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नागरिक-सैन्य संबंध : राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक आवश्यक पहलू

Lokesh Pal May 09, 2025 05:15 9 0

संदर्भ:

शासन के लिए नागरिकसैन्य संबंध महत्त्वपूर्ण हैं, जिसमें संयुक्तता (Jointness) और एकीकरण महत्त्वपूर्ण है। जबकि सत्तावादी शासन सैन्य प्रभुत्व को प्राथमिकता देते हैं, भारत ने नागरिक नियंत्रण और लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित किया है, चुनौतियों और सुधारों के माध्यम से अपने नागरिक-सैन्य समन्वय को विकसित किया है।

नागरिक-सैन्य समन्वय

  • संयुक्तता (सेवाओं के बीच सहयोग) और एकीकरण (नागरिक और सैन्य संस्थाओं के बीच संरेखण) महत्त्वपूर्ण हैं।
  • विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों में समन्वय अलग-अलग होता है: सत्तावादी शासन सैन्य प्रभुत्व को महत्त्व देते हैं तो वहीं लोकतंत्र नागरिक नियंत्रण पर बल देते हैं।
  • भारत एक आदेश-संचालित प्रणाली से लोकतांत्रिक मानदंडों और संस्थागत तालमेल पर आधारित प्रणाली में विकसित हो चुका है।

प्रमुख सिद्धांत और प्रभाव

  • सैमुअल हंटिंगटन की 1957 की पुस्तक नागरिक नियंत्रण के तहत सैन्य स्वायत्तता का समर्थन करती है।
  • प्रधानमंत्री मोदी के 2014 के वक्तव्य में नागरिक वर्चस्व के तहत एक पेशेवर सेना पर बल दिया गया था।

भारत की नागरिक-सैन्य सफलताएँ

  • भारत का नागरिक-सैन्य समन्वय सफल रहा है, विशेषकर आपदा प्रतिक्रिया और विधिक प्रवर्तन में।
  • सैन्य सहायता अनुशासन और अद्वितीय क्षमताओं (जैसे- सीबीआरएन, हेली-लिफ्ट, अंडरवाटर बचाव) द्वारा चिह्नित है।
  • भारत की सेना ने क्षेत्रीय मानवीय प्रयासों और निकासी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

सिविल और सैन्य विंग के बीच अंतर

  • सैन्य सेवाएँ पदानुक्रम, गति और एकरूपता को महत्त्व देती हैं, जबकि सिविल सेवाएँ लंबी अवधि और निरंतरता को महत्त्व देती हैं।
  • राष्ट्रीय परिसंपत्तियों (भूमि, स्पेक्ट्रम, हवाई क्षेत्र) की खरीद, आधुनिकीकरण और उपयोग में असमानताएँ।
  • रसद, प्रशिक्षण और बुनियादी ढाँचे में दोहराव संयुक्त योजना में अकुशलता को दर्शाता है।

नागरिक-सैन्य समन्वय में चुनौतियाँ

  • 1999 के कारगिल युद्ध ने समन्वय की कमियों को उजागर कर दिया।
  • युद्धोत्तर सुधारों में आईडीएस, डीआईए, अंडमान और निकोबार कमांड का निर्माण शामिल था।
  • सुधारों (1999-2019) में आधुनिकीकरण, तकनीक स्वीकृति, सीमा विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया, लेकिन विश्वास की कमी को नजरअंदाज कर दिया गया।

द्वितीय पीढ़ी के सुधार (2019)

  • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) और सैन्य मामलों के विभाग (डीएमए) की स्थापना।
  • परिचालन, रसद, प्रशिक्षण और समर्थन में संयुक्तता पर जोर।
  • अंतर-सेवा संगठन अधिनियम (2023) के माध्यम से संयुक्तता के लिए विधायी समर्थन।
  • बेहतर नागरिक-सैन्य समन्वय, दोहरे उपयोग के संसाधन मुद्दों का समाधान और आधुनिकीकरण।

कार्यरत सुधार और प्रभाव

  • भू-स्थानिक डेटा, ड्रोन, सीमापार अवसंरचना और दुहरे उपयोग वाले रक्षा हवाई क्षेत्रों पर नीतियाँ आगे बढ़ी हैं।
  • पूँजीगत व्यय आधुनिकीकरण और रक्षा निर्यात विस्तार पर केंद्रित है।
  • अग्निवीर योजना के माध्यम से भर्ती और प्रशिक्षण सुधार।

तीसरी पीढ़ी के सुधारों की आवश्यकता

  • हाइब्रिड खतरों (साइबर हमले, दुष्प्रचार, छद्म युद्ध) के कारण गहन एकीकरण की आवश्यकता होती है।
  • नागरिक नव-प्रवर्तकों के साथ दुहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों (एआई, ड्रोन, अंतरिक्ष प्रणालियाँ) का सह-विकास।
  • कानून-युद्ध (Lawfare) और ग्रे-ज़ोन युद्ध के लिए संयुक्त नागरिक-सैन्य प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है।
  • वैश्विक सुरक्षा खतरे (जैसे- चीनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, रूस-चीन धुरी, साइबर हमले ) एक समग्र सामाजिक दृष्टिकोण की माँग करते हैं।

निष्कर्ष

आधुनिक युद्ध और हाइब्रिड खतरों के मद्देनजर, नागरिक-सैन्य एकीकरण को मजबूत करने के लिए तीसरी पीढ़ी के सुधार आवश्यक हैं। ये सुधार 21वीं सदी की जटिल चुनौतियों का समाधान करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, जिसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नागरिक और सैन्य संस्थानों के बीच अभूतपूर्व तालमेल की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

आधुनिक खतरों के लिए एकीकृत नागरिक-सैन्य प्रतिक्रिया की आवश्यकता है, न कि पृथक विभागीय प्रतिक्रिया की। इस कथन के आलोक में, हाइब्रिड खतरों से निपटने के लिए भारत की तैयारियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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