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वायु रक्षा प्रणालियाँ

Lokesh Pal May 10, 2025 03:20 65 0

संदर्भ

लाहौर में पाकिस्तानी वायु रक्षा प्रणाली को भारत द्वारा सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया जाना, हवाई वर्चस्व और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने में आधुनिक वायु रक्षा क्षमताओं की रणनीतिक प्रासंगिकता को प्रदर्शित करता है।

वायु रक्षा प्रणालियाँ क्या हैं?

  • वायु रक्षा प्रणालियाँ एकीकृत सैन्य व्यवस्थाएँ हैं, जिन्हें विमान, ड्रोन, क्रूज मिसाइलों और बैलिस्टिक मिसाइलों जैसे आने वाले हवाई खतरों का पता लगाने, उन्हें ट्रैक करने, रोकने और नष्ट करने के लिए डिजाइन किया गया है।

वायु रक्षा प्रणालियों के प्रकार

  • सतह-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलें (Surface-to-Air Missiles- SAM): ये भूमि आधारित मिसाइल प्रणालियाँ हैं, जो अलग-अलग ऊँचाई और दूरी पर लक्ष्यों को भेदने में सक्षम हैं।
  • एंटी-एयरक्राफ्ट आर्टिलरी (AAA): कम दूरी की तोपें, जो रक्षा की अंतिम पंक्ति के रूप में प्रयोग की जाती हैं, जो यूएवी और कम उड़ान वाले विमानों के विरुद्ध प्रभावी होती हैं।
  • इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (EW) सिस्टम: विद्युत चुंबकीय विकिरण का उपयोग करके दुश्मन का पता लगाने और संचार प्रणालियों को बाधित, धोखा देना या निष्क्रिय करना।

वायु रक्षा प्रणालियों की कार्य प्रणाली

  • पता लगाना: रडार विद्युत चुंबकीय तरंगों को प्रसारित करता है, जो हवाई वस्तुओं से परावर्तित होती हैं, जिससे उन्हें पहचानने और उनका पता लगाने में मदद मिलती है।
  • ट्रैकिंग: रडार और सेंसर के माध्यम से निरंतर निगरानी लक्ष्य की गति, ऊँचाई और दिशा निर्धारित करती है।
  • अवरोधन: सिस्टम कमांड सेंटर से वास्तविक समय के मार्गदर्शन के आधार पर खतरे को अप्रभावी करने के लिए इंटरसेप्टर (SAM या लड़ाकू विमान) लॉन्च करता है।
  • कमांड, नियंत्रण और संचार (C3): निर्बाध समन्वय तेजी से निर्णय लेने और उभरते खतरों पर प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है।

भारत की प्रमुख वायु रक्षा प्रणालियाँ

प्रणाली

प्रकार

मूल

श्रेणी

लक्ष्य प्रकार

प्रमुख विशेषताएँ

आकाश कम दूरी की SAM भारत (DRDO, BDL) 25 किमी. तक विमान, UAV, क्रूज मिसाइलें
  • त्वरित प्रतिक्रिया समय वाली रडार-निर्देशित मिसाइल
  • बिंदु और क्षेत्र रक्षा के लिए उपयोग की जाती है।
S-400 ट्रायंफ (S-400 Triumf) लंबी दूरी की SAM रूस 400 किमी. तक स्टील्थ विमान, UAV, क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलें
  • कई मिसाइल प्रकारों का उपयोग करके बहु-स्तरीय संलग्नता
  • मोबाइल और 5-10 मिनट में तैनात करने योग्य
  • इलेक्ट्रॉनिक युद्ध वातावरण में मजबूत।
स्पाइडर (Spyder) कम दूरी की SAM इजरायल 15 किमी. तक विमान, UAV, परिशुद्धता-निर्देशित युद्ध सामग्री
  • त्वरित प्रतिक्रिया, सभी मौसमों में काम करने की क्षमता।
  • भारतीय वायु सेना और भारतीय सेना दोनों द्वारा तैनात किया जा सकता है।
  • इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर और रडार के साथ नेटवर्क-केंद्रित प्रणाली।
  • एक साथ कई लक्ष्यों को निशाना बना सकता है।
इग्ला-S (Igla-S) मानव-पोर्टेबल वायु रक्षा प्रणाली (Man-Portable Air Defence System-MANPADS) रूस 6 किमी. तक लघु उड़ान वाले विमान, हेलीकॉप्टर, UAV
  • कंधे से दागी जाने वाली और अत्यधिक गतिशील।
  • बेहतर प्रतिवाद प्रतिरोध के साथ उष्मीय प्रसार मिसाइल।
  • भारतीय सूची में पुराने इग्ला-1एम सिस्टम की जगह लेती है।
  • तेज, कम ऊँचाई वाले हवाई खतरों के विरुद्ध प्रभावी।

भारत की वायु रक्षा प्रणालियों का सामरिक महत्त्व

  • शत्रुओं के विरुद्ध प्रतिरोध: S-400 की रेंज बड़े पाकिस्तानी और चीनी हवाई क्षेत्र को कवर करती है, जिससे शत्रुतापूर्ण हवाई अभियानों को रोका जा सकता है।
  • सामरिक संपत्तियों की सुरक्षा: प्रमुख शहरों, परमाणु कमांड केंद्रों, सैन्य ठिकानों और आर्थिक केंद्रों को हवाई हमलों से बचाया जाता है।
  • आक्रामक अभियानों को समर्थन: वायु रक्षा प्रणालियाँ, संपत्तियों और हवाई ठिकानों को सुरक्षित करके आक्रामक हवाई हमलों के लिए कवर प्रदान करती हैं।
  • समुद्री निगरानी और रक्षा: तट आधारित S-400 बैटरियाँ भारतीय तटों के पास दुश्मन की नौसेना इकाइयों पर निगरानी और संलग्नता क्षमता बढ़ाती हैं।

भारत की वायु रक्षा संरचना में चुनौतियाँ

  • एकीकरण के मुद्दे: विभिन्न देशों (रूस, पश्चिमी देश, भारत) की विविध प्रणालियों को एकीकृत कमान के लिए जटिल एकीकरण की आवश्यकता होती है।
  • कवरेज अंतराल: S-400 में बहुत कम दूरी की सुरक्षा की कमी है, कम उड़ान वाले ड्रोन या रॉकेट के लिए MANPADS और SHORADS की आवश्यकता होती है।
  • उच्च लागत: S-400 जैसी उन्नत प्रणालियों का अधिग्रहण और रखरखाव अन्य आधुनिकीकरण प्रयासों के लिए बजट को सीमित करता है।
  • उभरते खतरे: हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहन, स्वार्म ड्रोन और उन्नत स्टील्थ विमानों का पता लगाना और उन्हें रोकना कठिन है।
  • प्रशिक्षण और रखरखाव: उच्च तकनीक प्रणालियों के रखरखाव, परीक्षण और संचालन के लिए कुशल कर्मियों और समर्पित बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है।

वैश्विक वायु रक्षा प्रणालियों की तुलना

प्रणाली देश रडार रेंज संबंधित रेंज (Engagement Range) क्षमता सीमाएँ
S-400 रूस 600 किमी. 400 किमी. (40N6 मिसाइल) बहु-लक्ष्य ट्रैकिंग, एंटी-स्टेल्थ, स्तरित रक्षा महँगी, बहुत कम दूरी के इंटरसेप्टर का अभाव
MIM-104 Patriot संयुक्त राज्य अमेरिका लगभग 150 किमी. लगभग 160 किमी. (PAC-3) ‘हिट-टू-किल’ तकनीक, युद्ध-सिद्ध S-400 की तुलना में कम पता लगाने की सीमा
THAAD संयुक्त राज्य अमेरिका लगभग 200 किमी. 200 किमी+ (बैलिस्टिक मिसाइल) उच्च अवरोधन, IRBM के विरुद्ध अच्छा विमान के विरुद्ध सीमित प्रभावशीलता
HQ-9 चीन लगभग 200 किमी. 200 किमी. शीत प्रक्षेपण, सक्रिय रडार होमिंग कम मिसाइल वैरिएंट, कम लड़ाकू डेटा
S-300PMU रूस लगभग200 किमी. 150–200 किमी. पुरानी प्रणाली, बहु-लक्ष्य क्षमता नए S-400 से बेहतर
आयरन डॉम इजरायल 70+ किमी. 4–70 किमी. कम दूरी के खतरों के लिए सर्वश्रेष्ठ, 90% अवरोधन सफलता, युद्ध-सिद्ध लंबी दूरी की मिसाइलों के विरुद्ध अप्रभावी, प्रति इंटरसेप्टर उच्च लागत
डेविड स्लिंग (David’s Sling) इजरायल लगभग 300 किमी. 300 किमी. तक क्रूज मिसाइलों, MRBM, लंबी दूरी के रॉकेटों को निशाना बनाता है। बहुत कम दूरी के खतरों के लिए उपयुक्त नहीं।

निष्कर्ष

S-400 जैसी प्रणालियों में भारत का निवेश उसकी वायु रक्षा स्थिति को काफी मजबूत करता है। हालाँकि, वास्तविक वायु सेना संबंधी सशक्तता हासिल करने के लिए भविष्य के हवाई खतरों के विरुद्ध एकीकृत बहु-स्तरीय रक्षा, निरंतर तकनीकी उन्नयन और रणनीतिक नवाचारों की आवश्यकता होती है।

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