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भारत की चिनाब बाँध और जलविद्युत परियोजना संबंधी प्रतिक्रिया

Lokesh Pal May 09, 2025 03:34 19 0

संदर्भ

हाल ही में भारत ने पहलगाम में आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को निलंबित करने के बाद सलाल और बगलिहार बाँधों के माध्यम से चिनाब जल प्रवाह को रोक दिया।

जम्मू और कश्मीर में जलविद्युत क्षमता

  • जम्मू और कश्मीर में अनुमानित 20,000 मेगावाट से अधिक की जलविद्युत क्षमता है।
  • इसमें से 11,000 मेगावाट से अधिक को आर्थिक रूप से व्यवहार्य माना जाता है, जिसका अधिकांश हिस्सा चिनाब बेसिन में केंद्रित है।
  • जम्मू और कश्मीर में 15 बड़े बाँध हैं, जिनमें से चार प्रमुख सलाल, आलाल, बगलिहार और दुल हैं, जो चिनाब नदी पर स्थित हैं, जो पीर पंजाल और जम्मू पहाड़ियों को बहाती है।
  • सिंधु जल संधि के तहत चिनाब पर पाकिस्तान के नियंत्रण के बावजूद, भारत को गैर-उपभोग्य उपयोग और विद्युत् उत्पादन के लिए सलाल तथा बगलिहार जैसी रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण करने की अनुमति है।

चिनाब नदी पर बाँधों का सामरिक और ऊर्जा महत्त्व

  • ये परियोजनाएँ IWT के तहत भारत के रणनीतिक ‘अपस्ट्रीम’ तटवर्ती अधिकारों को मजबूत करती हैं, साथ ही स्थानीय और राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा को भी बढ़ावा देती हैं।
  • ये जल असुरक्षा और संभावित कूटनीतिक लाभ के बारे में पाकिस्तान की धारणा के प्रति संतुलन के रूप में भी कार्य करती हैं।

चिनाब नदी के बारे में

  • उद्गम: चिनाब नदी हिमाचल प्रदेश के टांडी में चंद्रा और भागा नदियों के संगम से निकलती है।
    • यह पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले हिमाचल प्रदेश और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर से उत्तर-पश्चिम में बहती है।
  • सहायक नदियाँ और वितरिकाएँ: प्रमुख सहायक नदियों में मरुसुदर, झेलम और सोहन नदियाँ शामिल हैं।
    • यह अंततः पाकिस्तान में सतलुज नदी में मिल जाती है, जो बाद में सिंधु में मिल जाती है।
  • महत्त्व: चिनाब नदी, चिनाब घाटी में कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण है और कई जलविद्युत परियोजनाओं का समर्थन करती है।
    • यह पारिस्थितिकी विविधता और जलीय जीवन को भी बनाए रखती है।
  • चुनौतियाँ और संरक्षण: नदी को जल-बँटवारे के विवादों, पारिस्थितिकी क्षरण और बाँध निर्माण से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: चिनाब नदी स्थानीय मिथकों में शामिल है और ऐतिहासिक मंदिरों एवं किलों से होकर बहती है, जो इसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व को दर्शाती है।

चिनाब नदी पर महत्त्वपूर्ण बाँध

बाँध का नाम स्थान (जिला) प्रकार कमीशन ऊँचाई संस्थापित क्षमता भंडारण क्षमता विशेष लक्षण
सलाल बाँध रियासी रन-ऑफ-द-रिवर  1987–1995 (चरणों में) ~113मी* 690 मेगावाट (6×115 मेगावाट) मध्यम (सटीक निर्दिष्ट नहीं) सिंधु जल संधि के बाद चिनाब पर पहला बड़ा बाँध
बगलिहार बाँध रामबन भंडारण के साथ नदी का बहाव वर्ष 2009 143 मी. 450 मेगावाट (चरण-I) सकल: 428.28 MCM

लाइव: 31.11 MCM

गाद हटाने की क्षमता से युक्त उच्च-ऊँचाई वाली परियोजना
दुल हस्ती बाँध किश्तवाड़ रन-ऑफ-द-रिवर  2000 के दशक की शुरुआत में ~70 मी.* 390 MW सीमित (रन-ऑफ-द-रिवर प्रकार) रणनीतिक महत्त्व वाली दूरस्थ, उच्च जोखिम वाली परियोजना।

*अनुमानित मूल्य जहाँ आधिकारिक डेटा स्पष्ट रूप से प्रदान नहीं किया गया है।

महत्त्वपूर्ण आगामी चिनाब नदी आधारित परियोजनाएँ

परियोजना का नाम

स्थान (जिला)

प्रकार

संस्थापित क्षमता

प्रमुख विशेषताएँ

वर्तमान स्थिति

पाकल दुल (Pakal Dul) किश्तवाड़ भंडारण-सह-जलविद्युत 1,000 मेगावाट 167 मीटर ऊँचा कंक्रीट आधारित रॉकफिल बाँध निर्माणाधीन; ऊर्जा और जल भंडारण के लिए महत्त्वपूर्ण
कीरू (Kiru) किश्तवाड़ रन-ऑफ-द-रिवर 624 मेगावाट CVPPL द्वारा विकसित; IWT दिशा-निर्देशों के अनुरूप विकासाधीन; लगातार प्रगति पर
रतले (Ratle) किश्तवाड़ रन-ऑफ-द-रिवर 850 मेगावाट शुरू में रुका हुआ; NHPC-जम्मू एवं कश्मीर, संयुक्त उद्यम के माध्यम से पुनः शुरू किया गया। कानूनी/राजनीतिक मुद्दों के कारण लंबे विलंब के बाद निर्माण कार्य पुनः शुरू हुआ।

ऊर्जा क्षमता का दोहन करने में चुनौतियाँ

  • भू-राजनीतिक बाधाएँ: सिंधु जल संधि भंडारण क्षमता और बाँध डिजाइन सुविधाओं को सीमित करती है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: भूकंपीय संवेदनशीलता और संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र हिमालयी क्षेत्र में बड़े बुनियादी ढाँचे को चुनौती देते हैं।
  • विलंबित मंजूरी: कई परियोजनाओं को लंबे समय तक वन, पर्यावरण और अंतर-एजेंसी मंजूरी का सामना करना पड़ता है।
  • सुरक्षा और संघर्ष क्षेत्र: नियंत्रण रेखा से निकटता परियोजना जोखिम और निर्माण लागत को बढ़ाती है।

आगे की राह

  • संधि का पुनर्मूल्यांकन: भारत बदलती भू-राजनीतिक वास्तविकताओं के बीच IWT प्रावधानों पर पुनः वार्ता या पुनर्व्याख्या करने की कोशिश कर सकता है।
  • सतत् विकास: विस्थापन से बचने के लिए पर्यावरण की दृष्टि से स्वस्थ निर्माण और स्थानीय भागीदारी को प्राथमिकता देना।
  • निवेश और फास्ट-ट्रैकिंग: संचालित परियोजनाओं में तेजी लाना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के तहत निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करना।
  • क्षेत्रीय एकीकरण: आउटपुट दक्षता को अधिकतम करने के लिए पड़ोसी राज्यों के साथ विद्युत्-साझाकरण और ग्रिड एकीकरण का लाभ उठाना।

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