केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI) ने राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान (NIFTEM)- कुंडली, हरियाणा के सहयोग से ‘सुफलम’ (SUFALAM) 2025 का आयोजन किया।
संबंधित तथ्य
रणनीतिक सहयोग: मूल्य शृंखला में खाद्य प्रौद्योगिकी नवाचार एवं कौशल विकास को बढ़ाने के लिए NIFTEM-K तथा FICSI के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
प्रौद्योगिकी हस्तांतरण संबंधी उपलब्धि: बाजरा आधारित न्यूट्रीबार एवं मखाना आधारित कुकीज जैसी तकनीकों को आधिकारिक तौर पर खाद्य स्टार्ट-अप को हस्तांतरित किया गया, जिससे अनुसंधान के व्यावसायीकरण को बढ़ावा मिला।
‘सुफलम’ (SUFALAM) 2025 के बारे में:
विजन: भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में नवाचार, उद्यमिता एवं स्थिरता को सशक्त बनाना।
प्रभाव: यह सम्मेलन सहयोग की सुविधा प्रदान करता है, नवाचार को बढ़ावा देता है एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में विकास को गति देता है, जिसका ध्यान स्टार्टअप को स्थापित व्यवसायों में परिवर्तित करने पर है।
भारत का कृषि उत्पादन एवं योगदान
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा फल एवं सब्जियों का उत्पादक है तथा दूध, दालों, मसालों एवं अनाज के शीर्ष उत्पादकों में शुमार है।
कृषि-खाद्य क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है एवं 50% से अधिक आबादी को आजीविका प्रदान करता है।
राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान (NIFTEM)
NIFTEM भारत में खाद्य प्रौद्योगिकी एवं प्रबंधन के लिए समर्पित एक प्रमुख संस्थान है।
स्थापना: राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान (NIFTEM) की स्थापना वर्ष 2012 में भारत सरकार के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI) के तत्त्वावधान में की गई थी।
फोकस क्षेत्र: यह खाद्य प्रौद्योगिकी एवं उद्यमिता में उत्कृष्टता का केंद्र है।
‘शरिया कोर्ट’ एवं ‘काजी कोर्ट’
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि काजी कोर्ट, दारुल कजा (काजियात) या शरिया कोर्ट जैसी संस्थाओं को भारतीय कानून के तहत कोई कानूनी दर्जा प्राप्त नहीं है।
शरिया कोर्ट एवं काजी कोर्ट क्या है?
शरिया कोर्ट एवं काजी कोर्ट कुछ मुस्लिम समुदायों में अनौपचारिक निकायों या परिषदों को संदर्भित करते हैं।
शरिया कोर्ट: यह शरिया कानून के आधार पर पारिवारिक विवाद, विवाह, तलाक, विरासत एवं अन्य व्यक्तिगत मामलों जैसे मुद्दों को सुलझाता है।
काजी कोर्ट: ये कोर्ट विवाह, तलाक, विरासत एवं अन्य विवादों जैसे व्यक्तिगत मामलों से भी निपटते हैं। शरिया कोर्ट की तरह, भारत में इनका कोई कानूनी दर्जा नहीं है।
दारुल कजा (काजियात): इसका अर्थ है “निर्णय का घर।”
काजी कोर्ट की तरह, यह इस्लामी कानूनों एवं सिद्धांतों के आधार पर विवादों को सुलझाने या निर्णय (फतवा) जारी करने के लिए एक अनौपचारिक मंच के रूप में कार्य करता है।
शरिया कोर्ट पर सर्वोच्च न्यायालय का रुख
गैर-प्रवर्तनीय: फतवा सहित ऐसे निकायों द्वारा की गई कोई भी घोषणा किसी पर बाध्यकारी नहीं है एवं इसे कानून द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है।
वैधता की शर्त: ऐसे निर्णय तभी वैध होते हैं जब:
दोनों प्रभावित पक्ष स्वेच्छा से उन्हें स्वीकार करते हैं।
वे किसी मौजूदा कानून के साथ अतिव्यापन नहीं करते हैं।
फिर भी, वे केवल सहमति देने वाले पक्षों के बीच ही वैध होते हैं एवं किसी तीसरे पक्ष पर लागू नहीं होते हैं।
चोलिस्तान (समाचार में स्थान)
हाल ही में पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने कृषि एवं खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2024 में स्वीकृत सभी नहर परियोजनाओं को स्थगित करने का आदेश दिया।
चोलिस्तान मरुस्थल के बारे में
अवस्थिति: चोलिस्तान मरुस्थल पाकिस्तान में पंजाब प्रांत के दक्षिणी भाग में भारत-पाकिस्तान सीमा के निकट अवस्थित है।
स्थानीय रूप से, इसे रोही के नाम से भी जाना जाता है।
यह ग्रेटर थार मरुस्थल का हिस्सा है, जो सिंध (पाकिस्तान) एवं राजस्थान (भारत) में फैला हुआ है।
यह तीन जिलों में विस्तृत है: बहावलपुर, बहावलनगर एवं रहीमयार खान।
जलवायु: चोलिस्तान मरुस्थल में शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय मरुस्थलों की तरह गर्म, शुष्क जलवायु होती है।
ऐतिहासिक महत्त्व: चोलिस्तान कभी कारवाँ व्यापार के लिए एक प्रमुख मार्ग था, जिसके परिणामस्वरूप मध्ययुगीन काल में कई किलों का निर्माण हुआ।
देरावर किला उनमें से सबसे प्रसिद्ध एवं सबसे अच्छी तरह से संरक्षित है।
टिड्डी दल (Locust Swarm)
नए शोध से पता चलता है कि टिड्डी एक-दूसरे का अनुसरण नहीं करती, बल्कि वे अपने आस-पास जो कुछ भी देखते हैं, उसके आधार पर निर्णय लेतीहैं।
उनकी गति संज्ञानात्मक प्रसंस्करण द्वारा निर्देशित होती है, न कि केवल यांत्रिक प्रतिक्रिया द्वारा।
टिड्डों के बारे में
टिड्डी अपने व्यवहार को बदल सकती हैं एवं जब उनकी आबादी घनी हो जाती है तो दल बना सकती हैं।
जब वे भीड़ में होती हैं, तो वे एक प्रक्रिया से गुजरती हैं, जिसे ग्रेगराइजेशन कहा जाता है:
इसमें उनके शरीर में परिवर्तन होता है (जैसे, रंग, आकार एवं मस्तिष्क रसायन)।
वे अत्यधिक व्यवहारिक हो जाती हैं एवं झुंड कहे जाने वाले बड़े समूहों में एक साथ घूमना शुरू कर देती हैं।
टिड्डी दल
टिड्डी दल, टिड्डों का एक बड़ा समूह है, जो एक साथ यात्रा करते हैं एवं भोजन करते हैं।
ऐतिहासिक रूप से “टिड्डी प्लेग” के रूप में प्रसिद्ध ये झुंड अकाल एवं आर्थिक आपदा का कारण बन सकते हैं।
निर्माण: जब पर्यावरणीय परिस्थितियाँ (जैसे- वर्षा एवं वनस्पति वृद्धि) टिड्डों की आबादी को तेजी से बढ़ाती हैं, तो झुंड का निर्माण होता है।
व्यवहार में परिवर्तन: भीड़ में रहने वाले टिड्डी एकांत से सामूहिक हो जाती हैं एवं एक समन्वित समूह के रूप में आगे बढ़ना प्रारंभ कर देते हैं।
प्रभाव: झुंड फसलों को नष्ट कर देते हैं, खाद्य सुरक्षा को खतरा पहुँचाते हैं एवं गंभीर आर्थिक नुकसान पहुँचा सकते हैं।
टिड्डी चेतावनी संगठन (Locust Warning Organisation)
टिड्डी चेतावनी संगठन (LWO) कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तहत एक विशेष एजेंसी है, जो फसलों की सुरक्षा के लिए टिड्डियों के खतरों की निगरानी तथा प्रबंधन करती है।
इसकी स्थापना वर्ष 1939 में हुई थी।
AI में चाटुकारिता (Sycophancy in AI)
हाल ही में OpenAI ने ChatGPT में अपने GPT-4o मॉडल के किए गए अपडेट को वापस ले लिया है, क्योंकि उपयोगकर्ताओं ने देखा कि AI इस तरह से व्यवहार कर रहा है, जिसे ‘चापलूसी/चाटुकारिता’ (Sycophancy) कहा जाता है।
AI में चाटुकारिता क्या है?
AI में चाटुकारिता मॉडल की उपयोगकर्ता से सहमत होने की प्रवृत्ति को संदर्भित करती है, भले ही उपयोगकर्ता गलत हो।
AI तथ्यात्मक सटीकता से संबद्ध रहने के बजाय उपयोगकर्ता के विचारों के साथ संरेखित करने के लिए अपनी प्रतिक्रियाओं को तैयार करता है।
इस व्यवहार को अवांछनीय माना जाता है, क्योंकि इससे भ्रामक या गलत आउटपुट उत्पन्न होने का जोखिम होता है।
उदाहरण: एक उपयोगकर्ता कहता है, “मुझे लगता है कि पृथ्वी सपाट है,” एवं इसे सही करने के बजाय, AI कथन से सहमत होता है।
भारतीय हरित हाइड्रोजन प्रमाणन योजना (GHCI)
केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने भारतीय हरित हाइड्रोजन प्रमाणन योजना (GHCI) प्रारंभ की है।
भारत की हरित हाइड्रोजन प्रमाणन योजना (GHCI) के बारे में
मंत्रालय: नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE)।
उद्देश्य: हरित हाइड्रोजन उत्पादन को प्रमाणित करने एवं पारदर्शिता, पता लगाने की क्षमता तथा बाजार की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए एक ढाँचा स्थापित करना।
सभी घरेलू उत्पादकों के लिए अनिवार्य प्रमाणन।
छूट: केवल निर्यात संबंधी उत्पादन करने वाले।
प्रमाणन प्रक्रिया: ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) द्वारा सूचीबद्ध मान्यता प्राप्त कार्बन सत्यापन (ACV) एजेंसियों द्वारा संचालित।
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के बारे में
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023 में शुरू किया गया।
उद्देश्य: भारत को हरित हाइड्रोजन एवं इससे संबंधित वस्तुओं के उत्पादन, उपयोग तथा निर्यात के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाना।
वर्ष 2030 तक अपेक्षित परिणाम
प्रति वर्ष कम-से-कम 5 MMT (मिलियन मीट्रिक टन) उत्पादन क्षमता का विकास।
कुल निवेश आठ लाख करोड़ रुपये से अधिक।
छह लाख से अधिक नौकरियों का सृजन।
जीवाश्म ईंधन आयात में एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की संचयी कमी।
लगभग 50 MMT वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी।
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