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भारत में रोज़गार विहीन शिक्षा प्रणाली: एक गंभीर समस्या

Lokesh Pal May 14, 2025 05:30 18 0

संदर्भ:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 और अन्य सुधारों के तहत प्रगति के दावों के बावजूद, भारत की शिक्षा प्रणाली आज भी विभिन्न समस्याओं से जूझ रही है — विशेष रूप से रोज़गार संबंधी योग्यता, जवाबदेही और गुणवत्ता के क्षेत्र में — जिन्हें कोई भी नीतिगत बयानबाज़ी छिपा नहीं सकती।

शिक्षा में सुधार और वास्तविकता

  • मुख्य बिंदु: अटल टिंकरिंग लैब्स, प्रारंभिक कोडिंग शिक्षा, एससी/एसटी(SC/ST) शिक्षक भर्ती और मुस्लिम लड़कियों का सशक्तीकरण
  • दावा: राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NEP), 2020 एक शैक्षिक पुनर्जागरण की शुरुआत करेगी।
  • वास्तविकता की जाँच: रोज़गार योग्यताओं से जुड़ा मूल मुद्दा अभी भी काफी हद तक अनसुलझा है।

शिक्षा: सशक्तीकरण या निर्बलता का कारण?

  • स्वामी विवेकानंद के अनुसार: शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए, कि वह व्यक्ति कोअपने पैरों पर खड़ा होनेमें सक्षम बनाए।
  • उत्कृष्टता के स्थान पर समानता: समानता पर अत्यधिक ध्यान देने के कारण भारत ने न केवल उत्कृष्टता, बल्कि समानता दोनों को ही खो दिया है।
  • डिग्रियाँ और रोज़गार योग्यता: स्नातकों के पास ऐसी डिग्रियाँ हैं, जो रोजगार बाजार के लिए अनुपयोगी और मूल्यहीन हैं।

नई शिक्षा नीति (NEP): सुधार का चौथा प्रयास

  • पूर्ववर्ती आयोग:
    • राधाकृष्णन आयोग (1948): स्वतंत्रता के बाद उच्चतर शिक्षा की स्थिति की समीक्षा की
    • कोठारी आयोग (1966): सामान्य विद्यालय प्रणाली (common school system) का प्रस्ताव रखा और संपूर्ण शिक्षा संरचना की समीक्षा की।
    • अधिकारी आयोग (1985): ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड (1987) से संबंधित
  • नई शिक्षा नीति(NEP), 2020 की कमियाँ: अवास्तविक, वित्तीय दृष्टि से अव्यवहारिक और कार्यान्वयन स्तर पर स्पष्टता की कमी

विस्तार और गहनता का दुविधा

  • तकनीकी विशेषज्ञता: रोज़गार योग्यता के लिए आवश्यक।
  • लचीलापन: एआई (AI)- आधारित भविष्य के लिए आवश्यक।
  • आदर्श शिक्षा: सतत करियर के लिए गहनता और विस्तार दोनों का संतुलन बनाती है।

रोज़गार संकट

  • स्नातक रोजगार योग्यता(2025): 42.6%, 2023 (44.3%) के मुकाबले बहुत कम सुधार।
  • ज्ञान-आधारित रोजगार: केवल 11.72%
  • कई प्रवेश-निकासी विकल्पों का प्रभाव: निम्न-गुणवत्ता और निम्न वेतन वाले रोजगार का निर्माण
  • पाठ्यक्रम विकल्पों की अप्रासंगिकता: जब पाठ्यक्रम सामग्री ही निम्न गुणवत्ता का हो, तो विकल्प मायने नहीं रखते।

भ्रामक वैश्विक रैंकिंग

  • क्यूएस (QS) रैंकिंग: 11 भारतीय विश्वविद्यालय शीर्ष 500 सूची में
  • अन्य तथ्य:
    • निम्न रैंकिंग (100 से ऊपर)
    • प्रकाशन की गुणवत्ता खराब
    • सीएनसीआई (CNCI) रैंक: जी-20 में 17वें से 16वें स्थान तक केवल मामूली सुधार (2008-2024)।
  • सरकार की प्रशंसा: रैंकिंग में वृद्धि भ्रामक है, जिसकी पद्धति संदिग्ध है।

अनुसंधान परियोजनाओं में पारदर्शिता की कमी

  • मेगा-परियोजनाएँ: CSIR-NMITLI, आकाश टैबलेट, इंप्रिंट जैसी पहलों को बड़े पैमाने पर प्रचारित किया गया।
  • स्पष्टता का अभाव: विशाल सार्वजनिक निवेश के बावजूद कोई परिणाम या पैसे का मूल्य नहीं मिला।
  • जवाबदेही: इन परियोजनाओं में करदाताओं के धन का हिसाब नहीं दिया गया।

वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) में भारत

  • भारत की वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) रैंकिंग:
    • 2014: 76वाँ स्थान
    • 2015: 81वाँ स्थान
    • 2024: 39वाँ स्थान
  • तुलनात्मक बढ़त: मलेशिया (33) और तुर्की (37) जैसे देश भारत से बेहतर रैंक पर हैं।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्लस्टर रैंकिंग: बबंगलूरू (56), दिल्ली (63), चेन्नई (82), मुंबई (84)

बेंगलुरु सिलिकॉन वैली

  • भ्रामक तुलना: सिलिकॉन वैली की तुलना में बंगलूरू की रैंकिंग बढ़ा-चढ़ाकर पेश की गई है।
    •  प्रति व्यक्ति पीसीटी(PCT) आवेदन: बंगलूरू – 313 बनाम सिलिकॉन वैली – 7885
    •  प्रति व्यक्ति वैज्ञानिक प्रकाशन: बबंगलूरू – 1077 बनाम सिलिकॉन वैली – 9211
  • शीर्ष पेटेंट प्राप्तकर्ता के रूप में सैमसंग: बंगलुरु की शीर्ष पेटेंट प्राप्तकर्ता कंपनी सैमसंग है, कोई भारतीय कंपनी नहीं।

विज्ञान रहित स्टार्ट-अप्स

  • वैश्विक स्टार्ट-अप्स: चीन, अमेरिका और इज़राइल में वास्तविक स्टार्ट-अप्स महत्त्वपूर्ण तकनीकी समस्याओं का समाधान करते हैं।
  • भारतीय स्टार्ट-अप्स: भारत में, खाद्य वितरण ऐप्स को प्रायः नवाचार(इनोवेशन) समझ लिया जाता है।

वास्तविक स्टार्ट-अप्स को क्या चाहिए

  • स्वदेशी प्रौद्योगिकी: वास्तविक नवाचार के लिए महत्त्वपूर्ण
  • स्वदेशी विज्ञान: स्वदेशी प्रौद्योगिकी की नींव
  • स्वदेशी शिक्षा: भारतीय मूल्यों और प्रासंगिकता पर आधारित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

यूजीसी(UGC) की समस्या

  • यूजीसी (UGC): विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) एक पुरानी व्यवस्था वाला नियामक बना हुआ है, जो नीति और वित्त दोनों पर नियंत्रण रखता है।
  • डेटा की कमी: ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, कि पाठ्यक्रम सुधारों से सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
  • प्रस्ताव: यूजीसी (UGC) को समाप्त किया जाए और विश्वविद्यालयों को अपने सुधारों को स्वयं प्रबंधित करने की स्वतंत्रता दी जाए।

शिक्षा में जवाबदेही की माँग

  • नेताओं का उत्तरदायित्व: शैक्षिक नेताओं को केवल प्रचार और वक्तव्यों तक सीमित न रहकर वास्तविक परिणाम देने चाहिए
  • रोजगार योग्यता पर ध्यान: सुनिश्चित करें कि शिक्षा, सार्थक रोजगार और वास्तविक विश्व में प्रासंगिकता की ओर ले जाए।

निष्कर्ष

भारत का शैक्षिक संकट विचारधारा से कम, बल्कि अप्रभावीता, जवाबदेही की कमी और दूरदर्शिता के अभाव से अधिक जुड़ा है। जब तक हम गुणवत्ता, स्पष्टता और उद्योग की प्रासंगिकता को बेहतर नहीं करते, तब तक वास्तविक परिवर्तन असंभव होगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

 नीतिगत सुधारों के बावजूद भारत की शिक्षा प्रणाली स्नातकों की रोज़गार क्षमता बढ़ाने में विफल रही है। शिक्षा को रोज़गार, नवाचार और आर्थिक विकास के साथ जोड़ने में आने वाली बहुआयामी चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए तथा संभावित उपाय बताइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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