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भारत और ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता

Lokesh Pal May 08, 2025 03:36 16 0

संदर्भ 

हाल ही में भारत और ब्रिटेन ने सफलतापूर्वक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) संपन्न किया, जिससे लगभग तीन वर्षों से चल रही वार्ता समाप्त हो गई।

संबंधित तथ्य

  • भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों देशों ने पारस्परिक रूप से लाभकारी मुक्त व्यापार समझौते के साथ-साथ ‘डबल कंट्रीब्यूशन कन्वेंशन’ समझौते को भी सफलतापूर्वक संपन्न कर लिया है।

भारत-ब्रिटेन FTA वार्ता संबंधी घटनाक्रम

  • मई, 2021: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बोरिस जॉनसन ने उन्नत व्यापार साझेदारी (Enhanced Trade Partnership- ETP) का शुभारंभ किया।
    • वे एक व्यापक एवं संतुलित FTA के लिए रोडमैप पर सहमत हुए।
  • जनवरी, 2022: नई दिल्ली में FTA वार्ता औपचारिक रूप से शुरू की गई।
  • जनवरी 2022-जनवरी 2025: भारतीय और U.K. के अधिकारियों के मध्य FTA वार्ता के 14 दौर आयोजित किए गए।
  • मार्च 2024: भारतीय आम चुनावों के कारण वार्ता रोक दी गई। दोनों पक्ष इसे चुनाव के बाद पुनः शुरू करने पर सहमत हुए।
  • फरवरी 2025: 8 महीने के विराम के बाद वार्ता पुनः शुरू हुई।
  • 6 मई, 2025: भारत और U.K. ने FTA वार्ता पूर्ण की।
    • साथ ही ‘डबल कंट्रीब्यूशन कन्वेंशन’ समझौते के समापन की घोषणा की।

मुक्त व्यापार समझौता या FTA के बारे में

  • FTA देशों या व्यापारिक ब्लॉकों के बीच समझौते हैं, जिनका उद्देश्य व्यापार को बढ़ावा देने और विनियमन को आसान बनाने वाले नियम निर्धारित करना है। ये वस्तुओं एवं सेवाओं दोनों को शामिल कर सकते हैं।

भारत-ब्रिटेन FTA की आवश्यकता के कारण

  • महामारी के बाद आपूर्ति शृंखला विविधीकरण: पश्चिमी कंपनियों को चीन पर अत्यधिक निर्भरता का जोखिम है।
    • स्रोतों में विविधता लाने और कमजोरियों को कम करने के लिए ‘चाइना-प्लस वन’ व्यापार रणनीति पर जोर दिया गया।
  • UK की ब्रेक्सिट के बाद की आर्थिक रणनीति: यूरोपीय एकल बाजार से बाहर निकलने के बाद, UK ने यूरोप के भीतर निर्बाध व्यापार और गतिशीलता खो दी।
    • भारत के बड़े और बढ़ते बाजार ने इस नुकसान की भरपाई के लिए एक मूल्यवान विकल्प प्रस्तुत किया।
  • UK के घरेलू आर्थिक दबाव: UK जीवनयापन संबंधी लागत में कमी आधारित संकट का सामना कर रहा है। FTA सस्ते आयात तथा बढ़े हुए निर्यात अवसरों को उत्पन्न करता है।
  • RCEP से बाहर निकलने के बाद भारत की रणनीति: भारत ने वर्ष 2019 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) से बाहर निकलने का विकल्प चुना, जिससे चीन-प्रभावी ढाँचे से बचा जा सकता है।
    • इससे ब्रिटेन के साथ किए गए द्विपक्षीय सौदों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता महसूस हुई।

U.K.-भारत मुक्त व्यापार समझौते की मुख्य विशेषताएँ

  • टैरिफ
    • शून्य-शुल्क तक पहुँच: U.K. को निर्यात किए जाने वाले 99% भारतीय सामान पर अब शून्य टैरिफ लगेगा, जो लगभग सभी भारतीय निर्यात हितों को शामिल करेगा।
    • भारत द्वारा टैरिफ में कटौती: भारत U.K. टैरिफ लाइनों के 90% पर टैरिफ में कटौती करेगा, जिसमें 85% 10 वर्षों के भीतर शून्य-शुल्क हो जाएँगे।
  • व्यापार
    • व्यापार में वृद्धि: वर्ष 2040 तक द्विपक्षीय व्यापार में वार्षिक रूप से 25.5 बिलियन पाउंड की वृद्धि होने की उम्मीद है।
    • वर्तमान द्विपक्षीय व्यापार: वर्ष 2024 में 42.6 बिलियन पाउंड था, जिसमें भारत U.K. का 11वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार होगा।
  • U.K. को लाभ पहुँचाने वाले प्रमुख क्षेत्र
    • शराब: व्हिस्की और जिन (Gin) पर टैरिफ 150% से घटाकर 75%, फिर समझौते के दसवें वर्ष तक 40% कर दिया जाएगा।
      • भारत में शराब उद्योग को डर है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ इसी तरह के समझौते भारतीय शराब उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे।
  • ऑटोमोबाइल: कोटा के तहत U.K. कारों पर आयात शुल्क घटाकर 10% किया (100% से अधिक) जाएगा।
  • लाभ पाने वाले प्रमुख भारतीय क्षेत्र
    • श्रम-प्रधान निर्यात: वस्त्र, चमड़ा, समुद्री उत्पाद, खिलौने, रत्न और आभूषण, खेल के सामान और जूते।
    • औद्योगिक क्षेत्र: इंजीनियरिंग सामान, ऑटो पार्ट्स, कार्बनिक रसायन।
  • गतिशीलता एवं सेवाएँ
    • कार्य आधारित वीजा: भारतीय पेशेवरों के लिए लगभग 100 नए वार्षिक वीजा, विशेष रूप से IT और स्वास्थ्य सेवा में उपलब्ध होंगे।
    • सामाजिक सुरक्षा संधि/‘डबल कंट्रीब्यूशन कन्वेंशन’: ‘डबल कंट्रीब्यूशन कन्वेंशन’ के तहत, U.K. में कार्यरत कुशल भारतीय श्रमिकों तथा उनके नियोक्ताओं को तीन वर्ष  के लिए सामाजिक सुरक्षा योगदान का भुगतान करने से छूट दी जाएगी।
    • मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) संबंधी प्रतिबद्धताएँ: U.K. ने 92 क्षेत्रों/उप-क्षेत्रों में भी MFN प्रतिबद्धताएँ कीं, जिनमें शामिल हैं:- निजी तौर पर वित्तपोषित स्वास्थ्य सेवाएँ और व्यावसायिक और शिक्षा सेवाएँ।
    • आर्थिक आवश्यकता परीक्षण (Economic Needs Test- ENT): U.K. ने अपने क्षेत्र में प्राकृतिक व्यक्तियों के अस्थायी प्रवेश हेतु संख्यात्मक प्रतिबंध या आर्थिक आवश्यकता परीक्षण आवश्यकताओं को लागू नहीं करने पर सहमति व्यक्त की है।

प्रमुख शब्दावली

  • मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा: इसका अर्थ है कि किसी देश को सभी WTO व्यापार भागीदारों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। यदि कोई देश किसी एक देश को व्यापार लाभ (जैसे- कम टैरिफ या कम व्यापार बाधाएँ) प्रदान करता है, तो उसे अन्य सभी WTO सदस्यों को भी वही प्रदान करना चाहिए।
  • आर्थिक आवश्यकता परीक्षण (Economic Needs Test- ENT): यह एक गैर-पारदर्शी, विवेकाधीन मानदंड है, जिसका उपयोग कोई देश, विदेशी सेवा प्रदाताओं को अपने बाजार में प्रवेश करने से प्रतिबंधित करने के लिए कर सकता है, जब तक कि कोई ‘आर्थिक आवश्यकता’ न हो।
    • ‘जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज’ (GATS) के अनुच्छेद-XVI के तहत आर्थिक आवश्यकता परीक्षण को बाजार पहुँच में बाधा के रूप में पहचाना गया है।
      • GATS विश्व व्यापार संगठन (WTO) की एक संधि है, जो सेवाओं के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करती है।

भारत के लिए भारत-ब्रिटेन (India–UK) मुक्त व्यापार समझौते का महत्त्व

  • व्यापार: भारत सरकार को आशा है कि इस समझौते से वर्ष 2030 तक दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार दोगुना हो जाएगा, जो वर्तमान में लगभग 60 बिलियन डॉलर है।
  • रणनीतिक साझेदारी: ब्रेक्सिट के बाद संबंधों को मजबूत करता है, भारत को U.K. की ‘ग्लोबल ब्रिटेन’  रणनीति में एक प्रमुख सहयोगी के रूप में स्थापित करता है।
  • संरक्षित क्षेत्रों को खोलना: पहली बार, भारत ने ऑटोमोबाइल जैसे अत्यधिक संरक्षित क्षेत्रों को टैरिफ कटौती के लिए प्रस्तुत किया है। यह व्यापार नीति में एक बड़ा बदलाव है।
  • भारत में निर्यात एवं घरेलू उद्योग को बढ़ावा: U.K. भारतीय वस्तुओं की एक विस्तृत शृंखला जैसे- कपड़ा, जूते, ऑटो घटक, रत्न और आभूषण, इंजीनियरिंग सामान आदि पर टैरिफ समाप्त कर देगा।
    • ये क्षेत्र श्रम-गहन हैं और टैरिफ-मुक्त पहुँच निर्यात को बढ़ावा देगी, रोजगार उत्पन्न करेगी तथा भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाएगी।
  • कार्यबल गतिशीलता: भारतीय पेशेवरों के लिए भारत-U.K. FTA की 3 वर्षीय सामाजिक सुरक्षा छूट लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और कार्यबल गतिशीलता को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाती है।
    • यह विशेष रूप से आईटी, वित्त, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में गहन सेवा क्षेत्र सहयोग का मार्ग प्रशस्त करता है।
  • भविष्य के FTA के लिए मॉडल: भारत का दृष्टिकोण राष्ट्रीय हितों के साथ बाजार पहुँच को संतुलित करता है, जो यूरोपीय संघ, अमेरिका आदि के साथ भविष्य की बातचीत और चल रही व्यापार वार्ता के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
  • संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा: भारत ने डेयरी, सेब और कुछ कृषि वस्तुओं को टैरिफ कटौती से बाहर रखा, जिससे उसके लघु किसानों और घरेलू कृषि-अर्थव्यवस्था की रक्षा हुई।
    • यह उच्च-स्तरीय व्यापार समझौतों में भी अपने कमजोर क्षेत्रों को सुरक्षित रखने की भारत की क्षमता को दर्शाता है।

भारत-ब्रिटेन FTA वार्ता में चुनौतियाँ

  • भारत के लिए सीमित सीमांत लाभ: ‘ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव’ (Global Trade Research Initiative- GTRI) के अनुसार, U.K. को किए जाने वाले कई भारतीय निर्यातों पर पहले से ही कम या शून्य टैरिफ लागू हैं। इससे टैरिफ रियायतों से भारत को मिलने वाला अतिरिक्त लाभ सीमित हो गया।
  • सेवाएँ और कार्य परमिट: भारत ने आईटी और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के लिए गतिशीलता बढ़ाने की माँग की।
    • ब्रेक्सिट के बाद U.K.  में आव्रजन एक संवेदनशील विषय था।
    • अंतिम समझौते में भारतीय पेशेवरों के लिए केवल 100 नए वार्षिक कार्य वीजा की अनुमति दी गई।
  • U.K. का प्रस्तावित कार्बन टैक्स: यू.के. ने धातुओं जैसे आयातों पर उनके कार्बन फुटप्रिंट के आधार पर कार्बन सीमा कर लगाने की योजना बनाई थी।
    • भारत ने इसका विरोध किया क्योंकि इससे धातु उत्पादों के भारतीय निर्यात पर प्रतिबंध लग सकता था।
  • कार्य वीजा और कानूनी सेवाएँ: भारत ने छात्रों के लिए अध्ययन के बाद कार्य वीजा की अपनी माँग वापस ले ली।
    • U.K. ने भारत में कानूनी सेवाएँ खोलने के अपने अनुरोध को वापस ले लिया।
      • भारत में कानूनी सेवाएँ बार काउंसिल ऑफ इंडिया (Bar Council of India- BCI) के तहत अधिवक्ता अधिनियम द्वारा शासित होती हैं।
      • भारतीय विधिक वर्ग विदेशी कानूनी वर्ग के प्रवेश का काफी हद तक विरोध करता रहा है।
  • भारत में किसानों का विरोध: किसान संगठनों ने भारत-यू.के. मुक्त व्यापार समझौते का कड़ा विरोध किया है, उन्होंने चेतावनी दी है कि इससे भारतीय किसानों, मछुआरों और छोटी खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को नुकसान होगा, क्योंकि इससे ब्रिटेन के सस्ते सामान बाजार में भर जाएँगे, जिससे स्थानीय उत्पादकों और MSME के लिए प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाएगा।

आगे की राह 

  • शीघ्र कार्यान्वयन: भारत को FTA का शीघ्र अनुसमर्थन एवं संचालन सुनिश्चित करना चाहिए ताकि इसके पूर्ण लाभ जल्द-से-जल्द प्राप्त किए जा सकता है।
    • अनुपालन की निगरानी, ​​शिकायतों का समाधान और आवधिक प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए एक समर्पित संयुक्त कार्यान्वयन समिति की स्थापना की जानी चाहिए।
  • MSME को सशक्त बनाना: भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि वे द्विपक्षीय व्यापार में भाग ले सकें, विशेषकर इसलिए क्योंकि यह समझौता कपड़ा, चमड़ा, जूते, रत्न और आभूषण तथा ऑटो घटकों जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों को लाभ पहुँचाने के लिए तैयार है।
  • द्विपक्षीय निवेश संधि (Bilateral Investment Treaty- BIT): भारत को U.K. के साथ BIT के शीघ्र समापन को प्राथमिकता देनी चाहिए। इससे कानूनी स्पष्टता और निवेशक सुरक्षा मिलेगी, जिससे विश्वास और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह में वृद्धि होगी।
  • निर्यात विविधीकरण और मूल्य संवर्द्धन: भारत को कम मूल्य वाले कच्चे माल की तुलना में मूल्य-वर्द्धित और विभेदित निर्यात को बढ़ावा देना चाहिए।
    • प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिए सरकार को भारतीय उत्पादों, विशेषतौर पर भौगोलिक संकेतक (GI) वाले उत्पादों की ब्रांडिंग, मार्केटिंग और प्रमाणन को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • CBAM पर बातचीत: भारत को कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism- CBAM) के इर्द-गिर्द न्यायसंगत समाधान खोजने के लिए U.K. के साथ बातचीत जारी रखने की आवश्यकता है।
    • भारतीय उद्योगों को अनुचित कार्बन-संबंधी शुल्कों से बचाने के लिए एक पुनर्संतुलन तंत्र को अंतिम रूप दिया जाना चाहिए।

निष्कर्ष 

भारत-ब्रिटेन FTA, आर्थिक संबंधों में एक मील का पत्थर है। हालाँकि, इसकी सफलता प्रभावी कार्यान्वयन और मजबूत नीति समर्थन पर निर्भर करती है।

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