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भारत में अपशिष्ट प्रबंधन

Lokesh Pal May 01, 2025 02:40 22 0

संदर्भ

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या बहुत बड़ी है और इससे निपटने के लिए कठोर कदम उठाना ही एकमात्र रास्ता हो सकता है।

परमादेश एक रिट है, जिसे न्यायालय द्वारा किसी सार्वजनिक प्राधिकरण को जारी किया जाता है, जिसमें उसे अनिवार्य कानूनी कर्तव्य निभाने का आदेश दिया जाता है, जिसे वह पूरा करने में विफल रहा है। यह राज्य या उसके अधिकारियों द्वारा गलत तरीके से कार्य करने या निष्क्रिय होने पर सार्वजनिक अधिकारों के प्रवर्तन को सुनिश्चित करता है।

अपशिष्ट प्रबंधन क्या है?

  • अपशिष्ट प्रबंधन से तात्पर्य मानव गतिविधियों द्वारा उत्पादित अपशिष्ट के संग्रह, पृथक्करण, परिवहन, उपचार, पुनर्चक्रण और अंतिम निपटान में शामिल गतिविधियों और रणनीतियों के पूरे समूह से है।
  • इसमें अपशिष्ट उत्पादन को कम करने और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए सामग्रियों का पुन: उपयोग करने के उपाय भी शामिल हैं।
  • मुख्य उद्देश्य
    • अपशिष्ट प्रबंधन के अनुचित तरीके से होने वाले पर्यावरणीय तथा स्वास्थ्य संबंधी खतरों को कम करना।
    • रीसाइक्लिंग तथा पुनः उपयोग के माध्यम से संसाधनों की अधिकतम वसूली करना।
    • एक परिपत्र अर्थव्यवस्था मॉडल के माध्यम से सतत् विकास को बढ़ावा देना।
    • सुरक्षित निपटान के लिए कानूनी और नियामक ढाँचे का अनुपालन करना।

शामिल अपशिष्ट के प्रकार

  • ठोस अपशिष्ट: दैनिक जीवन में उत्पन्न सामान्य अपशिष्ट पदार्थ।
    • उदाहरण: पैकेजिंग, कागज, प्लास्टिक, कपड़ा, घरेलू अपशिष्ट।
    • उप-प्रकार
      • नगर निगम का ठोस अपशिष्ट (MSW): घरों और सार्वजनिक स्थानों से उत्पन्न होता है।
      • औद्योगिक ठोस अपशिष्ट: कारखानों और विनिर्माण इकाइयों से।
      • निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट: ईंटें, कंक्रीट, लकड़ी का मलबा।
  • तरल अपशिष्ट: घरेलू, वाणिज्यिक या औद्योगिक स्रोतों से प्राप्त तरल अपशिष्ट।
    • उदाहरण: सीवेज, ग्रेवाटर, औद्योगिक अपशिष्ट, रसायन, तेल।
  • जैविक अपशिष्ट (बायोडिग्रेडेबल): अपशिष्ट, जो सूक्ष्मजीव क्रिया द्वारा स्वाभाविक रूप से विघटित होता है।
    • उदाहरण: खाद्य अवशेष, बगीचे के अपशिष्ट, कागज, कृषि अवशेष।
  • खतरनाक अपशिष्ट: अपशिष्ट जो सार्वजनिक स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिए पर्याप्त या संभावित खतरा पैदा करता है।
    • उदाहरण: बैटरी, पेंट, कीटनाशक, ई-अपशिष्ट, बायोमेडिकल अपशिष्ट।
    • विशेष गुण: विषाक्त, संक्षारक, ज्वलनशील, प्रतिक्रियाशील।
  • पुनर्चक्रणीय अपशिष्ट: अपशिष्ट, जिसे पुनःप्रसंस्कृत करके उपयोग योग्य सामग्री में बदला जा सकता है।
    • उदाहरण: प्लास्टिक, कागज, काँच, धातु, कार्डबोर्ड।
  • बायोमेडिकल अपशिष्ट (स्वास्थ्य देखभाल अपशिष्ट): अस्पतालों, क्लीनिकों, डायग्नोस्टिक लैब से उत्पन्न अपशिष्ट।
    • उदाहरण: सिरिंज, संक्रमित ड्रेसिंग, शरीर के अंग, एक्सपायर हो चुकी दवाइयाँ।
  • ई-अपशिष्ट (इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट): फेंके गए विद्युत या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण। इसमें पारा, सीसा, कैडमियम जैसी खतरनाक धातुएँ शामिल होती हैं।
    • उदाहरण: कंप्यूटर, मोबाइल फोन, टीवी, प्रिंटर, केबल।

अपशिष्ट प्रबंधन क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • पर्यावरण क्षरण को रोकना: अपशिष्ट प्रबंधन के अभाव में भूमि, वायु और जल प्रदूषण होता है, जिससे दीर्घकालिक पारिस्थितिकी क्षति होती है।
    • भारत प्रतिवर्ष 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जित करता है, जिसमें से 3.5 मिलियन टन पर्यावरण में लीक हो जाता है, जिससे नदियाँ, मिट्टी और तट प्रदूषित होते (नेचर स्टडी, 2024) हैं।
  • स्वास्थ्य संबंधी खतरों को कम करता है: अवैज्ञानिक अपशिष्ट निपटान मानव स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष रूप से खतरे में डालता है।
    • खुले में दहन से डाइऑक्सिन और मेथेन उत्सर्जित होती हैं, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियाँ और कैंसर होता है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण संकट को कम करता है: प्लास्टिक अपशिष्ट सदियों तक पर्यावरण में बना रहता है तथा माइक्रोप्लास्टिक में विखंडित होकर खाद्य शृंखलाओं में प्रवेश करता है।
    • भारत में नलों के जल के 83% नमूनों और यहाँ तक कि हिमालय के ग्लेशियरों में भी माइक्रोप्लास्टिक पाया जाता है, जो हमारे भोजन और जल में प्रवेश करता है।
  • कानूनी ढाँचों के साथ अनुपालन सुनिश्चित करना: अपशिष्ट कानून संधारणीय प्रथाओं को अनिवार्य बनाते हैं तथा खराब अनुपालन दंड, सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और न्यायिक जाँच की ओर ले जाता है।
    • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत, पृथक्करण अनिवार्य है, लेकिन केवल 19% डंपसाइटों का ही सुधार किया गया है।
  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देना: पुनर्चक्रणीय और ऊर्जा मूल्य उत्पन्न कर सकते हैं, जबकि अनुपचारित अपशिष्ट नगरपालिका के वित्त और भूमि पर बोझ डालते हैं।
    • यदि पुनर्चक्रण और पृथक्करण में सुधार नहीं किया जाता है, तो भारत वर्ष 2030 तक अप्राप्य प्लास्टिक मूल्य में $133 बिलियन (FICCI रिपोर्ट) का नुकसान झेल सकता है।
  • संधारणीय पर्यटन को बढ़ावा देना: पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यटकों का अपशिष्ट स्थानीय आजीविका को प्रभावित करता है और प्राचीन पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है।
    • हिमालयी राज्य ~8 मिलियन टन/वर्ष पर्यटक अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं, उत्तराखंड में क्यूआर-कोड प्रणाली चार धाम के अपशिष्ट को कम करती है।
  • जलवायु कार्रवाई को मजबूत करता करना: अपशिष्ट जलाने और प्लास्टिक जीवन-चक्र उत्सर्जन वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों में महत्त्वपूर्ण रूप से योगदान करते हैं।
    • प्लास्टिक विनिर्माण से प्रति वर्ष 1.8 बिलियन टन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित होती है – जो वैश्विक विमानन से भी अधिक (OECD डेटा) है।

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन की वर्तमान स्थिति

  • अपशिष्ट उत्पादन: मापदंड और प्रवृत्ति
    • प्रतिवर्ष उत्पन्न होने वाला कुल अपशिष्ट: भारत में प्रतिवर्ष 62 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 70% ही एकत्र किया जाता है।
      • एकत्रित कचरे में से केवल 12 मिलियन टन का ही उपचार किया जाता है, तथा 31 मिलियन टन लैंडफिल में फेंका जाता है।
    • ठोस अपशिष्ट: शहरी भारत में प्रतिदिन 1.5 लाख टन अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसमें से 77% को अवैज्ञानिक तरीके से लैंडफिल में फेंक दिया जाता है।
      • तेजी से बढ़ते शहरीकरण तथा बढ़ती खपत के कारण वर्ष 2030 तक कुल नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) उत्पादन बढ़कर 165 मिलियन टन होने की उम्मीद है।
    • भारतीय प्लास्टिक प्रदूषण: भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक है, जो प्रतिवर्ष 9.3 मिलियन टन (वैश्विक प्लास्टिक उत्सर्जन का 20%) प्लास्टिक उत्पन्न करता है।
    • शहरी भारत में सबसे अधिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है, दिल्ली, मुंबई और बंगलूरू जैसे शहर सबसे अधिक अपशिष्ट पैदा करते हैं।
      • अनुचित निपटान प्रक्रियाओं के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपशिष्ट तेजी से फैल रहा है।
    • प्रति व्यक्ति अपशिष्ट उत्पादन लगभग 0.54 किलोग्राम प्रतिदिन है और इसके बढ़ने का अनुमान है।
  • अपशिष्ट संग्रहण तथा उपचार
    • संग्रहण दक्षता: उत्पन्न 62 मिलियन टन में से केवल 43 मिलियन टन ही संगृहीत किया जाता है।
    • अपशिष्ट प्रसंस्करण: वित्त वर्ष 2023 तक, 75% से अधिक अपशिष्ट का प्रसंस्करण किया गया, फिर भी केवल 30% का ही प्रभावी ढंग से पुनर्चक्रण किया जाता है।
      • शेष को या तो जला दिया जाता है अथवा लैंडफिल में डाल दिया जाता है।
      • केवल 60% प्लास्टिक अपशिष्ट का पुनर्चक्रण किया जाता है, जो कि अधिकतर अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है।
    • विरासत अपशिष्ट: 3,000 से अधिक डंपसाइट मौजूद हैं, जिनमें से केवल 19% का ही स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत उपचार किया गया है।
      • इसके ज्ञात खतरों के बावजूद लैंडफिलिंग प्रचलित है। भारत में विश्व के कुछ सबसे बड़े लैंडफिल हैं (जैसे- मुंबई, दिल्ली)।

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के तरीके

  • स्रोत पर पृथक्करण: घरों/व्यावसायिक स्थलों पर कचरे को गीला (बायोडिग्रेडेबल), सूखा (पुनर्चक्रण योग्य) और खतरनाक श्रेणियों में अलग करना।
    • बंगलूरू का SWM उपकर: अलग-अलग संग्रह के लिए घरों से ₹100/माह शुल्क लिया जाता है।
    • सिक्किम: पैकेज्ड जल पर प्रतिबंध लगाया गया है और सख्त पृथक्करण कानून लागू किए गए हैं।
  • सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाएँ (Material Recovery Facilities- MRF): सूखे कचरे (प्लास्टिक, कागज, धातु) को छाँटने, संसाधित करने और पुनर्चक्रित करने के लिए केंद्र।
    • EPR नियम 2022 शहरी/ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिए MRF को अनिवार्य बनाता है।
    • तमिलनाडु: MRF के माध्यम से 42% लैंडफिल भूमि को पुनः प्राप्त किया  (स्वच्छ भारत मिशन डेटा) गया।
  • खाद निर्माण (बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट): एरोबिक/एनारोबिक विधियों के माध्यम से जैविक अपशिष्ट को खाद में बदलना।
    • भारत के नगरपालिका अपशिष्ट का 55-60% गीला अपशिष्ट  (भारत के पर्यावरण की स्थिति वर्ष 2023) है।
  • विकेंद्रीकृत MCC: केरल/तमिलनाडु परिवहन लागत में कटौती करने के लिए माइक्रो कंपोस्टिंग केंद्रों का उपयोग करते हैं।
  • वैज्ञानिक लैंडफिल: खुले डंपों के स्थान पर ‘लाइनर’ और ‘लीचेट’ उपचार के साथ इंजीनियर्ड साइटें।
    • भारत में डंपिंग साइट की संख्या लैंडफिल से 10:1 अधिक (नेचर स्टडी, 2024) है।
    • दिल्ली का गाजीपुर लैंडफिल: इसकी ऊँचाई 65 मीटर से अधिक है, इसके मेथेन में आग लग रही है (सर्वोच्च न्यायालय की टिपण्णी, 2025)।
  • अपशिष्ट से ऊर्जा (Waste-to-Energy- WtE): बिजली पैदा करने के लिए अपशिष्ट को जलाना।
    • दिल्ली का 11,000 मीट्रिक टन/दिन अपशिष्ट: WtE संयंत्रों द्वारा केवल 8,073 मीट्रिक टन संसाधित किया जाता है।
  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): ब्रांडों को अपनी प्लास्टिक पैकेजिंग को एकत्र/पुनर्चक्रित करना होगा।
    • उत्तराखंड में क्यूआर कोड: तीर्थयात्री बोतलों पर जमा राशि का भुगतान करते हैं, जो वापसी पर वापस कर दी जाती है।
  • बायोरेमेडिएशन (विरासत अपशिष्ट): पुराने डंप स्थलों को डिटॉक्सीफाई करने के लिए बैक्टीरिया/पौधों का उपयोग करना।
    • 16 करोड़ टन विरासत अपशिष्ट लैंडफिल पर है।
  • आइडियोनेला साकाइनेसिस: बैक्टीरिया जो महीनों में PET प्लास्टिक को विघटित कर देता है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र एकीकरण: कुशल पुनर्चक्रण के लिए अपशिष्ट बीनने वालों को औपचारिक बनाना।
    • अनौपचारिक क्षेत्र 60% पुनर्चक्रण का प्रबंधन करता है।
    • केरल का कुदुंबश्री: महिला समूह अपशिष्ट संग्रहण का प्रबंधन करते हैं।

भारत में औपचारिक और अनौपचारिक अपशिष्ट प्रबंधन

  • औपचारिक अपशिष्ट प्रबंधन: अपशिष्ट प्रबंधन अधिकृत और विनियमित निकायों द्वारा किया जाता है – जिसमें नगर निगम, निजी ठेकेदार और पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्ता शामिल हैं। पर्यावरण कानूनों (जैसे- SWM नियम 2016) के ढाँचे के भीतर संचालित होता है।
  • अनौपचारिक अपशिष्ट प्रबंधन: अपंजीकृत व्यक्तियों या समूहों, जैसे कि कूड़ा बीनने वालों और कबाड़ विक्रेताओं द्वारा किए जाने वाले अपशिष्ट संग्रह तथा पुनर्चक्रण गतिविधियाँ, जो प्रायः विनियामक निरीक्षण के बाहर होती हैं।
  • अनौपचारिक क्षेत्र शहरी भारत में 70% तक पुनर्चक्रण योग्य अपशिष्ट, विशेष रूप से प्लास्टिक, धातु और कागज का प्रबंधन करता है।
    • हालाँकि, इसे अधिकांश शहरी स्थानीय निकायों की योजनाओं में एकीकृत नहीं किया गया है और कल्याणकारी योजनाओं तक इसकी पहुँच नहीं है।
  • औपचारिक प्रणालियों में पैमाने और वैधता होती है, लेकिन वे निजी ऑपरेटरों पर बहुत अधिक निर्भर होती हैं और प्रायः अंतिम-मील दक्षता की कमी होती है।
  • एकीकरण मॉडल
    • पुणे – स्वच्छ सहकारी: पुणे नगर निगम के साथ काम करने वाली अपशिष्ट बीनने वालों की पहली श्रमिक-स्वामित्व वाली सहकारी संस्था।
    • बंगलूरू – हसीरू दला: गैर-सरकारी संगठन 10,000 से अधिक अपशिष्ट बीनने वालों को औपचारिकता, स्वास्थ्य बीमा और मान्यता प्रदान कर रहा है।
    • इंदौर और अंबिकापुर: अनौपचारिक संग्रहकर्ताओं को सूखा अपशिष्ट संग्रह केंद्रों और खाद इकाइयों में एकीकृत किया है।

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए संस्थागत व्यवस्था

  • भारत में, अपशिष्ट प्रबंधन पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB), शहरी विकास मंत्रालय (Ministry of Urban Development – MoUD), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Boards- SPCB) और ULB (संविधान की 12वीं अनुसूची) द्वारा शासित है।
  • स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी: 74वें संविधान संशोधन के तहत, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट का निपटान और प्रबंधन नगर निगमों तथा नगर पंचायतों के 18 कार्यात्मक डोमेन में से एक है।
  • मौलिक कर्तव्य: भारतीय संविधान का अनुच्छेद-51 A (g) जो मौलिक कर्तव्यों से संबंधित है, के अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक को वन, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना चाहिए और जीवित प्राणियों के प्रति दया रखनी चाहिए।
  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (Solid Waste Management- SWM) एक राज्य का विषय है और उचित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को सुनिश्चित करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।

विश्व स्तर पर सफल अपशिष्ट प्रबंधन उदाहरण

जापान – “मोत्तैनाई” संस्कृति और शून्य अपशिष्ट दर्शन

  • इसमें किसी भी मूल्यवान वस्तु को बर्बाद न करने पर जोर दिया जाता है, जिसमें भोजन से लेकर कपड़े तक सब कुछ शामिल है।

स्वीडन – अपशिष्ट से ऊर्जा चैंपियन

  • स्वीडन अपने घरेलू कचरे के 50% से अधिक को बिजली और जिला हीटिंग में बदलने के लिए थर्मोकेमिकल तकनीक (मुख्य रूप से भस्मीकरण) का उपयोग करता है। 
  • स्वीडन का केवल 1% अपशिष्ट लैंडफिल में प्रवाहित किया जाता है।

दक्षिण कोरिया – ‘पे-एज-यू-थ्रो’ और स्मार्ट मॉनिटरिंग

  • मात्रा-आधारित अपशिष्ट शुल्क प्रणाली (VBWF) शुरू की गई, इसके तहत निवासियों को उत्पन्न अपशिष्ट की मात्रा के अनुसार भुगतान करना होगा।

जर्मनी – विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR)

  • “ग्रीन डॉट” कार्यक्रम के तहत EPR कानूनों को सबसे पहले अपनाने वाला। 
  • उत्पादकों को कानूनी तौर पर पैकेजिंग और ई-अपशिष्ट वापस लेने की बाध्यता है।

अपशिष्ट प्रबंधन के 5 R

  • मना करना – अनावश्यक पैकेजिंग वाली वस्तुओं को स्वीकार न करना।
  • कम करना – खपत और अपशिष्ट उत्पादन को कम करना।
  • पुनः उपयोग करना – एकल-उपयोग वाली वस्तुओं के बजाय पुनः उपयोग योग्य वस्तुओं का चयन करना।
  • पुनः उपयोग करना – त्याज्य वस्तुओं का उपयोग करने के लिए रचनात्मक तरीके खोजना।
  • पुनर्चक्रण करना – बचे हुए कचरे को नई सामग्री में बदलना।

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित पहल

  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत भारत का सबसे व्यापक अपशिष्ट विनियमन ढाँचा।
    • स्रोत पर जैव निम्नकरणीय, गैर-जैव निम्नकरणीय और घरेलू खतरनाक अपशिष्टों को अलग-अलग करने का आदेश देता है।
    • सभी हितधारकों पर लागू: घर, संस्थान, औद्योगिक क्षेत्र, हवाई अड्डे और SEZs।
    • शहरी स्थानीय निकायों को डोर-टू-डोर संग्रह, उपयोगकर्ता शुल्क और वैज्ञानिक निपटान सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करता है।
    • थोक जनरेटर और ब्रांडों के लिए विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (Extended Producer Responsibility- EPR) पर जोर देता है।
  • स्वच्छ भारत मिशन (Swachh Bharat Mission- SBM-U & SBM-R)
    • स्वच्छता, सफाई और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2014 में लॉन्च किया गया।
    • 100% डोर-टू-डोर कलेक्शन, 100% स्रोत पृथक्करण और खुले में डंपिंग को समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित करना।
    • स्वच्छ सर्वेक्षण प्रत्येक वर्ष शहरों को अपशिष्ट प्रबंधन और स्वच्छता के आधार पर रैंक प्रदान करता है।
    • SBM 2.0 (वर्ष 2021-26) का लक्ष्य 4,400 से अधिक ULB में पुराने अपशिष्ट डंपसाइटों का बायोरेमेडिएशन करना है।
    • SBM स्मार्ट सिटी पहल के तहत कचरे की क्यूआर-आधारित डिजिटल ट्रैकिंग (जैसे- इंदौर, त्रिची) को अपनाया गया।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) कार्य योजना (वर्ष 2016)
    • उपयुक्त अपशिष्ट प्रसंस्करण मॉडल के लिए शहरों को बड़े (>500 TPD), मध्यम (100-500 TPD) तथा छोटे (<100 TPD) में वर्गीकृत करता (टन प्रति दिन) है।
    • अनुशंसित
      • जैविक कचरे के लिए खाद बनाना।
      • पुनर्चक्रण योग्य पदार्थों के लिए सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाएँ (Material Recovery Facilities- MRF)।
      • उच्च कैलोरी वाले अंशों के लिए अपशिष्ट से ऊर्जा (Waste-to-Energy- WTE)।
    • DPR-आधारित योजना और प्रौद्योगिकी एकीकरण के माध्यम से खुले डंपिंग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का सुझाव दिया गया।
  • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR) ढाँचा
    • नियम निम्नलिखित पर लागू होते हैं:
      • प्लास्टिक अपशिष्ट (प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016; वर्ष 2022 में अद्यतन)।
      • ई-अपशिष्ट (ई-अपशिष्ट नियम, 2022)।
      • बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022।
    • उत्पादकों/आयातकों/ब्रांड मालिकों (Producers/importers/brand owners- PIBO) को केंद्रीकृत पोर्टलों के माध्यम से संग्रहण, पुनर्चक्रण और रिपोर्टिंग सुनिश्चित करनी होगी।
  • अपशिष्ट से ऊर्जा (Waste-to-Energy- WtE) और जैव-मेथेनेशन पहल
    • सरकार बड़े शहरों (>500 टीपीडी) में WtE संयंत्रों को प्रोत्साहित करती है, हालाँकि प्रदर्शन गुणवत्ता पृथक्करण पर निर्भर करता है।
    • पुणे, सूरत और इंदौर जैसे शहरों में गीले कचरे को बायोगैस में बदलने के लिए बायो-मेथेनेशन संयंत्र चालू हैं।
    • RDF (रिफ्यूज डेरिव्ड फ्यूल) नीति ने सीमेंट और बिजली संयंत्रों को बढ़ावा दिया।
  • अनौपचारिक क्षेत्र एकीकरण एवं श्रमिक कल्याण
    • उदाहरण
      • स्वच्छ (पुणे) – अपशिष्ट आधारित सहकारी समितियाँ।
      • हसीरू दला (बंगलूरू) – शहरी अनौपचारिक कार्यकर्ता एकीकरण।
    • नीतियों में अनौपचारिक क्षेत्र के लिए सुरक्षा उपकरण, प्रशिक्षण और आय सुरक्षा अनिवार्य की गई है।
    • प्रोजेक्ट रिप्लान: इसका उद्देश्य प्रसंस्कृत और उपचारित प्लास्टिक कचरे को कपास के रेशे के टुकड़ों के साथ 20:80 के अनुपात में मिलाकर कैरी बैग बनाना है।
  • स्मार्ट शहर और डिजिटल उपकरण
    • स्मार्ट सिटी मिशन को बढ़ावा देता है
      • जीपीएस-सक्षम अपशिष्ट ट्रक।
      • क्यूआर-कोडेड डिब्बे (जैसे- चार धाम मार्ग)।
      • संग्रह और प्रसंस्करण की डैशबोर्ड निगरानी।
    • निजी संस्थाओं तथा शहरी स्थानीय निकायों द्वारा अपशिष्ट लेखा परीक्षा उपकरण तथा ESG डैशबोर्ड अपनाए जा रहे हैं।
  • शून्य अपशिष्ट शहर और खाद अभियान
    • शून्य अपशिष्ट नीति: 100% पृथक्करण, खाद निर्माण और पुनर्चक्रण के माध्यम से <10% लैंडफिल उपयोग को प्रोत्साहित करती है।
    • खाद बनाओ अभियान: घर और समुदाय स्तर पर खाद बनाने को बढ़ावा देती है।
    • केरल, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में सामुदायिक MRF का संचालन किया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख निर्णय

  • एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (गंगा प्रदूषण मामला, 1988): अनियंत्रित औद्योगिक उत्सर्जन, विशेष रूप से कानपुर के पास चमड़े के कारखानों से होने वाले प्रदूषण के कारण गंगा नदी में होने वाले प्रदूषण को संबोधित करने के लिए दायर किया गया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि गंगा को प्रदूषित करने वाले उद्योगों को या तो ट्रीटमेंट प्लांट लगाना होगा या बंद कर देना होगा।
    • ‘एहतियाती सिद्धांत’ और ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ की शुरुआत की।
    • अपशिष्ट उपचार संयंत्रों के बिना चमड़ा कारखानों को बंद करने का निर्देश दिया।
  • एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (ओलियम गैस रिसाव मामला, 1986): भोपाल गैस त्रासदी के एक वर्ष बाद, दिल्ली में श्रीराम फूड एंड फर्टिलाइजर इंडस्ट्रीज से ओलियम गैस लीक हुई।
    • पूर्ण दायित्व का सिद्धांत प्रस्तुत किया गया: खतरनाक उद्योग, लापरवाही की परवाह किए बिना, नुकसान के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी हैं।
    • भारतीय परिस्थितियों के लिए अपर्याप्त ‘कठोर दायित्व’ के अंग्रेजी कानून सिद्धांत को अस्वीकार कर दिया गया।
  • वेल्लोर नागरिक कल्याण मंच बनाम भारत संघ (1996): तमिलनाडु में चमड़ा कारखानों द्वारा पलार नदी को प्रदूषित करने से संबंधित मामला।
    • भारतीय पर्यावरण कानून की आवश्यक विशेषताओं के रूप में ‘एहतियाती सिद्धांत’ और ‘प्रदूषणकर्ता भुगतान सिद्धांत’ की पुष्टि की गई।
    • अनुपालन न करने वाले उद्योगों को बंद करने और हरित क्षतिपूर्ति कोष बनाने का निर्देश दिया गया।
  • भारतीय पर्यावरण-कानूनी कार्रवाई परिषद बनाम भारत संघ (1996): राजस्थान में रासायनिक उद्योग पर्यावरण में जहरीला अपशिष्ट डाल रहे थे।
    • प्रदूषण फैलाने वाले को भुगतान करना होगा सिद्धांत को लागू किया गया तथा पर्यावरण क्षरण के लिए क्षतिपूर्ति का निर्देश दिया गया।
    • प्रदूषण फैलाने वाले को भुगतान की जिम्मेदारी प्रदान करते हुए सुधार और बहाली की प्रक्रिया पूर्ण करना।

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त अपशिष्ट प्रसंस्करण अवसंरचना: भारत में खाद निर्माण, बायोमेथेनेशन, पुनर्चक्रण और अपशिष्ट से ऊर्जा प्रसंस्करण के लिए पर्याप्त सुविधाओं का अभाव है।
    • MSW वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार, उत्पन्न 1,70,339 TPD अपशिष्ट में से, 91,511 TPD का प्रसंस्करण किया जाता है, और शेष को या तो डंप कर दिया जाता है या जला दिया जाता है।
  • स्रोत पर कम पृथक्करण: गीले, सूखे और खतरनाक अपशिष्ट में पृथक्करण के बिना, प्रसंस्करण अक्षम और खतरनाक हो जाता है।
    • दिल्ली में WtE संयंत्र कम कार्य करते हैं क्योंकि अलग न किया गया अपशिष्ट प्रसंस्करण को बाधित करता है और प्रदूषण को बढ़ाता है।
  • विरासत में प्राप्त अपशिष्ट डंप और लैंडफिल ओवरफ्लो: भारत में हजारों पुराने डंपसाइट हैं जो विषाक्त पदार्थों का उत्सर्जन कर रहे हैं तथा मूल्यवान शहरी भूमि को प्रदूषित कर रहे हैं।
    • स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के अनुसार, देश भर में 1,000 टन से अधिक अपशिष्ट वाले 2,424 डंपसाइटों में से केवल 470 में ही इसका प्रबंधन पूर्ण हो पाया है।
  • अनौपचारिक क्षेत्र के एकीकरण का अभाव: अनौपचारिक क्षेत्र अपशिष्ट वसूली में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन अभी भी इसे मान्यता नहीं मिली है और इसका समर्थन नहीं किया जाता है।
    • भारत में 1.5 मिलियन से अधिक अनौपचारिक कर्मचारी बिना प्रशिक्षण, सुरक्षा या कानूनी संरक्षण के अपशिष्ट का प्रबंधन करते हैं।
  • वित्तीय और प्रशासनिक बाधाएँ: शहरी स्थानीय निकायों के पास व्यापक अपशिष्ट प्रणालियों के लिए तकनीकी विशेषज्ञता, कर्मचारियों और निधियों की कमी है।
    • अपशिष्ट प्रबंधन को नगरपालिका बजट का केवल 5-25% तक ही प्राप्त होता है, जिसका अधिकांश हिस्सा प्रसंस्करण के बजाय संग्रहण पर खर्च किया जाता है।
  • नीति कार्यान्वयन अंतराल: हालाँकि भारत में प्रगतिशील नियम (SWM नियम, 2016) हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर अनुपालन कमजोर है।
    • वर्ष 2025 में सर्वोच्च न्यायालय ने एनसीआर राज्यों को पृथक्करण और अपशिष्ट ट्रैकिंग जैसे बुनियादी SWM आदेशों का पालन करने में विफल रहने के लिए फटकार लगाई।
  • सार्वजनिक जागरूकता और व्यवहार संबंधी मुद्दे: नागरिक अक्सर पृथक्करण, शुल्क भुगतान और खाद निर्माण का विरोध करते हैं।
    • आवासीय क्षेत्रों में उदासीनता और प्रोत्साहन की कमी के कारण खाद बनाने और गीले कचरे का पुनर्चक्रण विफल हो जाता है।

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए आगे की राह

  • व्यवहार परिवर्तन के माध्यम से स्रोत पृथक्करण को मजबूत करना: स्रोत पर त्रि-स्तरीय पृथक्करण को बढ़ावा देने के लिए निरंतर IEC (सूचना, शिक्षा और संचार) अभियान शुरू करना।
    • उपयोगकर्ता शुल्क छूट, खाद क्रेडिट या सार्वजनिक मान्यता के माध्यम से नागरिकों और RWA को प्रोत्साहित करना।
  • अनौपचारिक अपशिष्ट बीनने वालों को औपचारिक प्रणालियों में एकीकृत करना: अपशिष्ट बीनने वालों को सशक्त बनाना सामाजिक न्याय सुनिश्चित करता है और रीसाइक्लिंग दक्षता को बढ़ाता है।
    • SWaCH (पुणे) और हसीरू डाला (बंगलूरू) जैसे मॉडलों को देश भर में बढ़ावा देना।
  • प्रसंस्करण अवसंरचना का विस्तार और उन्नयन: शहर के आकार के अनुसार खाद, बायोमेथेनेशन, WtE संयंत्रों और MRF का समय पर निर्माण और संचालन सुनिश्चित करना।
    • छोटे शहरों के लिए क्लस्टर-आधारित प्रसंस्करण को प्राथमिकता  (CPCB कार्य योजना) देना।
  • पुराने डंपसाइटों के बायोरेमेडिएशन में तेजी लाना: केंद्रीय निधियों और प्रौद्योगिकी भागीदारों के साथ बायोमाइनिंग और ‘लैंडफिल कैपिंग’ को तेजी से आगे बढ़ाना।
    • SBM 2.0 डैशबोर्ड के माध्यम से प्रगति की निगरानी के लिए भू-स्थानिक मानचित्रण का उपयोग करना।
  • विकेंद्रीकृत और शून्य-अपशिष्ट मॉडल को बढ़ावा देना: वार्ड स्तर पर सामुदायिक खाद, छत पर बायोमेथेनेशन और शुष्क अपशिष्ट केंद्रों को प्रोत्साहित करना।
    • इंदौर और अंबिकापुर जैसे शून्य अपशिष्ट वार्ड कार्यक्रमों को लागू करना।
  • EPR लागू करना और उत्पादकों की जवाबदेही की निगरानी करना: उत्पादकों को प्लास्टिक, बैटरी और ई-कचरे पर नियंत्रण रखना चाहिए।
    • EPR पोर्टल लागू करन और ब्रांड मालिकों और रीसाइकिलर्स का यादृच्छिक ऑडिट करना।
  • निगरानी और पारदर्शिता के लिए डिजिटल टूल का उपयोग करना: डेटा-संचालित शासन दक्षता में सुधार करता है और रिसाव को कम करता है।
    • क्यूआर-कोडेड डिब्बे, GPS-ट्रैक किए गए ट्रक और रीयल-टाइम ULB डैशबोर्ड तैनात करना।

निष्कर्ष

भारत में प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन के लिए बुनियादी ढाँचे की कमियों को दूर करने, अनौपचारिक श्रमिकों को एकीकृत करने और EPR और SWM नियमों जैसी नीतियों को लागू करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। स्रोत पृथक्करण, विकेंद्रीकृत प्रसंस्करण और डिजिटल निगरानी को बढ़ावा देकर, भारत एक सतत्, शून्य-अपशिष्ट मॉडल में परिवर्तित हो सकता है, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य संकट में कमी आ सकती है।

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