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भारत की हरित अर्थव्यवस्था

Lokesh Pal June 06, 2025 05:40 25 0

संदर्भ

भारत की हरित अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व गति वृद्धि हो रही है, जिससे भारत हरित संक्रमण में वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित हो रहा है।

हरित अर्थव्यवस्था

  • हरित अर्थव्यवस्था एक आर्थिक ढाँचा है, जो पर्यावरण एवं स्थिरता के लिए विचारों को आर्थिक विकास के साथ एकीकृत करता है।
  • इसका उद्देश्य आर्थिक विकास एवं रोजगार सृजन उत्पन्न करना है, साथ ही यह इस बात को सुनिश्चित करना है कि हम ग्रह के प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट न करें।
  • संयुक्त राष्ट्र हरित अर्थव्यवस्था को “कम कार्बन, संसाधन कुशल एवं सामाजिक रूप से समावेशी” के रूप में परिभाषित करता है।

पारंपरिक अर्थव्यवस्था से भिन्न 

  • पारंपरिक अर्थव्यवस्थाएँ प्राय पर्यावरण की कीमत पर अल्पकालिक विकास को प्राथमिकता देती हैं।
  • हरित अर्थव्यवस्था आर्थिक, पारिस्थितिकी एवं सामाजिक लक्ष्यों को संरेखित करके दीर्घकालिक सतत् विकास की संभावना पर आधारित है।

हरित अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ

  • न्यूनतम कार्बन: नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता एवं सतत् परिवहन के माध्यम से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने पर जोर देती है।
    • अप्रैल 2025 तक 220 गीगावाट से अधिक स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता के साथ भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा अक्षय ऊर्जा उत्पादक बन गया है।
  • संसाधन दक्षता: अपशिष्ट एवं प्रदूषण को कम करने के लिए जल, ऊर्जा तथा कच्चे माल जैसे प्राकृतिक संसाधनों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देता है।
    • सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध, विस्तारित निर्माता कंपनियों को अपने उत्पादों के जीवन चक्र का प्रबंधन करने हेतु बाध्य करती है।
  • सामाजिक समावेशन: गरीबी एवं असमानता को समाप्त करने के उद्देश्य से अवसरों तथा लाभों तक उचित पहुँच को सुनिश्चित करता है।
    • ILO के अनुसार, हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन से वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 24 मिलियन नौकरियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। 
  • सतत् विकास: पर्यावरणीय स्थिरता को आर्थिक विकास एवं रोजगार सृजन के साथ एकीकृत करता है। ‘शून्य बजट प्राकृतिक कृषि’ की तरह सतत् कृषि, रासायनिक उपयोग को कम करती है तथा आय को बढ़ाती है। 
  • प्रकृति आधारित समाधान: जलवायु एवं विकास चुनौतियों का समाधान करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित दृष्टिकोण (जैसे- वनीकरण, आर्द्रभूमि संरक्षण) का उपयोग करता है। 
    • भारत ने बॉन चुनौती के तहत वर्ष  2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को बहाल करने का संकल्प लिया है। 

ग्रीन GDP क्या है? 

  • ग्रीन सकल घरेलू उत्पाद (Green Gross Domestic Product) (ग्रीन GDP) एक वैकल्पिक आर्थिक मीट्रिक है, जो आर्थिक विकास से संबंधित पर्यावरणीय लागतों को ध्यान में रखते हुए पारंपरिक GDP को समायोजित करता है। 
  • पारंपरिक GDP के विपरीत जो केवल उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के कुल मूल्य को माप करती है, ग्रीन GDP उस उत्पादन के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करती है। 
  • ग्रीन GDP का सूत्र है:
    • ग्रीन GDP = GDP – पर्यावरणीय लागत – सामाजिक लागत
  • पर्यावरणीय लागत में शामिल हैं:
    • प्राकृतिक संसाधनों की कमी (तेल, कोयला, प्राकृतिक गैस, लकड़ी, धातु)। 
    • पारिस्थितिकी प्रणालियों का क्षरण (जल प्रदूषण, मृदा का कटाव, जैव विविधता का नुकसान)। 
    • क्षतिग्रस्त पर्यावरण की बहाली लागत (अपशिष्ट पुनर्चक्रण, आर्द्रभूमि बहाली)। 
  • सामाजिक लागतों में शामिल हैं:
    • पर्यावरणीय क्षरण के कारण गरीबी। 
    • प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य सेवा व्यय में वृद्धि। 

ग्रीन नेशनल एकाउंट्स

  • ‘ग्रीन नेशनल एकाउंट्स’ (Green National Accounts) पर्यावरण परिसंपत्तियों एवं उनकी कमी को शामिल करने के लिए पारंपरिक राष्ट्रीय लेखा प्रणालियों का विस्तार करते हैं।
  • कई देशों ने ग्रीन एकाउंट्स या हरित लेखांकन के साथ प्रयोग किया है:
    • चीन: वर्ष 2004 में हरित लेखांकन अपनाने में अग्रणी रहा, लेकिन बाद में इसका परित्याग कर दिया।
    • यूरोपीय संघ: अपनी “GDP से परे” पहल के माध्यम से SEEA ढाँचे का उपयोग करता है।

वैश्विक हरित अर्थव्यवस्था सूचकांक

  • वैश्विक हरित अर्थव्यवस्था सूचकांक (Global Green Economy Index- GGEI) 18 संकेतकों में 160 देशों के हरित अर्थव्यवस्था प्रदर्शन का मापन करता है।
  • GGEI पहला हरित अर्थव्यवस्था सूचकांक था, जिसे वर्ष 2010 में लॉन्च किया गया था।
  • इसे Dual Citizen LLC द्वारा विकसित किया गया था।
  • GGEI को चार प्रमुख आयामों द्वारा परिभाषित किया गया है:
    • जलवायु परिवर्तन एवं सामाजिक समानता,
    • क्षेत्र डीकार्बोनाइजेशन,
    • बाजार एवं ESG निवेश, तथा 
    • पर्यावरणीय स्वास्थ्य।

भारत में हरित अर्थव्यवस्था का विकास

  • भारत की हरित अर्थव्यवस्था वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर एवं वर्ष 2070 तक 15 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
  • यह वृद्धि अक्षय ऊर्जा, EV, संधारणीय बुनियादी ढाँचे एवं प्रौद्योगिकी में बढ़ते निवेश द्वारा समर्थित है।
  • ‘ग्रीन जॉब्स’: भारत में वित्त वर्ष 2027-28 तक 7.29 मिलियन ‘ग्रीन जॉब्स’ (पर्यावरण से संबंधित) एवं वर्ष 2047 तक 35 मिलियन ‘ग्रीन जॉब्स’ के  सृजित होने की संभावना है।
    • रोजगार पारंपरिक भूमिकाओं से आगे बढ़कर नए युग के ‘ग्रीन करियर’ में विस्तारित हो रही हैं।
  • ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (CEEW) द्वारा किए गए एक अध्ययन से ज्ञात होता है कि अकेले ओडिशा की हरित अर्थव्यवस्था में 23 बिलियन डॉलर की बाजार क्षमता है।

हरित अर्थव्यवस्था एवं महिलाओं की भागीदारी

  • न्यूनतम भागीदारी: केवल 18% स्टार्ट-अप महिलाओं द्वारा संचालित हैं, जो हरित नवाचार की संभावनाओं को सीमित करता है।
  • वित्तीय अंतराल: हरित क्षेत्रों में महिला उद्यमियों को महत्त्वपूर्ण वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। महिलाओं द्वारा संचालित 79% उद्यम स्व-वित्तपोषित थे, एवं केवल 1.1% ने वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त किया।
  • समावेशी योजनाओं की आवश्यकता: SC/ST महिलाओं के लिए ₹2 करोड़ की योजना जैसी सरकारी ऋण योजना एक कदम आगे है, लेकिन इस प्रकार के और अधिक सहयोग की आवश्यकता है।
  • मेंटरशिप: महिलाओं को हरित क्षेत्रों में लक्षित मेंटरशिप एवं रोल मॉडल तक पहुँच की कमी है।
    • महिला उद्यमिता प्लेटफॉर्म (नीति आयोग) एवं गोल्डमैन सैक्स-IIMB कार्यक्रम जैसे प्लेटफॉर्म एक आधार प्रदान करते हैं, लेकिन प्रभाव को बढ़ाने के लिए व्यापक कॉर्पोरेट समर्थित प्रशिक्षण तथा बूट कैंप आवश्यक हैं।
  • इंजीनियरिंग अंतराल: इंजीनियरिंग छात्रों में महिलाओं की संख्या केवल 19.2% है, जो हरित तकनीक भूमिकाओं में प्रवेश को प्रभावित करती है।
  • वर्ष 2047 के लक्ष्यों के लिए आवश्यक: हरित व्यवसायों में महिलाओं को सशक्त बनाना सिर्फ समानता का प्रश्न नहीं है, यह वर्ष 2047 तक भारत के एक सतत्, विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य के लिए महत्त्वपूर्ण है।

हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहलें 

  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन: इसका उद्देश्य भारत को हरित हाइड्रोजन उत्पादन (वर्ष 2030 तक 5 MMT/वर्ष) का वैश्विक केंद्र बनाना एवं जीवाश्म ईंधन के आयात में कटौती करना है।
  • ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम: पर्यावरण अधिनियम के तहत कंपनियों/व्यक्तियों द्वारा पर्यावरण के अनुकूल कार्यों को प्रोत्साहित करना, स्थिरता परियोजनाओं के लिए संसाधन एकत्र करना।
  • PM-PRANAM एवं गोबरधन योजना: PM-PRANAM वैकल्पिक उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देती है, गोबरधन से ‘चक्रीय अर्थव्यवस्था’  में 500 अपशिष्ट-से-संपदा संयंत्र (₹10,000 करोड़) का निर्माण करती है।
  • FAME इंडिया एवं PM ई-ड्राइव योजना: सब्सिडी (फेम) एवं स्वच्छ गतिशीलता के लिए $1.3 बिलियन प्रोत्साहन पूल (ई-ड्राइव) के माध्यम से EV के उपयोग को बढ़ावा देती है।
  • राष्ट्रीय शीतलन कार्य योजना (National Cooling Action Plan- NCAP): यह ऊर्जा दक्षता, रेफ्रिजरेंट चरण-’डाउन एंड हीट डक्टिलिटी’ (नेट-शून्य लक्ष्यों के साथ संरेखित) के माध्यम से स्थायी शीतलन को लक्षित करती है।

हरित रोजगार का भौगोलिक विस्तार

  • प्रमुख हरित रोजगार केंद्र: मुंबई, बंगलूरू, दिल्ली।
  • टियर II एवं III शहरों में उभरते केंद्र: जयपुर, इंदौर, विजाग, कोयंबटूर, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, अहमदाबाद।
  • ये छोटे शहर वित्त वर्ष 2028 तक 35-40% हरित रोजगार का सर्जन करने हेतु उत्तरदायी हैं, जो सतत् कृषि, लाजिस्टिक एवं भंडारण द्वारा संचालित हैं।

हरित अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने वाले क्षेत्र

  • नवीकरणीय ऊर्जा (सौर, पवन, जलविद्युत)
  • इलेक्ट्रिक वाहन एवं हरित परिवहन
  • अपशिष्ट प्रबंधन एवं पुनर्चक्रण
  • सतत् कृषि
  • हरित निर्माण एवं शहरी नियोजन
  • स्वच्छ विनिर्माण एवं परिपत्र अर्थव्यवस्था

हरित अर्थव्यवस्था का महत्त्व 

  • प्रदूषण एवं उत्सर्जन को कम करती है: स्वच्छ ऊर्जा, हरित गतिशीलता एवं अपशिष्ट में कमी को बढ़ावा देता है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सीधे कटौती होती है।
    • अंतरराष्ट्रीय स्वच्छ परिवहन परिषद (ICCT) ने पाया कि EV पेट्रोल कारों की तुलना में 50-60% कम जीवनकाल उत्सर्जन करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन: हरित अर्थव्यवस्था पेरिस समझौते जैसे वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के साथ संरेखित होती है, जिससे देशों को तापमान को 2°C से नीचे सीमित रखने में मदद मिलती है।
    • जलवायु परिवर्तन पर भारत की कार्य योजनाएँ हरित अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को एकीकृत करती हैं।
  • आर्थिक विकास एवं नवाचार: अक्षय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, टिकाऊ कृषि एवं हरित इमारतों जैसे क्षेत्रों में सतत् औद्योगीकरण तथा नवाचार को बढ़ावा देता है।
    • भारत की हरित अर्थव्यवस्था वर्ष 2030 तक $1 ट्रिलियन एवं वर्ष 2070 तक $15 ट्रिलियन तक बढ़ने का अनुमान है।
  • संसाधन दक्षता एवं परिपत्र अर्थव्यवस्था: पुनर्चक्रण, पुन: उपयोग एवं सतत् उत्पादन के माध्यम से जल, खनिजों तथा ऊर्जा के अति प्रयोग एवं अपव्यय को कम करती है।
    • यूरोपीय संघ की सर्कुलर इकोनॉमी एक्शन प्लान का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सर्कुलर सामग्री उपयोग दरों को दोगुना करना है।
  • सामाजिक समावेशन एवं गरीबी में कमी: प्रकृति आधारित आजीविका एवं स्वच्छ ऊर्जा तक पहुँच के माध्यम से ग्रामीण तथा कमजोर समुदायों को सशक्त बनाता है।
    • ग्रामीण भारत में सौर माइक्रोग्रिड ने लाखों घरों के लिए बिजली की पहुँच में सुधार किया है, जिससे शिक्षा एवं आजीविका में वृद्धि हुई है।

हरित अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ

  • उच्च आरंभिक निवेश लागत: हरित अवसंरचना (सौर, पवन, EV, आदि) में परिवर्तन के लिए बड़ी अग्रिम पूँजी की आवश्यकता होती है।
  • तकनीकी अंतराल एवं अवसंरचना घाटा: उन्नत हरित प्रौद्योगिकियों तक पहुँच की कमी, विशेष रूप से कम आय वाले देशों में।
    • अपर्याप्त अवसंरचना (जैसे- EV चार्जिंग स्टेशन, स्मार्ट ग्रिड) अपनाने में बाधा डालती है।
  • स्थापित उद्योगों से प्रतिरोध: कोयला, तेल एवं ऑटोमोबाइल विनिर्माण जैसे पारंपरिक क्षेत्र रोजगार छूटने तथा निवेश डूबने के डर से हरित बदलाव का विरोध करते हैं।
    • भारत की विद्युत का उत्पादन लगभग 70% कोयला से किया जाता है – इसे चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने से लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित होती है।
  • कौशल एवं रोजगार परिवर्तन: हरित अर्थव्यवस्था के लिए नए कौशल सेट (जैसे- सौर तकनीशियन, बैटरी इंजीनियर) की आवश्यकता होती है, लेकिन कार्यबल का पुनः प्रशिक्षण धीमा है।
    • ILO का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर कार्बन-गहन क्षेत्रों में 6 मिलियन नौकरियाँ समाप्त हो सकती हैं।
  • सामाजिक एवं समानता के मुद्दे: यदि हरित समाधान गरीब समुदायों के लिए वहनीय नहीं हैं, तो असमानता बढ़ने का जोखिम है। 
    • शहरी भारत में रूफटॉप सोलर अपनाने की दर ग्रामीण या वंचित क्षेत्रों की तुलना में बहुत अधिक है। 
  • भू-राजनीतिक एवं व्यापार बाधाएँ: हरित प्रौद्योगिकियाँ, वैश्विक व्यापार राजनीति में फँसी हुई हैं – उदाहरण के लिए, एंटी-डंपिंग शुल्क, दुर्लभ मृदा खनिज निर्भरताएँ। 
    • अक्षय ऊर्जा सुरक्षा में अब लीथियम, कोबाल्ट आदि को सुरक्षित करना शामिल है, जो कि बड़े पैमाने पर कुछ देशों (जैसे- चीन, DRC) द्वारा नियंत्रित है।

आगे की राह

  • हरित वित्तपोषण तंत्र को बढ़ावा देना: समर्पित हरित बैंक, सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड एवं मिश्रित वित्त मॉडल स्थापित करना।
    • भारत ने वर्ष 2023 में अपना पहला ₹8,000 करोड़ का सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड जारी किया, जो सौर, पवन एवं हरित हाइड्रोजन परियोजनाओं का समर्थन करेगा।
  • मजबूत हरित अवसंरचना विकसित करना: EV चार्जिंग स्टेशनों, नवीकरणीय ऊर्जा ग्रिड एवं अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्रों का तेजी से विस्तार आवश्यक है।
    • भारत के राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 30% EV के उपयोग को बढ़ावा देना  है, जिसके लिए बड़े पैमाने पर अवसंरचना का विस्तार करना होगा।
  • श्रमिकों के लिए न्यायसंगत परिवर्तन का समर्थन करना: जीवाश्म ईंधन के कार्यों  में संलग्न श्रमिकों के लिए बड़े स्तर पर पुनर्प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना।
    • ILO एक “न्यायसंगत परिवर्तन” दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, भारत कौशल भारत मिशन जैसी योजनाओं में हरित कौशल को एकीकृत करके इसे अपना सकता है।
  • घरेलू आपूर्ति शृंखला बनाना: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं के तहत सौर सेल, बैटरी एवं पवन घटकों के घरेलू विनिर्माण में निवेश करना।
    • साझेदारी के माध्यम से खनिजों को सुरक्षित करके आयात पर निर्भरता कम करना (उदाहरण के लिए, महत्वपूर्ण खनिजों पर भारत-ऑस्ट्रेलिया समझौता ज्ञापन, 2023)। 
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: जलवायु वित्त एवं स्वच्छ तकनीक के उपयोग हेतु अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन तथा G-20 हरित पहल जैसे प्लेटफॉर्मों का लाभ उठाना।

निष्कर्ष

हरित अर्थव्यवस्था का अर्थ केवल पर्यावरण की रक्षा करना नहीं है, बल्कि यह सतत् विकास, रोजगार सृजन, गरीबी उन्मूलन एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा के लिए एक रणनीतिक अनिवार्यता है। भारत के लिए, यह विकसित भारत 2047 को प्राप्त करने, जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने तथा विभिन्न पीढ़ीगत अंतरालों के मध्य समानता को सुनिश्चित करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण ढाँचा प्रदान करता है।

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