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जिला मजिस्ट्रेट का पद और उसकी वास्तविक भूमिका

Lokesh Pal June 03, 2025 05:00 105 0

संदर्भ:

जिला मजिस्ट्रेट प्रणाली की दक्षता का पुनर्मूल्यांकन करने के केंद्र के कदम के बाद सार्वजनिक वाद-विवाद के बीच विकेंद्रीकरण पर द्वितीय एआरसी की सिफारिशें पुनः सामने आई हैं।

जिला मजिस्ट्रेट प्रणाली की उत्पत्ति

  • परिचय: ब्रिटिश राज ने कलेक्टर प्रणाली की शुरुआत, मुख्य रूप से नियंत्रण, कर संग्रहण और भारतीय विद्रोहों को दबाने के लिए की थी
  • कलेक्टर की भूमिका: कलेक्टर को जिले में ब्रिटिश सत्ता का चेहरा बनाया गया, जो स्थानीय स्तर पर साम्राज्यवादी शक्ति का प्रतीक था।
  • विस्तार: इस प्रणाली की शुरुआत 1772 में बंगाल में वॉरेन हेस्टिंग्स द्वारा की गई थी। बाद में इसे पूरे भारत में विस्तारित किया गया और अंततः यह जिला शासन का मुख्य मॉडल बन गया
  • सत्तावादी विरासत: इस प्रणाली का मूल प्रकृति में सत्तावादी है – इसका मूल सिद्धांत लोगों पर शासन करना था, उनकी सेवा करना नहीं

स्वतंत्रता के बाद

  • संविधान की स्वीकृत: भारत ने 1947 में लोगों को सत्ता सौंपने के लिए संविधान का निर्माण किया, जिससे लोकतांत्रिक शासन की शुरुआत हुई।
  • जिला मजिस्ट्रेट प्रणाली: संवैधानिक परिवर्तन के बावजूद, जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) प्रणाली अपरिवर्तित रही – यह अत्यधिक केंद्रीकृत बनी हुई है।
  • प्राधिकार का संकेन्द्रण: एक ही अधिकारी जिला स्तर पर कानून, व्यवस्था, विकास और प्रशासन को नियंत्रित करता रहता है।
  • औपनिवेशिक विरासत: डीएम प्रणाली एक औपनिवेशिक विरासत है, जो अभी भी लोकतांत्रिक भारत में चल रही है, जो भागीदारी पूर्ण अभिशासन के सिद्धांतों के विपरीत है।
  • विकेंद्रीकरण की आवश्यकता: लोकतंत्र विकेंद्रीकरण की माँग करता है, नौकरशाही तानाशाही की निरंतरता नहीं।
  • तर्कहीन और अकुशल: जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) के हाथों में सत्ता का संकेन्द्रण तर्कहीन और अकुशल दोनों है, विशेष रूप से आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में।
  • व्यक्तित्व पंथ: कई आईएएस अधिकारियों ने डीएम पद के इर्द-गिर्द एक व्यक्तित्व पंथ विकसित कर लिया है तथा इसे प्रशासनिक अधिकार के शिखर के रूप में चित्रित किया है।
  • विकृत धारणा: डीएम को एक नायक के रूप में दिखाया जाता है, जबकि शेष व्यवस्था को अक्सर केवल गौण पात्रों तक सीमित कर दिया जाता है – जिससे शासन की विकृत धारणा को बल मिलता है।
  • बाधाएँ: यह मानसिकता वास्तविक विकास और समावेशी अभिशासन को अवरुद्ध करती है, सामूहिक प्रयासों और जमीनी स्तर की भागीदारी को कमजोर करती है।
  • केंद्रीकृत नियंत्रण: वर्तमान की जटिल और विविधतापूर्ण प्रणाली में, एक व्यक्ति द्वारा सब कुछ नियंत्रित करना पूरी तरह से अव्यावहारिक और प्रतिकूल है।
  • चिंतनशील प्रकिया: टी. आर. रघुनंदन कहते हैं: मुझे आईएएस पर गर्व है, लेकिन मैं आँख मूँदकर इसका अनुसरण नहीं करूँगा। यह इस विश्वास को दर्शाता है कि सेवा में गर्व में आत्म-सुधार और आत्मनिरीक्षण के लिए जगह शामिल होनी चाहिए।
  • उद्देश्य: आईएएस अधिकारियों का मुख्य कार्य जनता की सेवा करना है, न कि किसी भी कीमत पर सिर्फ़ आदेशों का पालन करना। लोकतंत्र नैतिक विवेक की माँग करता है, यांत्रिक अनुपालन की नहीं।

जिला मजिस्ट्रेट प्रणाली से संबंधित मुद्दे

  • अंध आज्ञाकारिता: सिविल सेवाएँ सैन्य सेवाएँ नहीं हैं। लोकतांत्रिक नौकरशाही में अंध आज्ञाकारिता का कोई स्थान नहीं है, जहाँ अंतिम उत्तरदायित्व लोगों के प्रति होता है, न कि आधिपत्य संरचना के प्रति।
  • अत्यधिक भार: जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को स्वास्थ्य, शिक्षा, आपदा प्रबंधन आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों की 50-60 समितियों का प्रमुख बनाया जाता है।
  • अत्यधिक कार्यभार: आंध्र प्रदेश और असम के प्रशासनिक सुधार आयोगों (एआरसी) की रिपोर्ट एक ही अधिकारी पर जिम्मेदारियों के इस बोझ की पुष्टि करती है।
  • यथार्थवाद का प्रश्न: क्या एक अधिकारी द्वारा जिले के सभी क्षेत्रों का प्रबंधन करना उचित और यथार्थ है? एक कार्यालय में कार्यों का इतना अधिक संकेन्द्रण प्रशासनिक दक्षता के संबंध में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करता है
  • अतिकेंद्रीकरण: इसका परिणाम गुणवत्ता में कमी, उभरती हुई चिंताएँ और विभागों में देरी है – प्रत्येक पर केंद्रित ध्यान की आवश्यकता है।
  • अनुपयुक्तता: यह स्पष्ट रूप से भारत जैसे विविधतापूर्ण और जटिल लोकतंत्र में जमीनी स्तर पर शासन एक अव्यवहारिक मॉडल है।
  • एआरसी अवलोकन: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) ने जिला कलेक्टर को अत्यधिक जिम्मेदारियाँ सौंपे जाने के मुद्दे को उठाया।
  • भूमिका स्पष्टता का अभाव: कलेक्टर इतनी सारी समितियों का हिस्सा हैं कि उन्हें भी सही संख्या का पता नहीं है। यह जिला स्तर पर शासन की असंरचित प्रकृति को दर्शाता है।
  • अवास्तविक अपेक्षाएँ: अत्यधिक भार वाले अधिकारी से उच्च-गुणवत्ता वाले परिणामों की अपेक्षा करना तर्कहीन और प्रतिकूल है। यह दक्षता और जवाबदेही दोनों से समझौता करता है।
  • अभिजात वर्ग का नियंत्रण: आईएएस अधिकारी प्रायः तर्क देते हैं, कि स्थानीय सरकारें भ्रष्ट या अभिजात वर्ग द्वारा नियंत्रित की जा सकती हैं। हालाँकि, यह आलोचना विडंबनापूर्ण है, क्योंकि आईएएस स्वयं एक अभिजात वर्ग का गठन करता है
  • दुहरा मापदंड: हालाँकि वे पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार के बारे में चिंता जताते हैं, लेकिन वे अक्सर भ्रष्टाचार को नजरअंदाज कर देते हैं। मंत्रियों और उच्च-स्तरीय अभिजात वर्ग द्वारा किए गए भ्रष्टाचार को नजरअंदाज कर देते हैं।
  • वास्तविक विकेंद्रीकरण: वास्तविक विकेंद्रीकरण का अर्थ है, कि जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को निर्वाचित स्थानीय निकायों के अधीन कार्य करना चाहिए, न कि औपनिवेशिक अवशेष के रूप में उनके ऊपर।
  • सत्ताधारियों द्वारा प्रतिरोध: सत्ता के इस परिवर्तन का आईएएस अधिकारियों और मंत्रियों दोनों द्वारा विरोध किया जाता है क्योंकि यह निर्णय लेने पर उनके एकाधिकार को चुनौती देता है
  • राजनेताओं पर दोष देकर ध्यान भटकाना: शासन की विफलताओं के लिए राजनेताओं पर उंगली उठाना अक्सर नौकरशाही द्वारा प्रयोग की जाने वाली ध्यान भटकाने की रणनीति है। जवाबदेही साझा की जानी चाहिए, न कि बदली जानी चाहिए
  • चयनात्मक तर्क: जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) मंत्रियों और विधायकों के अधीन कार्य करते हैं, लेकिन जिला परिषद प्रमुखों के अधीन कार्य करने से बचते हैं। यह पदानुक्रमिक पूर्वाग्रह में निहित एक चयनात्मक और तर्कहीन प्रणाली को दर्शाता है

शासन पर डीएम प्रणाली का प्रभाव

  • लोकतंत्र को दरकिनार करना: स्मार्ट सिटी मिशन ने निर्वाचित महापौरों को व्यवस्थित रूप से दरकिनार कर दिया, जिससे स्थानीय स्वशासन की भावना को नुकसान पहुँचा।
  • समानांतर संरचनाएँ: विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी) बनाए गए, जिनके प्रमुख आईएएस अधिकारी थे, न कि स्थानीय रूप से निर्वाचित प्रतिनिधि। इससे नौकरशाही के नेतृत्व वाली शासन व्यवस्था निर्वाचित संस्थाओं के समानांतर संचालित हुई।
  • पारदर्शिता में कमी: ऐसा मॉडल जवाबदेही के बिना शासन को बढ़ावा देता है, क्योंकि यह सार्वजनिक जाँच और लोकतांत्रिक निरीक्षण को दरकिनार कर देता है
  • हस्तांतरण का भ्रम: संवैधानिक गारंटी के बावजूद, स्थानीय निकायों को वास्तविक सत्ता परिवर्तन के अभाव में वास्तविक हस्तांतरण एक भ्रम बना हुआ है
  • विकेंद्रीकरण को नुकसान पहुँचाना: नौकरशाही के हाथों में नियंत्रण रखकर, आईएएस के नेतृत्व वाली संरचनाओं ने संवैधानिक विकेंद्रीकरण को प्रभावी रूप से नुकसान पहुंचाया है।

डीएम प्रणाली के जीवित रहने के कारण

  • मीडिया अपील: व्यक्तिगत नेताओं के इर्द-गिर्द व्यक्तित्व पंथ मीडिया के अनुकूल और दृष्टिगत रूप से आकर्षक होते हैं। जटिल टीमवर्क मॉडल की तुलना में एक-व्यक्ति नायक की कहानी को बेचना आसान है।
  • विकेंद्रीकृत शासन की चुनौतियाँ: विकेंद्रीकृत और भागीदारीपूर्ण शासन अक्सर मीडिया को उबाऊलगता है, क्योंकि इसमें नाटकीय अपील की कमी होती है। इससे जनता की दृश्यता और रुचि कम हो जाती है।
  • राजनीतिक अनिच्छा: राजनीतिक नेता आमतौर पर लाइमलाइट या नियंत्रण साझा करने के लिए तैयार नहीं होते हैं। व्यक्तिगत स्थिति और प्रभाव बनाए रखने की उनकी इच्छा मौजूदा व्यवस्था को बनाए रखती है।
  • यथास्थिति: परिणामस्वरूप, अकुशल केंद्रीकृत शासन मॉडल बना हुआ है। यथास्थिति जारी है, सामूहिक, प्रभावी प्रशासन पर व्यक्तिगत शक्ति को प्राथमिकता दी जा रही है।

आगे की राह

  • विनम्रता: सेवाओं में नायक पूजा के स्थान पर विनम्रता और वास्तविक सार्वजनिक सेवा की संस्कृति को अपनाने की आवश्यकता बढ़ती जा रही है।
  • संरचनात्मक सुधार की आवश्यकता: एआरसी संरचनात्मक सुधार की मांग करता है, तथा विभिन्न पेशेवरों के बीच भूमिकाओं के विभाजन पर बल देता है।
  • संस्थागत दक्षता: भारत को एक-व्यक्ति नियंत्रण से आगे बढ़ना होगा तथा संस्थागत दक्षता और सहयोगात्मक शासन की प्रणाली का निर्माण करना होगा।
  • सुधार के अग्रदूत: रामकृष्ण हेगड़े और अब्दुल नजीर साब ने जिला प्रशासन में क्रांतिकारी बदलाव लाए। उन्होंने सत्ता को नौकरशाही से हटाकर जिला प्रशासन के हाथों में सौंप दिया।
  • जिला परिषद को सशक्त बनाया गया: जिला परिषद अध्यक्ष को मुख्य कार्यकारी बनाया गया, जबकि आईएएस अधिकारी को सचिव बनाया गया। इससे पारंपरिक शक्ति पदानुक्रम उलट गया।
  • सुधार के परिणाम: स्थानीय प्राथमिकताओं के आधार पर विकास में तेजी आई। स्थानीय नियोजन प्रभावी और उत्तरदायी बन गया। निर्वाचित निकायों को प्रतीकात्मक भूमिकाओं से आगे बढ़कर वास्तविक शक्ति प्राप्त हुई।
  • प्रणाली को वापस लेना: इसकी सफलता के बावजूद, 1992 में प्रणाली को वापस ले लिया गया। यह वापसी आईएएस अधिकारियों और विधायकों के विरोध के कारण हुई थी। जिन्होंने अधिकार साझा करने का विरोध किया था।
  • विकेंद्रीकरण: सफल विकेंद्रीकरण के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और नौकरशाही की विनम्रता दोनों की आवश्यकता होती है। इनके बिना, संरचनात्मक सुधार केवल कागज़ों तक ही सीमित रह जाते हैं
  • परिवर्तन के एजेंट: नीतियों का मसौदा तैयार करने वाले आईएएस अधिकारी विकेंद्रीकरण को आगे बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। उनकी भूमिका क्रियान्वयन तक ही सीमित नहीं है; वे सुधार के एजेंट भी हो सकते हैं

महत्त्वपूर्ण उद्धरण

  • ग्रानविले ऑस्टिन: “भारतीय संविधान एक सामाजिक क्रांति है।” डीएम प्रणाली सत्ता को केंद्रीकृत करके उस क्रांति को अवरुद्ध करती है।
  • महात्मा गांधी: ”वास्तविक लोकतंत्र नीचे से शुरू होता है।”
  • यूएनडीपी: मजबूत स्थानीय सरकारें – बेहतर मानव विकास।
  • विश्व बैंक-2004: “विकेंद्रीकरण बिना हस्तांतरण के अर्थहीन है।”

निष्कर्ष

जिला मजिस्ट्रेट प्रणाली की निरंतरता जमीनी स्तर पर शासन को लोकतांत्रिक बनाने के लिए एक गहरे प्रतिरोध को प्रकट करती है। वास्तविक परिवर्तन की माँग औपनिवेशिक पदानुक्रम को समाप्त करना है, न कि उन्हें विरासत में लाना। लोकतंत्र की स्थापना के लिए, सत्ता नीचे की ओर स्थानांतरित होनी चाहिए – शीर्ष पर रुकी नहीं रहनी चाहिए।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

क्या आप इस बात से सहमत हैं, कि जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में विनियामक और सेवा प्रावधान शक्तियों का संकेन्द्रण संस्थागत रूप से तर्कहीन और प्रशासनिक रूप से अक्षम है? उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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