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नार्को-एनालिसिस टेस्ट पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

Lokesh Pal June 11, 2025 04:07 61 0

संदर्भ 

अमलेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2025) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि किसी आरोपी की सहमति के बिना उस पर नार्को-विश्लेषण परीक्षण नहीं किया जा सकता है, और ऐसे परीक्षणों के परिणाम किसी आपराधिक मामले में दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं बन सकते हैं।

  • सर्वोच्च न्यायलय ने वर्ष 2023 के पटना उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें दहेज से संबंधित मामले में अभियुक्तों और गवाहों पर अनैच्छिक नार्को-विश्लेषण परीक्षण की अनुमति दी गई थी।
  • यह निर्णय अनुच्छेद 20(3) और 21 के तहत संवैधानिक सुरक्षा को मजबूत करता है।

निर्णय की मुख्य बिंदु

  • सहमति अनिवार्य है: नार्को-विश्लेषण परीक्षण विषय की सहमति के बिना नहीं किया जा सकता है।
  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: अनैच्छिक परीक्षण अनुच्छेद 20(3) (स्वयं दोषसिद्धि के विरुद्ध अधिकार) और अनुच्छेद 21 (व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करते हैं।
  • पटना उच्च न्यायालय के आदेश को अमान्य करार दिया गया: वर्ष 2023 में पटना उच्च न्यायालय द्वारा ऐसे परीक्षणों को दी गई स्वीकृति असंवैधानिक थी तथा वर्ष 2010 के सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य के निर्णय के विपरीत थी।
    • उदाहरण का मामला: सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010) ने माना कि नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग परीक्षणों का अनैच्छिक उपयोग मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • गोपनीयता का उल्लंघन: जबरन नार्को परीक्षण गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और पुलिस की असंगत कार्रवाई का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • साक्ष्य मूल्य: स्वैच्छिक नार्को-विश्लेषण परीक्षण भी दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है।
  • संवैधानिक सर्वोच्चता को दोहराया गया: अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं किया जा सकता; न्यायपालिका अपवाद नहीं बना सकती।

नार्को-विश्लेषण परीक्षण के बारे में

  • एक फोरेंसिक तकनीक जिसमें संदिग्ध को मनोविकार रोधी दवाइयाँ (जैसे- सोडियम पेंटोथल) दी जाती हैं ताकि अवरोध को कम किया जा सके और रोकी गई जानकारी निकाली जा सके।
  • स्वैच्छिक सहयोग की कमी होने पर जानकारी एकत्रित करने के लिए जाँच एजेंसियों द्वारा इसका उपयोग किया जाता है।

PWOnlyIAS विशेष

अनुच्छेद 20(3): स्वयं दोषसिद्धि के विरुद्ध संरक्षण

  • “किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को खुद के विरुद्ध गवाह बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा।”
  • यह केवल आपराधिक मामलों में आरोपी व्यक्तियों पर लागू होता है।
  • सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य (2010) में पुष्ट किया गया: अनैच्छिक नार्को-विश्लेषण, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन करते हैं।

अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण

  • “किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा।”
    • व्यापक रूप से इसकी व्याख्या निजता के अधिकार, गरिमा के अधिकार और शारीरिक स्वायत्तता आदि को शामिल करने के लिए की गई है।
    • मेनका गांधी मामले, 1978 में सुदृढ़ किया गया: स्वतंत्रता से किसी भी तरह का वंचित करने के लिए न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।
    • जबरन नार्को-विश्लेषण जैसी बलात् तकनीकें मानसिक स्वायत्तता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं।

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