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चर्चा में व्यक्तित्व: एम. आर. श्रीनिवासन

Lokesh Pal May 22, 2025 04:26 14 0

संदर्भ

हाल ही में भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के वैज्ञानिक डॉ. एम. आर. श्रीनिवासन (5 जनवरी, 1930 – 20 मई, 2025) का 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

डॉ. मलूर रामासामी श्रीनिवासन के बारे में

  • परमाणु वैज्ञानिक के रूप में कॅरियर 
    • वे वर्ष 1955 में डॉ. होमी भाभा के नेतृत्व में परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) में शामिल हुए।
    • युवा डॉ. श्रीनिवासन ने भारत के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर, अप्सरा के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • उन्हें वर्ष 1959 में तारापुर में भारत के पहले परमाणु ऊर्जा स्टेशन के निर्माण के लिए मुख्य परियोजना इंजीनियर नियुक्त किया गया था।
    • वे मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन के मुख्य परियोजना इंजीनियर थे।
    • वर्ष 1987: डॉ. श्रीनिवासन को परमाणु ऊर्जा आयोग (ARC) का अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग (DEA) का सचिव नियुक्त किया गया।
      • वे भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) के संस्थापक अध्यक्ष भी बने।
    • भारत के असैन्य परमाणु कार्यक्रम के निर्माता: डॉ. श्रीनिवासन के कार्यकाल के दौरान, भारत के परमाणु बुनियादी ढाँचे में उल्लेखनीय विस्तार हुआ और उनके मार्गदर्शन में 18 परमाणु ऊर्जा इकाइयों का विकास किया गया।
      • आत्मनिर्भरता: डॉ. श्रीनिवासन ने भारत के परमाणु कार्यक्रम में दाबयुक्त भारी जल रिएक्टरों को परिष्कृत और अनुकूलित करके परमाणु प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • सलाहकार भूमिकाएँ
    • डॉ. श्रीनिवासन वर्ष 1990 से वर्ष 1992 तक वियना स्थित अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी में वरिष्ठ सलाहकार रहे।
    • वे वर्ष 1996 से 1998 तक भारत सरकार के योजना आयोग के सदस्य रहे, जहाँ उन्होंने ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विभागों का कार्यभार सँभाला।
    • वे वर्ष 2002 से वर्ष 2004 तक और फिर वर्ष 2006 से वर्ष 2008 तक भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य रहे।
  • संस्थागत भूमिका
    • वे वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूक्लियर ऑपरेटर्स (WANO) के संस्थापक सदस्य थे।
    • इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग और इंस्टिट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) के फेलो और इंडियन न्यूक्लियर सोसायटी के एमेरिटस फेलो रहे।
  • पुरस्कार और मान्यता
    • डॉ. श्रीनिवासन को भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्म श्री (वर्ष 1984), पद्म भूषण (वर्ष 1990) और पद्म विभूषण (वर्ष 2015) से सम्मानित किया गया।

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