हाल ही में, प्रसिद्ध उर्दू कवि गुलजार एवं संस्कृत विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य को 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार के बारे में
स्थापना: वर्ष 1944 में।
इसकी स्थापना वर्ष 1961 में हुई थी एवं पहला पुरस्कार वर्ष 1965 में दिया गया था।
प्रायोजित: सांस्कृतिक संगठन भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा।
पात्रता: यह पुरस्कार केवल भारतीय नागरिकों के लिए दिया जाता है।
भारत में सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार: ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रतिवर्ष दिया जाता है।
यह संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 अनुसूचित भाषाओं एवं वर्ष 2013 से अंग्रेजी में सर्वश्रेष्ठ रचनात्मक साहित्यिक लेखन के लिए प्रति वर्ष दिया जाता है।
सम्मान: पुरस्कार में 21 लाख रुपये का नकद पुरस्कार, एक प्रशस्ति-पत्र एवं विद्या की देवी वाग्देवी (सरस्वती) की कांस्य प्रतिकृति दी जाती है।
ASI ने ‘लोदी युग’ की बावड़ी का संरक्षण कार्य पूरा किया
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) ने विश्व स्मारक निधि भारत (WMFI) एवं TCS फाउंडेशन के सहयोग से ‘राजा की बावड़ी’ के संरक्षण का कार्य पूरा कर लिया है।
राजा की बावड़ी के बारे में
नाम उत्पत्ति: “राजा की बावड़ी” नाम का अर्थ है “राजमिस्त्रियों का सीढ़ीदार कुआँ”।
अवस्थिति: यह नई दिल्ली के महरौली पुरातत्त्व पार्क में अवस्थित है।
निर्माण: राजा की बावड़ी का निर्माण लगभग 1506 ई. में लोदी वंश के दौरान एक गवर्नर दौलत खान द्वारा किया गया था।
उद्देश्य: यात्रियों के लिए विश्राम स्थल एवं इंडो-इस्लामिक स्थापत्य कला की विशेषताओं को प्रदर्शित करने के लिए बनाया गया था।
विशेषताएँ: यह इंडो-इस्लामिक मेहराबों एवं लोदी वंश कालीन प्लास्टरवर्क के साथ एक U-आकार की चार-स्तरीय सीढ़ीदार कुआँ है।
महत्त्व: बावड़ी जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर जल प्रबंधन के लिए स्थायी समाधान के रूप में पारंपरिक जल प्रणालियों को बहाल करने के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।
विश्व स्मारक निधि के बारे में
विश्व स्मारक निधि (World Monuments Fund- WMF) एक अग्रणी स्वतंत्र गैर-लाभकारी संगठन है, जो विश्व के सबसे बहुमूल्य सांस्कृतिक विरासत स्थलों को संरक्षित करने के लिए समर्पित है।
मुख्यालय: न्यूयॉर्क।
12 वर्ष बाद पुष्कर कुंभ प्रारंभ
उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा गाँव में स्थित केशव प्रयाग में 12 वर्ष के अंतराल के बाद पुष्कर कुंभ शुरू हो गया है।
पुष्कर कुंभ के बारे में
धार्मिक परंपरा के अनुसार, जब बृहस्पति ग्रह 12 वर्ष में एक बार मिथुन राशि में प्रवेश करता है, तो केशव प्रयाग में पुष्कर कुंभ का आयोजन किया जाता है।
केशव प्रयाग अलकनंदा एवं सरस्वती नदियों के संगम पर है।
इस आयोजन में मुख्य रूप से दक्षिण भारत के वैष्णव परंपरा के भक्त शामिल होते हैं।
ऑपरेशन आहट
हाल ही में रेलवे सुरक्षा बल (RPF) ने रक्सौल रेलवे स्टेशन पर मानव तस्करी के प्रयास से चार नाबालिग किशोरियों को बचाया है।
ऑपरेशन आहट के बारे में
उद्देश्य: ऑपरेशन आहट(Action Against Human Trafficking) भारतीय रेलवे में मानव तस्करी से निपटने के लिए रेलवे सुरक्षा बल (RPF) का प्रमुख अभियान है, जिसका उद्देश्य कमजोर व्यक्तियों, विशेष रूप से बच्चों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना है।
पूरे रेलवे नेटवर्क में मानव तस्करी विरोधी इकाइयाँ (AHTUs) स्थापित की गई हैं।
प्रभाव (2024-25)
929 पीड़ितों को बचाया गया, जिनमें 874 बच्चे (50 लड़कियाँ, 824 लड़के) शामिल हैं।
संयुक्त प्रयासों एवं निगरानी के जरिए 274 तस्करों को गिरफ्तार किया गया।
मानव तस्करी के बारे में: यह यौन शोषण, घरेलू दासता आदि जैसे शोषण के उद्देश्य से बल, धोखाधड़ी या जबरदस्ती व्यक्तियों की भर्ती, परिवहन, स्थानांतरण, शरण या प्राप्ति का कार्य है।
“mRNA चिकित्सा विज्ञान के लिए जैव विनिर्माण”
हाल ही में, भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने ‘वेबिनार सीरीज ऑन बायोफाउंड्री एंड मैन्युफैक्चरिंग इनिशिएटिव’ के तहत 14वाँ वेबिनार आयोजित किया।
पहल के बारे में अधिक जानकारी
यह सत्र “mRNA चिकित्सा के लिए जैव विनिर्माण” पर केंद्रित था।
नीति रूपरेखा: यह BioE3 नीति (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण एवं रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) के अंतर्गत आता है।
BioE3 का लक्ष्य: नीति का उद्देश्य भारत को mRNA चिकित्सा सहित संधारणीय जैव-आधारित नवाचारों में वैश्विक शक्ति बनाना है।
‘mRNA चिकित्सा के लिए जैव विनिर्माण’ के बारे में
जैव विनिर्माण में जीवित कोशिकाओं या सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके जैविक उत्पादों का उत्पादन करना शामिल है।
mRNA चिकित्सा के लिए, बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए ‘जेनेटिकली इंजीनियर्ड’ कोशिकाएँ या जीव आवश्यक हैं।
mRNA चिकित्सा: ये चिकित्सा कोशिकाओं को प्रोटीन बनाने के लिए निर्देशित करने के लिए मैसेंजर RNA का उपयोग करती हैं, जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को उत्प्रेरित करती हैं, जो रोगों के उपचार में सहायता करती हैं।
mRNA उपचार के लाभ
तीव्र विकास: पारंपरिक दवाओं की तुलना में mRNA उपचारों को तेजी से विकसित किया जा सकता है।
उच्च बहुमुखी प्रतिभा: इनका उपयोग कई तरह की बीमारियों के उपचार के लिए किया जा सकता है।
आसान मापनीयता: पारंपरिक टीकों की तुलना में mRNA टीकों का बड़ी मात्रा में उत्पादन करना आसान है।
बायो-फाउंड्री के बारे में
बायो-फाउंड्री बायोमैन्युफैक्चरिंग के लिए एक उच्च तकनीक वाली सुविधा है।
यह स्टार्ट-अप एवं शोधकर्ताओं के साथ सहयोग के माध्यम से जैव-आधारित नवाचारों को बढ़ाने में मदद करता है।
तमिलनाडु में आगमिक मंदिर
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा गठित एक समिति से तीन महीने में तमिलनाडु में आगमिक मंदिरों की पहचान करने का अनुरोध किया।
आगम क्या हैं?
आगम, तंत्र आधारित प्राचीन हिंदू शास्त्रों एवं ग्रंथों का एक समूह है।
आगम शब्द का अर्थ है “वह जो नीचे आया है” या सरल शब्दों में “परंपरा”।
इन ग्रंथों में निम्नलिखित विषयों पर चर्चा की गई है: ब्रह्मांड विज्ञान एवं दर्शन, ध्यान, चार प्रकार के योग, मंत्रों का उपयोग, मंदिर निर्माण के नियम, देवताओं की पूजा तथा छह प्रकार की इच्छाओं को पूरा करने के तरीके।
आगम मंदिर में तीर्थस्थल के लिए स्थल, तीर्थ एवं मूर्ति होनी चाहिए।
आगम संस्कृत एवं तमिल में लिखे गए हैं।
आगम की शाखाएँ: आगम ग्रंथों को तीन मुख्य शाखाओं में वर्गीकृत किया गया है:
शैव आगम – भगवान शिव की पूजा से संबंधित।
वैष्णव आगम (पंचरात्र संहिता) – भगवान विष्णु की पूजा से संबंधित।
शाक्त आगम (तंत्र) – देवी शक्ति की पूजा से संबंधित।
ग्रंथों की संख्या: शैव आगम – 28, शाक्त आगम – 64, वैष्णव आगम – 108, तथा उप-आगम – अनेक अतिरिक्त द्वितीयक ग्रंथ।
आगमों में विभिन्न आध्यात्मिक दर्शन शामिल हैं: द्वैत (द्वैतवाद) तथा अद्वैत (अद्वैतवाद)।
महत्त्वपूर्ण आगमिक ग्रंथ – ईश्वर-संहिता, नारद-पंचरात्र, स्पंद-प्रदीपिका तथा महानिर्वाण-तंत्र।
तमिलनाडु में उल्लेखनीय आगमिक मंदिर: बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर), मीनाक्षी अम्मन मंदिर (मदुरै), रंगनाथस्वामी मंदिर (श्रीरंगम्)।
तमिलनाडु में आगमिक मंदिरों पर कानूनी विवाद का कारण
कानूनी विवाद इसलिए उत्पन्न होता है, क्योंकि आगमिक मंदिर सख्त पारंपरिक मानदंडों का पालन करते हैं, जिसके तहत विशिष्ट संप्रदायों के पुजारियों की आवश्यकता होती है, जबकि तमिलनाडु सरकार के सुधार के तहत किसी भी जाति के प्रशिक्षित व्यक्ति को पुजारी बनने की अनुमति है।
आलोचकों का तर्क है कि इस तरह के सुधार धार्मिक रीति-रिवाजों का उल्लंघन करते हैं, उन्होंने चिंता व्यक्त की कि अल्पकालिक प्रशिक्षण एवं नास्तिकों को शामिल करने से मंदिर की पवित्रता कम हो सकती है।
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