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जीनोम-एडिटेड सीड्स

Lokesh Pal May 06, 2025 02:42 18 0

संदर्भ 

हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री ने दो जीनोम-एडिटेड चावल की किस्मों को लॉन्च करने की घोषणा की, जिन्हें ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किया गया था।

संबंधित तथ्य

  • बजट घोषणा वर्ष 2023-24 के तहत भारत सरकार ने कृषि फसलों में जीनोम एडिटिंग के लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। 
  • चावल उत्पादन में भारत की रैंकिंग: चीन (211 मिलियन टन) के बाद दूसरे स्थान पर (186.5 मिलियन टन)।

जीनोम-एडिटिंग सीड्स क्या हैं?

  • जीनोम-एडिटिंग सीड्स पौधे के DNA में सटीक परिवर्तन करने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग करके बनाए जाते हैं।
  • ये उपकरण (जैसे CRISPR-Cas9) अन्य प्रजातियों के जीन को जोड़े बिना पौधे को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
  • यह तकनीक उन्हें पारंपरिक आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMO) से अलग बनाती है।

दो जीनोम-एडिटिंग चावल की किस्में

  • DRR धान-100 (कमला): ICAR-भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIRR), हैदराबाद द्वारा विकसित।
    • प्रौद्योगिकी: साइटोकाइनिन ऑक्सीडेज 2 (CKX 2  या Gn1a) जीन को लक्षित करते हुए जीनोम एडिटिंग (CRISPR-Cas9) का उपयोग किया गया।
    • विशेषताएँ: अपनी मूल किस्म, सांबा महसूरी (BPT 5204) की तुलना में अधिक उपज, बेहतर सूखा सहनशीलता और जल्दी पकने वाली किस्म।
  • पूसा DST चावल 1: ICAR-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-IARI), नई दिल्ली द्वारा विकसित।
    • MTU 1010 फाइन-ग्रेन किस्म पर आधारित।
    • प्रौद्योगिकी: साइट डायरेक्टेड न्यूक्लिअस-1 (SDN1) जीनोम-एडिटिंग के माध्यम से विकसित, नई किस्म, पूसा DST राइस-1।
    • लक्ष्य जीन: DST (सूखा और नमक सहिष्णुता) जीन।
    • विशेषताएँ: सूखा, लवणता और क्षारीय मृदा के प्रति उच्च लचीलापन।

लाभ

  • अधिक उत्पादन: इन नई चावल किस्मों से मौजूदा किस्मों की तुलना में प्रति हेक्टेयर भूमि पर 30% अधिक चावल उत्पादन होने की संभावना है।
  • तीव्र विकास: वे मौजूदा चावल की तुलना में 15-20 दिन पहले पक सकते हैं (कटाई के लिए तैयार हो सकते हैं)।
  • कम जल की आवश्यकता और उत्सर्जन: इन चावल किस्मों को बढ़ने के लिए कम जल की आवश्यकता होगी और ये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में योगदान देंगे।

जीनोम-एडिटिंग सीड्स की आवश्यकता

  • अधिक सटीक कृषि: जीनोम-एडिटिंग सीड्स की सहायता से समान क्षेत्र में चावल उत्पादन में 10 मिलियन की वृद्धि की जा सकती है, जबकि चावल की खेती के क्षेत्र में 5 मिलियन हेक्टेयर की कमी की जा सकती है।
  • ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी: DRR धान 100 (कमला) और पूसा DST चावल 1 जैसे बीजों को पुराने बीजों की तुलना में कम सिंचाई जल की आवश्यकता होती है, जबकि लगभग 5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में 4.5 मिलियन टन अतिरिक्त धान का उत्पादन होता है।
    • इससे मेथेन उत्सर्जन में 20 प्रतिशत (32,000 टन) की कमी आती है, क्योंकि चावल के खेतों में पानी भर जाने से ये मेथेन गैस का मुख्य स्रोत बन जाते हैं।
  • समय: जीनोम एडिटिंग से विकास में तेजी आती है, जिसके कारण ये किस्में पारंपरिक किस्मों की तुलना में तेजी से पकती हैं।
    • सिंचाई के लिए जल की बचत होगी, जो कि 7,500 मिलियन क्यूबिक मीटर के बराबर होगा, जिसका उपयोग अन्य फसल उत्पादन में किया जा सकता है।
  • जलवायु लचीलापन: ये किस्में पारंपरिक किस्मों की तुलना में सूखे, लवणता और अत्यधिक तापमान को बेहतर तरीके से सहन कर सकती हैं।

धान के बारे में

  • धान खरीफ सीजन की प्रमुख फसल है।
  • खाद्यान्न बास्केट में योगदान: 40%, देश की खाद्य सुरक्षा में प्रमुख भूमिका निभाता है।
  • धान की सबसे अधिक खेती करने वाले राज्य: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, बिहार और असम।

नियामक ढाँचा 

  • कानूनी छूट: भारत में, SDN1 और SDN2 जीनोम-एडिटिंग पौधों को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (EPA), 1989 के नियम 7-11 के तहत कठोर विनियमन से छूट दी गई है।
  • इसका अर्थ है कि वे जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) द्वारा विनियमित नहीं हैं।

जीनोम-संपादित सीड्स और आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों में अंतर

विशेषता

जीनोम-एडिटिंग सीड्स

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें

आनुवंशिक सामग्री संशोधन इसमें मुख्य रूप से पौधे के जीन में सटीक संशोधन शामिल होता है (जैसे- विलोपन, छोटे अनुक्रमों का सम्मिलन, आधार युग्म में परिवर्तन)। इसमें पौधे के जीनोम में अन्य प्रजातियों के जीन (विदेशी DNA) को सम्मिलित किया जाता है।
विदेशी (DNA)  सामान्यतः अंतिम उत्पाद में कोई विदेशी DNA मौजूद नहीं होता (विशेषकर SDN1 और SDN2 संपादन में)। किसी अन्य जीव से प्राप्त विदेशी DNA को जानबूझकर पौधे के DNA में प्रवेश कराया जाता है और एकीकृत किया जाता है।
शुद्धता विशिष्ट DNA अनुक्रमों में अत्यधिक सटीक और लक्षित संशोधन। जीनोम के भीतर जीन का सम्मिलन प्रायः यादृच्छिक होता है तथा इसका सटीक स्थान और प्रभाव कम पूर्वानुमान योग्य हो सकते हैं।
प्रक्रिया अनुकरण स्वाभाविक रूप से होने वाले उत्परिवर्तनों की नकल कर सकते हैं या लक्षित तरीके से पारंपरिक प्रजनन परिणामों में तेजी ला सकते हैं। ऐसे आनुवंशिक संयोजनों का परिचय देता है, जो पारंपरिक प्रजनन के माध्यम से स्वाभाविक रूप से नहीं होते।
विनियमन (कुछ क्षेत्रों में) GM फसलों की तुलना में इन्हें कम कठोर विनियमन का सामना करना पड़ सकता है, विशेषकर यदि इनमें कोई विदेशी DNA (जैसे- SDN1 और SDN2) नहीं मिलाया गया हो। विदेशी आनुवंशिक सामग्री के प्रवेश के कारण प्रायः व्यापक और सख्त विनियामक प्रक्रियाओं के अधीन होते हैं।
लक्षणों के उदाहरण बढ़ी हुई उपज, बेहतर तनाव सहनशीलता, बढ़ी हुई पोषण सामग्री, विस्तारित शैल्फ जीवन, रोग प्रतिरोध (प्रायः मौजूदा प्रतिरोधी जीन को संशोधित करके) कीट प्रतिरोध (जैसे- बीटी फसलें), शाकनाशी सहिष्णुता, नवीन प्रोटीन उत्पादन।
प्रौद्योगिकियों के उदाहरण CRISPR-Cas9, TALENs, ZFNs (SDN1, SDN2, और कभी-कभी SDN3 विधियों का उपयोग करके)। एग्रोबैक्टीरियम-मध्यस्थता परिवर्तन, जीन गन्स।
भारत में चावल की नई किस्में कमला’ (DRR  धान-100) और ‘पूसा DST चावल 1’ (SDN  विधियों का उपयोग करके विकसित)। BT कॉटन भारत में व्यावसायिक रूप से उगाई जाने वाली फसल का एक उदाहरण है।

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