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Lokesh Pal
April 29, 2025 05:00
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“केवल हृदय से ही व्यक्ति सही रूप से देख सकता है, जो आवश्यक है वह आँखों के लिए अदृश्य है |”– एंटोनी डी सेंट-एक्सुपेरी
17वीं और 18वीं लोकसभा के दौरान उपाध्यक्ष का पद लंबे समय तक रिक्त रहना एक गंभीर संवैधानिक विसंगति को दर्शाता है।
अब समय आ गया है, कि संसद संवैधानिक मानदंडों और संस्थागत अखंडता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि करे। उपाध्यक्ष का पद महज औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह सदन की नियम-आधारित शासन प्रणाली की सुनिश्चितिता का प्रतीक है।
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