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पश्चिमी विक्षोभ

Lokesh Pal May 06, 2025 02:44 18 0

संदर्भ

हाल ही में दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में पश्चिमी विक्षोभ के कारण भारी वर्षा और तेज हवाएँ प्रवाहित हुईं, जिससे उड़ानें बाधित हुईं और जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो गई।

संबंधित तथ्य 

  • विशेषज्ञ इस तरह के विक्षोभ की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के लिए जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार मानते हैं।
  • हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों को मार्च तथा अप्रैल 2025 में तीव्र पश्चिमी विक्षोभ के कारण अचानक बाढ़ एवं भूस्खलन का सामना करना पड़ा।

पश्चिमी विक्षोभ क्या हैं?

  • पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर के निकट उत्पन्न होने वाली अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय निम्न दाब प्रणालियाँ हैं।
  • वे उपोष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेटस्ट्रीम द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप की ओर पूर्व की ओर बढ़ते हैं।
  • ये विक्षोभ विशेष रूप से सर्दियों (दिसंबर से फरवरी) के दौरान मैदानी क्षेत्रों में वर्षा और हिमालयी क्षेत्र में बर्फबारी लाते हैं।
  • मानसून प्रणालियों के विपरीत, वे वायुमंडल की ऊपरी परतों में नमी ले जाते हैं।
  • वे उत्तर-पश्चिम भारत और पश्चिमी हिमालय में सर्दियों की वर्षा और बर्फबारी के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव

  • जलवायु और मौसम का प्रभाव: पश्चिमी विक्षोभ उत्तर-पश्चिमी भारत में सर्दियों के लिए आवश्यक वर्षा ग्रहण करता है, जिससे तापमान में गिरावट, शीत लहरें और व्यापक कोहरा होता है, जबकि कभी-कभी सर्दियों के बाद भी चरम मौसम की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • कृषि में महत्त्व: ये प्रणालियाँ सर्दियों में वर्षा प्रदान करके और मृदा की नमी को संरक्षित करके रबी की फसल (जैसे- गेहूँ) की वृद्धि का समर्थन करती हैं, लेकिन अत्यधिक या अनियमित वर्षा फसलों को हानि पहुँचा सकती है और बुवाई में देरी कर सकती है।
  • ओलावृष्टि और फसल क्षति: मजबूत पश्चिमी विक्षोभ ओलावृष्टि का कारण बन सकता है, जो प्रभावित क्षेत्रों में बागों और सब्जियों की फसलों को गंभीर रूप से हानि पहुँचा सकता है।
  • हिमनद और नदी प्रणाली का समर्थन: पश्चिमी विक्षोभ से होने वाली बर्फबारी हिमालय के ग्लेशियरों को संभरण करती है, जिससे शुष्क अवधि के दौरान गंगा और सिंधु जैसी नदियों में स्थिर प्रवाह बना रहता है।
  • जल संसाधनों पर प्रभाव: इन प्रणालियों से होने वाली वर्षा और बर्फ पिघलने से भूजल, जलाशय की पूर्ती होती है तथा सिंचाई में सहायता मिलती है, हालाँकि तीव्र घटनाएँ बाढ़ एवं भूस्खलन का कारण बन सकती हैं।

पश्चिमी विक्षोभ का बदलता स्वरूप

  • परंपरागत रूप से सर्दियों तक सीमित रहने वाले पश्चिमी विक्षोभ अब मई, जून और जुलाई जैसे गैर-सर्दियों के महीनों में अधिक बार आते हैं।
  • पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव पश्चिमी हिमालय से आगे बढ़कर पर्वतमाला के मध्य और पूर्वी भागों को भी शामिल कर चुका है।
  • हाल के दशकों में, पश्चिमी विक्षोभ वसंत और गर्मियों की शुरुआत में अत्यधिक वर्षा, बाढ़ तथा भूस्खलन का कारण बना है।
  • मानसून से पूर्व की अवधि में पश्चिमी विक्षोभ की उपस्थिति मानसून की शुरुआत और कृषि चक्र को बाधित कर सकती है।
  • वे अब पहले के दशकों की तुलना में अधिक तीव्र, व्यापक और व्यवहार में अनियमित हैं।

प्रतिरूप परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कारक

  •  तापमान में वृद्धि और अधिक प्रबल विक्षोभ: ग्लोबल वार्मिंग ने उपोष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम को तीव्र कर दिया है, जिससे वायु द्रव्यमान के बीच बढ़ी हुई अंतःक्रिया के कारण पश्चिमी विक्षोभ अधिक प्रबल हुआ है और इसकी पुनरावृत्ति हो रही है।
  • अरब सागर का गर्म होना: अरब सागर में समुद्र की सतह का तापमान 1.2-1.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है, जिससे पश्चिमी विक्षोभ में अधिक नमी आ गई है और उनकी वर्ष भर की तीव्रता बढ़ गई है।
  • जेट स्ट्रीम की गतिविधियों में वृद्धि: एक मजबूत और गर्म ऊपरी वायुमंडल ने जेट स्ट्रीम को विस्तृत कर दिया है, जिससे पश्चिमी विक्षोभ दूर तक यात्रा कर सकते हैं और लंबे समय तक सक्रिय रह सकते हैं।
  • विक्षोभ पथों में परिवर्तन: पश्चिमी विक्षोभ अब अधिक उत्तर-दक्षिण दोलन प्रदर्शित करते हैं, जो मेरिडियन जेट स्ट्रीम दोलनों में वृद्धि के कारण पारंपरिक पथों से विचलित हो रहे हैं।
  • विलंबित जेट स्ट्रीम निवर्तन: उपोष्णकटिबंधीय जेटस्ट्रीम की धीमी वापसी मानसून में देरी करती है, जिससे पश्चिमी विक्षोभ मानसून प्रणालियों के साथ अतिव्यापी हो जाता है और चरम मौसम का जोखिम बढ़ जाता है।
  • नमी की उपलब्धता: भूमध्य सागर, कैस्पियन सागर और धीरे-धीरे अरब सागर से लगातार नमी मिलने से सर्दियों के बाद भी नमी की उपलब्धता बनी रहती है।
    • इससे ‘ऑफ-सीजन’ में अधिक वर्षा होती है और मौसम के पैटर्न में अप्रत्याशितता बढ़ जाती है।

निष्कर्ष

  • पश्चिमी विक्षोभों के बदलते पैटर्न और बढ़ती आवृत्ति क्षेत्रीय मौसम प्रणालियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के स्पष्ट संकेतक हैं।
  • जबकि वे उत्तर-पश्चिम भारत में सर्दियों की वर्षा और कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, उनकी तीव्रता तथा अनियमितता नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है।
  • इन विकसित पैटर्न को समझना और उनके अनुकूल होना इस क्षेत्र में जलवायु लचीलापन, आपदा तैयारी और सतत् कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण है।

पश्चिमी विक्षोभ बनाम मानसून

पहलू

पश्चिमी विक्षोभ

मानसून (दक्षिण-पश्चिम)

परिचय पश्चिमी विक्षोभ अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय मौसम प्रणालियाँ हैं, जो उत्तर-पश्चिमी भारत में शीत ऋतु में वर्षा और बर्फबारी लाती हैं। मानसून एक मौसमी उष्णकटिबंधीय पवन प्रणाली है, जो गर्मियों के दौरान भारत के अधिकांश भागों में व्यापक वर्षा में सहायक होता है।
मूल ये भूमध्य सागर के पास उत्पन्न होते हैं और पूर्व की ओर बढ़ते हैं। ये भूमि और महासागर के भिन्न-भिन्न तापमान के कारण उत्पन्न होते हैं, जो मुख्य रूप से हिंद महासागर से प्रभावित होता है।
प्रकार ये मध्य अक्षांशों में निर्मित निम्न दाब प्रणालियाँ हैं।

ये उष्णकटिबंधीय प्रणालियाँ हैं, जो तापीय दाब के अंतर और महासागर-वायुमंडलीय अंतःक्रियाओं द्वारा संचालित होती हैं।

मौसम/महीने यह मुख्य रूप से शीतकाल (दिसंबर से फरवरी) के दौरान सक्रिय रहता है, लेकिन मानसून-पूर्व महीनों में इसकी सक्रियता बढ़ जाती है।

दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम के दौरान मुख्य रूप से जून से सितंबर तक सक्रिय रहता है। अक्टूबर और नवंबर के दौरान मानसून का मौसम लौटता है, जिससे प्रायद्वीप के पूर्वी हिस्से में वर्षा होती है।

नमी का स्रोत ये भूमध्य सागर, कैस्पियन सागर और अरब सागर से नमी ग्रहण करते हैं। ये गर्म हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी को पार करते समय नमी एकत्र करते हैं।
मुख्य प्रभाव क्षेत्र उत्तर-पश्चिम भारत और पश्चिमी हिमालय को प्रभावित करेगा। इसका प्रभाव लगभग संपूर्ण भारत पर पड़ेगा, विशेषकर मध्य, पश्चिमी और पूर्वोत्तर क्षेत्रों पर।
संबद्ध घटनाएँ बर्फबारी, सर्दियों की वर्षा, कोहरा और शीत लहरें उत्पन्न होती हैं। व्यापक वर्षा, बाढ़, मृदा अपरदन।  
प्रभावित करने वाले कारक उपोष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट स्ट्रीम से प्रभावित।

अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (Intertropical Convergence Zone-ITCZ), समुद्र सतह तापमान, तिब्बती तापन और जेट धाराओं से प्रभावित है।

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