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भारत में शहरी बाढ़

Lokesh Pal May 26, 2025 03:42 102 0

संदर्भ

हाल ही में मानसून पूर्व वर्षा के कारण भारत की सिलिकॉन वैली के नाम से प्रसिद्ध बंगलूरू में बाढ़ आ गई।

संबंधित तथ्य

  • पिछले कुछ वर्षों में, शहरी बाढ़ जलवायु और बुनियादी ढाँचे के संदर्भ में भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौतियों में से एक बन गई है, क्योंकि यह शहरी केंद्रों में लाखों लोगों को प्रभावित करती है।

शहरी बाढ़ के बारे में

  • शहरी बाढ़ शब्द का अर्थ उन घटनाओं से संबंधित है, जब किसी शहर में भारी वर्षा या अन्य कारणों (जैसे- चक्रवात या सुनामी) के कारण बहुत अधिक मात्रा में जलभराव हो जाता है, जिससे शहर के कुछ हिस्से या पूरा शहर जलमग्न हो जाता है और शहर के बुनियादी ढाँचे में जल को शीघ्रातिशीघ्र निकालने की अक्षमता के कारण बाढ़ को  नहीं रोका जा सकता है।
  • संबंधित डेटा: सरकार के डेटा के अनुसार, वर्ष 2012 से 2021 के बीच भारत में बाढ़ और भारी वर्षा के कारण 17,000 से अधिक लोगों की मौत हुई।
  • संवैधानिक प्रावधान: संविधान की 12वीं अनुसूची के अनुसार, शहरी नियोजन, भूमि उपयोग का विनियमन और भवनों का निर्माण शहरी स्थानीय निकायों (ULB)/शहरी विकास प्राधिकरणों का कार्य है।
    • बाढ़ नियंत्रण और जल निकासी योजना की तैयारी के लिए शमन उपाय राज्य सरकार और शहरी स्थानीय निकायों/शहरी विकास प्राधिकरणों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
    • भारत सरकार योजनाबद्ध हस्तक्षेप/सलाह के माध्यम से राज्यों के प्रयासों को सहायता प्रदान करती है। यह राज्यों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है।

ऊष्मा द्वीप (हीट आइलैंड) शहरीकृत क्षेत्र हैं, जहाँ बाहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक तापमान होता है।

भारत में शहरी बाढ़ के पीछे कारण

  • जलवायु परिवर्तन: वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के पैटर्न में बदलाव आ रहा है और कम अवधि में वर्षा की तीव्रता बढ़ रही है।
    • उदाहरण: चेन्नई में नवंबर 2023 में रिकॉर्ड 1,218 मिमी. वर्षा हुई – जो एक सदी में सबसे अधिक है – जलवायु परिवर्तन के कारण चक्रवाती गतिविधि में तेजी आई है, अध्ययनों से पता चलता है कि वर्ष 1950 के बाद से इस तरह की अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में 3 गुना वृद्धि हुई है।
  • नगरीय ऊष्मण द्वीप प्रभाव: NDMA के अनुसार, नगरीय ऊष्मण द्वीप प्रभाव के कारण शहरी क्षेत्रों में वर्षा बढ़ गई है।
    • गर्म वायु, वर्षा लाने वाले बादलों को नगरीय ऊष्मण द्वीप प्रभाव के कारण अप्रभावी कर देती है।
  • निचले इलाकों में अतिक्रमण: भारतीय शहरों के मूल निर्मित क्षेत्र का विस्तार हुआ है और शहरों में जमीन की बढ़ती कीमतों और कम उपलब्धता के कारण भारतीय शहरों और कस्बों के निचले इलाकों में नए विकास हो रहे हैं।
    • अधिकांश समय, ये कार्य झीलों, आर्द्रभूमि और नदी के किनारों पर अतिक्रमण के कारण होते हैं।
  • समुद्र तल में वृद्धि: नदियों, समुद्र, आंतरिक शहरों, बाँधों और भूमि के निकट बसे शहर तथा कस्बे समुद्र तल में वृद्धि के कारण गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।
    • उदाहरण के लिए: उपग्रह अवलोकनों से पता चला है कि समुद्र तल में वृद्धि की दर बढ़ रही है और वर्ष 2021 से 2022 तक इसमें 0.11 इंच की वृद्धि हुई है।
  • दोषपूर्ण जल निकासी प्रणाली: शहरी क्षेत्रों में भारी वर्षा की घटनाओं के प्रबंधन में सक्षम पर्याप्त जल निकासी बुनियादी ढाँचे का अभाव है।
    • नालियों को पक्का करने तथा जल को जमीन में रिसने से रोकने से समस्या और बढ़ जाती है।
  • शहरीकरण: तेजी से हो रहा शहरीकरण, चाहे नियोजित हो या अनियोजित, बाढ़ के लिए जिम्मेदार है।
    • ‘ग्रे इन्फ्रास्ट्रक्चर’ जिसमें फ्लाईओवर, सड़कों का चौड़ीकरण, शहरी बस्तियाँ शामिल हैं, जलभराव वाले क्षेत्रों में शहरी बाढ़ में योगदान करते हैं।
    • बंगलूरू में हाल ही में आई बाढ़ ऐसी योजना विफलताओं के उदाहरण हैं।
  • जल निकायों और हरित क्षेत्रों का नुकसान: नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि पिछले 40 वर्षों में प्रमुख भारतीय शहरों ने अपने 70-80% जल निकायों को खो दिया है।
    • इससे प्राकृतिक जल भंडारण क्षमता में कमी आई है, सतही अपवाह में वृद्धि हुई है और प्राकृतिक जल चक्र में व्यवधान उत्पन्न हुआ है।
  • प्रभावी शहरी शासन का अभाव: 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के बावजूद, शहरी नियोजन, भूमि उपयोग और आर्थिक विकास जैसे प्रमुख क्षेत्र पूरी तरह से शहरी सरकारों को आवश्यकतानुसार हस्तांतरित नहीं किए गए हैं।
    • इससे शहरी शासन संबंधी कुप्रबंधन की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • अवैध खनन: नदी की रेत और क्वार्टजाइट के अवैध खनन से मिट्टी का कटाव होता है और जल निकाय की जल धारण क्षमता कम हो जाती है, जिससे जल प्रवाह की गति और पैमाने में वृद्धि होती है।
    • उदाहरण: जयसमंद झील-जोधपुर, कावेरी नदी-तमिलनाडु, आदि।

शहरी बाढ़ का प्रभाव

  • मूर्त हानियाँ: वे हानियाँ, जिन्हें भौतिक रूप से मापा जा सकता है और जिनका आर्थिक मूल्य होता है। ये हानियाँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हो सकती हैं।
    • प्रत्यक्ष: इमारतों को संरचनात्मक क्षति, संपत्ति की क्षति, बुनियादी ढाँचे को क्षति।
    • अप्रत्यक्ष: आर्थिक हानियाँ, यातायात व्यवधान और आपातकालीन लागतें।
  • अमूर्त हानियाँ: अमूर्त हानियों में जीवन की हानि, द्वितीयक स्वास्थ्य प्रभाव और संक्रमण या पर्यावरण को होने वाली क्षतियाँ शामिल हैं, जिनका मौद्रिक रूप से आकलन करना कठिन है क्योंकि उनका व्यापार नहीं किया जाता है।
    • प्रत्यक्ष: स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव, पारिस्थितिकी हानियाँ।
    • अप्रत्यक्ष: बाढ़ के बाद की पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया, लोगों को होने वाली मानसिक क्षति।

शहरी बाढ़ से निपटने के लिए सरकार द्वारा की गई कार्रवाई

संस्थागत ढाँचा और व्यवस्था

  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (National Disaster Response Force- NDRF): आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 ने किसी आपदा की स्थिति या आपदा के लिए विशेष प्रतिक्रिया के उद्देश्य से NDRF के गठन को अनिवार्य बनाया है।
  • राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (National Crisis Management Committee- NCMC): इसमें कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में भारत सरकार के उच्च-स्तरीय अधिकारी शामिल हैं, जो निर्दिष्ट प्रमुख संकटों से निपटेंगे।
  • केंद्रीय जल आयोग (Central Water Commission- CWC): भारत में बाढ़ के पूर्वानुमान CWC द्वारा जारी किए जाते हैं। यह अपने वेब पोर्टल पर लगभग वास्तविक समय में पाँच दिवसीय बाढ़ पूर्वानुमान प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA): NDMA भारत में आपदा प्रबंधन के लिए सर्वोच्च निकाय है।
    • पूर्व मानसून चरण
      • तैयारी: आपदा न्यूनीकरण हेतु योजना निर्माण करना: शहरी बाढ़ के खतरे या घटना से निपटने के लिए योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
        • राष्ट्रीय जल-मौसम विज्ञान नेटवर्क
        • राष्ट्रीय मौसम विज्ञान नेटवर्क
        • वर्षा संबंधी डेटा के लिए स्थानीय नेटवर्क
        • डॉपलर मौसम रडार।
    • मानसून चरण के दौरान
      • प्रारंभिक चेतावनी: वर्षा की तीव्रता के आधार पर शहरी बाढ़ के लिए समय पर, गुणात्मक और मात्रात्मक चेतावनी प्रदान करने के उपाय।
      • प्रभावी प्रतिक्रिया और प्रबंधन: मुख्य रूप से आपातकालीन राहत उपायों पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • मानसून के बाद का चरण
      • पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास: संवेदनशील स्थिति को स्थिर करने और उपयोगिताओं को बहाल करने के लिए आवश्यक उपाय।

शहरी बाढ़ को रोकने के लिए विभिन्न सरकारी पहल

  • जल शक्ति अभियान: इसे वर्षा जल संचयन/भूजल पुनर्भरण पर विशेष जोर देते हुए लागू किया गया है।
  • अमृत सरोवर मिशन: आजादी का अमृत महोत्सव के तहत देशभर में प्रति जिले 75 जल निकायों को विकसित और पुनर्जीवित करने के लिए ये पहल शुरू की गई थी।
    • पुनर्जीवित किए गए ये जल निकाय दोहरे उद्देश्य से कार्य करेंगे, स्थायी जल संरक्षण प्रयासों के माध्यम से भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने का जश्न मनाते हुए वर्षा जल संचयन क्षमता को बढ़ाना।
  • अटल भूजल योजना: यह पहल जल बचत हस्तक्षेपों के माध्यम से माँग पक्ष भूजल प्रबंधन पर जोर देती है।
    • मुख्य उपायों में सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप/स्प्रिंकलर सिस्टम) को बढ़ावा देना, कम पानी वाली फसलों की ओर बढ़ना और ‘मल्चिंग’ प्रथाओं को अपनाना शामिल है, जो सभी सरकारी प्रोत्साहनों द्वारा समर्थित हैं।
  • अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (AMRUT) 2.0: इस नीति में वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाया गया है, जिसमें वर्षा जल को दूषित जल निकायों (सीवेज/अपशिष्ट से मुक्त) में प्रवाहित किया जाता है।
    • यह शहरी बाढ़ प्रतिरोधकता को बढ़ाने के लिए इन जल निकायों के आस-पास वर्षा जल निकासी प्रणालियों के निर्माण और सुदृढ़ीकरण को भी प्राथमिकता देता है।
  • मॉडल बिल्डिंग बायलॉज (Model Building Bye Laws- MBBL): आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing & Urban Affairs- MoHUA) ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिए मॉडल बिल्डिंग बायलॉज (MBBL), 2016 तैयार किया है।
    • MBBL के अनुसार, 100 वर्ग मीटर या उससे अधिक के प्लॉट आकार वाली सभी इमारतों में अनिवार्य रूप से वर्षा जल संचयन का पूरा प्रस्ताव शामिल होगा।

शहरी बाढ़ से निपटने के लिए वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास

  • स्पंज सिटी कॉन्सेप्ट (चीन): वर्षा जल को अवशोषित करने के लिए पारगम्य फुटपाथ, वर्षा उद्यान और आर्द्रभूमि का उपयोग करता है।
    • शंघाई जैसे चीनी शहरों ने बड़े पैमाने पर ‘स्पंज इन्फ्रास्ट्रक्चर’ परियोजनाओं के माध्यम से बाढ़ के जोखिम को 60% तक कम कर दिया।
  • संधारणीय जल निकासी प्रणाली (यू.के. – SuDS): कंक्रीट नालियों को बायोस्वेल जैसी प्राकृतिक निस्पंदन प्रणालियों से परिवर्तित दिया गया।
    • लंदन की SuDS परियोजनाओं ने भूजल को रिचार्ज करते हुए बाढ़ की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी की।
  • भूमिगत स्टॉर्मवॉटर सुरंगें (जापान): भारी तूफानों के दौरान विशाल भूमिगत सुरंगें अतिरिक्त वर्षा जल को संगृहीत करती हैं।
    • टोक्यो के मेट्रोपॉलिटन एरिया आउटर अंडरग्राउंड डिस्चार्ज चैनल टाइफून के दौरान भी बाढ़ को रोकता है।
  • स्मार्ट फ्लड मॉनिटरिंग (सिंगापुर): नालियों में IoT सेंसर सार्वजनिक अलर्ट के माध्यम से वास्तविक समय में बाढ़ की चेतावनी देते हैं।
    • सिंगापुर के स्मार्ट वाटर असेसमेंट नेटवर्क (SWAN) ने बाढ़-प्रवण क्षेत्रों को 50% तक कम कर दिया।
  • ब्लू-ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर (नीदरलैंड): जल प्रवाह को प्रबंधित करने के लिए नहरों, पार्कों और हरित छतों को एकीकृत करता है।
    • रॉटरडैम के जल चौकों में 1.8 मिलियन लीटर वर्षा जल संगृहीत किया जाता है, जो सार्वजनिक स्थानों के रूप में दोगुना हो जाता है।

भारत में शहरी बाढ़ से निपटने के लिए आगे की राह

  • प्रारंभिक चेतावनी और तकनीकी एकीकरण: ब्यूनस आयर्स में देखे गए सेंसर और वास्तविक समय डेटा का उपयोग करके मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करना।
    • बाढ़ की भेद्यता मानचित्रण के लिए भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों और उपग्रह डेटा का भी उपयोग किया जाना चाहिए, विशेष रूप से अनौपचारिक बस्तियों में।
  • अनिवार्य जलवायु कार्रवाई योजनाएँ (CAPs): CAPs को शहरों के लिए एक वैधानिक दायित्व बनाने के लिए नगरपालिका कानूनों में संशोधन करना, समर्पित बजटीय आवंटन और जलवायु सेल द्वारा निगरानी के साथ वार्षिक कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
  • सतत् और जलवायु-लचीला शहरी नियोजन: ऐसी योजना अपनाना, जो प्राकृतिक स्थलाकृति और जल विज्ञान का सम्मान करती हो। हरित स्थानों को एकीकृत करना, बाढ़-लचीले बुनियादी ढाँचे का निर्माण करना।
    • अतिरिक्त वर्षा जल को प्रभावी ढंग से अवशोषित करने के लिए ‘स्पंज सिटीज’ मॉडल को अपनाना।
  • बेहतर जल निकासी और जल प्रबंधन: तूफानी जल निकासी प्रणालियों को उन्नत करना और नियमित रूप से बनाए रखना।
    • अवसंरचना डिजाइन में वर्षा जल संचयन और बायोस्वेल को शामिल करना ताकि रिसाव में सुधार हो और अपवाह कम हो।
  • विकेंद्रीकृत और संतुलित शहरी विकास: महानगरों पर प्रवास के दबाव को कम करने के लिए छोटे शहरों में विकास को प्रोत्साहित करना।
    • एक राष्ट्रीय नीति को अत्यधिक घनत्व को हतोत्साहित करना चाहिए, जिसका लक्ष्य स्थायी आर्थिक और पर्यावरणीय परिणाम प्राप्त करना है।
  • प्रकृति-आधारित और ब्लू-ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर: आर्द्रभूमि, शहरी वन और जल निकायों को पुनर्स्थापित करना।

नवीन बुनियादी ढाँचा समाधान

  • हरित छतें: हरित छतों को बढ़ावा देना ताकि खोई हुई भूमिगत पारगम्यता की भरपाई की जा सके, जिससे भूमिगत पाइपों के माध्यम से वर्षा जल का मार्गदर्शन हो सकता है।
  • छत पर वर्षा जल संचयन टैंक: बाढ़ के जल की मात्रा को काफी हद तक कम करने के लिए छत पर टैंकों की व्यापक स्थापना को प्रोत्साहित करना (उदाहरण के लिए, 1000m³ टैंक 43% तक ओवरफ्लो को कम कर सकता है)।
  • पारगम्य फुटपाथ: सतही अपवाह को कम करने और जल अवशोषण को बढ़ाने के लिए पारगम्य फुटपाथ अपनाना।
  • भूमिगत भंडारण प्रणाली: अतिरिक्त जल प्रबंधन के लिए हांगकांग के ताई हैंग स्टॉर्मवॉटर स्टोरेज टैंक जैसी भूमिगत तीव्र जल भंडारण योजनाओं को लागू करना।

    • नील-हरित बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना, जो तीव्र जल निकासी प्रबंधन और शहरी लचीलेपन में सुधार के लिए शहरी डिजाइन के साथ पारिस्थितिकी पुनर्स्थापथन को आपस में जोड़ता है।
  • सहयोगात्मक शासन और क्षमता निर्माण: सरकारों, नागरिक समाज, शिक्षाविदों और उद्योग को शामिल करते हुए संस्थागत तंत्र का निर्माण करना।
    • नागरिक जागरूकता को प्रोत्साहित करना और आपदा जोखिम न्यूनीकरण एवं जलवायु अनुकूलन पर बड़े पैमाने पर शिक्षा कार्यक्रम शुरू करना।
  • नागरिक शिक्षा और व्यवहार परिवर्तन: नागरिकों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण व्यवहार को स्थापित करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी शिक्षा कार्यक्रम शुरू करना, जोखिम न्यूनीकरण को दैनिक जीवन, आजीविका और व्यावसायिक पैटर्न में एकीकृत करना।
  • उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ: बाढ़ परिदृश्यों की भविष्यवाणी करने और बाढ़ प्रबंधन रणनीतियों को अनुकूलित करने के लिए AI और मशीन लर्निंग का उपयोग करना।
    • बाढ़ परिदृश्यों का अनुकरण करने और विभिन्न हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए डिजिटल पहलों का उपयोग करना।

निष्कर्ष

बंगलूरू में बार-बार आने वाली बाढ़ सतत् शहरी नियोजन, मजबूत जल निकासी व्यवस्था और प्रकृति आधारित समाधानों की तत्काल आवश्यकता को प्रदर्शित करती है। सहयोगात्मक शासन के साथ-साथ ‘स्पॉन्ज सिटी’ और स्मार्ट मॉनिटरिंग जैसी वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने से लचीलापन बढ़ सकता है और भविष्य में बाढ़ के जोखिम को कम किया जा सकता है।

प्रश्न. 1. शहरी क्षेत्रों में बाढ़ एक उभरती हुई जलवायु प्रेरित आपदा है। इस आपदा के कारणों पर चर्चा कीजिए। भारत में पिछले दो दशकों में आई दो ऐसी बड़ी बाढ़ों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। भारत में ऐसी बाढ़ों से निपटने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियों एवं ढाँचों का वर्णन कीजिए। (250 शब्द) (2024)

प्रश्न. 2. भारत के प्रमुख शहर बाढ़ की स्थिति के प्रति संवेदनशील होते जा रहे हैं, चर्चा कीजिए। (200 शब्द) (2016)

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