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अत्यधिक मछली पकड़ना: समुद्री संपदा और आजीविका के लिए एक खतरा

Lokesh Pal May 22, 2025 05:00 12 0

संदर्भ:

भारत का समुद्री मत्स्य पालन क्षेत्र अपने अधिकतम उत्पादन सीमा के करीब पहुंच रहा है, इसके बावजूद छोटे स्तर के मछुआरे गंभीर असमानताओं का सामना कर रहे हैं। जैव विविधता में आई गिरावट, अपरिपक्व मछलियों का शिकार और सह-उपज (बायकैच) की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं।इस स्थिति में, संसाधनों के सतत और न्यायसंगत प्रबंधन की त्वरित आवश्यकता की मांग बढ़ रही है।

वर्तमान परिदृश्य: असमानता और विकास

  • वार्षिक समुद्री उत्पादन क्षमता: भारत में प्रतिवर्ष 30–40 लाख टन समुद्री मछलियाँ पकड़ी जाती है।
  • असंतुलित कार्यबल में हिस्सेदारी: छोटे स्तर के मछुआरे, जो कुल कार्यबल में अपनी 90% तक हिस्सेदारी सुनिश्चित करते हैं, कुल उत्पादन का केवल 10% ही प्राप्त करते हैं।
  • व्यापक गरीबी: मछुआरे परिवारों में से तीन-चौथाई गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं।
  • तकनीकी अकुशलता: इस वर्ग के मछुआरे तकनीकी उन्नयन लागत तो बढ़ाते हैं, लेकिन मछलियों को पकड़ने में कोई विशेष वृद्धि नहीं होती है

सह-उपज (बाईकैच) और ट्रॉलिंग के माध्यम से पारिस्थितिकी ह्रास

  • ट्रॉलिंग बायकैच संकट: जैसा कि केवल ट्रॉलिंग के लिए लगभग 1 किलोग्राम झींगा के लिए 10 किलोग्राम से अधिक अनचाही मछलियाँ (बायकैच) पकड़ी जाती हैं, जिन्हें अंततः फेंक दिया जाता है।
  • जैव विविधता को नुकसान: बायकैच में अक्सर अपरिपक्व मछलियाँ और गैर-लक्षित प्रजातियाँ शामिल होती हैं, इनके दोहन से जैव-विविधता को गंभीर नुकसान पहुंचता है।
  • आवास विनाश: झींगा ट्रॉलिंग से समुद्री जैव विविधता, प्रवाल भित्तियों और खाद्य श्रृंखलाओं को गंभीर नुकसान पहुंचता है।

अपरिपक्व मछलियों का शिकार और शिकारी जाल का आकार

  • अवैध जाल का आकार: 25 मिमी से छोटे आकार वाले शिकारी जाल अवैध मछलियों को जाल में फंसा तो लेते हैं, परंतु इससे अधिक प्रजनन क्षमता वाली मछलियों का भंडार घटता है।
  • खतरे में प्रजातियाँ: सार्डिन और मैकेरल जैसी प्रजातियाँ दीर्घकालिक या अपरिवर्तनीय गिरावट का सामना कर रही हैं।
  • वैश्विक पतन से सबक लेना: वैश्विक उदाहरण (जैसे, कनाडा का कॉड क्रैश, कैलिफ़ोर्निया का सार्डिन्स) पतन के खतरे को दर्शाता हैं।

विनियामक विखंडन और खामियां

  • अस्वीकृत कानून: प्रत्येक तटीय राज्य/संघ राज्य क्षेत्र (UT) का अपना समुद्री मत्स्य पालन नियम अधिनियम (MFRA) है।
  • असंगत कानूनों से फायदा उठाना: विभिन्न राज्यों के अलग-अलग नियम मछुआरों को राज्य की सीमा के पार अपरिपक्व मछलियों को उतारने की अनुमति देते हैं।
  • कमज़ोर प्रवर्तन: संरक्षण प्रयासों को असंगत प्रवर्तन के कारण क्षति पहुँचती है।

राष्ट्रीय मानकीकरण की आवश्यकता

  • मत्स्य क्षेत्र में, सुधार हेतु भारत को निम्नलिखित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए:
    • सामंजस्यपूर्ण पकड़ सीमा और न्यूनतम कानूनी आकार (एमएलएस)
    • समान उपकरण प्रतिबंध और बंद सत्र
    • एकीकृत राष्ट्रीय संरचना जो विज्ञान-आधारित प्रबंधन को समाहित करता हो

वैश्विक मॉडल: न्यूज़ीलैंड से प्राप्त सबक

  • विज्ञान-आधारित मॉडल: न्यूजीलैंड की कोटा प्रबंधन प्रणाली (QMS) वैज्ञानिक आधार पर निर्धारित कुल स्वीकार्य पकड़ का उपयोग करती है।
  • हितधारकों के संतुलित अधिकार: क्यूएमएस (QMS) व्यावसायिक, मनोरंजक और पारंपरिक अधिकारों को मछली भंडार की सेहत के साथ संतुलित करता है।
  • भारत में एक पायलट प्रणाली की संभावना: भारत में इसी प्रकार की एक पायलट प्रणाली यंत्रीकृत नौकाओं (Mechanised Fleets) के लिए लाभदायक हो सकती है।

घरेलू उपलब्धियाँ और एफएमएफओ (FMFO) की चुनौती

  • एमएलएस (MLS) की सफलता की कहानी: केरल में थ्रेडफिन ब्रीम के लिए निर्धारित न्यूनतम कानूनी आकार (MLS) ने एक ही मौसम में मछली पकड़ में 41% की वृद्धि की।
  • एफएमएफओ (FMFO) उद्योग प्रोत्साहन: मछली आहार और मछली तेल (FMFO) उद्योग बायकैच संग्रह को प्रोत्साहित करता है।
  • सुधार हेतु महत्त्वपूर्ण सिफारिशें:
    • एफएमएफओ (FMFO) कोटे की सीमा तय की जानी चाहिए।
    • किशोर (अपरिपक्व) मछलियों को नाव से ही वापस समुद्र में छोड़ा जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए।
    • बायकैच को स्थानीय जलीय कृषि की ओर मोड़ा जाना चाहिए।

बहु-स्तरीय कार्रवाई की आवश्यकता

  • केंद्र की भूमिका: केंद्र सरकार को पारिस्थितिकी तंत्र आधारित विनियमन की ओर बढ़ना चाहिए, लाइसेंसिंग और सब्सिडी को बेहतर बनाना चाहिए।
  • राज्यों की भूमिका: राज्यों को गश्त और तकनीक आधारित रिपोर्टिंग के माध्यम से प्रवर्तन को सुदृढ़ करना चाहिए।
  • समुदायिक भागीदारी बढ़ाना: सहकारी समितियों को समुद्री अभयारण्यों के सह-प्रबंधकों के रूप में सशक्त बनाना चाहिए।
  • उपभोक्ताओं की भूमिका: उपभोक्ताओं को केवल स्थायी रूप से प्राप्त और कानूनी आकार वाले समुद्री खाद्य उत्पादों का समर्थन करना चाहिए।

निष्कर्ष

यद्यपि भारत का मत्स्य क्षेत्र एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। विज्ञान, नीतियों और समुदाय की सहभागिता का सही संयोजन अपनाकर, हम समुद्री जैव विविधता और आजीविका दोनों की सुरक्षा कर सकते हैं, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए समानतापूर्ण समृद्धि और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. भारत में समुद्री मत्स्य पालन क्षेत्र एक विरोधाभास को दर्शाता है, जहाँ कुल उत्पादन तो अधिक है, लेकिन गरीबी गहराती जा रही है और जैव विविधता में गिरावट हो रही है। इस विरोधाभास का विश्लेषण करें और एकीकृत राष्ट्रीय मत्स्य शासन संरचना की आवश्यकता का मूल्यांकन करें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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