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उप-सभापति: प्रतीकात्मक या वैकल्पिक पद नहीं

Lokesh Pal April 30, 2025 03:00 20 0

संदर्भ

मई 2019 से 17वीं लोकसभा के दौरान रिक्त रहा उप-सभापति का पद, 18वीं लोकसभा के 10 महीने बाद भी रिक्त है, जो एक संवैधानिक विसंगति को दर्शाता है।

लोक सभा उपाध्यक्ष के बारे में

  • भारत के आधिकारिक वरीयता क्रम में लोकसभा के उपाध्यक्ष का स्थान 10वाँ है।
  • यह पद निम्नलिखित के साथ साझा किया जाता है
    • राज्य सभा के उपसभापति
    • केंद्रीय मंत्रिपरिषद में राज्य मंत्री।
    • पूर्व योजना आयोग के सदस्य (जब यह अस्तित्व में था)।

उल्लेखनीय उपसभापति

  • सच्चिदानंद सिन्हा (1921): ब्रिटिश शासन के दौरान केंद्रीय विधानसभा के प्रथम उपसभापति (तब उप-राष्ट्रपति कहलाते थे)।
  • एम. अनंतशयनम अयंगर (वर्ष 1952-1956): स्वतंत्र भारत की लोकसभा के प्रथम निर्वाचित उप-सभापति
  • जी.जी. स्वेल (वर्ष 1969-1977): कांग्रेस के प्रभुत्व के दौरान उप-सभापति के रूप में निर्वाचित स्वतंत्र सांसद।
  • गोडे मुरहारी (वर्ष 1977-1979): कांग्रेस सांसद, जिन्होंने जनता पार्टी सरकार के दौरान उप-सभापति के रूप में कार्य किया।
  • पी.एम. सईद (वर्ष 1998-1999): कांग्रेस नेता ने NDA शासन के तहत उप-सभापति के रूप में कार्य किया, जो द्विदलीय सहयोग को दर्शाता है।
  • चरणजीत सिंह अटवाल (वर्ष 2004-2009): शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal- SAD) के सदस्य, UPA-I सरकार के दौरान उप-सभापति के रूप में कार्य किया।

संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद-93 – लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
    • अधिदेश: लोकसभा को अपने दो सदस्यों – एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष – का यथाशीघ्र चुनाव करना चाहिए।
      • यदि बाद में कोई भी पद रिक्त हो जाता है, तो सदन को उसे भरने के लिए शीघ्र ही किसी अन्य को चुनना चाहिए।
  • अनुच्छेद 94 — अवकाश, त्याग-पत्र और निष्कासन
    • पद छोड़ना: यदि उप-सभापति लोकसभा का सदस्य नहीं रह जाता है।
    • त्यागपत्र: अध्यक्ष को पत्र लिखकर त्याग-पत्र दे सकता है।
    • हटाना: सदन के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत (अर्थात् प्रभावी बहुमत) द्वारा पारित प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है।
      • संकल्प प्रस्तुत करने से पहले 14 दिन का नोटिस दिया जाना चाहिए।
  • अनुच्छेद-95 — उपसभापति के कर्तव्य
    • रिक्ति के दौरान (अनुच्छेद-95(1)): यदि अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है, तो उपाध्यक्ष अध्यक्ष के सभी कर्तव्यों का पालन करता है।
    • अनुच्छेद-95(2): यदि अध्यक्ष किसी बैठक से अनुपस्थित रहता है, तो उपाध्यक्ष पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य करता है।
    • शक्तियाँ: अध्यक्ष की अध्यक्षता करते समय अध्यक्ष की सभी शक्तियाँ और विशेषाधिकार रखता है।
  • अनुच्छेद-96 — निष्कासन प्रस्ताव के दौरान प्रतिबंध
    • जब उप-सभापति को हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो
      • उप-सभापति सत्र की अध्यक्षता नहीं कर सकते।
      • हालाँकि, वह बहस में भाग ले सकते हैं तथा शुरू में वोट कर सकते हैं, लेकिन ‘टाई-ब्रेकिंग’ वोट नहीं दे सकते।
  • अनुच्छेद-97 — वेतन और भत्ते
    • उपसभापति का वेतन और भत्ते संसद द्वारा तय किए जाते हैं।
    • जब तक संसद अन्यथा प्रावधान नहीं करती, उन्हें संविधान की दूसरी अनुसूची के अनुसार भुगतान किया जाता है।
    • भारत की संचित निधि पर भारित (अर्थात् संसद के मत के अधीन नहीं)।
  • लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम
    • नियम 8: अध्यक्ष उपसभापति के चुनाव की तिथि तय करता है।
      • चुनाव उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से होता है।

लोक सभा के उपाध्यक्ष की कार्यात्मक भूमिका

  • सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करना
    • अनुपस्थिति में अध्यक्ष के रूप में कार्य करना: अध्यक्ष की अनुपस्थिति में लोकसभा सत्रों की अध्यक्षता करना।
    • व्यवस्था बनाए रखना: शिष्टाचार सुनिश्चित करना, बहस को विनियमित करना और संसदीय नियमों को लागू करना।
    • व्यवस्था के बिंदुओं पर निर्णय लेना: चर्चा के दौरान सांसदों द्वारा उठाए गए प्रक्रियात्मक मामलों से संबंधित नियम बनाना।
  • विधायी कार्य
    • निर्णायक मत: विधेयकों/संकल्पों पर मतदान के दौरान बराबरी की स्थिति में निर्णायक मत का प्रयोग करता (अध्यक्षता करते समय) है।
    • समिति की निगरानी: स्वतः ही किसी संसदीय समिति का अध्यक्ष बन जाता है, जिसके वे सदस्य (जैसे- निजी सदस्यों के विधेयक समिति) हैं।
    • संयुक्त बैठकें: यदि अध्यक्ष अनुपस्थित हैं तो संसद के संयुक्त सत्रों की अध्यक्षता करता (लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के अनुसार )है।
  • प्रशासनिक कर्तव्य
    • अध्यक्ष की सहायता करना: सदन के कामकाज के प्रबंधन में कार्यभार साझा करता है, जिसमें बहस और मतदान की समय-सारणी बनाना शामिल है।
    • लोकसभा का प्रतिनिधित्व करना: औपचारिक कार्यक्रमों और राजनयिक कार्यक्रमों में सदन का आधिकारिक रूप से प्रतिनिधित्व करता है।
  • संवैधानिक सुरक्षा
    • सदन की निरंतरता: यदि अध्यक्ष का पद रिक्त हो (जैसे- त्याग-पत्र, मृत्यु) तो निर्बाध संसदीय कार्य सुनिश्चित करता है।
    • आपातकालीन भूमिका: संकट के समय (जैसे- अध्यक्ष का अचानक अक्षम हो जाना) हस्तक्षेप करता है।
  • अर्द्ध-न्यायिक शक्तियाँ
    • अयोग्यता मामले: अध्यक्ष के रूप में कार्य करते समय दलबदल विरोधी मामलों (10वीं अनुसूची) पर निर्णय ले सकते हैं।
    • विशेषाधिकारों पर निर्णय: अध्यक्षता करते समय संसदीय विशेषाधिकार के उल्लंघन पर निर्णय लेते हैं।
  • वाद-विवाद में भागीदारी
    • अध्यक्ष के विपरीत, उपसभापति:
      • बहस में बोल सकता है (जब अध्यक्षता न कर रहे हों)।
      • नियमित सांसद के रूप में मतदान करना (कार्यवाही की अध्यक्षता करते समय को छोड़कर)।

लोकसभा के उपाध्यक्ष का संस्थागत महत्त्व

  • संवैधानिक लोकतंत्र को जारी रखना
    • अनुच्छेद-93 द्वारा अधिदेशित: निर्बाध संसदीय कार्यप्रणाली सुनिश्चित करने के लिए संविधान निर्माताओं के उद्देश्य को दर्शाता है।
    • नियंत्रण तथा संतुलन: अध्यक्ष/सत्तारूढ़ दल के साथ सत्ता के अत्यधिक केंद्रीकरण को रोकता है।
  • द्विदलीयता का प्रतीक
    • विपक्षी प्रतिनिधित्व: पारंपरिक रूप से विपक्ष को (11वीं लोकसभा से) यह सुविधा दी जाती है, जिससे समावेशिता को बढ़ावा मिलता है।
    • सर्वसम्मति निर्माण: विधायी प्रक्रियाओं में अंतर-दलीय सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • संसदीय निरंतरता की सुरक्षा
    • संस्थागत अतिरेक: स्पीकर की अनुपस्थिति/रिक्त स्थान (जैसे- मृत्यु, त्याग-पत्र) के दौरान निर्बाध संक्रमण सुनिश्चित करता है।
    • संकट प्रबंधन: आपात स्थितियों में महत्त्वपूर्ण (जैसे- अचानक विघटन, राजनीतिक अस्थिरता)।
  • विधायी जवाबदेही को मजबूत करना
    • तटस्थ मध्यस्थ: वैकल्पिक पीठासीन प्राधिकरण प्रदान करके सत्ता की गतिशीलता को संतुलित करता है।
    • निगरानी भूमिका: प्रमुख समितियों (जैसे, निजी सदस्यों के विधेयक) की अध्यक्षता करता है, यह सुनिश्चित करता है कि विविध अभिव्यक्तियाँ सुनी जाएँ।
  • लोकतांत्रिक मानदंडों को मजबूत करना
    • सम्मेलन बनाम अनुपालन: रिक्त स्थान अलिखित संसदीय परंपराओं के क्षरण का संकेत देता है।
    • न्यायिक जाँच: सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप (जैसे- वर्ष 2023 की जनहित याचिका) पद की संवैधानिक पवित्रता को प्रदर्शित करता है।
  • तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य
    • वैश्विक प्रथाएँ: यूके/कॉमनवेल्थ संसद में समान भूमिकाएँ संस्थागत लचीलेपन पर जोर देती हैं।
    • राज्य विधानसभाएँ: संवैधानिक अधिदेश (अनुच्छेद-178) को प्रतिबिंबित करती हैं, जो अखिल भारतीय महत्त्व को रेखांकित करती हैं।

उप-सभापति से संबंधित न्यायपालिका के निर्णय

  • किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्हू एवं अन्य वाद (1992)
    • मुद्दा: क्या दलबदल विरोधी कानून (दसवीं अनुसूची) के तहत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं?
    • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: ऐसा माना गया कि अध्यक्ष (या उपाध्यक्ष) दसवीं अनुसूची के तहत न्यायाधिकरण के रूप में कार्य करता है।
      • उनके निर्णय अनुच्छेद-32 और 226 (मौलिक अधिकार और उच्च न्यायालय रिट क्षेत्राधिकार) के अंतर्गत न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं।
  • नबाम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016)
    • मुद्दा: अयोग्यता कार्यवाही और अध्यक्ष को हटाने के लिए नोटिस के संबंध में उपसभापति की शक्तियाँ।
    • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: यदि अध्यक्ष को हटाने का नोटिस लंबित है, तो अध्यक्ष (या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने वाला उप-सभापति) अयोग्यता के मामलों पर फैसला नहीं सुना सकता।

भारत में उप-सभापति की भूमिका का ऐतिहासिक संदर्भ और विकास

  • औपनिवेशिक उत्पत्ति (1919-1947)
    • भारत सरकार अधिनियम, 1919: केंद्रीय विधानसभा में उप-सभापति का पद स्थापित किया (भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत इसका नाम बदलकर उप-सभापति कर दिया गया) गया।
    • प्रथम उप-सभापति: सच्चिदानंद सिन्हा को वर्ष 1921 में ब्रिटिश गवर्नर-जनरल द्वारा नियुक्त किया गया।
    • भूमिका की प्रकृति: औपचारिक, विधायी सत्रों की अध्यक्षता करने में अध्यक्ष की सहायता करना।
  • संविधान का निर्माण (वर्ष 1947- वर्ष 1950)
    • संविधान सभा की बहसें: संसदीय कार्यवाही की निरंतरता के लिए उप-सभापति को एक महत्त्वपूर्ण तत्व माना गया।
    • अंबेडकर का हस्तक्षेप: अध्यक्ष के समानांतर एक स्वतंत्र और निष्पक्ष उप-सभापति की आवश्यकता पर बल दिया गया।
    • अनुच्छेद-93 को अंतिम रूप दिया गया: लोकसभा के लिए ‘शीघ्रतम’ अध्यक्ष और उप-सभापति का चुनाव करना अनिवार्य कर दिया गया, अध्यक्ष द्वारा नामांकन के किसी भी प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया।
  • स्वतंत्रता के बाद की प्रारंभिक प्रथा (वर्ष 1950- वर्ष 1970)
    • लोक सभा के प्रथम उपाध्यक्ष: एम. अनंथशयनम अयंगर वर्ष 1952 में निर्वाचित हुए, जिन्होंने संस्थागत मिसाल कायम की।
    • प्रारंभिक चरण: कांग्रेस के वर्चस्व वाले दौर में यह पद आमतौर पर सत्ताधारी पार्टी के पास रहा।
    • परिपाटी की शुरुआत: वर्ष 1969 में, जी.जी. स्वेल, एक स्वतंत्र सांसद, कांग्रेस शासन के तहत उपाध्यक्ष बने, जिससे विपक्ष को यह पद देने की अनौपचारिक परंपरा शुरू हुई।
  • राजनीतिक अस्थिरता के दौरान दावा (1970-1980 का दशक)
    • आपातकाल काल (वर्ष 1975- 1977): संवैधानिक संकट के मध्य लोकतांत्रिक मानदंडों को बनाए रखने में उप-सभापति की संभावित भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
    • लोकतांत्रिक बहाली: आपातकाल के बाद, संसद की विश्वसनीयता को मजबूत करने के लिए तटस्थ उप-सभापति होने पर अधिक जोर दिया गया।
  • विपक्षी सम्मेलन का संस्थागतकरण (वर्ष 1990- वर्ष 2014)
    • गठबंधन युग (वर्ष 1989 के बाद): विपक्ष से उप-सभापति चुनने की परंपरा को मजबूत किया।
      • उदाहरण: पी.एम. सईद (कांग्रेस) ने भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार (वर्ष 1998- 1999) के तहत उप-सभापति के रूप में कार्य किया।
    • UPA सरकारें
      • चरणजीत सिंह अटवाल (SAD) UPA-I के दौरान उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे।
      • करिया मुंडा (भाजपा) ने UPA-द्वितीय के दौरान द्विदलीय परंपराओं की पुष्टि करते हुए पद सँभाला।
  • समकालीन विकास और चुनौतियाँ (वर्ष 2014-वर्तमान)
    • विचलन
      • 16वीं लोकसभा (वर्ष 2014- 2019): उपाध्यक्ष का पद AIADMK के एम. थंबीदुरई को दिया गया, जो एनडीए के मित्रवत सहयोगी हैं।
      • 17वीं लोकसभा (वर्ष 2019- 2024): उपाध्यक्ष का पद रिक्त रहा – स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसी लोकसभा का पूर्ण कार्यकाल रिक्त रहा।
    • वर्तमान परिदृश्य (18वीं लोकसभा, वर्ष 2024 से वर्तमान तक)
      • विपक्ष परंपरा को बहाल करने की माँग कर रहा है; सरकार अनिच्छुक है, जिससे संवैधानिक तथा लोकतांत्रिक चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
    • न्यायिक चुनौतियाँ: सर्वोच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिकाएँ (जैसे- शारिक अहमद बनाम भारत संघ, 2023) संवैधानिक उल्लंघन को उजागर करती हैं।

न्यायिक हस्तक्षेप और अनुच्छेद-122

  • अनुच्छेद-122 संसद के आंतरिक कामकाज की रक्षा करता है- जिसका अर्थ है कि न्यायालय सदन के अंदर अपनाई जाने वाली ‘प्रक्रिया’ (जैसे- चुनाव कैसे निर्धारित किए जाते हैं, बहस कैसे आयोजित की जाती है) में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
  • आमतौर पर, उप-सभापति के चुनाव को एक प्रक्रियात्मक मामला माना जाता है तथा अनुच्छेद-122 के तहत, न्यायालय देरी पर आसानी से सवाल नहीं उठाएँगे
  • हालाँकि, उप-सभापति का पद लंबे समय तक रिक्त रहना महज प्रक्रियात्मक अनियमितता नहीं है।
  • यह अनुच्छेद-93 का संवैधानिक उल्लंघन है, जो यह अनिवार्य करता है कि सदन को ‘शीघ्रतम’ एक अध्यक्ष और उप-सभापति का चुनाव करना चाहिए।

अध्यक्ष बनाम उपाध्यक्ष

विशेषता

अध्यक्ष  

उपाध्यक्ष

चुनाव प्रथम बैठक के तुरंत बाद लोकसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित। अध्यक्ष के चुनाव के बाद लोकसभा सदस्यों द्वारा निर्वाचित।
अध्यक्षता की भूमिका लोकसभा के नियमित पीठासीन अधिकारी। केवल अध्यक्ष की अनुपस्थिति या रिक्तता की स्थिति में ही अध्यक्षता करता है।
अध्यक्षता करते समय शक्तियाँ पूर्ण शक्तियाँ – बहस को विनियमित करना, अनुशासन लागू करना, विधेयकों को प्रमाणित करना। अध्यक्षता करते समय अध्यक्ष के समान शक्तियों का प्रयोग करता है।
वाद-विवाद में भागीदारी बराबरी (मतदान) को समाप्त करने के अलावा बहस या मतदान में भाग नहीं ले सकते। अध्यक्षता न करते हुए भी सामान्य सदस्य के रूप में भाग ले सकते हैं तथा मतदान कर सकते हैं।
अधीनता स्वतंत्र प्राधिकारी, केवल सदन के प्रति उत्तरदायी। स्वतंत्र प्राधिकारी, अध्यक्ष के अधीन नहीं, सदन के प्रति उत्तरदायी।
पद से हटाने की प्रक्रिया लोकसभा सदस्यों के बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव द्वारा हटाया (14 दिन का नोटिस आवश्यक) गया। अध्यक्ष पद से हटाने की प्रक्रिया भी वही है।
संयुक्त बैठकों में भूमिका अनुच्छेद-118 के अंतर्गत दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है। अध्यक्ष के अनुपस्थित होने पर संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है।
वरीयता का क्रम उच्चतर – भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ छठा स्थान। तुलनात्मक रूप से निम्न स्थान – राज्यसभा के उप-सभापति और राज्य मंत्रियों के साथ 10वाँ स्थान।
प्रशासनिक भूमिका लोकसभा सचिवालय को नियंत्रित करता है, विधेयकों को समितियों को भेजता है, धन विधेयकों पर निर्णय लेता है। अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के अलावा कोई स्वतंत्र प्रशासनिक प्राधिकारी नहीं।

उप-सभापति के पद रिक्त होने के निहितार्थ

  • संवैधानिक उल्लंघन: संविधान के अनुसार, उप-सभापति का चुनाव ‘शीघ्रतम’ किया जाना चाहिए; लंबे समय तक रिक्त रहने से यह दायित्व कमजोर हो जाता है।
    • दूसरे नंबर के नेता की अनुपस्थिति संसदीय नेतृत्व की अपेक्षित अतिरेकता तथा लचीलेपन को बाधित करती है।
    • संवैधानिक गैर-अनुपालन को सामान्य बनाता है, जिससे समय के साथ संसदीय मानदंडों के क्षरण का जोखिम होता है।
  • सत्ता का संकेंद्रण: सभी प्रक्रियात्मक अधिकार अध्यक्ष के पास केंद्रित रहते हैं, जो अक्सर सत्तारूढ़ सरकार के साथ जुड़े होते हैं।
    • उपाध्यक्ष पारंपरिक रूप से एक प्रतिसंतुलक के रूप में कार्य करते हैं।
  • संसदीय लोकतंत्र को नुकसान: विपक्ष के उपाध्यक्ष के बिना, समावेशी निर्णय लेने के अवसर कम हो जाते हैं।
    • संवैधानिक रूप से निष्पक्ष व्यक्ति की अनुपस्थिति विधायी कार्यवाही की विश्वसनीयता को प्रभावित करती है।
  • व्यावहारिक और प्रक्रियात्मक व्यवधान: अध्यक्ष को अकेले ही लंबे सत्रों के दौरान अध्यक्षता का कार्य करना पड़ता है, जिससे कार्यकुशलता प्रभावित होती है।
  • आपातकालीन जोखिम: अध्यक्ष के अचानक इस्तीफे, मृत्यु या अक्षमता जैसी घटनाओं में, संसद में नेतृत्व शून्यता और प्रक्रियात्मक भ्रम का जोखिम होता है।
  • व्यापक लोकतांत्रिक निहितार्थ: संवैधानिक मानदंडों के प्रति स्पष्ट उपेक्षा संसद में नागरिकों के विश्वास को कम करती है।
    • बार-बार संवैधानिक चुनौतियों (सर्वोच्च न्यायालय सहित) के उल्लंघन की गंभीरता को उजागर करती है।
    • कानून के शासन और संवैधानिकता के प्रति प्रतिबद्ध एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में भारत की छवि को प्रभावित करता है।

ब्रिटेन में भारत के विरुद्ध उप-सभापति का पद

पहलू

ब्रिटेन (हाउस ऑफ कॉमन्स)

भारत (लोकसभा)

उप-सभापति की संख्या तीन उप-सभापति: अध्यक्ष (मुख्य उप-सभापति) – प्रथम उप-सभापति – द्वितीय उप-सभापति। लोकसभा द्वारा निर्वाचित एक उपाध्यक्ष।
चुनाव प्रक्रिया हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्यों द्वारा निर्वाचित; आमतौर पर सत्ताधारी और विपक्षी दोनों दलों से। लोकसभा सदस्यों द्वारा निर्वाचित; परंपरागत रूप से विपक्ष से (यद्यपि अनिवार्य नहीं)।
राजनीतिक तटस्थता प्रतिनिधि राजनीतिक दलों के पदों से इस्तीफा देते हैं; उनसे गैर-पक्षपाती होने की अपेक्षा की जाती है। उप-सभापति एक राजनीतिक दल का सदस्य होता है, लेकिन उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह अध्यक्षता करते समय निष्पक्षता से कार्य करेगा।
अध्यक्षता की भूमिका डिप्टी नियमित रूप से बैठकों की अध्यक्षता करते हैं; अध्यक्ष उनके बीच जिम्मेदारियों प्रदान करते हैं। उप-सभापति केवल तभी अध्यक्षता करते हैं जब अध्यक्ष अनुपस्थित हों या जब अध्यक्ष का पद रिक्त हो।
कार्यकाल संसद के साथ या त्याग-पत्र/प्रतिस्थापन तक। लोकसभा के साथ ही समाप्त हो जाएगा, जब तक कि पहले इस्तीफा न दे दिया जाए या हटा न दिया जाए।
अध्यक्षता करते समय शक्तियाँ बैठकों के दौरान अध्यक्ष की पूर्ण शक्तियों का प्रयोग करना। अध्यक्षता करते समय अध्यक्ष की पूर्ण शक्तियों का प्रयोग करता है।

उप-सभापति पद की रिक्ति संबंधी मुद्दे पर आगे की राह

  • अनिवार्य समय सीमा: नई लोकसभा के गठन के बाद उप-सभापति के चुनाव के लिए एक विशिष्ट समय-सीमा (जैसे- 60 दिनों के भीतर) तय करने वाला संवैधानिक या वैधानिक संशोधन प्रस्तुत करना।
  • परंपराओं का संहिताकरण: संसदीय कार्यप्रणाली में द्विदलीयता और संतुलन को मजबूत करने के लिए विपक्ष को उप-सभापति का पद देने की परंपरा को औपचारिक रूप से मान्यता देना।
  • न्यायिक स्पष्टीकरण: सर्वोच्च न्यायालय या संवैधानिक पीठों को अनुच्छेद-93 में ‘शीघ्रतम’ शब्द की व्याख्या करनी चाहिए ताकि अनिवार्य, समयबद्ध अनुपालन लागू किया जा सके।
  • अध्यक्ष के कार्यालय को सशक्त बनाना: इस प्रक्रिया के नियमों में संशोधन करके यह अनिवार्य करें कि अध्यक्ष को राजनीतिक सहमति की प्रतीक्षा किए बिना चुनाव प्रक्रिया तुरंत शुरू करनी चाहिए।
  • राजनीतिक सहमति को बढ़ावा देना: पीठासीन अधिकारियों के सुचारू, सहकारी चुनाव को सुनिश्चित करने के लिए सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच सत्र-पूर्व संवाद को संस्थागत बनाना।
  • लोकतांत्रिक जवाबदेही को मजबूत करना: नियमित संसदीय समीक्षा और समिति की रिपोर्ट में प्रमुख पदों को समय पर भरने जैसे संवैधानिक जनादेशों के अनुपालन की निगरानी की जानी चाहिए।
  • जन जागरूकता बढ़ाना: नागरिक समाज और मीडिया को उप-सभापति के संवैधानिक महत्त्व को उजागर करने के लिए प्रोत्साहित करना, मानदंडों का पालन करने के लिए सार्वजनिक दबाव बनाना।

निष्कर्ष

उप-सभापति की रिक्ति को संबोधित करने के लिए, अनुच्छेद-93 में संशोधन करके 60 दिनों के भीतर चुनाव अनिवार्य करना, विपक्षी प्रतिनिधित्व की परंपरा को संहिताबद्ध करना तथा अनुपालन लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को सशक्त बनाना, संवैधानिक मानदंडों का समय पर पालन सुनिश्चित करने हेतु सत्र-पूर्व राजनीतिक संवाद और जन जागरूकता को बढ़ावा देना आदि माध्यमों का प्रयोग किया जा सकता है।

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