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क्या भारत को अपने परमाणु ऊर्जा कानूनों में संशोधन करना चाहिए?

Lokesh Pal June 06, 2025 05:15 82 0

संदर्भ:

भारत निजी कंपनियों को परमाणु ऊर्जा सुविधाओं के निर्माण और संचालन की अनुमति देने के लिए परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम (CLNDA), 2010 और परमाणु ऊर्जा अधिनियम (AEA), 1962 में संशोधन पर विचार कर रहा है।

प्रस्तावित संशोधन के पक्ष में तर्क:

  • लक्ष्य: भारत का लक्ष्य वर्ष 2047 तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को 8 गीगावाट से बढ़ाकर 100 गीगावाट करना है, जिससे उसके स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहयोग मिलेगा
  • विदेशी सहायता:भारत अकेले घरेलू क्षमता के माध्यम से अपने 2047 लक्ष्य को पूरा नहीं कर सकता; इसके लिए विदेशी कंपनियों की भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।
  • वर्तमान कानूनी बाधा: भारत में मौजूदा देयता व्यवस्था विदेशी निवेश को रोकती है। वर्ष 2008 के अमेरिका -भारत परमाणु समझौते में ऐसी भागीदारी की उम्मीद थी, जो कानूनी बाधाओं के कारण पूरी नहीं हो पाई।
  • प्रवेश अवरोधक: फ्रांस, जापान और अमेरिकी कंपनियाँ दायित्व कानून को बाधा के रूप में उद्धृत करती हैं। यहाँ तक कि रूस की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी रोसाटॉम को भी शुरू में अनुबंधात्मक क्षतिपूर्ति की आवश्यकता थी।
  • 2010 के बाद की बाधा: भारत का वर्ष 2010 का कानून निजी संविदात्मक क्षतिपूर्ति को सीमित करता है, जिससे पूर्ववर्ती तंत्र अवैध हो जाता है।
  • घरेलू प्रतिरोध: वर्ष 2010 के अधिनियम के बाद, भारतीय आपूर्तिकर्ताओं ने, विशेष रूप से कोव्वाडा में, घटक आपूर्ति से इनकार करना शुरू कर दिया।
  • NPCIL’s की कार्य योजना: NPCIL’s ने अनुबंध के तहत दायित्व से छूट देने का प्रयास किया, तथा दावा किया कि NPCIL’s विनिर्देशों के कारण विफलता NPCIL’s की गलती होगी, जोकि कानूनी रूप से एक अपरीक्षित तर्क है।

प्रस्तावित संशोधन के विपक्ष में तर्क:

  • गलत धारणाएँ: निवेश की कमी से विस्तार में बाधा नहीं आती। वर्तमान में किसी भी प्रमुख आपूर्तिकर्ता देश (न ही अमेरिका, न फ्रांस, न ब्रिटेन और न ही जापान) ने अपनी परमाणु क्षमता को इतनी तेजी से नहीं बढ़ाया है जितनी तेजी से भारत ने योजना बनाई है।
    • केवल चीन ने ऐसा किया है, लेकिन भारत में चीनी निवेश व्यवहार्य नहीं है।
  • राजनीतिक-आर्थिक उद्देश्य: भारत के कानून को संशोधित करने के लिए अमेरिका की ओर से स्पष्ट दबाव है – रणनीतिक और वाणिज्यिक दोनों कारणों से।
  • नीतिगत दुविधा: यदि भारत परमाणु ऊर्जा में विदेशी भागीदारी चाहता है, तो उसे अपने परमाणु दायित्व कानून में संशोधन करना होगा
  • अनिश्चित वर्तमान क्षमता: परमाणु अवसंरचना के लिए भारत की वर्तमान आपूर्ति-पक्ष क्षमता सीमित है।
  • निवेश दीर्घकालिक है: यदि अगले कुछ दशकों में बाजार में मांग बढ़ती है तो पश्चिमी आपूर्तिकर्ता अपना स्तर बढ़ा सकते हैं।
  • रणनीतिक चिंता: राष्ट्रीय सुरक्षा जोखिम वाले क्षेत्र में निजी फर्मों को अनुमति देने के बारे में चिंताएं मौजूद हैं, विशेष रूप से लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) के संबंध में।
    • भारत को पहले रूस के VVER-1000 प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से लाभ मिला था। सवाल यह है कि क्या सहयोग की ऐसी गहराई फिर से होगी।

प्रौद्योगिकी हस्तांतरण संबंधित मुद्दा:

  • लाभप्रदता से प्रेरित: प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर निजी कंपनियों के निर्णय सरकारी नीति पर नहीं, बल्कि वाणिज्यिक व्यवहार्यता पर निर्भर करते हैं।
  • लाइसेंसिंग सीमाएं: अमेरिका तकनीक के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगा सकता है – जैसा कि वेस्टिंगहाउस-चीन AP-1000 प्रकरण में देखा गया है।
  • आंशिक हस्तांतरण: यहां तक कि रोसाटॉम ने भी पूरी तकनीक रोक दी: भारत ने उप-घटक बनाए, लेकिन हॉट सेक्शनका नियंत्रण रूस के पास रहा।
  • SMR के बारे में आशावादी दृष्टिकोण: नई SMR कंपनियां बाजार तक पहुंच बनाने और मुनाफा बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के प्रति अधिक उदार हैं।
  • रक्षा क्षेत्र का उदाहरण: भारत ने रक्षा क्षेत्र में FDI को 25% से बढ़ाकर 100% कर दिया, लेकिन कोई बड़ा तकनीकी हस्तांतरण नहीं हुआ
  • भारत में अभी तक SMR का परीक्षण नहीं किया गया है, तथा पिछले प्रयासों से पता चलता है कि विदेशी कंपनियां अभी भी मुख्य तकनीक हस्तांतरण को रोक सकती हैं।
  • भारत की योजनाएं: भारत दबावयुक्त भारी जल चक्र का उपयोग करते हुए 5 छोटे रिएक्टरों में निवेश कर रहा है, परंतु इन प्रयासों को और अधिक बढ़ाने पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए।

छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर:

  • पूरक मुआवजे पर अभिसमय (CSC): CSC एक संतुलित ढांचा प्रदान करता है तथा
    CSC
    का उद्देश्य दायित्व और मुआवजा तंत्र को स्पष्ट करके परमाणु विस्तार को सक्षम बनाना है
  • CSC के मुख्य सिद्धांत: दुर्घटनाओं के मामले में ऑपरेटर उत्तरदायी होता है, दुर्घटना-पूर्व निधि तीन-स्तरीय पूल के माध्यम से बनाई जाती है, आपूर्तिकर्ता उत्तरदायित्व केवल अनुबंध के माध्यम से या जानबूझकर कदाचार के मामलों में ही अनुमत होता है।
  • लक्ष्य: CSC का लक्ष्य लम्बे मुकदमों से बचना तथा प्रभावित लोगों को तत्काल राहत प्रदान करना है।
  • उच्च लागत: कई SMR निष्क्रिय सुरक्षा डिजाइन का उपयोग करते हैं, लेकिन पूंजीगत लागत उच्च रहती है।
  • अप्रमाणित विनिर्माण मॉडल: SMR को असेंबली लाइन और मॉड्यूलर इंस्टॉलेशन के माध्यम से बनाया जाता है, लेकिन यह अभी भी असत्यापित है
  • संदेह: टेलिस SMR प्रौद्योगिकी परिपक्वता का समर्थन करता है, लेकिन बड़े पैमाने पर विनिर्माण मॉडल की आर्थिक दक्षता के बारे में संदिग्ध है

निष्कर्ष:

भारत के प्रस्तावित परमाणु कानून संशोधनों में विदेशी निवेश प्रोत्साहन, प्रौद्योगिकी तक पहुंच, सुरक्षा और दायित्व, तथा लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) जैसे नए मॉडलों की आर्थिक व्यवहार्यता के बीच संतुलन होना चाहिए, जो स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में नीति, सुरक्षा, अर्थशास्त्र और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के जटिल अंतर्संबंध को दर्शाता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: परमाणु ऊर्जा में विदेशी निवेश और निजी क्षेत्र की भागीदारी को आकर्षित करने में भारत के परमाणु क्षति के लिए नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 और परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 द्वारा उत्पन्न सीमाओं का आलोचनात्मक परीक्षण करें।

(10 अंक, 150 शब्द)

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