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निजी सदस्य विधेयक

Lokesh Pal May 06, 2025 02:25 11 0

संदर्भ

हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने निजी सदस्य विधेयक (PMB) को “दूरदर्शी” और विधायी नवाचार के लिए सोने की खान (महत्त्वपूर्ण) बताया और भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने में उनकी क्षमता पर जोर दिया।

निजी सदस्य विधेयक (PMB) के बारे में

  • निजी सदस्य विधेयक किसी सांसद द्वारा पेश किया जाता है, जो मंत्री नहीं है, चाहे वह किसी भी पार्टी से संबद्ध हो।
    • यह भारतीय संसद द्वारा अपनाई गई वेस्टमिंस्टर संसदीय प्रथा है।
  • PMB सांसदों को स्वतंत्र विचार व्यक्त करने और ऐसे कानून प्रस्तावित करने की अनुमति देता है, जिन्हें सरकार द्वारा प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है।
  • PMB पेश करने के लिए एक महीने पहले सूचना देना अनिवार्य है।
  • PMB संसद की क्षमता के भीतर किसी भी मुद्दे को संबोधित कर सकते हैं, केवल धन विधेयक के, जिसे मात्र मंत्री ही पेश कर सकते हैं।

PMB का लोकतांत्रिक और विधायी महत्त्व

  • विधायी विविधता: PMB डिजिटल अधिकार, गिग इकोनॉमी सुरक्षा और अल्पसंख्यक अधिकार जैसे उभरते या उपेक्षित मुद्दों को उठाने के लिए जगह प्रदान करते हैं।
  • विचार-विमर्श लोकतंत्र को मजबूत करना: वे सांसदों को पार्टी लाइनों का उल्लंघन किए बिना स्थानीय, व्यक्तिगत या भविष्य की चिंताओं को आवाज देने में सक्षम बनाते हैं।
  • कार्यकारी प्रभुत्व पर जाँच: PMB विधायी एजेंडे पर कार्यकारी नियंत्रण को संतुलित करके संसद की विधायी भूमिका की पुष्टि करते हैं।

निजी सदस्य विधेयक बनाम सार्वजनिक (सरकारी) विधेयक

पहलू

निजी सदस्य विधेयक

सार्वजनिक (सरकारी) विधेयक

प्रस्तुतकर्ता निजी सदस्य विधेयक किसी भी संसद सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, जो मंत्री नहीं है। कोई सार्वजनिक या सरकारी विधेयक सरकार की ओर से किसी मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
संबंधित सदन इसे संसद के किसी भी सदन, लोकसभा या राज्यसभा में पेश किया जा सकता है। इसे संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है।
विधायी समर्थन और प्रारूपण विधेयक का मसौदा सांसद द्वारा व्यक्तिगत रूप से या सीमित सहायता से तैयार किया जाता है, प्रायः इसके लिए उन्हें आधिकारिक कानूनी सहायता भी नहीं मिलती। विधेयक का मसौदा संबंधित सरकारी विभाग द्वारा विधि एवं न्याय मंत्रालय के परामर्श से तैयार किया जाता है।
उद्देश्य और लक्ष्य यह सांसद के व्यक्तिगत विचारों, निर्वाचन क्षेत्र के हितों या उभरती सामाजिक चिंताओं को प्रतिबिंबित करता है। यह सरकार के आधिकारिक नीतिगत एजेंडे और विधायी प्राथमिकताओं को प्रतिबिंबित करता है।
स्वीकृति की संभावना चर्चा के लिए सीमित समय और पार्टी व्हिप के समर्थन के अभाव के कारण अनुमोदन की संभावना काफी कम है। अनुमोदन की संभावना अधिक होती है, क्योंकि सरकारी विधेयकों को प्राथमिकता दी जाती है और आमतौर पर उन्हें बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है।
नोटिस की अवधि सदन में प्रस्तुत करने से पहले इसे एक महीने पूर्व सूचना देना आवश्यक है। इसे लागू करने से पहले कम-से-कम सात दिन का नोटिस देना आवश्यक है।
चर्चा का कार्यक्रम इस पर केवल शुक्रवार को गैर-सरकारी सदस्यों के कार्य समय के दौरान चर्चा की जाती है, जो सदन की कार्यवाही पर निर्भर करता है। इस पर पूरे सप्ताह चर्चा की जा सकती है तथा संसदीय सत्रों में सरकारी कामकाज को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है।
वाद-विवाद और समय आवंटन इसे सीमित समय मिलता है, जो प्रायः स्थगन या व्यवधान के कारण कम हो जाता है। इसे पर्याप्त समय आवंटित किया जाता है, संरचित बहस होती है तथा अन्य विधायी मामलों पर इसे प्राथमिकता दी जाती है।
ऐतिहासिक सफलता दर स्वतंत्रता के बाद से अब तक केवल 14 निजी विधेयक ही कानून बन पाए हैं। संसद में पारित अधिकांश कानून सरकारी विधेयक होते हैं।
अस्वीकृति का निहितार्थ किसी निजी सदस्य विधेयक को अस्वीकार करने से सरकार की स्थिरता या उसके जनादेश पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। किसी सरकारी विधेयक की अस्वीकृति को सरकार में विश्वास की कमी के रूप में देखा जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप संभवतः इस्तीफा भी हो सकता है।
संस्थागत समर्थन निजी सदस्यों के पास अपने विधेयकों को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने के लिए प्रायः संस्थागत समर्थन या अनुसंधान संसाधनों का अभाव होता है। सरकारी विधेयक नौकरशाही, कानूनी और विधायी तंत्र द्वारा समर्थित होते हैं।

भारत में PMB का इतिहास

  • स्वतंत्रता के बाद से अब तक केवल 14 PMB कानून के रूप में पारित किए गए हैं, जिनमें से अंतिम वर्ष 1970 में दोनों सदनों के माध्यम से सफलतापूर्वक पारित हुआ था।
  • सर्वोच्च न्यायालय (आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तार) विधेयक, 1970, दोनों सदनों के माध्यम से पारित होकर कानून बनने वाला अंतिम PMB है।
  • PMB के उदाहरण
    • मुस्लिम वक्फ विधेयक (Muslim Wakf Bill), 1952: वर्ष 1954 में कानून बन गया।
    • एच.वी. कामथ (H.V. Kamath) का संविधान संशोधन विधेयक, 1966: असफल रहा, लेकिन इसने दिखाया कि PMB किस तरह के मुद्दों से निपट सकता है।
    • राइट टू डिस्कनेक्ट विधेयक (Right to Disconnect Bill), 2019: पारित न होने के बावजूद मानसिक स्वास्थ्य और कार्य-जीवन संतुलन पर राष्ट्रीय बहस को जन्म दिया।
    • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार विधेयक (Rights of Transgender Persons Bill), 2014: केवल राज्यसभा में पारित; इसका प्रभाव ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम,2019 पर हुआ।
  • हालिया रुझान: 18वीं लोकसभा में अब तक 64 प्रधानमंत्री कार्ययोजनाएँ पेश की गईं, लेकिन किसी पर चर्चा नहीं हुई, जिसका मुख्य कारण व्यवधान और सरकारी कामकाज को प्राथमिकता देना था।

भारत में निजी सदस्य विधेयकों की राह में बाधाएँ

  • संस्थागत बाधाएँ: दल-बदल विरोधी कानून (52वाँ संशोधन, 1985) सांसदों की स्वतंत्रता को सीमित करता है, विशेष रूप से सत्तारूढ़ दलों से, जिससे विधायी नवाचार सीमित हो जाता है।
  • प्रक्रियागत समस्या: PMB केवल शुक्रवार को निर्धारित किए जाते हैं, जो प्रायः व्यवधान, स्थगन या सरकारी प्राथमिकताओं के कारण व्यपगत हो जाते हैं।
    • PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के अनुसार, 17वीं लोकसभा ने निजी सदस्यों के विधेयकों के लिए 9.08 घंटे आवंटित किए, जबकि राज्यसभा ने 27.01 घंटे आवंटित किए। 
    • ये आवंटन दोनों सदनों में कुल सत्र घंटों का एक छोटा-सा हिस्सा था।
  • कम सफलता और दृश्यता: PMB शायद ही कभी चुनावी लाभ या मीडिया कवरेज में तब्दील होते हैं, जिससे सांसदों के लिए प्रोत्साहन कम हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए 17वीं लोकसभा (2019-2024) में लोकसभा में 729 और राज्यसभा में 705 PMB पेश किए गए, फिर भी केवल 2 और 14 पर ही चर्चा हुई। 
  • कार्यकारी प्रभुत्व: सरकारी विधेयक प्रभावी होते हैं, जिससे PMB को दरकिनार कर दिया जाता है और उन पर कम चर्चा होती है।
    • उदाहरण के लिए, वर्ष 2024 के बजट सत्र में केवल एक शुक्रवार का उपयोग निजी सदस्य के व्यवसाय (PMB) के लिए किया गया था और वह भी एक प्रस्ताव तक ही सीमित था।
  • संसाधन और अनुसंधान की कमी: सांसदों के पास उच्च गुणवत्ता वाले विधेयकों का मसौदा तैयार करने के लिए कानूनी और अनुसंधान संबंधी सहायता का अभाव है, जबकि सरकारी मंत्रालयों को व्यापक सहायता प्राप्त है।

निजी सदस्य विधेयक के लिए वैश्विक प्रथाएँ

  • यूनाइटेड किंगडम: यूनाइटेड किंगडम के हाउस ऑफ कॉमन्स में निजी सदस्य विधेयकों को प्रस्तुत करने के लिए सामान्य रूप से स्वीकार्य 20 विधेयक प्रति सत्र के अतिरिक्त दस मिनट की नियम प्रक्रिया।
    • यह पूर्ण बहस स्लॉट की आवश्यकता के बिना परिचय और दस्तावेजीकरण की अनुमति देता है।
    • सांसद 10 मिनट के भाषण के साथ विधेयक पेश कर सकते हैं, उसके बाद एक काउंटर भाषण दे सकते हैं।
    • दस मिनट ‘प्राइम स्लॉट’ में दिए जाते हैं (बजट दिवस को छोड़कर)।
  • कनाडा: PMB को मतपत्र प्रणाली के माध्यम से पेश किया जाता है, जिससे निष्पक्ष और निर्धारित समय स्लॉट सुनिश्चित होते हैं।
    • निजी सदस्यों को आधिकारिक प्रारूपण और अनुसंधान सहायता प्राप्त होती है, जिससे प्रस्तावित कानूनों की गुणवत्ता तथा व्यवहार्यता में सुधार होता है।
  • ऑस्ट्रेलिया: PMB को दोनों सदनों में अनुमति दी जाती है और प्रायः इस पर गंभीरता से बहस की जाती है।
    • ऑस्ट्रेलिया में PMB पारित करने का इतिहास रहा है, विशेष रूप से सामाजिक मुद्दों पर, जैसे- इच्छामृत्यु कानून विधेयक, 1996, जो संस्थागत समर्थन मिलने पर उनके संभावित प्रभाव को दर्शाता है।

आगे की राह

  • समर्पित स्लॉट: प्रक्रिया नियमों में संशोधन करके केवल PMB के लिए शुक्रवार को निर्धारित की जाए तथा केवल राष्ट्रीय आपात स्थितियों में ही अपवाद की अनुमति दी जाए।
  • समर्पित संस्थागत तंत्र: प्रासंगिकता, संवैधानिकता और सार्वजनिक महत्त्व के विधेयकों का मूल्यांकन करने के लिए PMB स्थायी समिति की स्थापना करन।
    • गारंटीकृत बहस और संभावित पारित होने के लिए उच्च प्रभाव वाले या द्विदलीय PMB को प्राथमिकता देना।
  • संसदीय घंटों का विस्तार करना: बिना किसी संघर्ष के सरकारी और निजी दोनों तरह के कामों को समायोजित करने के लिए प्रतिदिन 1-2 घंटे तक काम के घंटे बढ़ाना।
  • विधायी सहायता प्रदान करना: PRS विधायी अनुसंधान या समर्पित संसदीय परामर्शदाता कार्यालय जैसे निकायों के माध्यम से सांसदों को शोध और कानूनी मसौदा तैयार करने में सहायता प्रदान करना।
  • मध्य सप्ताह शेड्यूलिंग का पता लगाना: व्यवधान के जोखिम को कम करने और उपस्थिति बढ़ाने के लिए PMB चर्चाओं को मध्य सप्ताह में स्थानांतरित करना या बढ़ाना।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन को बढ़ावा देना: विशेष रूप से सामाजिक और विकासात्मक महत्त्व के मामलों में विधायी स्वतंत्रता को बढ़ावा देना और पार्टी लाइन के प्रति अंधविश्वास को कम करना।

निष्कर्ष

निजी सदस्य विधेयक भारत के संसदीय लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे विधायी नवाचार को बढ़ावा देते हैं, निर्वाचन क्षेत्र द्वारा संचालित शासन को दर्शाते हैं और कार्यपालिका के एजेंडे से परे कानून निर्माण प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बनाते हैं।

चूँकि भारत परिसीमन-पश्चात् संसदीय विस्तार के युग में प्रवेश कर रहा है, इसलिए PMB प्रक्रिया को पुनर्जीवित करना आवश्यक है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संसद विविधतापूर्ण, विचार-विमर्शपूर्ण और लोकतांत्रिक कानून निर्माण का मंच बनी रहे।

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