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भारत के माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में संकट

Lokesh Pal June 13, 2025 02:32 35 0

संदर्भ

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के डिप्टी गवर्नर एम. राजेश्वर राव के अनुसार, माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र अति-ऋणग्रस्तता, उच्च ब्याज दरों और कठोर वसूली प्रथाओं के दुष्चक्र से ग्रस्त है।

माइक्रोफाइनेंस के बारे में

  • राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा वर्ष 1998 में माइक्रोफाइनेंस के लिए सहायक नीति और नियामक ढाँचे पर गठित टास्क फोर्स के अनुसार:-
    • माइक्रोफाइनेंस से तात्पर्य “ग्रामीण, अर्द्ध-शहरी और शहरी क्षेत्रों में गरीबों को बहुत छोटी राशि में बचत, ऋण और अन्य वित्तीय सेवाओं और उत्पादों का प्रावधान करना है, ताकि वे अपनी आय का स्तर बढ़ा सकें और जीवन स्तर में सुधार कर सकें”।
  • नियामक ढाँचा
    • MFIs का संचालन RBI के गैर बैंकिंग वित्तपोषण कंपनी-माइक्रोफाइनेंस संस्थान (NBFC-MFIs)-निर्देश, 2022 द्वारा किया जाता है।
    • माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क (Microfinance Institutions Network-MFIN) को इस क्षेत्र के लिए एक स्व-नियामक निकाय के रूप में शुरू किया गया था और सभी NBFC-MFI इसकी सदस्यता के लिए पात्र हैं।
      • वर्ष 2014 में, MFIN को औपचारिक रूप से RBI द्वारा एक स्व-नियामक निकाय के रूप में मान्यता दी गई थी।

माइक्रोफाइनेंस के घटक

  • माइक्रोक्रेडिट: बिना किसी जमानत, स्थिर रोजगार या सत्यापन योग्य क्रेडिट इतिहास के व्यक्तियों को प्रदान किए जाने वाले छोटे ऋण होते हैं।
    • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार: माइक्रोफाइनेंस ऋण को एक संपार्श्विक-मुक्त ऋण के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो ₹3,00,000 तक की वार्षिक घरेलू आय वाले परिवार को दिया जाता है।
  • माइक्रोसेविंग्स: इसमें लघु जमा आवश्यकताएँ होती हैं और कम आय वाले व्यक्तियों से कोई सेवा शुल्क नहीं लिया जाता है।
  • माइक्रोइंश्योरेंस: स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों, प्राकृतिक आपदाओं, फसल विफलता आदि जैसे जोखिमों का प्रबंधन करने के लिए किफायती कम प्रीमियम और कवरेज बीमा उत्पाद।
  • समूह ऋण (Group Lending): एक ऐसा मॉडल जहाँ छोटे समूह संयुक्त रूप से ऋण की गारंटी देते हैं, जवाबदेही को बढ़ावा देते हैं और डिफॉल्ट दरों को कम करते हैं।
    • उदाहरण: संयुक्त देयता समूह (Joint Liability Group-JLG) 4-10 व्यक्तियों का एक अनौपचारिक समूह होता है, जिसमें मुख्य रूप से किसान या ग्रामीण श्रमिक शामिल होते हैं।
      • ऋण आपसी गारंटी के माध्यम से सुरक्षित किए जाते हैं, जिसमें पुनर्भुगतान की जिम्मेदारी साझा होती है।
  • माइक्रोफाइनेंस संस्थान (Microfinance Institutions-MFI): विभिन्न आकार और कानूनी रूपों वाले कई संगठन माइक्रोफाइनेंस सेवाएँ प्रदान करते हैं।

भारत में माइक्रोफाइनेंस की स्थिति

पैमाना एवं पहुँच

  • योगदान: भारत के सकल घरेलू उत्पाद में सकल मूल्य वर्धन (GVA) में 2.03 प्रतिशत का योगदान और 1.3 करोड़ नौकरियों का समर्थन।
  • वृद्धि: पिछले 12 वर्षों में 2,176 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई है।
    • मार्च 2012 में 17,264 करोड़ रुपये से नवंबर 2024 तक कारोबार 3.93 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ गया।
  • सकल ऋण पोर्टफोलियो (Gross Loan Portfolio-GLP): वर्ष 2023 में 3.48 लाख करोड़ रुपये से 31 मार्च, 2024 तक 24.5% बढ़कर 4.33 लाख करोड़ रुपये हो गया; वर्ष 2025 में लगभग ₹4.5-5 लाख करोड़ होने का अनुमान है।
  • उधारकर्ता: लगभग 7.4 करोड़ अद्वितीय उधारकर्ता जिनके पास 14.6 करोड़ ऋण खाते हैं (दिसंबर 2023), मुख्य रूप से महिलाएँ (लगभग 98%)।
  • स्वयं सहायता समूह: लगभग 134 लाख स्वयं सहायता समूह जो 16.2 करोड़ परिवारों को कवर करते हैं, जिनकी बचत ₹58,893 करोड़ है और बकाया ऋण ₹188,079 करोड़ (मार्च 2023) है।
  • अतिदेयता दर (Delinquency Rates): 90 दिनों से अधिक समय से बकाया ऋण 12% (मार्च 2022) से बढ़कर 14% (सितंबर 2022) हो गया; जोखिम में पोर्टफोलियो (PAR) 10.5% (मार्च 2023) पर है।
  • SHG-BLP: 134 लाख SHG, ₹58,893 करोड़ की बचत, ₹188,079 करोड़ बकाया ऋण (मार्च 2023)।
  • GVA में योगदान: वर्ष 2018-19 में 2%; वर्ष 2025-26 तक 2.7-3.5% तक पहुँचने का अनुमान (MFIN-NCAER अध्ययन)।
  • रोजगार: मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 130 लाख नौकरियाँ उत्पन्न करता है।
  • NPA: सकल NPA ₹50,000 करोड़ (सकल ऋणों का लगभग 13%, वर्ष 2025 का अनुमान)।
  • क्षेत्र अवलोकन: NBFC-MFIs (39.97%), बैंक (32.53%), SFB (16.61%), NBFC (10.68%), गैर-लाभकारी (0.21%)।

क्षेत्रीय विविधता 

  • भौगोलिक वितरण: वर्तमान में, MFI 723 जिलों में कार्य करते हैं, जिनमें 111 आकांक्षी जिले शामिल हैं, जो 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल करते हैं।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण पोर्टफोलियो का 76%, शहरी क्षेत्रों में 24% है।
    • 10 राज्यों में ऋण पोर्टफोलियो का 82%; शीर्ष 5 (बिहार, तमिलनाडु, यूपी, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक) का हिस्सा 55% है।
  • दक्षिणी क्षेत्र: ऋण वितरण का 63%; औसत SHG ऋण = ₹5.31 लाख है।
  • ऋण अंतर (अखिल भारतीय): 46% (बचत-लिंक्ड SHG ऋण-लिंक्ड नहीं)।
  • सर्वश्रेष्ठ ऋण लिंकेज वाले राज्य: कर्नाटक (98%), तेलंगाना (96%), आंध्र प्रदेश (89%)।
  • उच्च पोर्टफोलियो वाले राज्य: बिहार, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल में उद्योग पोर्टफोलियो का 58% हिस्सा है।

भारत में माइक्रोफाइनेंस का विकास

  • वर्ष 1974: स्व-नियोजित महिला संघ (Self-Employed Women’s Association-SEWA) ने असंगठित क्षेत्र की महिलाओं को वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के लिए अहमदाबाद में सेवा बैंक की स्थापना की, जो पहला पंजीकृत MFI है।
  • वर्ष 1984: नाबार्ड ने गरीबी उन्मूलन के लिए एक उपकरण के रूप में स्वयं सहायता समूह (SHG) लिंकेज मॉडल का समर्थन किया तथा SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP) का संचालन किया।
  • वर्ष 1992: नाबार्ड ने औपचारिक रूप से SHG-BLP का शुभारंभ किया, जो SHG को बचत और ऋण के लिए औपचारिक बैंकिंग से जोड़ता है, तथा संस्थागत सूक्ष्म वित्त की ओर बदलाव को दर्शाता है।
  • वर्ष 2004: RBI ने माइक्रोफाइनेंस ऋण को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) के अंतर्गत शामिल किया तथा MFI को वित्तीय समावेशन के साधन के रूप में मान्यता दी, जिससे क्षेत्र की वृद्धि को बढ़ावा मिला।
  • वर्ष 2010: आंध्र प्रदेश में अत्यधिक उधार, उच्च ब्याज दर और बलपूर्वक वसूली के कारण उत्पन्न संकट के कारण RBI ने नियामक ढाँचे बनाया (मालेगाम समिति, 2011)।
  • वर्ष 2014: माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क (MFIN) और सा-धन (Sa-Dhan) को RBI द्वारा स्व-नियामक संगठन (Self-Regulatory Organizations-SROs) के रूप में मान्यता दी गई।

भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र का महत्त्व

  • वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देता है: माइक्रोफाइनेंस औपचारिक वित्तीय सेवाओं और ग्रामीण गरीबों, विशेषतः महिलाओं और हाशिए पर स्थित समुदायों के बीच के अंतराल को पाटता है।
    • नाबार्ड के अनुसार, 144.22 लाख SHG बचत से जुड़े हैं, जो मार्च 2024 तक 17.75 करोड़ परिवारों को शामिल करते हैं।
  • महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है: अधिकतर महिला उधारकर्ताओं को लक्षित करके, माइक्रोफाइनेंस निर्णय लेने, उद्यमशीलता और आय सृजन को बढ़ावा देता है।
    • वित्त वर्ष 2024 में वितरित SHG का 83% से अधिक और SHG ऋण का 96% सभी महिला समूहों को दिया गया।
  • ग्रामीण आजीविका और स्वरोजगार को बढ़ावा देता है: माइक्रोक्रेडिट ग्रामीण भारत में कृषि, पशुधन, छोटे व्यापार और सूक्ष्म उद्यमों का समर्थन करते हैं, जिससे अनौपचारिक साहूकारों पर निर्भरता कम होती है।
    • वित्त वर्ष 2024 में SHG-BLP के तहत ऋण वितरण ₹2.09 लाख करोड़ तक पहुँच गया, जिसमें दक्षिणी और पूर्वी राज्य प्रमुख लाभार्थी थे।
  • गरीबी और भेद्यता को कम करता है: माइक्रोक्रेडिट तक पहुँच गरीब परिवारों को आय-उत्पादक गतिविधियों में निवेश करने, उपभोग को सुचारू बनाने और वित्तीय तनावों का प्रबंधन करने में मदद करती है।
    • नाबार्ड द्वारा GRIP (ग्रेजुएटेड रूरल इनकम प्रोग्राम) उत्पादक परिसंपत्तियों के लिए अति-गरीब महिलाओं को वापसी योग्य अनुदान प्रदान करता है।
  • सामाजिक विकास और सामूहिक कार्रवाई के लिए उत्प्रेरक: माइक्रोफाइनेंस SHG और JLG जैसी समुदाय-आधारित संरचनाओं को बढ़ावा देता है जो बचत की आदतों, अनुशासन और एकजुटता को बढ़ावा देते हैं।
    • SHG समूह अब ग्रामीण उत्पादों के डिजिटल रूप से विपणन के लिए NRLM और ONDC के साथ एकीकृत हैं।
  • राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों का समर्थन करता है: यह गरीबी में कमी (SDG 1), लैंगिक समानता (SDG 5), और सभ्य कार्य (SDG 8) जैसे SDG में प्रत्यक्ष योगदान देता है।
    • यह क्षेत्र NRLM, पीएम स्वनिधि (PM SVANidhi), स्टैंड-अप इंडिया (Stand-Up India) और लखपति दीदी योजना (Lakhpati Didi Scheme) जैसे सरकारी मिशनों के साथ संरेखित है।

केस स्टडीज और सफलता की कहानियाँ

जीविका (JEEViKA)- बिहार (महिला सशक्तीकरण के लिए SHG मॉडल)

  • बिहार ग्रामीण आजीविका संवर्धन सोसाइटी (Bihar Rural Livelihoods Promotion Society) के तहत जीविका (JEEViKA) ने लाखों ग्रामीण महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के रूप में सफलतापूर्वक संगठित किया है।
  • वर्ष 2023-24 तक, इसने 1 करोड़ से अधिक महिलाओं को बचत और ऋण तक पहुँच बनाने में सक्षम बनाया, जिनमें से कई डेयरी, कृषि प्रसंस्करण और सिलाई व्यवसाय संचालित कर रही हैं।

कढ़ाई के सपने (Embroidering Dreams): लम्बानी महिला (Lambani Women), विजयपुरा (कर्नाटक)

  • लम्बानी आदिवासी महिलाओं ने नाबार्ड के LEDP प्रशिक्षण के तहत प्राप्त सहायता से पारंपरिक कढ़ाई को एक व्यवहार्य उद्यम में बदल दिया।
  • ‘लम्बानी ब्यूटी थ्रेड्स’ उत्पादक समूह ने ₹6.8 लाख के ऑर्डर अर्जित किए; महिलाओं ने प्रदर्शनी स्टालों और शहर-आधारित बुटीक के माध्यम से पहचान बनाई।

विरासत के करघे (Looms of Legacy): उडुपी साड़ी पुनरुद्धार (कर्नाटक)

  • नाबार्ड, कादिके ट्रस्ट (Kadike Trust) और तालिपाडी वीवर्स सोसाइटी (Talipady Weavers Society) ने प्रशिक्षण और डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से GI-टैग वाली उडुपी साड़ियों को पुनर्जीवित किया।
  • बुनकरों की संख्या 8 से बढ़कर 34 हो गई, जिनमें ज्यादातर महिलाएँ थीं; ऑनलाइन और ऑफलाइन बिक्री में वृद्धि के साथ मासिक आय ₹3,000 से बढ़कर ₹10,000 हो गई।

LED बल्ब असेंबली – नैनीताल (उत्तराखंड)

  • स्वयं सहायता समूह की 90 महिलाओं को LED बल्ब बनाने का प्रशिक्षण दिया गया और उन्हें सरला इलेक्ट्रॉनिक्स से ऑर्डर प्राप्त हुए।
  • उन्होंने सामूहिक रूप से ₹45,600 कमाए, जिससे पता चला कि कैसे कम लागत वाले, कुशल सूक्ष्म उद्यम ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बना सकते हैं और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा दे सकते हैं।

भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में कार्यरत वित्तीय संस्थानों की श्रेणियाँ

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी – माइक्रो-फाइनेंस संस्थान (NBFC-MFIs): विशेषीकृत NBFC बिना किसी जमानत के कम आय वाले समूहों को लघु ऋण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसका उद्देश्य वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना है।
    • 30 जून 2024 तक, NBFC-MFIs माइक्रो-क्रेडिट के सबसे बड़े प्रदाता हैं, जिनकी बकाया ऋण राशि 1,68,747 करोड़ रुपये है, जो कुल उद्योग पोर्टफोलियो का 39.8% है।
  • बैंक: लाइसेंस प्राप्त वित्तीय संस्थान जो व्यक्तियों और व्यवसायों को जमा स्वीकार करने, ऋण प्रदान करने और विभिन्न बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने के लिए अधिकृत हैं।
    • 30 जून 2024 तक, बैंकों के पास माइक्रो-क्रेडिट में पोर्टफोलियो का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है, जिसका कुल ऋण बकाया 1,38,003 करोड़ रुपये है, जो कुल माइक्रोक्रेडिट का 32.5% है।
  • लघु वित्त बैंक (Small Finance Banks-SFBs): ये विशेष रूप से वंचित वर्गों, जिनमें लघु व्यवसाय, सीमांत किसान और सूक्ष्म उद्यम शामिल हैं, को बुनियादी बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करने के लिए स्थापित किए गए विशिष्ट बैंक हैं।
    • 30 जून 2024 तक, SFBs के पास कुल ऋण राशि 72,430 करोड़ रुपये है, जिसकी कुल हिस्सेदारी 17.1% है।
  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC): वित्तीय संस्थाएँ जो बैंकों के समान कार्य करती हैं, जैसे कि उधार देना और निवेश करना, लेकिन बैंकिंग लाइसेंस नहीं रखना या माँग जमा स्वीकार नहीं करना।
  • अन्य (गैर-लाभकारी MFIs सहित): गैर-लाभकारी संगठन, ट्रस्ट या धारा 8 की कंपनियाँ जैसी संस्थाएँ, जो लाभ के उद्देश्य के बिना आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए सूक्ष्म-वित्त गतिविधियों में संलग्न हैं।
    • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) भी अपने स्वयं सहायता समूह (SHG) बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP) के माध्यम से सूक्ष्म वित्त जगत में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

वर्तमान संकट

  • उच्च NPA: सकल NPA मार्च 2025 में 16% तक पहुँच गया, जो वर्ष 2024 में 8.8% था।
  • PAR में वृद्धि: वित्त वर्ष 2025 में 31 दिनों से अधिक की बकाया ऋण राशि (PAR >31 दिन) में 163% की वृद्धि दर्ज की गई, जो ₹43,075 करोड़ तक पहुँच गई। 
    • मार्च 2024 तक 90 दिनों से अधिक का NPA 1.16% तक पहुँच गया।
  • ऋण पोर्टफोलियो का घटता आकार: वित्त वर्ष 2025 में सकल ऋण पोर्टफोलियो में 13.9% (₹442,700 करोड़ से ₹381,200 करोड़) की गिरावट आई।
  • लाभप्रदता में गिरावट: उदाहरण के लिए, ऋण वृद्धि के बावजूद क्रेडिट एक्सेस ग्रामीण के शुद्ध लाभ (PAT) में 46.4% की गिरावट आई।

भारत के माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में संकट के प्रमुख कारण

  • अति-ऋणग्रस्तता और कई उधार: कई उधारकर्ताओं ने कई MFI और अनौपचारिक स्रोतों से ऋण लिया है, जिससे अस्थिर ऋण का दुष्चक्र बन गया है।
    • देश में 6.6 करोड़ से अधिक उधारकर्ता हैं, लेकिन कई उधार स्रोतों से लिए गए ऋणों के कारण, विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश में अति-ऋणग्रस्तता की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
  • संयुक्त देयता समूह (JLG) मॉडल का विखंडन: उधारकर्ताओं की प्रोफाइल में बदलाव और सहकर्मी जवाबदेही की गिरावट ने संयुक्त देयता समूह (JLG) की सामाजिक संपार्श्विक शक्ति को कमजोर कर दिया है।
    • RBI के अनुसार, शहरी प्रवास और कम सामुदायिक सामंजस्य के बीच JLG मॉडल कम प्रभावी होता जा रहा है।
  • उच्च ब्याज दरें और परिचालन लागत: MFI छोटे आकार और उच्च प्रशासनिक लागतों के कारण वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में 18-26% ब्याज लेते हैं।
    • वर्ष 2022 में RBI द्वारा ब्याज दरों को विनियमित करने के बाद, कुछ NBFC-MFI ने 45% तक शुल्क लेना शुरू कर दिया, जिससे पहले से ही तनावग्रस्त ग्रामीण उधारकर्ताओं पर बोझ बढ़ गया।
  • आर्थिक और जलवायु तनाव: कोविड-19, विमुद्रीकरण, GST रोलआउट, मुद्रास्फीति और खराब मौसम जैसे लगातार आर्थिक तनावों ने ग्रामीण आय को बाधित किया है।
    • वित्त वर्ष 2025 में GDP वृद्धि धीमी होकर 6.4% हो गई, जबकि बाढ़, हीटवेव और चुनाव व्यवधानों ने उधारकर्ताओं की पुनर्भुगतान क्षमताओं को और कम कर दिया।
  • विनियामक और राजनीतिक अनिश्चितता: लगातार नीतिगत बदलाव, RBI के सख्त दिशा-निर्देश और जबरन वसूली के खिलाफ राज्य-स्तरीय कानूनों ने भ्रम की स्थिति और नकदी की कमी उत्पन्न की है।
    • तमिलनाडु और कर्नाटक ने वसूली उत्पीड़न के खिलाफ कानून पारित किए, और कर्ज मुक्ति अभियान जैसे अभियानों ने ऋण माफी की उम्मीदों को बढ़ाकर पुनर्भुगतान संबंधी अनुशासन को कम किया।
  • अनियमित या आक्रामक ऋणदाताओं का उदय: कुछ अनियमित MFI जबरन वसूली का सहारा लेते हैं, जिससे क्षेत्र की छवि खराब होती है और डिफॉल्ट जोखिम बढ़ता है।
    • कर्नाटक में उधारकर्ताओं की आत्महत्या के मामले संग्रह एजेंटों के दबाव से जुड़े थे; ऐसी घटनाओं ने सरकारों को अनैतिक प्रथाओं के विरुद्ध कानून बनाने के लिए मजबूर किया है।
  • कमजोर क्रेडिट मूल्यांकन और डेटा अंतराल: MFI प्रायः पुराने क्रेडिट ब्यूरो डेटा या अधूरे आय दस्तावेजों के आधार पर ऋण देते हैं, जिससे खराब ‘अंडरराइटिंग’ होती है।
    • उधारकर्ता के क्रेडिट इतिहास अपडेट में लगभग एक महीने का अंतराल होता है; इससे कई MFI को पुनर्भुगतान क्षमता का पूरी तरह से आकलन किए बिना समानांतर ऋण स्वीकृत करने की अनुमति मिलती है।

भारत के माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में संकट के प्रमुख प्रभाव

  • संस्थानों में गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) में वृद्धि: माइक्रोफाइनेंस संकट के कारण ऋण परिसंपत्ति की गुणवत्ता में तीव्र गिरावट आई है, जिससे संस्थागत बैलेंस शीट पर दबाव पड़ा है।
    • MFI पल्स के अनुसार, क्षेत्रवार NPA बढ़कर 8.72% हो गया, जिसमें SFBs 16.72% के उच्च स्तर पर पहुंच गया और गैर-लाभकारी क्षेत्र वित्त वर्ष 2024 तक 39.33% पर पहुंच गया।
  • उधारकर्ता की साख में कमी: बार-बार अधिक उधार लेने से गरीब उधारकर्ताओं का क्रेडिट खराब हो गया है, जिससे भविष्य में उनके वित्त तक पहुँच सीमित हो गई है।
    • कर्नाटक अध्यादेश के बाद, हावेरी जिले में पुनर्भुगतान दरें 30% तक गिर गईं।
  • पुनर्भुगतान संस्कृति का विघटन: विश्वास-आधारित पुनर्भुगतान की भावना जो कभी माइक्रोफाइनेंस को परिभाषित करती थी, वह कमजोर हो रही है।
    • बिहार और उत्तर प्रदेश में बहु-ऋणग्रस्तता और ऋण माफी (कर्ज माफी) की संभावनाओं की उम्मीद के कारण, वित्त वर्ष 2023-24 में संग्रहण दर 90% से नीचे गिर गई।
  • MFIs के लिए तरलता और लाभप्रदता संकट: जैसे-जैसे पुनर्भुगतान में कमी और चूक में वृद्धि होती है, MFIs को बढ़ते तरलता तनाव और घटते मुनाफे का सामना करना पड़ता है।
    • वित्त वर्ष 2025 में NBFC-MFIs ऋण वित्तपोषण में 35.7% की गिरावट आई, जिससे इक्विटी जुटाने को मजबूर होना पड़ा।
  • निवेशक और ऋणदाता का विश्वास खोना: संस्थागत ऋणदाता और बैंक MFIs को वित्त पोषण देने में सतर्क हो रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय ऋण प्रवाह सख्त हो रहा है।
    • RBI ने NBFC-MFIs के लिए योग्यता परिसंपत्ति मानदंडों को 75% से घटाकर 60% कर दिया है, और ऋणदाता अब MFIs से उच्च पूँजी बफर और जोखिम प्रीमियम की मांग कर रहे हैं।
  • महिला सशक्तीकरण और SHG प्रगति में व्यवधान: ऋण की सीमित उपलब्धता और बढ़ता ऋण तनाव महिलाओं द्वारा स्वयं सहायता समूह (SHG) आंदोलनों के माध्यम से अर्जित सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति को प्रभावित कर रहे हैं।
    • 17.75 करोड़ परिवारों तक पहुँचने के बावजूद, वर्ष 2023-24 में केवल 54% SHG ऋण-लिंक्ड हैं, जबकि उत्तरी और मध्य राज्य बहुत पीछे हैं।
  • ग्रामीण आर्थिक भेद्यता और अनौपचारिकता: सस्ती वित्त तक खराब पहुँच ग्रामीण उधारकर्ताओं को अनौपचारिक ऋणदाताओं की ओर स्थानांतरित करती है, जिससे उनके शोषण का जोखिम बढ़ जाता है।
    • नाबार्ड ने विशेष रूप से उत्तर-पूर्वी और मध्य भारत में बढ़ते ग्रामीण ऋण अंतराल को चिह्नित किया, जहाँ MFIs कम हो रहे हैं, और बैंक तक पहुँच कम है।

भारत के माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में प्रमुख संकट

  • आंध्र प्रदेश संकट (2010): मुख्यतः माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं (MFI) द्वारा आक्रामक ऋण वितरण, 20-30% की उच्च ब्याज दरें, एक ही उधारकर्ता को कई ऋण देना और बलपूर्वक वसूली प्रथाओं के कारण उत्पन्न हुआ।
    • प्रभाव: उधारकर्ताओं का अत्यधिक ऋणग्रस्त होना, आत्महत्याएँ, सार्वजनिक प्रतिक्रियाएँ और राज्य सरकार का हस्तक्षेप (ए. पी. माइक्रोफाइनेंस अध्यादेश, 2010)।
    • परिणाम: RBI ने विनियामक ढाँचा (मालेगाम समिति की सिफारिशें) पेश किया, ब्याज दरों को सीमित किया और NBFC-MFIs श्रेणी की स्थापना की।
  • विमुद्रीकरण के बाद का संकट (2016-17): नकदी की कमी ने पुनर्भुगतान को बाधित किया, उधारकर्ताओं ने अधिक ऋण लिया, MFI द्वारा कमजोर जोखिम प्रबंधन।
    • प्रभाव: गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) में वृद्धि, ऋण वितरण में गिरावट, और उधारकर्ताओं के बीच विश्वास की कमी।
  • COVID-19 प्रभाव (2020-21): लॉकडाउन ने आय-उत्पादक गतिविधियों को रोक दिया, स्थगन ने MFI की तरलता को कम कर दिया, और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान हुआ।
    • प्रभाव: NPA में वृद्धि , MFI के लिए तरलता की कमी, और ऋण वृद्धि में मंदी।

भारत में माइक्रोफाइनेंस के लिए प्रमुख समितियाँ

  • वित्तीय समावेशन पर रंगराजन समिति (2008): वित्तीय समावेशन प्राप्त करने में माइक्रोफाइनेंस की भूमिका पर प्रकाश डाला।
  • वाई.एच. मालेगाम समिति (2011): इसकी स्थापना भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा वर्ष 2010 में आंध्र प्रदेश माइक्रोफाइनेंस संकट की पृष्ठभूमि में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में मुद्दों और चिंताओं का अध्ययन करने के लिए की गई थी।

माइक्रोफाइनेंस संकट से निपटने के लिए सरकार और RBI के उपाय

  • SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG-BLP): इसे वर्ष 1992 में नाबार्ड द्वारा शुरू किया गया था। इस कार्यक्रम के तहत बैंकों को SHG के लिए बचत खाते खोलने की अनुमति दी गई थी।
    • बैंक सखी (Bank Sakhis), SHG से प्रशिक्षित सदस्य मध्यस्थ के रूप में कार्य करते हैं, लेन-देन और आवेदन प्रक्रियाओं में SHG सदस्यों की सहायता करते हैं।
  • नाबार्ड द्वारा सूक्ष्म वित्त विकास और इक्विटी फंड: नाबार्ड ने वर्ष 2006 मेंमाइक्रोफाइनेंस डवलपमेंट एंड इक्विटी फंड’ (Micro Finance Development and Equity Fund-MFDEF) स्थापित किया था, ताकि सेमी-इक्विटी और अधीनस्थ ऋण उपकरणों के साथ MFIs की मदद की जा सके।
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: भारत सरकार ने वर्ष 2015 में गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु/सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख रुपये तक का ऋण प्रदान करने के लिए इसे लॉन्च किया था।
  • नाबार्ड का ई-शक्ति कार्यक्रम: ई-शक्ति परियोजना का प्राथमिक लक्ष्य विभिन्न SHG के खातों को डिजिटल बनाना और समूहों के सदस्यों को वित्तीय समावेशन के दायरे में लाना है।
  • पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि): केंद्रीय आवास और शहरी कार्यमंत्रालय ने लगभग 50 लाख स्ट्रीट वेंडर्स को एक वर्ष की अवधि के लिए 10,000 रुपये तक के संपार्श्विक मुक्त कार्यशील पूँजी ऋण की सुविधा देने के लिए इस योजना को शुरू किया।
  • कुदुम्बश्री (Kudumbashree): यह केरल सरकार द्वारा वर्ष 1998 में शुरू किया गया एक महिला सशक्तीकरण और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम है।
    • यह माइक्रोफाइनेंस पर केंद्रित है तथा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से बचत, ऋण और वित्तीय सहायता तक पहुँच प्रदान करता है।
  • माइक्रोफाइनेंस ऋणों के लिए RBI का विनियामक ढांचा
    • वर्ष 2011 में NBFC-MFI का निर्माण: ग्राहक-केंद्रित प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए माइक्रोफाइनेंस संस्थानों के लिए एक अलग श्रेणी बनाई गई, जैसे कि उधारकर्ता ऋणग्रस्तता को सीमित करना और पारदर्शी मूल्य निर्धारण।
    • वर्ष 2022 में सुसंगत दिशा-निर्देश 
      1. RBI ने अब माइक्रोफाइनेंस के रूप में योग्य होने के लिए ऋण के लिए 300,000 रुपये की एक सामान्य घरेलू सीमा निर्धारित की है।
      2. NBFC-MFI लाइसेंस के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए संस्थाओं के पास माइक्रोफाइनेंस में कम-से-कम 75% संपत्ति होनी चाहिए और NBFC पर सीमा को पहले 10% के मुकाबले 25% संपत्ति तक बढ़ा दिया गया है।
    • उधार देने पर सलाह: एक से अधिक उधार देने को रोकने और “एवरग्रीनिंग” ऋण जैसी अनैतिक प्रथाओं को संबोधित करने के लिए समय-समय पर सलाह जारी की जाती है।
    • निरंतर निगरानी: RBI प्रभावी जोखिम प्रबंधन और नियामक निगरानी के लिए क्रेडिट सूचना कंपनियों (CICs) को वास्तविक समय डेटा प्रस्तुत करने पर जोर देता है।

माइक्रोफाइनेंस संकट से निपटने के लिए राज्य स्तरीय पहल

  • आंध्र प्रदेश माइक्रोफाइनेंस अध्यादेश (2010): आंध्र प्रदेश ने उच्च ब्याज और जबरन वसूली को लक्षित करने वाले अध्यादेश के साथ MFI शोषण पर अंकुश लगाया।
    • इसने 200 से अधिक आत्महत्याओं के बाद ऋण गतिविधियों को रोक दिया, जिससे स्थानीय अधिकारियों के साथ MFI पंजीकरण की आवश्यकता हुई।
  • तमिलनाडु मनी लेंडिंग एंटिटीज एक्ट (2025): तमिलनाडु ने पारदर्शी ऋण सुनिश्चित करने और उधारकर्ता उत्पीड़न को रोकने के लिए MFI को विनियमित किया।
    • यह अधिनियम वर्ष 2025 में जबरन वसूली प्रथाओं के बारे में शिकायतों का उत्तर देता है।
  • कर्नाटक प्रस्तावित अध्यादेश (2025): कर्नाटक ने MFI को विनियमित करने और जबरन वसूली प्रथाओं को समाप्त करने के लिए एक अध्यादेश की योजना बनाई।

भारत के माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र में संकट से निपटने की आगे की राह

  • ऋण मूल्यांकन तंत्र को मजबूत करना: वास्तविक समय में, आधार से जुड़े उधारकर्ता सत्यापन की शुरुआत करना और क्रेडिट ब्यूरो के साथ अधिक सख्त एकीकरण लागू करना।
    • इससे कई बार उधार देने पर अंकुश लगेगा और अति-ऋणग्रस्तता कम होगी, जो वर्तमान में NPA का मुख्य कारण है।
  • भौगोलिक पहुंच में विविधता लाना: ब्याज छूट या प्राथमिकता वाले वित्तपोषण प्रोत्साहनों के माध्यम से अल्प-सेवा वाले क्षेत्रों (जैसे- पूर्वोत्तर, मध्य भारत) में विस्तार करने के लिए MFI को प्रोत्साहित करना।
    • वर्तमान में, पोर्टफोलियो का 84% हिस्सा 10 राज्यों में केंद्रित है, जिससे प्रणालीगत जोखिम बढ़ रहा है।
  • संयुक्त देयता समूह (JLG) मॉडल को सुदृढ़ करना: डिजिटल निगरानी प्लेटफ़ॉर्म के साथ भौतिक समूह प्रशिक्षण को जोड़कर सहकर्मी जवाबदेही का पुनर्निर्माण करना।
    • JLG अनुशासन को मजबूत करने से नैतिक जोखिम कम होगा और पुनर्भुगतान व्यवहार में सुधार होगा।
  • पारदर्शिता और कैप रिकवरी दुरुपयोग में सुधार: ब्याज दरों के सार्वजनिक प्रकटीकरण को अनिवार्य करना और सख्त विनियमन के माध्यम से उधारकर्ताओं को जबरन वसूली से बचाना।
    • उधारकर्ता सुरक्षा के तमिलनाडु और कर्नाटक मॉडल को पूरे देश में अपनाया जाना चाहिए।
  • वित्तीय और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना: उधारकर्ताओं को अधिकारों, ब्याज दरों और शिकायत निवारण तंत्रों के बारे में शिक्षित करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाना।
    • कई SHG और JLG सदस्य ऋण शर्तों या पुनर्भुगतान की निगरानी के लिए डिजिटल उपकरणों से अनभिज्ञ रहते हैं।
  • SHG-बैंक लिंकेज सहायता को मजबूत करना: डिजिटल ऋण को आजीविका सहायता के साथ एकीकृत करने के लिए GRIP, मनी पर्स ऐप और M-सुविधा जैसी NABARD की सफल पहलों का विस्तार करना।
    • ये योजनाएँ ऋणों को आय-उत्पादक गतिविधियों से जोड़कर ऋण देने के जोखिम को कम करने में मदद कर सकती हैं।
  • निवेशक और ऋणदाता का विश्वास बहाल करना: सुनिश्चित करना कि MFI पर्याप्त पूँजी बफर बनाए रखें, पारदर्शी तरीके से वसूली डेटा प्रकाशित करें और RBI के विवेकपूर्ण मानदंडों का सख्ती से पालन करें।
    • संस्थागत फंडिंग को वापस आकर्षित करने के लिए एक विश्वसनीय वातावरण महत्त्वपूर्ण है, जो उच्च NPA के कारण कम हो गया है।

निष्कर्ष 

भारत का माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र अत्यधिक ऋणग्रस्तता, NPA और बाहरी तनावों के कारण लगातार संकटों का सामना कर रहा है। मजबूत विनियमन, प्रौद्योगिकी और समावेशी वित्तपोषण इसकी स्थिरता और सामाजिक प्रभाव सुनिश्चित कर सकते हैं।

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