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अमेरिकी नीतियों के मद्देनजर भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा संबंध का विकसित रूप

Lokesh Pal June 04, 2025 05:00 91 0

संदर्भ:

वैश्विक सुरक्षा में बढ़ती अनिश्चितता और चीन के आक्रामक दृष्टिकोण के बीच, भारत और ऑस्ट्रेलिया बेहतर रक्षा संबंध स्थापित कर रहे हैं।

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध: प्रमुख कारक

  • वैश्विक प्रभाव: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की व्हाइट हाउस में वापसी ने वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था को प्रभावित किया है। उनकी कठोर वैश्विक नीतियाँ और नाटो देशों पर अधिक भार डालने की माँग ने सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को पहले से अधिक अनिश्चित बना दिया है।
  • इंडो-पैसिफिक पर प्रभाव: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र इस समय एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। हालाँकि, यह स्थिति भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे मध्य शक्तियों के लिए रक्षा सहयोग को और अधिक गहरा करने का एक रणनीतिक अवसर भी प्रदान करता है।
  • अमेरिका की सुरक्षा गारंटी का अभाव: दशकों तक, अमेरिका ने जापान और दक्षिण कोरिया जैसे महत्त्वपूर्ण इंडो-पैसिफिक सहयोगियों को सुरक्षा आश्वासन प्रदान किए, जिससे वे आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित कर सके और अमेरिकी सैन्य सुरक्षा पर निर्भर रह सके।
  • रणनीतिक निर्भरता: जापान ने अमेरिकी सुरक्षा के तहत शांतिवादी रक्षा नीति अपनाई रखी, जबकि दक्षिण कोरिया ने उत्तर कोरियाई खतरों को रोकने के लिए अमेरिका की उपस्थिति को महत्त्वपूर्ण माना।
  • लेन-देन आधारित कूटनीति: ट्रम्प प्रशासन के तहत, अमेरिकी विदेश नीति अधिक लेन-देन आधारित हो गई, जिसमें समर्थन को वित्तीय योगदान से जोड़ा गया और पुराने गठबंधनों में भरोसा कम हो गया
  • मुख्य सहयोगियों में बढ़ती चिंताएँ: ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे सहयोगियों ने अमेरिका की विश्वसनीयता पर संदेह प्रारंभ कर दिया।
  • रणनीतिक स्वायत्तता: इसके जवाब में, अमेरिकी सहयोगी अब अपनी स्वयं की रक्षा क्षमताओं में निवेश कर रहे हैं और अमेरिकी छत्रछाया से बाहर जाकर क्षेत्रीय सुरक्षा संबंधों को मज़बूत कर रहे हैं।
  • रणनीतिक पुनर्संरेखन: चीन के आक्रामक क्षेत्रीय दृष्टिकोण के बढ़ते खतरों के बीच ऑस्ट्रेलिया भारत के साथ संबंधों को गहरा कर रहा है।
  • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव: चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) ने ऋण-जाल कूटनीति और समपूर्ण एशिया में रणनीतिक प्रभाव के विस्तार का भय उत्पन्न कर दिया है।
  • लोकतांत्रिक और विश्वसनीय साझेदारी: ऑस्ट्रेलिया भारत जैसे समान विचारधारा वाले साझेदारों की ओर बढ़ रहा है, जो संप्रभुता और नियम-आधारित व्यवस्था का सम्मान करते हैं।
  • रणनीतिक भौगोलिक स्थिति: ऑस्ट्रेलिया भारतीय और प्रशांत महासागर दोनों में विस्तृत है तथा इसकी सैन्य उपस्थिति दक्षिण-पूर्व एशिया के निकट है। यह भौगोलिक स्थिति भारत की समुद्री महत्त्वाकांक्षाओं की पूरक है।
  • संचालनात्मक सामंजस्य: ऑस्ट्रेलियाई रक्षा बल (ADF) गठबंधन संचालन में कुशल है और इसने भारत की क्षमताओं को बढ़ावा दिया है, जैसे- हवा से हवा में ईंधन भरने के समझौते के माध्यम से।

हवा से हवा में ईंधन भरना (Air-to-air refueling)

  • संदर्भ: हवा से हवा में ईंधन भरना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक विमान (टैंकर) से दूसरे विमान में उड़ान के दौरान ईंधन स्थानांतरित किया जाता है, जिससे प्राप्तकर्ता विमान की उड़ान की दूरी, धैर्य और मिशन क्षमता बढ़ जाती है।
  • रणनीतिक महत्त्व: यह लड़ाकू विमानों को बिना उतरे लंबी दूरी तय करने में सक्षम बनाता है, जो इंडो-पैसिफिक जैसे व्यापक समुद्री क्षेत्रों में निगरानी, ​​शक्ति प्रदर्शन और तीव्र प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • अंतर-संचालन क्षमता और पहुँच: यह समझौता भारतीय वायु सेना (IAF) के जेट विमानों को ऑस्ट्रेलियाई क्षेत्रों पर ईंधन भरने की सुविधा देता है और इसके विपरीत भी, जिससे संयुक्त अभियानों में सुधार होता है, विशेष रूप से अभ्यास मालाबार और पिच ब्लैक जैसे सैन्य अभ्यासों के दौरान।

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध

  • सुदृढ़ संबंध: जहाँ भारत की जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोप के साथ साझेदारी महत्त्वपूर्ण है, वहीं ऑस्ट्रेलिया के साथ उसके संबंधों में मज़बूत नौकरशाही तंत्र विकसित हुआ है।
  • सुरक्षा साझेदारी: पिछले दशक में, लगातार ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्रियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में संबंधों को मजबूती मिली है, साथ ही कैनबरा भारत को एक “प्रमुख सुरक्षा साझेदार” के रूप में देखता है।
  • प्रमुख संरचनाएँ: यह साझेदारी ऐसी संरचनाओं पर आधारित है, जैसे- 2020 का व्यापक रणनीतिक साझेदारी (CSP) और 2021 में शुरू की गई 2+2 मंत्रीस्तरीय वार्ता (दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्री द्वारा), जो उच्च स्तरीय समन्वय के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • व्यावहारिक सहयोग: संचालनात्मक सामंजस्य निम्नलिखित क्षेत्रों में दिखाई देता है:
    •  पारस्परिक लॉजिस्टिक्स समर्थन समझौता (MLSA): संयुक्त अभ्यासों और आपदा राहत के दौरान लॉजिस्टिक्स की सुविधा प्रदान करता है।
    •  हवा से हवा में ईंधन भरने का समझौता (2024): रॉयल ऑस्ट्रेलियाई वायु सेना के माध्यम से भारतीय विमानों की पहुँच को बढ़ाता है।
  • सैन्य अभ्यास: प्रमुख सैन्य सहयोग में शामिल हैं – ऑस्ट्राहिंड (सेना), ऑसइंडेक्स (नौसेना), पिच ब्लैक तथा मालाबार (भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान), जो एक दशक के सैन्य सहयोग को प्रदर्शित करते हैं।
  • भारत के महाद्वीपीय संकट: भारत को चीन के साथ सक्रिय सीमा विवाद का सामना करना पड़ता है और पाकिस्तान से भी खतरे बने रहते है, जिससे उसकी प्राथमिकताएँ महाद्वीपीय मुद्दों से जुड़ी रहती हैं।
    •  भारत अपने कुल रक्षा बजट का केवल दस प्रतिशत नौसेना पर व्यय करता है
  • ऑस्ट्रेलिया का रणनीतिक पुनर्गठन: ऑस्ट्रेलिया अपने क्षेत्रीय रक्षा भूमिका पर पुनर्विचार कर रहा है, जिसमें सैन्य संरचना में परिवर्तन, AUKUS गठबंधन के तहत तकनीकी अधिग्रहण और प्रशांत द्वीप राष्ट्रों के साथ बढ़ते संबंध शामिल हैं।

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों में आवश्यक सुधार

  • नौसेना सहयोग से आगे: भारत और ऑस्ट्रेलिया को रक्षा सहयोग को पारंपरिक सीमाओं से आगे ले जाकर पुनः संतुलित करना होगा। जहाँ नौसेना सहयोग परिपक्व हो चुका है, अब समय आ गया है कि तीनों सेनाओं के बीच की बाधाओं को समाप्त किया जाए।
  • एकीकृत संयुक्त अभ्यास: दोनों देशों को वास्तविक परिस्थितियों में संयुक्त सैन्य अभ्यास करने चाहिए और संयुक्त स्टाफ वार्ता के लिए एक समर्पित मंच की ओर बढ़ना चाहिए।
    •  अगले दशक के भीतर एक बड़ा संयुक्त और सम्मिलित अभ्यास आयोजित किया जाना चाहिए, जिससे दोनों देशों की सामूहिक क्षमताओं का परीक्षण हो सके।
  • रक्षा प्रतिनिधित्व का उन्नयन: भारत को कैनबरा स्थित अपने रक्षा सलाहकार (DA) के पद को एक-स्टार रैंक तक उन्नत करना चाहिए। यह दोनों देशों के मध्य रणनीतिक संबंधों के महत्त्व को दर्शाता है।
  • सेनाओं का संतुलित प्रतिनिधित्व: चूँकि पारंपरिक रूप से डीए (DA) का पद नौसेना अधिकारियों को दिया जाता है, इसलिए थल सेना और वायु सेना के सहायक अधिकारी जोड़ने से तीनों सेनाओं के दृष्टिकोणों में संतुलन आएगा। साथ ही, प्रशांत द्वीप समूह से जुड़ी सहभागिता के लिए समर्पित कर्मचारियों की भी आवश्यकता है, जिससे मौजूदा डीए (DA) पर दबाव कम हो सके।
  • संचालनात्मक अनुभव को महत्त्व: रणनीतिक संवाद केवल औपचारिक कूटनीतिक वार्ताओं तक सीमित नहीं रहने चाहिए। यह आवश्यक है, कि कार्य-स्तर के अधिकारियों, विशेष रूप से वर्दीधारी पेशेवरों के व्यावहारिक अनुभव और विचारों को भी ऊपर तक पहुँचाया जाए और उन्हें महत्त्व दिया जाए।
  • युद्ध-खेल और फैलोशिप: स्टाफ कॉलेज फैलोशिप, गोपनीय चर्चाएँ और नियमित युद्ध-खेल आदान-प्रदान जैसे कदम नई सोच को जन्म दे सकते हैं और आपसी विश्वास को सुदृढ़ कर सकते हैं।
  • एमआरओ (MRO) सहयोग का विस्तार: भारत ने अमेरिका और ब्रिटेन की नौसेनाओं के साथ MRO (मेंटेनेंस, रिपेयर एंड ओवरहॉल) सहयोग विकसित किया है। इस सफलता को ऑस्ट्रेलिया तक बढ़ाया जा सकता है, ताकि नौसैनिक जहाजों के रखरखाव और मरम्मत में सहयोग किया जा सके।
  • गश्ती नौकाओं का संयुक्त निर्माण: भारत और ऑस्ट्रेलिया को हिंद महासागर और प्रशांत क्षेत्र में छोटे द्वीपीय देशों के लिए गश्ती नौकाओं का संयुक्त रूप से विकास करना चाहिए। यह सहयोग भले ही सीमित हो, लेकिन इससे दोनों देशों के बीच साझा तकनीकी अनुभव और प्लेटफ़ॉर्म की समझ बढ़ेगी
  • एमएसएमई (MSME) क्षेत्र का दोहन: अधिकांश बड़े ऑस्ट्रेलियाई ओईएम (OEM) पश्चिमी या पूर्वी एशियाई कंपनियों की क्षेत्रीय शाखाएँ हैं, जिससे सीधे सहयोग की संभावनाएँ सीमित हो जाती हैं। एमएसएमई (MSME) क्षेत्र अभी तक एक अप्रयुक्त अवसर बना हुआ है।
  • स्टार्टअप और दोहरी-उपयोग तकनीकें: दोनों देशों में रक्षा क्षेत्र के स्टार्टअप्स दोहरे उपयोग और घटक तकनीकों में बेहतर हैं। इस क्षेत्र में सहयोग से अत्याधुनिक नवाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
  • इंडस एक्स (INDUS X)-प्रकार का मॉडल: दोनों देश एक इंडस एक्स (INDUS X) जैसी पहल की शुरुआत कर सकते हैं, जिससे स्वदेशीकरण के लक्ष्यों को आपस में जोड़ा जा सके और रक्षा उत्पादन में एमएसएमई (MSME) क्षेत्र की गहरी साझेदारी को सुनिश्चित किया जा सके।

निष्कर्ष

भारत और ऑस्ट्रेलिया एक प्रतीकात्मक साझेदारी से आगे बढ़ते हुए एक संचालनात्मक साझेदारी की ओर अग्रसर हैं, जो अमेरिका-प्रधान व्यवस्था से परे रणनीतिक पुनर्संतुलन का संकेत देती है। चीन के आक्रामक दृष्टिकोण ने गहन समन्वय के लिए उत्प्रेरक का कार्य किया है, क्योंकि भविष्य के इंडो-पैसिफिक गठबंधन की रूपरेखा वर्तमान में तैयार हो रही है।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

परिवर्तित वैश्विक शक्ति समीकरणों और अमेरिकी विदेश नीति के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण कीजिए, कि भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा सहयोग किस प्रकार इंडो-पैसिफिक क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना को आकार दे सकता है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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