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भ्रामक सूचना एवं मनोवैज्ञानिक युद्ध

Lokesh Pal May 14, 2025 03:32 10 0

संदर्भ

भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (POK) में आतंकवादी ठिकानों पर जवाबी हमले के बाद, पड़ोसी देश की ओर से भ्रामक सूचनाओं एवं दुष्प्रचार सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जा रहा है।

संबंधित तथ्य

  • इस मनोवैज्ञानिक युद्ध में प्रसारित भ्रामक सूचनाओं को प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB), भारत द्वारा सक्रिय रूप से खारिज कर दिया गया है।

महत्त्वपूर्ण शब्दावली

  • भ्रामक सूचना (Misinformation): भ्रामक सूचना से तात्पर्य ऐसी झूठी या गलत सूचना से है, जो द्वेषपूर्ण उद्देश्य से प्रसारित की जाती है।
  • दुष्प्रचार (Disinformation): दुष्प्रचार जानबूझकर प्रसारित की गई गलत या भ्रामक सूचना है, जो जनता को धोखा देने या हेर-फेर करने के उद्देश्य से फैलाई जाती है।
  • प्रचार: प्रचार, जनता की राय को प्रभावित करने, धारणाओं को आकार देने या राजनीतिक अथवा वैचारिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्यवहार में हेर-फेर करने के लिए सूचना, विचारों या आख्यानों का व्यवस्थित प्रसार है।
    • इसमें तथ्यों का चयनात्मक उपयोग, अतिशयोक्ति या झूठ का प्रसार शामिल हो सकता है।
    • राज्यों, राजनीतिक समूहों या मीडिया आउटलेट द्वारा उपयोग किया जाता है।
    • उदाहरण: युद्ध के दौरान दुश्मन सैनिकों को आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित करने वाले पर्चे गिराना।

मनोवैज्ञानिक युद्ध (Psychological Warfare) के बारे में

  • मनोवैज्ञानिक युद्ध में शांति या संघर्ष के समय विरोधियों के मनोबल, इच्छाशक्ति और धारणा को कमजोर करने के लिए दुष्प्रचार, धमकियों तथा भ्रामक सूचनाओं का प्रयोग किया जाता है।
    • इसमें दुश्मन सेना, नागरिक और यहाँ तक कि अपनी स्वयं की आबादी भी शामिल होती है।
    • उदाहरण: शत्रु सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित करने के लिए उनकी पराजय से संबंधित संदेश प्रसारित करना।

ऐतिहासिक संदर्भ

  • प्राचीन एवं पारंपरिक युग
    • सन त्जू (द आर्ट ऑफ वार, लगभग 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व): “सभी युद्ध धोखे पर आधारित होते हैं।” उन्होंने बिना लड़े जीतने के साधन के रूप में दुश्मन की धारणा को प्रभावित करने का समर्थन किया।
    • जेरेक्सेस (Xerxes) और मेसीडोनिया के फिलिप द्वितीय (Philip II) ने भ्रम फैलाने और दुश्मनों का मनोबल गिराने के लिए डराने-धमकाने तथा गलत सूचना का प्रयोग  किया।
    • चंगेज खान ने अपने विरोधियों को बिना युद्ध के आत्मसमर्पण करने के लिए डराने के लिए अपनी सेना के आकार एवं क्रूरता के बारे में झूठी अफवाहें फैलाईं।
  • पूर्व-आधुनिक और औपनिवेशिक काल
    • अमेरिकी क्रांति के दौरान थॉमस पेन की ‘कॉमन सेंस’ (1776) ने मनोबल बढ़ाने वाले प्रचार के रूप में कार्य किया।
    • ब्रिटिशों ने औपनिवेशिक भारत में स्वदेशी सैनिकों को प्रभावित करने और राष्ट्रवादियों को कमजोर करने के लिए पैंफलेट का प्रयोग किया।
    • नेपोलियन द्वारा युद्ध में प्रयोग: छद्म शक्ति प्रदर्शन और दुश्मनों का मनोबल गिराने के लिए सार्वजनिक फरमानों और समाचार-पत्रों का प्रयोग किया।
  • विश्वयुद्ध काल
    • प्रथम विश्वयुद्ध: मित्र राष्ट्रों और धुरी शक्तियों दोनों ने तटस्थ राष्ट्रों तथा शत्रुओं के मनोबल को प्रभावित करने के लिए पोस्टर, पर्चे एवं झूठी कहानियों (जैसे- जर्मन अत्याचार) का प्रयोग किया।
    • द्वितीय विश्वयुद्ध
      • नाजी जर्मनी: गोएबल्स के प्रचार मंत्रालय ने नाजी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए सभी सूचनाओं को नियंत्रित किया।
      • मित्र राष्ट्र: जर्मन और जापानी सैनिकों पर आत्मसमर्पण के लिए प्रोत्साहित करने वाले पर्चे गिराए।
    • मनोवैज्ञानिक युद्ध औपचारिक सैन्य मनोवैज्ञानिक इकाइयों के माध्यम से संस्थागत हो गया।
  • शीतयुद्ध
    • संयुक्त राज्य अमेरिका बनाम सोवियत संघ रूस (USSR): रेडियो (जैसे- वॉयस ऑफ अमेरिका, रेडियो फ्री यूरोप), फिल्मों, शिक्षा के माध्यम से दुष्प्रचार एवं गलत सूचना अभियान।
    • तीसरे पक्ष पर घटनाओं का दोषारोपण करने के लिए दुष्प्रचार करना और रणनीतिक हथियार के रूप में सूचना से इनकार करना।

मैडकॉम (MADCOMs) अर्थात् ‘मशीन-चालित संचार’ (Machine-Driven Communications)

  • MADCOMs का तात्पर्य AI-संचालित संचार प्रणालियों से है, जो बड़े पैमाने पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव के लिए प्रेरक सामग्री को स्वायत्त रूप से उत्पन्न, अनुकूलित और प्रवर्द्धित करने में सक्षम हैं।
  • यह शब्द ‘मशीन’ (Machine) + ‘स्वचालित’ (Automated) + ‘संचार’ (Communications) से मिलकर बना है।
  • ये प्रणाली स्वचालित मनोवैज्ञानिक संचालन (PsyOps) करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता, नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग और बिग डेटा का उपयोग करती है।

समकालीन संदर्भ

  • तकनीकी उन्नति: सोशल मीडिया, बिग डेटा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने लक्षित दुष्प्रचार को सक्षम किया है।
    • मशीन-संचालित संचार (MADCOM) बड़े पैमाने पर प्रचार को निजीकृत और स्वचालित करने के लिए AI का उपयोग करता है।
  • हालिया उदाहरण
    • भारत-पाकिस्तान संदर्भ: ऑपरेशन सिंदूर (मई 2025) के बाद, पाकिस्तान द्वारा प्रसारित दुष्प्रचार ने ड्रोन हमलों, भारतीय चौकियों को नष्ट करने और मिसाइल हमलों का झूठा दावा किया।
      • भारत के प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) ने इन सभी को खारिज कर दिया।
    • रूस
      • वर्ष 2007 में एस्टोनिया और वर्ष 2008 में जॉर्जिया में साइबर हमले: आतंक फैलाने के लिए फर्जी खबरों और डिजिटल प्लेटफॉर्म का प्रयोग किया गया।
      • वर्ष 2016 का अमेरिकी चुनाव: रूसी सरकार द्वारा प्रायोजित अभिकर्ताओं ने इंटरनेट रिसर्च एजेंसी के माध्यम से मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए झूठी खबरें, मीम्स और गलत विज्ञापन का प्रसार किया।

मनोवैज्ञानिक युद्ध प्रचार की श्रेणियाँ

  • व्हाइट प्रोपेगैंडा (White Propaganda): प्रचार जो खुले तौर पर अपने स्रोत की घोषणा करता है और जिसमें सत्य जानकारी हो सकती है,  हालाँकि यह प्रायः चुनिंदा रूप से प्रस्तुत की जाती है।
    • उदाहरण: संघर्ष के दौरान आधिकारिक प्रेस विज्ञप्तियाँ, जिसमें दुश्मन सैनिकों को आत्मसमर्पण करने या मानवीय सहायता पर जोर देने का आग्रह किया जाता है।
  • ग्रे प्रोपेगैंडा (Gray Propaganda): प्रचार, जहाँ स्रोत छुपा हुआ या अस्पष्ट होता है और सामग्री सत्य एवं झूठ का मिश्रण हो सकती है।
    • उदाहरण: बिना पहचान योग्य लेखक के विभाजनकारी सामग्री या षड्यंत्र के सिद्धांतों को फैलाने वाले गोपनीय ऑनलाइन पेज।
  • ब्लैक प्रोपेगैंडा (Black Propaganda): प्रचार जो जानबूझकर अपने स्रोत को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है और एक विश्वसनीय या तटस्थ इकाई के अंतर्गत भ्रामक जानकारी प्रसारित करता है।
    • उदाहरण: किसी विरोधी सरकार या राजनीतिक व्यक्ति के नाम पर फर्जी समाचार रिपोर्ट या जाली-पत्र।

मनोवैज्ञानिक युद्ध में प्रयुक्त रणनीतियाँ

  • प्रचार प्रसार: मस्तिष्क को प्रभावित करने के लिए वैचारिक जानकारी का प्रसार करना।
    • दुश्मन को बदनाम करने, मनोबल बढ़ाने या कार्यों को सही ठहराने के लिए प्रयोग किया जाता है।
    • उदाहरण: द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान दुश्मन सैनिकों को आत्मसमर्पण करने के लिए प्रोत्साहित करने वाले पर्चे।
  • दुष्प्रचार अभियान: भ्रमित करने, गुमराह करने या अस्थिर करने के लिए जानबूझकर झूठ फैलाना।
    • इसमें फर्जी खबरें, छेड़छाड़ किए गए वीडियो, जाली-पत्र और भ्रामक शीर्षक शामिल हैं।
    • उदाहरण: ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत पर मिसाइल हमलों का फर्जी वीडियो जारी करना।
  • बॉट, ट्रोल और MADCOM का उपयोग: झूठे आख्यानों को बढ़ाने के लिए स्वचालित खातों (बॉट) या AI-संचालित संचार उपकरणों (MADCOM) का उपयोग।
    • झूठी सहमति स्थापित करता है और तेजी से गलत सूचना फैलाता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2016 के अमेरिकी चुनाव में रूस की ‘इंटरनेट रिसर्च एजेंसी’ की गतिविधियाँ।
  • भावनात्मक हेर-फेर: प्रतिक्रिया को तीव्र करने के लिए प्रबल भावनाओं (भय, क्रोध, घृणा) का लाभ उठाना।
    • भावनात्मक उत्तेजना उत्पन्न करने वाली फर्जी खबरें वायरल होने की संभावना अधिक होती है।
    • उदाहरण: अमेरिका में मतदाताओं को भड़काने के लिए क्लिंटन विरोधी प्रचार या धार्मिक सामग्री फैलाना।
  • अफवाहें एवं षड्यंत्र सिद्धांत: अनिश्चितता या पूर्वाग्रह का लाभ उठाने के लिए अपुष्ट दावों को प्रसारित करना।
    • प्रायः विरोधियों या संस्थाओं को अवैध ठहराने के लिए उपयोग किया जाता है।
    • उदाहरण: ‘ओबामा केन्या में पैदा हुए’ या ‘ट्रंप द्वारा वायरटैपिंग’ षड्यंत्र।
  • झूठे झंडे वाली कार्रवाई: हमलों या घटनाओं को इस तरह से प्रस्तुत करना कि ऐसा लगे कि वे प्रतिद्वंद्वी द्वारा संचालित हैं।
    • भ्रम उत्पन्न करना, जनमत को बदलना, या प्रतिक्रिया को उचित ठहराना।
    • जाली पत्रों और हेर-फेर किए गए समाचारों द्वारा भारतीय संदर्भ में इसका समर्थन किया गया।
  • डेटा एनालिटिक्स के जरिए मनोवैज्ञानिक लक्ष्यीकरण: व्यक्तिगत डेटा का उपयोग करके अनुकूलित मनोवैज्ञानिक संदेश के साथ व्यक्तियों को लक्षित करना।
    • उदाहरण: कैंब्रिज एनालिटिका ने मतदान व्यवहार को प्रभावित करने के लिए व्यक्तित्व लक्षणों के आधार पर 87 मिलियन फेसबुक उपयोगकर्ताओं की प्रोफाइलिंग की।

हाइब्रिड युद्ध (Hybrid Warfare) 

  • हाइब्रिड युद्ध से तात्पर्य घोषित युद्ध में शामिल हुए बिना सैन्य या राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पारंपरिक और गैर-पारंपरिक दोनों प्रकार के उपकरणों (जिसमें साइबर हमले, भ्रामक सूचना, आर्थिक दबाव और मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन शामिल हैं) के रणनीतिक उपयोग से है।

मनोवैज्ञानिक युद्ध के लाभ

  • घातक नहीं लेकिन अत्यधिक प्रभावी: यह युद्ध राष्ट्रों को बिना भौतिक विनाश के रणनीतिक लक्ष्य हासिल करने की अनुमति देता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2016 के अमेरिकी चुनावों में रूसी दुष्प्रचार ने एक भी गोली चलाए बिना जनता की राय को प्रभावित किया, जिससे मतदाता मतदान और संस्थानों में विश्वास प्रभावित हुआ।
  • पारंपरिक युद्ध की तुलना में लागत प्रभावी: सैन्य अभियान शुरू करने की तुलना में प्रचार या बॉट तैनात करना सस्ता है।
  • मनोबल और इच्छाशक्ति को लक्षित करता है: दुश्मन सैनिकों तथा नागरिकों दोनों की भावना एवं आत्मविश्वास को तोड़ने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • मौजूदा सामाजिक विभाजन का लाभ उठाता है: सामाजिक सामंजस्य को कमजोर करने और आंतरिक अस्थिरता उत्पन्न करने के लिए पहले से मौजूद तनावों को बढ़ाता है।
    • उदाहरण: अमेरिका में रूसी अभियानों ने दोनों पक्षों में संघर्ष को भड़काने के लिए ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ के समर्थक और विरोधी दोनों समूहों को लक्षित किया।
  • हाइब्रिड युद्ध क्षमताओं को बढ़ाता है: ‘मनोवैज्ञानिक युद्ध’ हाइब्रिड संघर्ष में साइबर और सूचनात्मक तत्त्वों को मजबूत करता है।
    • ऑपरेशन सिंदूर (2025) के बाद, पाकिस्तान ने भारतीय जनता और प्रेस को भ्रमित करने के लिए जाली वीडियो और नकली हमले के दावों का प्रयोग किया।
  • AI के माध्यम से विस्तार योग्य और वैयक्तिकृत: MADCOM जैसे AI उपकरण एक साथ लाखों लोगों के लिए संदेशों को वैयक्तिकृत कर सकते हैं।
    • उदाहरण: कैंब्रिज एनालिटिका ने 87 मिलियन उपयोगकर्ताओं के लिए कस्टम राजनीतिक विज्ञापन डिजाइन करने हेतु व्यक्तिगत लक्षणों (जैसे- धार्मिक बहिर्मुखी, विक्षिप्त अंतर्मुखी) का उपयोग किया।

मनोवैज्ञानिक युद्ध के नुकसान 

  • संस्थाओं और मीडिया में विश्वास को कम करता है: मनोवैज्ञानिक युद्ध, तथ्य और कल्पना के मध्य की रेखा को अस्पष्ट कर देता है, जिससे सरकारों, पत्रकारिता और लोकतांत्रिक प्रणालियों में व्यापक अविश्वास उत्पन्न होता है। रूस के वर्ष 2016 के गलत सूचना अभियान के बाद, 64% अमेरिकियों ने फर्जी खबरों के कारण बुनियादी तथ्यों के बारे में भ्रम की सूचना दी।
  • सामाजिक ध्रुवीकरण एवं संघर्ष को बढ़ावा देता है: विभाजनकारी आख्यानों को बढ़ाकर, मनोवैज्ञानिक युद्ध आंतरिक विभाजन को बढ़ा सकता है और नागरिक अशांति को भड़का सकता है।
    • ऑपरेशन सिंदूर के बाद गलत सूचना का उद्देश्य धार्मिक और क्षेत्रीय तनाव को भड़काना था।
  • वास्तविक दुनिया में हिंसा में वृद्धि हो सकती है: आभासी क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन के ऑफलाइन परिणाम हो सकते हैं, जिसमें हिंसा एवं अशांति शामिल है।
    • हिलेरी क्लिंटन के बारे में फर्जी कहानी ने एक व्यक्ति को वाशिंगटन, डी.सी. में एक पिज्जा की दुकान में गोलीबारी करने के लिए प्रेरित किया (जिसे ‘पिज्जागेट’ घटना कहा जाता है)।
  • चुनावी अखंडता को कमजोर करता है: गलत सूचना जनता की राय को विकृत कर सकती है, मतदान व्यवहार में हस्तक्षेप कर सकती है और चुनावों की वैधता से समझौता कर सकती है।
    • कैंब्रिज एनालिटिका ने यू.एस. और ब्रेक्सिट चुनावों के दौरान लाखों फेसबुक उपयोगकर्ताओं के लिए भावनात्मक रूप से हस्तक्षेप करने वाले विज्ञापन डिजाइन करने हेतु मनोवैज्ञानिक डेटा का उपयोग किया।
  • जिम्मेदार ठहराना और विनियमित करना मुश्किल: ‘मनोवैज्ञानिक युद्ध’ संबंधी अभियान प्रायः गुप्त एवं गोपनीय होते हैं, जिससे जिम्मेदारी तय करना तथा जवाबदेही लगभग असंभव हो जाती है।
    • फेसबुक पर रूसी प्रचार पृष्ठ अमेरिकी जमीनी स्तर के आंदोलनों के रूप में दिखाई दिए, जो नागरिकों और अधिकारियों दोनों को गुमराह करते हैं।

मनोवैज्ञानिक युद्ध में मीडिया की भूमिका

  • प्रसार के लिए प्राथमिक चैनल: मीडिया (विशेष रूप से डिजिटल और सोशल मीडिया) भ्रामक सूचना, दुष्प्रचार और प्रचार प्रसार का मुख्य साधन है।
    • ऑपरेशन सिंदूर (मई 2025) के बाद, पाकिस्तान ने मिसाइल हमलों और भारतीय हताहतों के बारे में डॉक्टरेट किए गए वीडियो और झूठे दावे प्रसारित किए।
  • झूठे आख्यानों का विस्तार: मीडिया प्रायः झूठ को सही करने की तुलना में तेजी से बढ़ाता है, जिससे यह मनोवैज्ञानिक ऑपरेशनों में अनजाने में सहयोगी बन जाता है।
    • झूठ सच से अधिक वायरल होते हैं, विशेषतः जब वे भावनात्मक रूप से आवेशित होते हैं।
  • सामग्री के जरिए भावनात्मक हेर-फेर: डर, गुस्सा या घृणा को भड़काने के लिए डिजाइन की गई मीडिया सामग्री का उपभोग और साझा किए जाने की संभावना अधिक होती है, जिससे मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप को बढ़ावा मिलता है।
    • झूठी राजनीतिक खबरें तथ्यात्मक खबरों की तुलना में अधिक मजबूत भावनाएँ (जैसे- आश्चर्य, आक्रोश) उत्पन्न करती हैं, जिससे उनके वायरल होने की संभावना अधिक होती है।
    • तंत्र: भावनात्मक संक्रमण (Emotional Contagion) + प्रेरित तर्क।
  • इको चैंबर्स और फिल्टर बबल्स का निर्माण: डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा उपयोग किए जाने वाले एल्गोरिदम उपयोगकर्ताओं को उनकी मान्यताओं के अनुरूप सामग्री दिखाते हैं, पूर्वाग्रहों को मजबूत करते हैं और उन्हें असहमतिपूर्ण विचारों से अलग करते हैं।
    • विशेषतः ध्रुवीकृत समाजों में लोगों के अपने राजनीतिक या वैचारिक रुख को दर्शाने वाली खबरों पर विश्वास करने और उन्हें फैलाने की संभावना अधिक होती है।
    • झूठी जानकारी वैचारिक ढाँचे के भीतर ‘सत्य’ बन जाती है।
  • राज्य और गैर-राज्य अभिकर्ताओं द्वारा मीडिया का प्रयोग: मीडिया केवल एक निष्क्रिय चैनल नहीं है, यह मनोवैज्ञानिक युद्ध में शामिल अभिकर्ताओं द्वारा प्रयुक्त एक सक्रिय उपकरण है।
    • रूस, पाकिस्तान और यहाँ तक ​​कि कैंब्रिज एनालिटिका जैसी निजी फर्मों ने लक्षित भ्रामक सूचना तथा मनोवैज्ञानिक लक्ष्यीकरण के लिए मीडिया का प्रयोग किया।
  • दोधारी तलवार के रूप में मीडिया: हालाँकि मीडिया भ्रामक सूचना प्रसारित करती है, यह फर्जी खबरों का मुकाबला करने और गलत सूचनाओं को उजागर करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • स्नोप्स (Snopes), PIB फैक्ट चेक और खोजी पत्रकारों जैसे फैक्ट चेक प्लेटफॉर्म फर्जी खबरों का पता लगाने और उन्हें खारिज करने में मदद करते हैं।

मनोवैज्ञानिक युद्ध से निपटने के लिए सरकारी पहल

  • पीआईबी फैक्ट चेक: प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) फैक्ट चेक यूनिट भारत सरकार की आधिकारिक फैक्ट-चेकिंग प्रणाली है।
    • कार्य: सरकारी नीतियों और रक्षा मामलों से संबंधित फर्जी खबरों एवं गलत सूचनाओं की पहचान करना और उनका खंडन करना।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और डिजिटल समाचार मीडिया की जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से लाया गया था।
    • प्रावधान: प्लेटफॉर्म को गलत संदेशों की उत्पत्ति का पता लगाना चाहिए।
      • अधिकारियों द्वारा चिह्नित सामग्री को एक निश्चित समय सीमा के भीतर हटाना चाहिए।
    • प्रासंगिकता: ऑनलाइन फर्जी खबरों, गलत सूचनाओं और मनोवैज्ञानिक हेर-फेर के प्रसार को रोकने में मदद करता है।
  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C): यह केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत एक बहु-एजेंसी आधारित निकाय है।
    • उद्देश्य: सूचना युद्ध सहित साइबर खतरों पर विभिन्न कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों के साथ समन्वय करता है।
    • फर्जी खबरों के चलन, डिजिटल प्रचार और मनोवैज्ञानिक कार्रवाइयों पर नजर रखने के लिए CERT-In के साथ मिलकर कार्य करता है।
  • भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (CERT-In): यह केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय (MeitY) के तहत नोडल एजेंसी है।
    • कार्य: बॉट गतिविधि और भ्रामक सूचना नेटवर्क सहित साइबर खतरों का पता लगाना और उनका जवाब देना। 
    • गलत सूचनाओं को तेजी से हटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय साइबर सुरक्षा संगठनों और तकनीकी प्लेटफॉर्म के साथ सहयोग करना।
  • मीडिया साक्षरता अभियान: जनता को फर्जी खबरों की पहचान करने के लिए शिक्षित करने हेतु सूचना और प्रसारण मंत्रालय तथा गैर-सरकारी संगठनों द्वारा प्रयास करना।
    • फैक्ट चेक प्लेटफॉर्म, सत्यापन तकनीकों और सामग्री के उत्तरदायी साझाकरण संबंधी उपयोग को बढ़ावा देना।
    • लक्ष्य: छात्र, ग्रामीण उपयोगकर्ता और सोशल मीडिया इनफ्लूएन्सर।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: भारत साइबर सुरक्षा और सूचना युद्ध मानदंडों पर QUAD, G20 और UN फोरम के माध्यम से वैश्विक स्तर पर जुड़ रहा है।
    • मनोवैज्ञानिक युद्ध से निपटने के लिए खुफिया जानकारी साझा करने और तकनीकी सहयोग के लिए द्विपक्षीय साइबर सुरक्षा समझौते करना।

मनोवैज्ञानिक युद्ध से निपटने के लिए आगे की राह

  • मीडिया साक्षरता और जन जागरूकता को मजबूत करना: नागरिकों को सामग्री का गंभीरता से आकलन करने और नकली आख्यानों की पहचान करने के लिए सशक्त बनाना।
    • स्कूली पाठ्यक्रम में डिजिटल साक्षरता की शुरुआत करना, PIB फैक्ट चेक जैसे फैक्ट-चेक उपकरणों को बढ़ावा देना और जन जागरूकता अभियान चलाना।
  • प्रौद्योगिकी-संचालित प्रतिवाद में निवेश करना: वास्तविक समय में समन्वित मनोवैज्ञानिक संचालन का पता लगाने और उसे अप्रभावी करने के लिए AI एवं डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करना।
    • भारत को स्वदेशी बॉट डिटेक्शन सिस्टम और वास्तविक समय गलत सूचना चेतावनी प्रणाली का निर्माण करना चाहिए।
  • स्वतंत्र भाषण को बाधित किए बिना डिजिटल प्लेटफॉर्म को विनियमित करना: संवैधानिक स्वतंत्रता के साथ संतुलन बनाते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जवाबदेही लागू करना।
    • डिजिटल मध्यस्थों के लिए पता लगाने और फैक्ट-चेक संबंधी दायित्वों को अनिवार्य करना।
    • IT नियम, 2021 का अनुपालन सुनिश्चित करना और आगामी डिजिटल इंडिया अधिनियम ढाँचे को मजबूत करना।
  • मनोवैज्ञानिक युद्ध के विरोध हेतु संस्थागत ढाँचे का निर्माण करना: मनोवैज्ञानिक अभियानों की निगरानी, ​​विश्लेषण और प्रतिक्रिया के लिए विशेष एजेंसियों या प्रकोष्ठों का निर्माण करना।
    • भारत को सैन्य, खुफिया और मीडिया निगरानी शाखाओं को एकीकृत करने वाली एक समर्पित सूचना युद्ध कमान (Information Warfare Command) की आवश्यकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: गलत सूचना एक अंतरराष्ट्रीय खतरा है; प्रतिक्रिया के लिए सीमा पार भागीदारी की आवश्यकता है।
    • नकली समाचार अभियानों और मनोवैज्ञानिक अभियानों पर खतरे की खुफिया जानकारी के लिए मित्र देशों के साथ सहयोग करना।
  • नैतिक पत्रकारिता और मीडिया जवाबदेही को प्रोत्साहित करना: आंतरिक आचार संहिता को मजबूत करना और जिम्मेदारीपूर्ण, सत्यापित रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करना।
    • मीडिया को ब्रेकिंग न्यूज से पहले खबरों को सत्यापित करने और स्वतंत्र फैक्ट-चेक यूनिट्स का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • मनोवैज्ञानिक टीकाकरण और प्री-बंकिंग: लोगों को भविष्य के हमलों का विरोध करने में मदद करने के लिए भ्रामक सूचना के कमजोर रूपों से अवगत कराना।
    • सरकार, नागरिक समाज और शिक्षक मॉक ड्रिल, मीडिया मॉड्यूल और सिमुलेशन का उपयोग कर सकते हैं।

निष्कर्ष 

भ्रामक सूचना और मनोवैज्ञानिक युद्ध के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए, राष्ट्रों को उन्नत तकनीकी प्रतिवाद, मजबूत मीडिया साक्षरता कार्यक्रम तथा अंतरराष्ट्रीय सहयोग को एकीकृत करना चाहिए। संस्थागत ढाँचे और नैतिक पत्रकारिता के माध्यम से लचीलापन बढ़ाकर, समाज को खंडित करने वाले आख्यानों के विरुद्ध लोकतांत्रिक अखंडता और राष्ट्रीय सामंजस्य की रक्षा कर सकते हैं।

संबंधित प्रश्न

प्रश्न. 1. ऑपरेशन सिंदूर एक सैन्य सफलता थी, लेकिन पाकिस्तान के दुष्प्रचार अभियान ने हाइब्रिड युद्ध के बढ़ते खतरे को रेखांकित किया है। मनोवैज्ञानिक युद्ध में प्रयोग की जाने वाली रणनीति की भूमिका और मनोवैज्ञानिक युद्ध से निपटने के लिए सरकारी पहल की भूमिका का आकलन कीजिए। (250 शब्द)

प्रश्न. 2. विध्वंसकारी गतिविधियों के लिए गैर-सरकारी तत्त्वों द्वारा इंटरनेट और सोशल मीडिया का उपयोग एक बड़ी सुरक्षा चिंता है। हाल के दिनों में इनका दुरुपयोग किस तरह किया गया है? उपरोक्त खतरे को रोकने के लिए प्रभावी दिशा-निर्देश सुझाएँ। (2016)

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