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बंदरगाह आधारित विकास

Lokesh Pal May 05, 2025 02:39 17 0

संदर्भ

हाल ही में प्रधानमंत्री ने केरल के तिरुवनंतपुरम में 8,800 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित विझिंजम अंतरराष्ट्रीय गहरे जल आधारित बहुउद्देशीय बंदरगाह का उद्घाटन किया, जो भारत की बंदरगाह-आधारित विकास रणनीति में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

विझिंजम अंतरराष्ट्रीय बंदरगाह के बारे में

  • प्रकार: भारत का पहला गहरे जल आधारित ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह (प्राकृतिक गहराई: 18-20 मीटर)।
  • विकसितकर्ता: अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड लिमिटेड (APSEZ) PPP के माध्यम से (केरल सरकार: 61.5%, केंद्र सरकार: 9.6%)।

गहरे जल का ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह एक विशेष समुद्री केंद्र है, जिसे छोटे बंदरगाहों तक अंतिम डिलीवरी के लिए मदर वेसल (बड़े जहाज) और फीडर वेसल (छोटे जहाज) के बीच माल स्थानांतरित करके अति विशाल कंटेनर जहाजों (Ultra-Large Container Ships- ULCS) के प्रबंधन हेतु डिजाइन किया गया है।

महत्त्व एवं प्रभाव

सामरिक महत्त्व

  • भारत का पहला डीप-वाटर ट्रांसशिपमेंट हब विदेशी बंदरगाहों पर निर्भरता को समाप्त करता है: इससे पहले, भारत का 75% ट्रांसशिपमेंट कार्गो कोलंबो, सिंगापुर और दुबई में प्रबंधित किया जाता था, जिससे राजस्व में 200-220 मिलियन डॉलर प्रति वर्ष की हानि होती थी।
    • विझिंजम इस निर्भरता को कम करता है, जिससे भारतीय व्यापारियों को प्रति कंटेनर 80-100 डॉलर की बचत होती है।
    • अंतरराष्ट्रीय शिपिंग लेन से निकटता: पूर्व-पश्चिम शिपिंग मार्ग (सबसे व्यस्त वैश्विक व्यापार मार्ग) से केवल 10 समुद्री मील की दूरी पर स्थित है।
      • कोलंबो की तुलना में यात्रा का समय 1-2 दिन कम हो जाता है।
  • प्राकृतिक लाभ
    • डीप ड्राफ्ट (18-20 मीटर): MSC तुर्किए (दुनिया का सबसे बड़ा पर्यावरण-अनुकूल जहाज) जैसे अति विशाल कंटेनर जहाजों (24,000+ TEU) को समायोजित कर सकता है।
    • कोई तटीय बहाव नहीं: कोलंबो (जिसे लगातार ड्रेजिंग की आवश्यकता होती है) के विपरीत, विझिंजम का समुद्र तल स्थिर है, जिससे रखरखाव लागत में कटौती होती है।
  • भारत के समुद्री व्यापार को बढ़ावा
    • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: ट्रांसशिपमेंट क्षेत्र में भारत को सिंगापुर, सलालाह और जेबेल अली के प्रतिस्पर्द्धी के रूप में स्थापित करता है।
    • लॉजिस्टिक्स दक्षता: एआई-संचालित पोत यातायात प्रबंधन प्रणाली (Vessel Traffic Management System- VTMS) कार्गो हैंडलिंग को अनुकूलित करती है, जिससे टर्नअराउंड समय कम होता है।

आर्थिक प्रभाव

  • लागत बचत और राजस्व सृजन: विदेशी ट्रांसशिपमेंट शुल्क में कमी करके $220 मिलियन/वर्ष की बचत होगी।
    • व्यापार दक्षता (सागरमाला अनुमान) के माध्यम से भारत की जीडीपी वृद्धि में 1-2% योगदान देने की उम्मीद है।
  • रोजगार और स्थानीय विकास: 750+ नौकरियाँ सृजित (केरल से 67%, तिरुवनंतपुरम से 57%) होंगीं।
  • अग्रणी लैंगिक समावेशन: पहला भारतीय बंदरगाह, जहाँ मछुआरा समुदाय की महिलाएँ भारी क्रेन चलाती (CRMG) हैं।
  • औद्योगिक और रसद विकास
    • विनिर्माण को आकर्षित करता है: बंदरगाह की निकटता केरल के पास उद्योगों को स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करती (जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, समुद्री खाद्य निर्यात) है।
    • मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी: NH-66, रेल नेटवर्क और त्रिवेंद्रम हवाई अड्डे (15 किमी. दूर) से जुड़ा हुआ है।

भू-राजनीतिक प्रभाव

  • कोलंबो के प्रभुत्व का मुकाबला करना: कोलंबो भारत के 45% ट्रांसशिपमेंट को प्रबंधित करता है; श्रीलंका में चीन के प्रभाव (जैसे- हंबनटोटा पोर्ट) के बीच विझिंजम एक विकल्प प्रदान करता है।
  • क्षेत्रीय व्यापार को मजबूत करना: निकटता के कारण बांग्लादेश, म्याँमार और मालदीव के लिए संभावित केंद्र के रूप में उभर सकता है।

भारत में बंदरगाह आधारित विकास

  • बंदरगाह आधारित विकास में बंदरगाहों को रसद, औद्योगिक क्लस्टर और तटीय आर्थिक क्षेत्रों (Coastal Economic Zones-CEZ) के माध्यम से आंतरिक अर्थव्यवस्थाओं के साथ एकीकृत करके आर्थिक विकास, औद्योगीकरण और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे तथा कनेक्टिविटी का लाभ उठाना शामिल है।
  • महत्त्व: बंदरगाह भारत के व्यापार की लगभग 95% मात्रा और 70% मूल्य के हिसाब से प्रबंधित करते हैं, जो उन्हें आर्थिक विकास एवं वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिए महत्त्वपूर्ण बनाता है।

बंदरगाह आधारित विकास का महत्त्व

  • रसद लागत कम करना तथा निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढावा: माल के परिवहन की लागत कम करके, भारतीय निर्यात वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी बन जाता है।
    • सागरमाला विजन का उद्देश्य निर्यात-आयात और घरेलू कार्गो के लिए रसद लागत को कम करना है, जिससे वार्षिक रूप से 35,000-40,000 करोड़ रुपये की बचत होगी।
    • महानदी कोलफील्ड्स से आंध्र प्रदेश/कर्नाटक तक कोयले की तटीय शिपिंग से विद्युत क्षेत्र को वार्षिक रूप से 10,000 करोड़ रुपये से अधिक की बचत हो सकती है।
  • तटीय शिपिंग और अंतर्देशीय जलमार्ग की क्षमता का दोहन करता है: तटीय एवं अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन सड़क और रेल की तुलना में 60-80% सस्ता है।
    • वर्ष 2025 तक, तटीय शिपिंग 5 गुना बढ़कर 330-420 मिलियन टन हो सकती है; अंतर्देशीय जलमार्ग के माध्यम से 60-70 मिलियन टन सामान ले जाया जा सकता है, जिससे लागत एवं उत्सर्जन में बचत होगी।
  • बंदरगाह के निकट औद्योगीकरण का समर्थन करता है: बंदरगाहों के पास औद्योगिक क्लस्टर कच्चे माल और तैयार माल के लिए रसद लागत को कम करते हैं।
    • बंदरगाह से जुड़े विकास के लिए सागरमाला के तहत स्टील, सीमेंट, पेट्रोलियम रिफाइनिंग, खाद्य प्रसंस्करण, इलेक्ट्रॉनिक्स, चमड़ा जैसे क्षेत्रों को लक्षित किया गया है।
    • पूरे भारत में 14 तटीय आर्थिक क्षेत्र (CEZ) की मैपिंग की गई है।
  • मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी में सुधार करता है: तीव्र, सुगम कार्गो मूवमेंट के लिए बंदरगाहों को रेल, सड़क, पाइपलाइनों और जलमार्गों के साथ एकीकृत करता है।
    • पश्चिमी DFC स्पर लाइन, भारतमाला राजमार्ग, पारादीप-टू-हैदराबाद पाइपलाइन तथा राष्ट्रीय जलमार्ग (NW1, NW2, NW4, NW5) कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रयासों का हिस्सा हैं।
  • बड़े पैमाने पर रोजगार उत्पन्न करता है और जीडीपी को बढ़ावा देता है: राष्ट्रीय आय में वृद्धि करते हुए बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नौकरियाँ उत्पन्न करता है।
    • 1 करोड़ से अधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न होने की उम्मीद है।
    • बंदरगाह आधारित बुनियादी ढाँचे और औद्योगीकरण के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में 2% की वृद्धि होने का अनुमान है।
  • बंदरगाह क्षमता और दक्षता में वृद्धि: बंदरगाह क्षमता का विस्तार कार्गो हैंडलिंग में सुधार करता है और व्यस्तता के कारण होने वाली देरी को कम करता है।
    • सागरमाला के तहत, भारतीय बंदरगाहों की क्षमता को ~1,500 MTPA (वर्ष 2015) से बढ़ाकर 3,300+ MTPA (वर्ष 2030) करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • तटीय सामुदायिक विकास का समर्थन करता है: मछुआरों सहित तटीय क्षेत्रों में लोगों की आजीविका और कौशल में सुधार करता है।
    • सागरमाला के हिस्से के रूप में मछुआरों के कल्याण, कौशल विकास और द्वीप विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • गुजरात (2,340 किमी. समुद्र तट) और अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह (3,083 किमी. समुद्र तट) जैसे तटीय राज्यों को सामुदायिक उत्थान के लिए प्राथमिकता दी गई है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: रणनीतिक प्रतिष्ठानों (जैसे- नौसेना बेस, परमाणु संयंत्र) को सुरक्षित करके समुद्री सुरक्षा को मजबूत करता है।
    • सागरमाला और चाबहार बंदरगाह जैसी परियोजनाओं के माध्यम से चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नीति का मुकाबला करना।

बंदरगाह आधारित विकास के लिए प्रमुख पहल

  • सागरमाला कार्यक्रम के बारे में
    • बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय (MoPSW) द्वारा वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया।
    • उद्देश्य: बंदरगाह आधारित विकास को बढ़ावा देना, रसद लागत को कम करना और तटीय व्यापार में सुधार करना।
    • बंदरगाह आधारित विकास’ की अवधारणा सागरमाला विजन का केंद्र है।
    • सागरमाला कार्यक्रम के चार स्तंभ हैं:
      • बंदरगाह आधुनिकीकरण और नए बंदरगाह विकास: मौजूदा बंदरगाहों की बाधाओं को दूर करना और उनकी क्षमता का विस्तार करना तथा नए ग्रीनफील्ड बंदरगाहों का विकास करना।
      • बंदरगाह संपर्क बढ़ाना: घरेलू जलमार्गों (अंतर्देशीय जल परिवहन एवं तटीय शिपिंग) सहित बहु-मॉडल लॉजिस्टिक्स समाधानों के माध्यम से बंदरगाहों की संपर्कता को बढ़ाना, कार्गो की आवाजाही की लागत और समय को अनुकूलित करना।
      • बंदरगाह से जुड़ा औद्योगीकरण: EXIM और घरेलू कार्गो की लॉजिस्टिक्स लागत और समय को कम करने के लिए बंदरगाह के निकट औद्योगिक क्लस्टर और तटीय आर्थिक क्षेत्र विकसित करना।
      • तटीय सामुदायिक विकास: कौशल विकास और आजीविका सृजन गतिविधियों, मत्स्यपालन विकास, तटीय पर्यटन आदि के माध्यम से तटीय समुदायों के सतत् विकास को बढ़ावा देना।
  • सागरमाला के अंतर्गत राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP)
    • भारतीय तटरेखा और समुद्री क्षेत्र के समग्र विकास के लिए एक फ्रेमवर्क प्रदान करता है।
    • दक्षता में सुधार और लागत को कम करने के लिए बंदरगाहों, उद्योग और रसद में अवसरों की पहचान करता है।
  • समुद्री भारत विजन 2030
    • यह सागरमाला के बाद 10 वर्ष का समुद्री क्षेत्र का फ्रेमवर्क है, जिसका उद्देश्य जलमार्गों को बढ़ाना, जहाज निर्माण को बढ़ावा देना और क्रूज पर्यटन को बढ़ावा देना है।
    • मुख्य पहल
      • समुद्री विकास निधि: कम लागत वाली, दीर्घकालिक वित्तपोषण के लिए 25,000 करोड़ रुपये का कोष, जिसमें केंद्र से सात वर्षों में 2,500 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे।
      • बंदरगाह विनियामक प्राधिकरण: आधुनिक भारतीय बंदरगाह अधिनियम के तहत नया प्राधिकरण सभी बंदरगाहों की निगरानी करेगा और निवेशकों का विश्वास बढ़ाएगा।
      • पूर्वी जलमार्ग ग्रिड: बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और म्याँमार के साथ संपर्क को बढ़ाता है।
      • नदी विकास निधि: अंतर्देशीय जहाजों को वित्तपोषित करता है, उपलब्धता बढ़ाने के लिए कर लाभ प्रदान करता है।
      • बंदरगाह शुल्क युक्तिकरण: शुल्कों को सुव्यवस्थित करता है, पारदर्शिता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिए छिपे हुए शुल्कों को हटाता है।
      • जल परिवहन संवर्द्धन: शहरी क्षेत्रों में भीड़भाड़ कम करने के विकल्प के रूप में जलमार्गों का विकास करता है।

बंदरगाह आधारित विकास और समुद्री व्यापार पर प्रमुख आँकड़े

  • कार्गो हैंडलिंग क्षमता: भारतीय बंदरगाहों की वर्तमान कार्गो हैंडलिंग क्षमता: ~2,500 MMTPA (मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष)।
    • प्रमुख बंदरगाहों पर कुल कार्गो हैंडलिंग (वित्त वर्ष 2024): 819.23 मिलियन टन, जो वित्त वर्ष 2023 से 4.45% अधिक है।
  • तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जलमार्ग में वृद्धि: पिछले दशक में तटीय नौवहन वृद्धि 118% हुई है।
    • अंतर्देशीय जलमार्ग कार्गो आवागमन वृद्धि: 700% वृद्धि
    • मॉडल मिश्रण में अंतर्देशीय जलमार्ग और तटीय शिपिंग की हिस्सेदारी वर्ष 2025 तक 6% से बढ़ाकर 12% करना।
    • विद्युत क्षेत्र का प्रभाव: तटीय कोयला आवागमन 27 MTPA (वित्त वर्ष 2016) से बढ़कर वर्ष 2025 तक 129 MTPA हो जाएगा।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): बंदरगाह क्षेत्र में संचयी FDI (अप्रैल 2000-सितंबर 2024): ₹14,237.96 करोड़ (लगभग 1.64 बिलियन अमेरिकी डाॅलर)।
  • वैश्विक मान्यता: कंटेनर पोर्ट प्रदर्शन सूचकांक (Container Port Performance Index- CPPI) वर्ष 2023 में विश्व के शीर्ष 100 में 9 भारतीय बंदरगाहों को स्थान दिया गया:
    • विशाखापत्तनम बंदरगाह विश्व स्तर पर 19वें स्थान पर पहुँच गया।

भारत के बंदरगाह क्षेत्र में प्रमुख उपलब्धियाँ एवं पहल

  • बुनियादी ढाँचे का विकास
    • वधावन मेगा पोर्ट: 76,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से विकसित, जिसमें नौ कंटेनर टर्मिनल और क्षमता बढ़ाने के लिए कई बर्थ हैं।
    • तूतीकोरिन इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल: सितंबर 2024 में लॉन्च किया गया, यह वार्षिक रूप से 6 लाख बीस-फुट समकक्ष इकाइयों (TEUs) को प्रबंधित करता है, जिसमें 10,000 TEUs तक के जहाजों को समायोजित किया जा सकता है।
    • तूतीकोरिन में आउटर हार्बर: दो 1,000-मीटर टर्मिनलों के साथ 4 मिलियन TEUs की क्षमता को बढ़ाता है।
  • बंदरगाह आधारित औद्योगीकरण
    • औद्योगिक स्मार्ट शहर: 10 राज्यों में ₹28,602 करोड़ की लागत से 12 नए स्मार्ट शहरों को मंजूरी दी गई, साथ ही औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए 8 अतिरिक्त परियोजनाएँ भी शुरू की गईं।
    • लवणीय भूमि उपयोग: बंदरगाह क्षेत्र के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए लगभग 25,000 एकड़ लवणीय भूमि की पहचान की गई।
  • अंतरराष्ट्रीय संबंध
    • चाबहार बंदरगाह और INSTC: शाहिद बेहेश्टी बंदरगाह मुंबई को यूरेशिया से जोड़ता है, जिससे वित्त वर्ष 2024 में जहाज यातायात में 43% और कंटेनर यातायात में 34% की वृद्धि हुई है।
    • सितवे बंदरगाह, म्याँमार: कलादान परियोजना का हिस्सा, यह वैकल्पिक कोलकाता-मिजोरम मार्ग के माध्यम से उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए परिवहन लागत को कम करता है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: 98 PPP परियोजनाओं को मंजूरी दी गई, जिनमें ₹69,800 करोड़ की 23 कैप्टिव परियोजनाएँ शामिल (वाधवन की ₹38,000 करोड़ की PPP को छोड़कर) हैं।
    • वर्तमान में, ₹41,480 करोड़ की 56 परिचालन परियोजनाएँ लगभग 550 MTPA क्षमता जोड़ती हैं।

भारत में बंदरगाह आधारित विकास की चुनौतियाँ

  • उच्च रसद लागत: भारत की रसद लागत सकल घरेलू उत्पाद का 13-14% है, जबकि विकसित देशों में यह 8-10% है।
    • सागरमाला का लक्ष्य तटीय शिपिंग, अंतर्देशीय जलमार्गों और बेहतर बंदरगाह दक्षता के माध्यम से लागत कम करके ₹35,000-40,000 करोड़/वर्ष बचत करना है।
  • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ और भीड़भाड़: प्रमुख बंदरगाहों को क्षमता सीमाओं, उथले ड्राफ्ट और पुराने उपकरणों का सामना करना पड़ता है।
    • केवल 2 भारतीय बंदरगाह (JNPT, मुंद्रा) दुनिया के शीर्ष 100 (CPPI, 2023) में शामिल हैं।
    • भारतीय बंदरगाहों पर टर्नअराउंड समय (वित्त वर्ष 2025 में 50.7 घंटे) वैश्विक औसत (0.97 दिन) से अधिक है।
  • विदेशी बंदरगाहों से प्रतिस्पर्द्धा: बेहतर बुनियादी ढाँचे के कारण कोलंबो, सिंगापुर और दुबई ट्रांसशिपमेंट में अग्रणी हैं।
    • कोलंबो बंदरगाह भारत के 45% ट्रांसशिपमेंट का प्रबंधन करता है, जिसकी लागत $200-220 मिलियन/वर्ष (विझिंजम से पहले) है।
    • सिंगापुर का बंदरगाह टर्नअराउंड समय 12 घंटे से कम है, जबकि भारत का 50.7 घंटे है।
  • खराब अंतर्देशीय संपर्क: बंदरगाहों और औद्योगिक केंद्रों के बीच अपर्याप्त सड़क/रेल संपर्क से रसद लागत बढ़ जाती है।
    • भारत का 75% ट्रांसशिपमेंट कार्गो खराब संपर्क के कारण विदेशी बंदरगाहों (जैसे कोलंबो) पर निर्भर करता है (विझिंजम परियोजना का लक्ष्य इसे कम करना है)।
  • बंदरगाह क्षमता का कम उपयोग: लगभग 2,500 MMTPA क्षमता के बावजूद, कार्गो वॉल्यूम (~1,300-1,400 MTPA) कम उपयोग दरों की ओर संकेत करता है।
    • मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 का लक्ष्य क्षमता को 3,300+ MMTPA तक बढ़ाना तथा आधुनिक उपकरणों और गहरे ड्राफ्ट के साथ क्षमता उपयोग में सुधार करना है।
  • पर्यावरण और संधारणीयता संबंधी चुनौतियाँ: बंदरगाह विस्तार से ड्रेजिंग, वायु उत्सर्जन और समुद्री प्रदूषण बढ़ता है।
    • पारिस्थितिकी और आजीविका संबंधी चिंताओं के कारण विरोध प्रदर्शनों से परियोजनाओं में देरी होती है।
    • विझिंजम में मछुआरों द्वारा विरोध प्रदर्शन (वर्ष 2022- 2023) ने तटीय कटाव की आशंकाओं के कारण निर्माण कार्य रोक दिया।
    • JNPT SEZ के पास मैंग्रोव के विनाश ने कानूनी बहस को जन्म दिया।
  • वित्तपोषण और निवेश संबंधी बाधाएँ: भारी निवेश की जरूरतों (सागरमाला के तहत लगभग 5.79 लाख करोड़) के लिए निरंतर सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की आवश्यकता होती है।
    • अब तक 1.41 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया गया है; हालाँकि, निजी पूँजी को आकर्षित करना एक चुनौती बनी हुई है, विशेषकर गैर-प्रमुख बंदरगाहों और अंतर्देशीय कनेक्टिविटी में।
    • PPP मोड के तहत 45 सागरमाला परियोजनाओं में से केवल 31 ने 45,973 करोड़ रुपये (योजनाबद्ध 47,166 करोड़ रुपये में से) आकर्षित किए हैं।
  • नौकरशाही में देरी और भूमि अधिग्रहण: धीमी मंजूरी प्रक्रिया और भूमि विवाद परियोजनाओं को रोकते हैं।
    • वाधवन बंदरगाह (महाराष्ट्र) को पर्यावरणीय मंजूरी और स्थानीय प्रतिरोध के कारण देरी का सामना करना पड़ा।
    • विझिंजम के लिए सागरमाला के 9% VGF (व्यवहार्यता अंतर निधि) में देरी हुई।
  • तकनीकी अंतराल: कम स्वचालन और डिजिटलीकरण दक्षता में बाधा डालते हैं।
    • केवल विझिंजम में एआई-संचालित VTMS (पोत यातायात प्रबंधन प्रणाली) है; अधिकांश बंदरगाह मैन्युअल प्रक्रियाओं पर निर्भर हैं।
    • JNPT के स्वचालन ने ठहरने के समय को 22.57 घंटे (वर्ष 2023) तक कम कर दिया, लेकिन अन्य बंदरगाह पीछे हैं।

बंदरगाह आधारित विकास के सफल वैश्विक मॉडल

  • सिंगापुर बंदरगाह (सिंगापुर): उच्च स्वचालन, डीप ड्राफ्ट और कुशल संचालन के साथ दुनिया का अग्रणी ट्रांसशिपमेंट हब।
  • रॉटरडैम बंदरगाह (नीदरलैंड): यूरोप का सबसे बड़ा बंदरगाह; मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी (रेल, बार्ज, सड़क, पाइपलाइन) के साथ यूरोप के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
  • शंघाई बंदरगाह (चीन): विश्व का सबसे व्यस्त कंटेनर बंदरगाह; चीन की निर्यात-संचालित अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
    • यांगशान डीपवाटर पोर्ट के आसपास SEZ तथा विनिर्माण क्लस्टरों के साथ बड़े पैमाने पर बंदरगाह संचालन को एकीकृत करता है।
  • बुसान पोर्ट (दक्षिण कोरिया): विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ट्रांसशिपमेंट पोर्ट; वैश्विक और क्षेत्रीय शिपिंग लाइनों से जुड़ता है।
  • जेबेल अली पोर्ट (UAE): सबसे बड़ा मानव निर्मित बंदरगाह, दुबई के लॉजिस्टिक्स और व्यापार विकास की आधारशिला है।
    • पोर्ट-आधारित औद्योगीकरण को बढ़ावा देने और वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने के लिए जेबेल अली फ्री जोन (Jebel Ali Free Zone- JAFZA) के साथ एकीकृत किया गया है।
  • लॉस एंजिल्स-लॉन्ग बीच पोर्ट कॉम्प्लेक्स (USA): USA में सबसे बड़ा पोर्ट कॉम्प्लेक्स, ट्रांस-पैसिफिक व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • पर्यावरण उन्नयन (शून्य-उत्सर्जन ट्रक, ग्रीन बर्थ) और पोर्ट-कम्युनिटी साझेदारी में भारी निवेश करता है।

भारत में बंदरगाह आधारित विकास के संबध में आगे की राह

  • मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना: कुशल कार्गो निकासी के लिए बंदरगाहों से रेल, सड़क, अंतर्देशीय जलमार्ग और पाइपलाइन संपर्क को मजबूत करना।
    • वर्ष 2030 तक सड़कों/रेल से 10% कार्गो को हटाने के लिए जल मार्ग विकास (NW-1) को बढ़ावा देना।
    • सागरमाला के तहत कनेक्टिविटी परियोजनाओं को पूरा करने और पश्चिमी/पूर्वी DFC, भारतमाला राजमार्गों और राष्ट्रीय जलमार्गों के साथ बंदरगाहों को एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • हरित और स्मार्ट बंदरगाहों को बढ़ावा देना: नवीकरणीय ऊर्जा, तटीय विद्युत और हरित ड्रेजिंग जैसी संधारणीय प्रथाओं को अपनाना।
    • मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 के तहत लक्ष्य के अनुसार, हरित बंदरगाह विकसित करना तथा समुद्री रसद के कार्बन फुटप्रिंट को कम करना।
  • बंदरगाह आधारित औद्योगिकीकरण को मजबूत करना: विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए तटीय आर्थिक क्षेत्रों (CEZ) के विकास में तेजी लाना।
    • बंदरगाहों के निकट स्टील, सीमेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स, खाद्य प्रसंस्करण और पेट्रोलियम जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता देना।
  • निजी और FDI भागीदारी बढ़ाना: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करना और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करना।
    • बंदरगाह परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण और पर्यावरण मंजूरी को सरल बनाना।
  • डिजिटलीकरण और स्वचालन का लाभ उठाना: तीव्र और कागज रहित संचालन के लिए पोर्ट कम्युनिटी सिस्टम (Port Community System- PCS1x), एंटरप्राइज बिजनेस सिस्टम (Enterprise Business System- EBS) और स्वचालन जैसी प्रणालियों को लागू करना।
    • कंटेनर के ठहरने के समय को मौजूदा 7-17 दिनों से घटाकर वैश्विक सर्वोत्तम मानकों पर लाना।
  • ट्रांसशिपमेंट क्षमता और वैश्विक संपर्कों का विस्तार करना: ट्रांसशिपमेंट बाजार में भारत की हिस्सेदारी हासिल करने के लिए विझिंजम, वधावन और एनायम जैसे रणनीतिक केंद्र विकसित करना।
    • कोलंबो जैसे विदेशी केंद्रों पर निर्भरता कम करना तथा भारत की वैश्विक समुद्री स्थिति को बढ़ावा देना।
  • तटीय समुदायों को सशक्त बनाना: कौशल विकास, मछुआरों के कल्याण और ब्लू इकॉनमी पहलों में निवेश करना।
    • जैसा कि सागरमाला पहल के तहत 30,000 से अधिक तटीय समुदाय के सदस्यों को लाभान्वित करने और 1 करोड़ से अधिक नौकरियों का सृजन करने का लक्ष्य रखना।
  • नीति और शासन में सुधार करना: वास्तविक समय परियोजना निगरानी के लिए पीएम गति शक्ति पोर्टल लागू करना।
    • वर्ष 2030 तक सागरमाला कौशल केंद्रों के माध्यम से 5 लाख श्रमिकों को कौशल प्रदान करना।

निष्कर्ष 

विझिंजम बंदरगाह का आरंभ होना और सागरमाला तथा मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 जैसी पहल बंदरगाह आधारित विकास, आर्थिक विकास, वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्द्धा और रोजगार सृजन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती हैं। लॉजिस्टिक्स लागत, कनेक्टिविटी और स्थिरता जैसी चुनौतियों का समाधान करके भारत एक अग्रणी समुद्री केंद्र के रूप में उभर सकता है, जिससे जीडीपी और क्षेत्रीय विकास को काफी बढ़ावा मिलेगा।

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