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चार्ल्स डार्विन की ‘एबॉमिनेबल मिस्ट्री’ (Abominable Mystery)

Lokesh Pal June 07, 2025 03:08 30 0

संदर्भ

CSIRसेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB), हैदराबाद द्वारा नेचर प्लांट्स में प्रकाशित एक हालिया शोधपत्र में पुष्पी पादपों में आणविक नवाचारों पर प्रकाश डाला गया है, जो चार्ल्स डार्विन के ‘एबॉमिनेबल मिस्ट्री’ (Abominable Mystery) प्रश्न को हल कर सकते हैं।

SHUKR जीन के बारे में

  • SHUKR एक जीन है, जो स्पोरोफाइट (पुष्पी पादपों में प्रमुख अवस्था) में पाया जाता है।
  • SHUKR जीन सबसे पहले यूडिकोट्स (समूह में सभी पुष्पी पादपों का 75% हिस्सा शामिल है) में लगभग 125 मिलियन वर्ष पहले उत्पन्न हुआ था।
  • यह पराग के विकास को नियंत्रित करता है, जिसमें प्रजनन के लिए आवश्यक ‘युग्मक’ (Sperm) उपस्थित होते हैं।
  • पहले, वैज्ञानिकों का मानना ​​था कि पराग (गैमेटोफाइट) का विकास स्पोरोफाइट से स्वतंत्र होता है।
    • लेकिन इस अध्ययन से पता चलता है कि पुष्पी पादपों में, स्पोरोफाइट सीधे तौर पर पराग के विकास को प्रभावित करता है।

संबंधित तथ्य

  • इस अध्ययन में SHUKR [जिसका अर्थ कई भारतीय भाषाओं में ‘स्पर्म’ (Sperm) होता है] नामक एक नए जीन की भूमिका एवं अरेबिडोप्सिस थालियाना (Arabidopsis Thaliana) पादप पर इसके प्रभाव का वर्णन किया गया है।

अध्ययन के मुख्य बिंदु

  • विषय: पुष्पी पादपों में डार्विन के रहस्य को सुलझाना, जिसे उन्होंने ‘एबॉमिनेबल मिस्ट्री’ कहा था।
  • निष्कर्ष
    • इस अध्ययन से पता चलता है कि स्पोरोफाइट पुष्पी पादपों में गैमेटोफाइट विकास को नियंत्रित करता है, न कि इसके विपरीत जैसा कि पहले माना जाता था।
    • पराग नियंत्रण: SHUKR जीन को पराग में F-बॉक्स जीन को नियंत्रित करते हुए देखा गया, जिससे पराग का विकास प्रभावित हुआ। यह पाया गया कि जब एक कार्यात्मक SHUKR जीन अनुपस्थित होता है, तो फूल व्यवहार्य पराग का उत्पादन करने में विफल हो जाता है।
      • SHUKR जीन एवं इसके नियंत्रण में F-बॉक्स जीन दोनों तेजी से विकसित हो रहे हैं।
    • तीव्र अनुकूलन: SHUKR एवं F-बॉक्स जीन, तेजी से विकसित हुए, जिससे यूडिकोट पौधों को पराग में विविधताओं के माध्यम से विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में अन्वेषण, अनुकूलन तथा सफलतापूर्वक प्रजनन करने की स्थिति उत्पन्न हुई।
    • पर्यावरण लचीलापन: जीन अनुकूलन के कारण स्थलीय पौधों में अन्य प्रकार के अनुकूलन विकसित हुए, जैसे मजबूत जड़ प्रणाली का विकास, जड़ों से पौधे की संरचना की विभिन्न कोशिकाओं तक जल और खनिजों के संचरण के लिए संवहनी तंत्र का विकास, तथा पुष्प-परागण रणनीतियों के अनेक रूपों का विकास।

अध्ययन का महत्त्व

  • डार्विन के रहस्य को सुलझाना: चार्ल्स डार्विन ने एक बार लगभग 130 मिलियन वर्ष पूर्व पुष्पी पादपों के तेजी से बढ़ने एवं फैलने को ‘एबॉमिनेबल मिस्ट्री’ के रूप में वर्णित किया था, क्योंकि इनका विकास आमतौर पर धीमा तथा क्रमिक होता है। 
  • शोध यह सुनिश्चित करने के लिए नए तंत्रों की पहचान करने में मदद कर सकता है कि पौधे तेजी से प्रतिकूल वातावरण में जीवित रह सकें। 
  • पादप विज्ञान का अध्ययन: SHUKR ने पौधों की स्वास्थ्य के लिए एक नया मार्ग खोला है, क्योंकि पौधों की संरचनात्मक मजबूती, प्रतिरक्षा और/या लवणता और सूखे के प्रति सहनशीलता के लिए जिम्मेदार जीन की खोज पर शोध चल रहा है।
  • प्लांट इंजीनियरिंग: पूर्व-निर्धारित पराग का उपयोग करके पौधों में पर्यावरणीय लचीलेपन को स्वाभाविक रूप से सुधारना संभव हो सकता है, क्योंकि यूडिकोट का स्पोरोफाइट एक विशिष्ट पर्यावरणीय स्थिति के संपर्क में आने पर पराग में प्रोटीन संरचना को संशोधित करके उन स्थितियों के लिए उपयुक्त पराग का निर्माण कर सकता है।

स्थलीय पौधों के जीवन चक्र

  • चरण: एक पौधे के जीवन चक्र में दो अलग-अलग चरण होते हैं, जो उनकी रचना और कार्यों को निर्धारित करते हैं।
    • गैमेटोफाइट (गैमेट बनाने वाला पौधा): गैमेटोफाइट कोशिकाओं में जीन का एक समूह होता है एवं वे ‘स्पर्म’ या ‘युग्मक’ का निर्माण करते हैं। गैमेटोफाइट नर (पुंकेसर) तथा मादा (स्त्रीकेसर) में विभेदित होते हैं।
      • नर गैमेटोफाइट युग्मक युक्त पराग के रूप में विकसित होते हैं, जो हवा, कीटों या फूलों के संपर्क में आने वाले अन्य जानवरों के माध्यम से मादा गैमेटोफाइट में अंडज कोशिकाओं तक युग्मक पहुँचाते हैं।
      • बीज का विकास: युग्मक कोशिकाओं एवं अंडज के मिलन से बीज का निर्माण होता है, जो अंकुरित होकर फूल वाले पौधों के नए स्पोरोफाइट का निर्माण करते हैं।
    • स्पोरोफाइट (बीजांड बनाने वाला पौधा): नर एवं मादा युग्मकों के संलयन से स्पोरोफाइट का निर्माण होता है। प्रत्येक स्पोरोफाइट में जीन के दो समूह होते हैं।
      • जब यह परिपक्व होता है तो स्पोरोफाइट कोशिकाएँ विभाजित होकर नई कोशिकाएँ बनाती हैं, जिन्हें बीजांड कहा जाता है। बीजांडुओं में जीनों के एक ही समूह का नया संयोजन होता है।

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