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संक्षेप में समाचार

Lokesh Pal May 17, 2025 03:55 17 0

ISRO पृथ्वी अवलोकन उपग्रह लॉन्च करेगा

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) 18 मई, 2025 को श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश के अंतरिक्ष केंद्र से एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (EOS) लॉन्च करेगा।

पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों के बारे में

  • पृथ्वी अवलोकन या पृथ्वी सुदूर संवेदन उपग्रहों को कक्षा से पृथ्वी का निरीक्षण करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • ये सैन्य (जैसे- जासूसी उपग्रह) एवं असैन्य उद्देश्यों जैसे- पर्यावरण निगरानी, ​​मौसम विज्ञान तथा मानचित्रण दोनों प्रकार की सेवाएँ प्रदान करते हैं।

EOS-09-09 के बारे में

  • EOS-09-09 या पृथ्वी अवलोकन उपग्रह-09 (जिसे पहले RISAT-1B के नाम से जाना जाता था) एक रडार इमेजिंग उपग्रह है।
  • उद्देश्य: सभी मौसम की स्थिति में उच्च गुणवत्ता वाले फोटो प्रदान करना, कृषि, वानिकी एवं वृक्षारोपण, मृदा की नमी तथा जल विज्ञान एवं बाढ़ मानचित्रण जैसे अनुप्रयोगों के लिए 24 घंटे इमेजिंग।
  • प्रक्षेपण स्थल: सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश।
  • प्रक्षेपण यान: पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) C 61।
  • वजन: लगभग 1,710 किलोग्राम।
  • तकनीकी विशेषताएँ: C-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) से सुसज्जित।
  • अनुप्रयोग: कृषि एवं वानिकी निगरानी, ​​आपदा प्रबंधन, शहरी नियोजन एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए उपयोगी।

NIO की रिपोर्ट पर गोवा में विरोध प्रदर्शन

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (NIO) एवं भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र की एक वैज्ञानिक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि गोवा पर महादयी नदी के मोड़ का सीमित प्रभाव पड़ा है, जिससे राज्य में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। 

  • रिपोर्ट में कर्नाटक का पक्ष लेने का आरोप है। 

महादयी नदी के बारे में

  • उत्पत्ति: महादयी नदी कर्नाटक के भीमगढ़ वन्यजीव अभयारण्य से निकलती है एवं गोवा में अरब सागर में मिलती है। 
    • इसे गोवा में मंडोवी नदी के नाम से जाना जाता है। 
  • सहायक नदियाँ: कलसा एवं बंडुरी। 
  • नाम: कर्नाटक में महादयी एवं गोवा में महादेई के नाम से जाना जाता है। 
  • बेसिन का विस्तार: गोवा – 1,580 वर्ग किमी. (78%), कर्नाटक – 380 वर्ग किमी. (18%), महाराष्ट्र – 72 वर्ग किमी. (4%)। 
  • नदी की लंबाई: कर्नाटक में 36 किमी. एवं गोवा में 74 किमी.। 
  • पारिस्थितिकी महत्त्व: महादेई वन्यजीव अभयारण्य से होकर प्रवाहित होती है, जो जैव विविधता संरक्षण हेतु महत्त्वपूर्ण है। 
  • मानव निर्भरता: उत्तरी गोवा के पेयजल, कृषि एवं नौवहन के लिए महत्त्वपूर्ण।
  • विवाद संदर्भ: गोवा एवं कर्नाटक के बीच लंबे समय से चले आ रहे अंतर-राज्यीय जल-बँटवारे विवाद का विषय है।

महादयी जल विवाद न्यायाधिकरण (MWDT) के बारे में

  • स्थापना: इसे वर्ष 2010 में, भारत सरकार द्वारा अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत, महादयी नदी के जल को लेकर गोवा, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के बीच विवादों को सुलझाने के लिए गठित किया गया था।
  • अंतिम निर्णय (अगस्त 2018): न्यायाधिकरण ने कर्नाटक को महादयी नदी का कुल 13.42 tmcft (380 mcum) जल देने का निर्णय दिया।
  • दोनों राज्यों ने न्यायाधिकरण के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है।

अभ्यास तीस्ता प्रहार

भारतीय सेना ने पश्चिम बंगाल में रणनीतिक सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास तीस्ता फील्ड फायरिंग रेंज में ‘तीस्ता प्रहार’ नामक एक व्यापक एकीकृत फील्ड प्रशिक्षण आयोजित किया है।

तीस्ता प्रहार के बारे में

  • यह तीन दिवसीय फील्ड प्रशिक्षण अभ्यास था, जिसमें नदी आधारित इलाकों में परिचालन क्षमताओं एवं समन्वय को प्रदर्शित किया गया, जिसमें उन्नत हथियार तथा प्रौद्योगिकी शामिल थी।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य नदी के इलाकों में युद्ध की तत्परता, संयुक्त बल एकीकरण एवं परिचालन तालमेल को प्रमाणित करना था।

सिलीगुड़ी कॉरिडोर के बारे में

  • सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे अक्सर “चिकन नेक” के रूप में जाना जाता है, पश्चिम बंगाल में भूमि का एक सँकरा हिस्सा है, जो मुख्य भूमि भारत को उसके पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है।
  • यह नेपाल, बांग्लादेश एवं भूटान की सीमा से लगता है।
  • अपने सबसे सँकरे हिस्से में, कॉरिडोर सिर्फ 17 किलोमीटर चौड़ा है।
  • यह कॉरिडोर पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी एवं तराई क्षेत्रों से उत्तर-पूर्व की ओर विस्तृत है।

विश्व खाद्य पुरस्कार, 2025

ब्राजील की वैज्ञानिक मारियांगेला हंगरिया ने रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने एवं फसल का उत्पादन तथा पोषण को बढ़ावा देने के लिए जैविक बीज एवं मृदा उपचार विकसित करने में अपने कार्य के लिए वर्ष 2025 का विश्व खाद्य पुरस्कार जीता है।

विश्व खाद्य पुरस्कार के बारे में

  • स्थापना: वर्ष 1986 में।
  • पुरस्कार राशि: $5,00,000।
  • संस्थापक: डॉ. नॉर्मन बोरलॉग, नोबेल शांति पुरस्कार विजेता एवं हरित क्रांति के जनक।
  • प्रशासित: विश्व खाद्य पुरस्कार फाउंडेशन।
  • पुरस्कार की प्रकृति: खाद्य एवं कृषि में उत्कृष्ट उपलब्धियों को मान्यता देने वाला अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार।
  • इस पुरस्कार को अक्सर ‘खाद्य एवं कृषि के लिए नोबेल पुरस्कार’ के रूप में जाना जाता है।
  • भागीदारी: यह जाति, धर्म, राष्ट्रीयता या राजनीतिक मान्यताओं की परवाह किए बिना किसी भी व्यक्ति के लिए खुला है।
  • प्रथम प्राप्तकर्ता: वर्ष 1987 में इस पुरस्कार के पहले प्राप्तकर्ता भारत की हरित क्रांति के जनक डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन थे।

भारत-यूरोपीय संघ TTC के तहत सहयोग करेंगे

भारत एवं यूरोपीय संघ (EU) ने भारत-EU व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद (TTC) के तहत दो प्रमुख अनुसंधान तथा नवाचार पहल अर्थात् समुद्री प्लास्टिक कूड़ा (MPL) एवं अपशिष्ट से हरित हाइड्रोजन (W2GH) शुरू की हैं।

TTC के बारे में

  • भारत एवं यूरोपीय संघ (EU) के बीच व्यापार, प्रौद्योगिकी तथा सुरक्षा पर सहयोग बढ़ाने के लिए वर्ष 2022 में एक द्विपक्षीय रणनीतिक मंच शुरू किया गया।
  • यह EU के लिए दूसरा द्विपक्षीय मंच है एवं भारत के लिए किसी भी भागीदार के साथ स्थापित पहला मंच है।

समुद्री प्लास्टिक अपशिष्ट पर पहल (MPL) के बारे में

  • वित्तपोषण: यूरोपीय संघ (EU): €12 मिलियन एवं भारत: ₹90 करोड़।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय।
  • उद्देश्य: माइक्रोप्लास्टिक, भारी धातुओं एवं लगातार कार्बनिक प्रदूषकों सहित विभिन्न प्रदूषकों के संचयी प्रभावों की निगरानी, ​​आकलन तथा शमन के लिए अभिनव समाधान खोजना।

अपशिष्ट से हरित हाइड्रोजन (W2GH) पहल के बारे में

  • बजट: भारत: 90 करोड़ रुपये, यूरोपीय संघ: €10 मिलियन।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय।
  • कार्यक्षेत्र: जैवजनित अपशिष्टों (कृषि, वानिकी, नगरपालिका, सीवेज कीचड़, औद्योगिक) से स्थायी नवीकरणीय हाइड्रोजन उत्पादन के लिए संयुक्त नवाचार।

उच्च दाब पॉलिमर झिल्ली

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने उच्च दाब वाले समुद्री जल विलवणीकरण के लिए स्वदेशी नैनोपोरस मल्टीलेयर्ड पॉलीमेरिक झिल्ली का सफलतापूर्वक विकास किया है।

नैनोपोरस मल्टीलेयर्ड पॉलीमेरिक झिल्ली के बारे में

  • यह एक उन्नत निस्पंदन सामग्री है।
  • झिल्ली को विशेष रूप से भारतीय तटरक्षक (ICG) जहाजों के लिए डिजाइन किया गया है।
  • उपयोग: यह झिल्ली समुद्री जल को ताजे, पीने योग्य जल में रूपांतरित करने में सहायक है।

इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी  (ICGEB)

हाल ही में भारत ने ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी’ (ICGEB), नई दिल्ली में अपनी प्रथम सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित बायो-फाउंड्री (DST-ICGEB बायो-फाउंड्री) शुरू की।

ICGEB के बारे में

  • ICGEB का अर्थ इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी है।
  • यह जीवन विज्ञान अनुसंधान के लिए एक प्रमुख अंतर-सरकारी संगठन है।
  • स्थापना: वर्ष 1983।
  • नोडल मंत्रालय: केंद्रीय जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT), भारत सरकार।
  • भारत ICGEB का संस्थापक सदस्य है, जो तीन मुख्य केंद्रों के माध्यम से कार्य करता है:
    • नई दिल्ली (भारत)- अनुसंधान एवं जैव प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • ट्राइस्टे (इटली)- मुख्यालय के रूप में कार्य करता है।
    • केप टाउन (दक्षिण अफ्रीका)- अनुसंधान एवं विकास तथा सहयोग पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • इसके संचालन संयुक्त राष्ट्र कॉमन सिस्टम के अनुरूप हैं।
  • सदस्य: 69 सदस्य देश एवं अनुसंधान, प्रशिक्षण तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से जैव प्रौद्योगिकी के नेतृत्व वाले सतत् विकास पर कार्य करते हैं।

बायो-फाउंड्री के बारे में

  • बायो-फाउंड्री बायोमैन्युफैक्चरिंग के लिए एक हाई-टेक सुविधा है।
  • बायो-फाउंड्री स्टार्ट-अप एवं शोधकर्ताओं के साथ सहयोग के माध्यम से बायो-आधारित नवाचारों को बढ़ाने में मदद करेगी।
  • भारत की बायो-फाउंड्री BioE3 नीति के अनुरूप है।

BioE3 नीति के बारे में

  • BioE3 नीति का अर्थ है अर्थव्यवस्था, पर्यावरण एवं रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी।
  • इसका उद्देश्य अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करके उच्च प्रदर्शन वाले बायोमैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना है।
  • बायोटेक्नोलॉजी विकास के लिए पाँच प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना: बायोएनर्जी, बायो-इंडस्ट्रियल, बायो-प्लांटेशन, बायोमेडिकल एवं बायोमैन्युफैक्चरिंग।

भारत का बायोटेक विकास

  • भारत जैव प्रौद्योगिकी में वैश्विक स्तर पर 12वें एवं एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तीसरे स्थान पर है।
  • यह विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीन उत्पादक है एवं वैश्विक स्तर पर इसका तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम है।

सुपरकैपेसिटर मटेरियल 

नागालैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने सुपरकैपेसिटर के लिए एक उच्च-प्रदर्शन सामग्री, एमिनेटेड ग्रेफीन के उत्पादन के लिए एक अभूतपूर्व, लागत प्रभावी तकनीकी विकसित की है।

सुपरकैपेसिटर क्या है?

  • सुपरकैपेसिटर सामग्री उच्च शक्ति घनत्व, तेजी से चार्ज करने एवं लंबे चक्र जीवन के लिए ऊर्जा भंडारण उपकरणों में उपयोग किए जाने वाले विशेष पदार्थ हैं।

निष्कर्षों की मुख्य विशेषताएँ

  • प्रयुक्त मुख्य सामग्री
    • यह नवाचार ‘एमिनेटेड ग्रेफीन’ पर केंद्रित है, जो ग्रेफीन ऑक्साइड की कम मात्रा से प्राप्त होता है।
    • साधारण ग्रेफाइट से एक सरल, एक-चरणीय प्रक्रिया के माध्यम से उत्पादित।
    • जटिल एवं ऊर्जा-गहन पारंपरिक तरीकों के विपरीत, परिवेश के तापमान तथा दाब का उपयोग करता है।
  • संभावित अनुप्रयोग
    • नवीकरणीय ऊर्जा ग्रिड: कम मात्रा में आने वाली सौर एवं पवन ऊर्जा को संगृहीत करने में मदद करता है।
    • सार्वजनिक परिवहन: पुनर्योजी ब्रेकिंग सिस्टम में उपयोगी।
    • दूरसंचार: बैकअप पॉवर सिस्टम के लिए आदर्श।
  • पारंपरिक तकनीकों पर लाभ
    • महंगी रेयर अर्थ मटेरियल के उपयोग से बचता है।
    • विनिर्माण को सरल बनाता है, इसे सस्ता एवं अधिक सतत् बनाता है।
    • भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों एवं ‘मेक इन इंडिया पहल’ के साथ अधिक संगत है।

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