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भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में नर्सों की भूमिका

Lokesh Pal May 16, 2025 05:15 13 0

संदर्भ:

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की रीढ़ होने के बावजूद, नर्सों को आज भी कम महत्त्व दिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस हमें उनके महत्त्व की याद दिलाता है, लेकिन सार्थक सम्मान के लिए केवल वार्षिक प्रशंसा और प्रतीकात्मक प्रशंसा से आगे बढ़ते हुए व्यवस्थित सुधारों की आवश्यकता है।

नर्सें: स्वास्थ्य सेवा की गुमनाम नायिकाएँ

  • अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस (12 मई): नर्सों की महत्त्वपूर्ण भूमिका हेतु आवश्यक है।
    • यह एक वार्षिक दिवस है, जब हम फ्लोरेंस नाइटिंगेल का सम्मान करते हैं और स्वास्थ्य सेवा की गुमनाम नायिकाओं – नर्सों को सम्मान देते हैं।
  • योगदान: नर्सें और पारंपरिक दाईयाँ भारत की स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत जनशक्ति का 47% हिस्सा हैं, लेकिन नेतृत्व और नीतिगत भूमिकाओं में इनका प्रतिनिधित्व अत्यंत कम है।
  • उपेक्षा: उन्हें मुख्य रूप से डॉक्टरों के सहायक के रूप में देखा जाता है, जिससे उनकी स्वतंत्रता और चिकित्सीय क्षमताएँ सीमित हो जाती हैं।

नर्स अभ्यासकर्ता (NP) की भूमिका

  • नर्स अभ्यासकर्ता (NP): ये उन्नत अभ्यास वाली पंजीकृत नर्सें होती हैं, जिन्हें (आमतौर पर मास्टर स्तर पर) स्वतंत्र रूप से रोगों का निदान, उपचार और दवा लिखने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
  • प्रचलन में: अमेरिका (U.S.), ब्रिटेन (U.K.), ऑस्ट्रेलिया और थाईलैंड जैसे देशों ने स्वास्थ्य सेवा संबंधी कमियों को दूर करने के लिए नर्स अभ्यासकर्ता (NP) को अपनाया है।

भारत की नर्स अभ्यासकर्ता (NP) पहल: धीमी प्रगति

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 ने नर्स अभ्यासकर्ता (Nurse Practitioners-NPs) को महत्त्वपूर्ण मध्य-स्तरीय सेवा प्रदाताओं के रूप में मान्यता दी है।
  • भारतीय नर्सिंग परिषद (INC) की पहलें, जैसे:
    •  क्रिटिकल केयर में नर्स अभ्यासकर्ता, (2017)
    •  प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में नर्स अभ्यासकर्ता
    •  प्रसूति सेवा (मिडवाइफरी) में नर्स अभ्यासकर्ता (NP) (2002, पश्चिम बंगाल)
  • चिंता का विषय: विधिक ढाँचे की कमी, भूमिकाओं की अस्पष्टता और असुरक्षित उपाधियों के कारण नर्स अभ्यासकर्ता का समुचित एकीकरण बाधित हो रहा है।
  • विनियामक समर्थन का अभाव: आंतरिक भूमिकाएँ (जैसे- मधुमेह एजुकेटर, स्ट्रोक नर्स) विनियामक समर्थन से वंचित हैं।

नर्स अभ्यासकर्ता (NP) के एकीकरण में बाधाएँ

  • कानूनी स्पष्टता का अभाव: नर्स अभ्यासकर्ता (NP) के अभ्यास की सीमा और निर्देशात्मक अधिकारों को परिभाषित करने वाला कोई स्पष्ट विधिक ढाँचा नहीं है।
  • चिकित्सा समुदाय का प्रतिरोध: नियंत्रण खोने के भय से चिकित्सा समुदाय का प्रतिरोध।
  • संरचनात्मक अस्पष्टताएँ: लाइसेंसिंग, करियर मार्ग और प्रणाली में समावेशन में अस्पष्टताएँ नर्स अभ्यासकर्ता (NP) के लिए अस्तित्वगत दुविधाएँ उत्पन्न करती हैं।

ऑस्ट्रेलिया से सीख

  • नर्स अभ्यासकर्ता (NP) आंदोलन के मुख्य प्रेरक: स्पष्ट लक्ष्य, राजनीतिक समर्थन और संरक्षित उपाधियों ने नर्स अभ्यासकर्ता (NP) आंदोलन को प्रेरित किया।
  • सफलता के कारक: विधायी समर्थन, लाइसेंसिंग और करियर मार्गों ने सफलता को संभव बनाया।
  • सिद्धांत का प्रमाण: नर्स द्वारा संचालित वॉक-इन केंद्रों ने यह साबित किया, कि सेवा सुरक्षित, प्रभावी और चिकित्सकों से स्वतंत्र हो सकती है।

भारत में सांस्कृतिक और संरचनात्मक चुनौतियाँ

  • परिवर्तन में बाधाएँ: परिवर्तन का विरोध लिंग भेदभाव, चिकित्सकीय पदानुक्रम और सांस्कृतिक मान्यताओं में गहराई से निहित है।
  • नर्सिंग शिक्षा में चुनौतियाँ: नर्सिंग शिक्षा कमजोर विनियमन और भ्रष्टाचार की वजह से गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है।
  • विधायी प्रगति: राष्ट्रीय नर्सिंग और मिडवाइफरी आयोग अधिनियम, 2023 एक सकारात्मक कदम है, लेकिन इसका प्रभाव अभी स्पष्ट नहीं है।
  • कमज़ोर नीतिगत समर्थन: मजबूत नर्सिंग आंदोलनों की अनुपस्थिति से नीति-निर्माण में नर्सों का प्रभाव कमजोर पड़ता है।

नर्सों की नेतृत्वकारी भूमिका

  • वैश्विक पहचान बनाम घरेलू उपेक्षा: भारतीय नर्सें विदेशों में नर्स अभ्यासकर्ता (NP) की भूमिकाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करती हैं, लेकिन देश में उनका समुचित उपयोग नहीं हो रहा है।
  • नर्स अभ्यासकर्ता (NP)-नेतृत्व वाली सेवा की सिद्ध प्रभावशीलता: प्रमाण बताते हैं, कि नर्स अभ्यासकर्ता (NP) द्वारा प्रदान की गई सेवा के परिणाम तुलनीय होते हैं, संतुष्टि उच्च होती है और लागत कम आती है।
  • सहयोगात्मक अभ्यास मॉडल की आवश्यकता: भारत को एक सहयोगात्मक, टीम-आधारित मॉडल की ओर बढ़ना चाहिए, जहाँ नर्सें अपनी पूरी क्षमता के अनुसार अभ्यास कर सकें।

आवश्यक सुधार

  • नर्सिंग शिक्षा में सुधार: कमजोर गुणवत्ता वाले कॉलेजों को बंद करें, संकाय की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जाए, पाठ्यक्रम में नेतृत्व और नीतिगत शिक्षा को शामिल करें।
  • विधिक मान्यता: स्पष्ट लाइसेंसिंग और जवाबदेही के साथ।
  • संरचित विकास और समानता: करियर मार्ग को परिभाषित करें, उचित वेतन सुनिश्चित करें और भूमिका में ठहराव को समाप्त करें।
  • मूल्यांकन में लैंगिक भेदभाव को संबोधित करना: नर्सिंग के लिंग-आधारित अवमूल्यन को समाप्त करें।
  • परिवर्तन एजेंट के रूप में नर्सों को सशक्त बनाना: नर्सों को सुधार के प्रेरक (drivers) के रूप में सशक्त किया जाना चाहिए, जो जन आंदोलन और रणनीतिक साझेदारियों द्वारा समर्थित हों।

निष्कर्ष

केवल वार्षिक तौर पर एक दिवस मनाना पर्याप्त नहीं है। भारत को ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली चाहिए, जो नर्सों को केवल सेवा प्रदाता के रूप में नहीं, बल्कि नेतृत्वकर्ता के रूप में सम्मान दे। इसके लिए लिंग, पदानुक्रम और दृष्टिकोण से जुड़ी नीतियों व कानूनों में सुधार आवश्यक है।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

“भारत की स्वास्थ्य प्रणाली की आधारशिला होने के बावजूद, नर्सों की भूमिका नीति-निर्माण में अब भी हाशिए पर बनी हुई है।” विश्लेषण कीजिए, कि नर्सिंग क्षेत्र की इस प्रणालीगत उपेक्षा से भारत की स्वास्थ्य शासन व्यवस्था में व्याप्त गहन समस्याएँ कैसे सामने आती हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट करें, कि कौन-से संस्थागत तंत्र अपनाकर एक अधिक समावेशी और संतुलित स्वास्थ्य कार्यबल योजना सुनिश्चित की जा सकती है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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