूँजी की भूमिका: किसी भी कानूनी प्रणाली की सफलता उसकी मानव पूँजी पर अत्यधिक निर्भर करती है। भारतीय मध्यस्थता के लिए, इसमें मध्यस्थता वकील शामिल हैं। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है, कि मध्यस्थ अंतिम निर्णयकर्ता के रूप में कार्य करते हैं 
  • विश्वसनीयता और वैधता: भारतीय मध्यस्थता की विश्वसनीयता और वैधता काफी हद तक कार्यवाही के कुशल संचालन तथा मध्यस्थता पुरस्कारों की गुणवत्ता से निर्धारित होती है।
  • शक्तियाँ: मध्यस्थों के पास महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ होती हैं, जैसे- प्रक्रियात्मक रूपरेखा निर्धारित करना, समय-सीमा तय करना, प्रक्रियात्मक मुद्दों का निर्धारण एवं कदाचार के लिए मौद्रिक प्रतिबंध लगाना।
  • न्यायिक समीक्षा के अधीन: उनके मध्यस्थता निर्णयों को भारत या विदेश में सक्षम न्यायालयों के समक्ष चुनौती दी जा सकती है तथा उनकी गुणवत्ता और निष्पक्षता की जाँच की जा सकती है। 
    • इस प्रकार भारतीय मध्यस्थ, मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र के केंद्र में है, जो सीधे इसकी सफलता और अंतर्राष्ट्रीय विश्वसनीयता को प्रभावित करता है।

भारत में मध्यस्थता से संबंधित मुद्दे

  • उद्देश्य या लक्ष्य का अभाव: भारतीय मध्यस्थता के संबंध में श्रेष्ठ भारतीय मध्यस्थों को विकसित करने की आवश्यकता को प्रायः नजरअंदाज कर दिया जाता है। जबकि भारतीय मध्यस्थता बार (Indian arbitration bar) का विस्तार करने की पहल व्यापक है, मध्यस्थता बेंच विकसित करने के लिए बहुत कम उत्साह है। यह अनदेखी दुर्भाग्यपूर्ण है
  • अवलोकन: मार्च 2024 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीशन्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने प्रश्न किया, कि भारतीय मध्यस्थों को शायद ही कभी ऐसे अंतरराष्ट्रीय विवादों में नियुक्त किया जाता है, जिनमें कोई घरेलू तत्त्व मौजूद नहीं होते हैं।  
    • उनकी टिप्पणी एक महत्त्वपूर्ण अंतर को उजागर करती है: भारतीय मध्यस्थ, कुलीन अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता समुदाय से बड़े पैमाने पर अनुपस्थित हैं
  • न्यायिक नियुक्तियाँ: भारत में प्रमुख प्रथा यह है, कि सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय या हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया जाता है, मुख्य तौर पर उच्च मूल्य संबंधी विवादों में। इससे यह व्यापक धारणा बन गई है, कि न्यायिक अनुभव मध्यस्थता में दक्षता के बराबर है।
  • वित्त मंत्रालय के 2024 के दिशा-निर्देश: दिशा-निर्देशों से पता चलता है, कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के नेतृत्व में मध्यस्थता की कार्यवाही प्रायः न्यायालयी प्रक्रियाओं की नकल करती है, जिसके परिणामस्वरूप:
    • कार्यवाहियाँ दीर्घकालिक और महँगी होती हैं ।

आगे की राह

  • मध्यस्थता कौशल: जबकि न्यायिक मस्तिष्क (judicial mind) एक संपत्ति है, यह मध्यस्थता के क्षेत्र में अपर्याप्त है। एक सक्षम मध्यस्थ को केवल विधिक ज्ञान से अधिक की आवश्यकता होती है। एक मध्यस्थ को एक अनुभवी मध्यस्थ भी होना चाहिए। विवाद समाधान प्रक्रिया का एक कुशल प्रबंधक भी होना चाहिए, जिसमें शामिल हैं:
    • प्रक्रियागत निश्चितता;
    • लचीलापन और नवीनता।
  • कठोरता से परे: इसके लिए सिविल प्रक्रिया और साक्ष्य कानूनों के कठोर ढाँचे से आगे बढ़कर कानूनी प्रक्रिया को अपनाना आवश्यक है। अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए अद्वितीय वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं की आवश्यकता है।
  • सॉफ्ट स्किल्स: मध्यस्थ अक्सर विभिन्न राष्ट्रीयता और संस्कृति के सदस्यों वाले न्यायाधिकरणों में कार्य करते हैं ।  
    • इन परिस्थितियों में आंतरिक विचार-विमर्श महत्त्वपूर्ण है, ऐसे में सहकर्मियों को समझाने की क्षमता अर्थात सॉफ्ट स्किल्स की आवश्यकता होती है, जिसे ग्रहण नहीं किया जा सकता बल्कि इसके लिए विशिष्ट प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
  • मध्यस्थ पुरस्कार का मसौदा (Drafting Arbitral Awards): मध्यस्थ पुरस्कार का मसौदा तैयार करना सामान्य विधिक न्यायालयी निर्णय लिखने से बहुत अलग है। इसमें शामिल है:
    • दस्तावेजी साक्ष्य और साक्ष्यों की सावधानीपूर्वक जाँच
    • क्षतिपूर्ति या क्षति का आकलन करने के लिए जटिल वित्तीय विश्लेषण
  • उम्मीदवार समूह का विस्तार: भारतीय मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार करने के लिए, भारतीय मध्यस्थों के समूह में विविधता होनी चाहिए। इसे अधिवक्ताओं और वकीलों या सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारियों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए। 
    • इसके बजाय, वित्त और तकनीकी डोमेन जैसे- विभिन्न क्षेत्रों के प्रशिक्षित विशेषज्ञों को भी सूक्ष्म दृष्टिकोण लाने के लिए विचार किया जाना चाहिए।
  • प्रशिक्षण: प्रत्येक संभावित मध्यस्थ को, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो, एक कठोर प्रशिक्षण प्रक्रिया से गुजरना होगा, मध्यस्थता संस्थानों द्वारा  विशेष प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रमों  या कार्यशालाओं के माध्यम से मान्यता प्राप्त करनी होगी। 
    • इसका लक्ष्य व्यक्तियों को कुशल बनाना तथा ऐसी संस्कृति विकसित करना है, जहाँ मध्यस्थता को न्यायालय की उपेक्षित कार्यवाही के रूप में न देखा जाए।

निष्कर्ष

भारत को मध्यस्थता के लिए वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए, विशिष्ट भारतीय मध्यस्थ को विकसित, प्रशिक्षित और मान्यता प्रदान की जानी चाहिए। केवल विविधीकरणक्षमता निर्माण और प्रशिक्षण के माध्यम से ही भारत एक मज़बूत मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित कर सकता है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

जाँच कीजिए, कि भारत के मध्यस्थता पारिस्थितिकी तंत्र को वैश्विक केंद्र बनने के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। मध्यस्थ चयन में चुनौतियों पर चर्चा कीजिए तथा भारत में विश्व स्तरीय मध्यस्थता मानव पूँजी विकसित करने के लिए एक रोडमैप सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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