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भारत में स्कूली शिक्षा का प्रदर्शन

Lokesh Pal June 21, 2025 01:30 125 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा परफाॅर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स (Performance Grading Index- PGI) 2.0 रिपोर्ट जारी की गई।

परफाॅर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स (PGI) के बारे में 

  • परफाॅर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स (PGI) भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा विकसित एक मूल्यांकन उपकरण है।
    • यह संकेतकों की एक विस्तृत श्रृंखला के आधार पर स्कूली शिक्षा प्रणाली में राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों (UT) के प्रदर्शन को मापता है।
  • लॉन्च वर्ष: PGI- राज्य/केंद्र शासित प्रदेश पहली बार वर्ष 2017-18 के लिए जारी किया गया था।
    • केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी किया गया।
  • PGI 2.0: स्कूली शिक्षा प्रणाली में राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए डिजाइन किया गया PGI का संशोधित एवं अद्यतन संस्करण (वर्ष 2021- 2022 से शुरू हुआ)।

PGI 2.0 की मुख्य विशेषताएँ

  • संशोधित संरचना: PGI 2.0 ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 और सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 4 के साथ संरेखित करने के लिए पहले की PGI संरचना (वर्ष 2017-2021) को प्रतिस्थापित किया।
  • संकेतक: शासन एवं डिजिटल पहलों के अलावा गुणवत्ता संकेतकों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • डेटा का स्रोत: मुख्य रूप से UDISE+ (शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली+) से प्राप्त किया गया।

  • ग्रेडिंग प्रणाली: PGI 2.0 ने आकांक्षी-3 (सबसे कम) से दक्ष (सबसे अधिक) तक का पैमाना प्रस्तुत किया है।
  • कुल अंक: 73 संकेतकों में 1,000 अंक दो श्रेणियों में विभाजित हैं: परिणाम और शासन प्रबंधन (Governance Management- GM)।

PGI 2.0 के डोमेन

PGI 2.0, स्कूली शिक्षा को 6  डोमेन में मूल्यांकित करता है:-

  • सीखने के परिणाम (Learning Outcomes- LO): प्रमुख विषयों में छात्र का प्रदर्शन और समग्र शैक्षणिक उपलब्धि।
  • पहुँच (Access- A): नामांकन दर, प्रतिधारण और एक कक्षा से दूसरी कक्षा में संक्रमण।
  • बुनियादी ढाँचा एवं सुविधाएँ (Infrastructure & Facilities- IF): शौचालय, स्वच्छ जल, विद्युत आदि जैसे आवश्यक बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता।
  • समता (Equity- E): सामाजिक-आर्थिक कारकों के आधार पर शिक्षा तक पहुँच में असमानताओं को संबोधित करना।
  • शासन प्रक्रियाएँ (Governance Processes- GP): स्कूल प्रबंधन प्रथाएँ, जवाबदेही और डेटा-आधारित निर्णय लेना।
  • शिक्षक शिक्षा एवं प्रशिक्षण (Teacher Education and Training- TE&T): शिक्षकों का व्यावसायिक विकास एवं कक्षा में उनकी प्रभावशीलता।

PGI 2.0 में ग्रेड

  • दक्ष (उच्चतम ग्रेड): 940/1000 से अधिक अंक।
  • आकांक्षी-3 (निम्नतम ग्रेड): 460/1000 तक अंक।
  • अन्य ग्रेड: मध्यवर्ती ग्रेड इन चरम सीमाओं के बीच होते हैं, जिनमें से प्रत्येक स्कूली शिक्षा के प्रमुख क्षेत्रों में विकास की स्थिति को दर्शाता है।
    • दक्ष: शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्य/केंद्र शासित प्रदेश।
    • ग्रेड 1 से ग्रेड 9: प्रदर्शन के विभिन्न चरणों को कवर करना, साथ ही गुणवत्ता, शासन और बुनियादी ढाँचे में सुधार करना।
    • आकांक्षी-2 और आकांक्षी-3: खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को दर्शाते हैं, जिन्हें महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

परफाॅर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स (PGI) वर्ष 2022-23 और वर्ष 2023-24 की मुख्य विशेषताएँ

  • शीर्ष प्रदर्शक
    • सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनकर्ता: चंडीगढ़ ने प्राचेस्टा-1 में 703 अंक प्राप्त किए, जो बुनियादी ढाँचे, शासन और शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार दर्शाता है।
    • उल्लेखनीय सुधार: बिहार और तेलंगाना ने शिक्षा तक पहुँच में सबसे अधिक सुधार दिखाया, विशेष रूप से नामांकन और प्रतिधारण में।
  • कम प्रदर्शन करने वाले
    • सबसे कम रैंक: मेघालय ने 417 अंक प्राप्त किए, जो कि आकांक्षी-3 श्रेणी में आता है।
    • अन्य निम्न प्रदर्शन करने वाले राज्य: तेलंगाना, असम, झारखंड, त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और बिहार आकांक्षी-2 श्रेणी में हैं।
  • विशिष्ट डोमेन में सुधार
    • सीखने के परिणाम: बुनियादी ढाँचे में सुधार के बावजूद, कोई भी राज्य सीखने के परिणामों (दक्ष) में शीर्ष ग्रेड तक नहीं पहुँच पाया।
      • चंडीगढ़, पंजाब और पुडुचेरी जैसे राज्यों ने उच्च रैंक हासिल की, लेकिन बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता में अंतर बना हुआ है।
    • पहुँच: ओडिशा ने दक्ष ग्रेड के साथ पहुँच डोमेन में शीर्ष स्थान हासिल किया।
      • बिहार और झारखंड ने नामांकन और प्रतिधारण में सबसे अधिक प्रगति की।
    • बुनियादी ढाँचा और सुविधाएँ: चंडीगढ़ का स्कोर सबसे अधिक था, उसके बाद दिल्ली और जम्मू एवं कश्मीर का स्थान था।
      • शौचालय, विद्युत और डिजिटल बुनियादी ढाँचे जैसी प्रमुख सुविधाओं में उल्लेखनीय सुधार हुआ।
    • समानता: राज्यों ने SC/ST छात्रों सहित हाशिए के समुदायों के लिए शैक्षिक पहुँच में अंतर को कम करने में लगातार प्रगति दिखाई।
    • शासन प्रक्रिया: चंडीगढ़ ने इस डोमेन में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए, जो प्रभावी शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही को दर्शाता है।
    • शिक्षक शिक्षा और प्रशिक्षण: चंडीगढ़ ने इस डोमेन में असाधारण प्रदर्शन किया, और दक्ष ग्रेड हासिल किया।

भारत में स्कूली शिक्षा

  • भारत में वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ी स्कूली शिक्षा प्रणाली है, जिसमें 14.72 लाख स्कूलों में 24.8 करोड़ छात्र हैं, जिन्हें 98 लाख शिक्षकों (UDISE+ 2023-24) के समर्पित कार्यबल द्वारा सहायता प्रदान की जाती है।
  • उच्च नामांकन के बावजूद, इस प्रणाली को गुणवत्ता, प्रतिधारण और बुनियादी ढाँचे में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • स्कूली शिक्षा की संरचना
    • प्री-प्राइमरी: प्ले स्कूल, किंडरगार्टन।
    • प्राइमरी (कक्षा I-V)
    • उच्च प्राथमिक (कक्षा VI-VIII)
    • माध्यमिक (कक्षा IX-X)
    • उच्चतर माध्यमिक (कक्षा XI-XII)

भारत में स्कूली शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ

  • सरकारी एवं निजी स्कूल: आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार,
    • सरकारी स्कूल: लगभग 69% स्कूल सरकारी हैं, जिनमें 50% छात्र पढ़ते हैं।
    • निजी स्कूल: स्कूलों का 22.5% हिस्सा है, जिसमें 32.6% छात्र नामांकित हैं।
    • NEP 2020 का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 100% सकल नामांकन अनुपात (GER) प्राप्त करना है।
  • पाठ्यक्रम एवं शिक्षणशास्त्र
    • पाठ्यक्रम की रूपरेखा: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा विकसित और राज्य स्तर पर राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (SCERT) द्वारा इसका अनुपालन किया जाता है।
    • स्कूल बोर्ड
      • केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE)
      • भारतीय माध्यमिक शिक्षा प्रमाणपत्र (ICSE)
      • राज्य बोर्ड
  • परीक्षा एवं मूल्यांकन
    • छात्र दसवीं (माध्यमिक) और बारहवीं (उच्चतर माध्यमिक) कक्षा के अंत में बोर्ड परीक्षा देते हैं।
    • छात्रों के सीखने के परिणामों का मूल्यांकन करने के लिए विभिन्न आंतरिक मूल्यांकन और राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) जैसे राष्ट्रीय सर्वेक्षण आयोजित किए जाते हैं।

  • ड्रॉपआउट दर किसी दिए गए स्कूल वर्ष में किसी दिए गए स्तर में नामांकित समूह के विद्यार्थियों का अनुपात है, जो अगले स्कूल वर्ष में किसी भी ग्रेड में नामांकित नहीं होते हैं।
  • प्रतिधारण दर (Retention Rate) किसी दिए गए स्कूल वर्ष में शिक्षा के किसी दिए गए स्तर की पहली कक्षा में नामांकित विद्यार्थियों (या स्कूलों) के समूह का प्रतिशत है, जिनके उस स्तर की अंतिम कक्षा तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • सकल नामांकन अनुपात (GER) किसी शिक्षा स्तर में नामांकित बच्चों की संख्या है, जो उनकी जनसंख्या के सापेक्ष है।

प्रमुख आँकड़े

  • नामांकन सांख्यिकी
    • कुल छात्र: शिक्षा प्रणाली में 24.8 करोड़ छात्र नामांकित हैं। 
    • प्राथमिक शिक्षा: लगभग सार्वभौमिक नामांकन (प्राथमिक शिक्षा के लिए सकल नामांकन अनुपात 93% है)।
    • माध्यमिक शिक्षा: माध्यमिक स्तर पर 77.4% GER (कक्षा IX-X)।
    • उच्चतर माध्यमिक: उच्चतर माध्यमिक स्तर पर 56.2% GER (कक्षा XI-XII)।
  • ड्रॉपआउट दर (UDISE+ 2023-24)
    • प्राथमिक (कक्षा I-V): 1.9%
    • उच्च प्राथमिक (कक्षा VI-VIII): 5.2%
    • माध्यमिक (कक्षा IX-X): 14.1%
  • प्रतिधारण दर (आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25)
    • प्राथमिक (कक्षा I-V): 85.4%
    • प्राथमिक (कक्षा I-VIII): 78%
    • माध्यमिक (कक्षा I-X): 63.8%
    • उच्चतर माध्यमिक (कक्षा I-XII): 45.6%
  • छात्र-शिक्षक अनुपात (Pupil-Teacher Ratio – PTR)
    • प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय औसत छात्र-शिक्षक अनुपात (PTR) लगभग 1:30 है।
    • वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय: वरिष्ठ माध्यमिक स्तर पर, PTR 47:1 है।

भारत में स्कूली शिक्षा में महत्त्वपूर्ण प्रगति

  • लगभग सार्वभौमिक नामांकन: प्राथमिक शिक्षा नामांकन 6-10 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए 93% GER के साथ लगभग 100% है।
  • बुनियादी ढाँचे में सुधार: 96% स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय हैं।
    • 91.8% स्कूल बिजली से सुसज्जित हैं।
    • 38.5% स्कूलों में कंप्यूटिंग डिवाइस हैं, और 22.3% में इंटरनेट की सुविधा है।
  • सीखने के परिणामों में प्रगति: ग्रेड I के 60% छात्र बुनियादी गणित की समस्याओं (अंकों के जोड़) से जूझते हैं।
    • ग्रेड III के 50% छात्र ग्रेड I-स्तर का पाठ नहीं पढ़ सकते हैं।
  • शिक्षकों की उपलब्धता: शिक्षक-छात्र अनुपात में सुधार हुआ है, हालाँकि देश भर में अभी भी 1 मिलियन से अधिक रिक्तियाँ हैं।
  • प्रतिधारण दरों में वृद्धि: प्राथमिक विद्यालय (कक्षा I-V) के लिए 85.4% प्रतिधारण, पहले की तुलना में कम ड्रॉपआउट दर के साथ।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: DIKSHA प्लेटफॉर्म को 100% स्कूलों में अपनाया गया है, जो शिक्षकों और छात्रों के लिए डिजिटल सामग्री और संसाधन प्रदान करता है।
  • लैंगिक समानता पर ध्यान: प्राथमिक विद्यालयों में लड़कियों का नामांकन लड़कों के लगभग बराबर है, तथा शिक्षा तक पहुँच में लैंगिक समानता में लगातार सुधार हो रहा है।

प्रमुख सरकारी योजनाएँ और पहल

  • समग्र शिक्षा अभियान: पूर्व-प्राथमिक से कक्षा 12 तक समग्र शिक्षा, SDG-4 और NEP 2020 के अनुरूप।
    • घटक
      • बुनियादी ढाँचे का विकास (नए स्कूल, ICT लैब, स्मार्ट क्लासरूम)।
      • विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (Children with Special Needs- CwSN) के लिए समावेशी शिक्षा (रैंप, ब्रेल किट, वजीफा)।
      • निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें, वर्दी, परिवहन भत्ता।
      • व्यावसायिक शिक्षा (9,477 स्कूल शामिल)।
    • उपलब्धियाँ (वर्ष 2018-19 से वर्ष 2024-25)
      • 3,656 स्कूलों को अपग्रेड किया गया, 80,105 अतिरिक्त कक्षा-कक्षों का निर्माण किया गया।
      • 1,38,802 स्कूलों को ICT  और डिजिटल पहल के तहत कवर किया गया।
      • 58.5% सरकारी स्कूलों में रैंप हैं; 31.1% में CwSN-अनुकूल शौचालय हैं।
  • पीएम श्री (पीएम स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया): NEP 2020 कार्यान्वयन को प्रदर्शित करते हुए 14,500 से अधिक मॉडल स्कूल विकसित करना।
    • विशेषताएँ
      • स्मार्ट क्लासरूम, विज्ञान प्रयोगशालाएँ, कौशल प्रयोगशालाएँ, खेल के मैदान।
      • 12,084 स्कूलों का चयन (वर्ष 2024 तक)।
      • बजट: ₹27,360 करोड़ (5-वर्षीय योजना)।
  • पीएम पोषण (मिड-डे मील स्कीम): प्री-स्कूल से कक्षा आठ तक के बच्चों के लिए गर्म पके हुए भोजन के माध्यम से भूख को दूर करना और शिक्षा में सुधार करना। 
    • नवाचार
      • तिथि भोजन (सामुदायिक भागीदारी)।
      • स्कूल पोषण उद्यान (भोजन के लिए ताजा उपज)।
      • प्रति बच्चे सामग्री लागत में वृद्धि (प्राथमिक के लिए ₹6.19, उच्च प्राथमिक के लिए ₹9.29)।
  • उल्लास (नव भारत साक्षरता कार्यक्रम): 15+ आयु वर्ग के गैर-साक्षरों के लिए वयस्क साक्षरता (बुनियादी साक्षरता, व्यावसायिक कौशल)।
    • उपलब्धियाँ
      • 2 करोड़ शिक्षार्थी, 39 लाख स्वयंसेवी शिक्षक पंजीकृत। 
      • लद्दाख को पहली पूर्ण साक्षर प्रशासनिक इकाई घोषित (जून 2024) किया गया। 
      • FLNAT के माध्यम से 88.89 लाख प्रमाणित साक्षर।
  • आधारभूत साक्षरता एवं संख्यात्मकता (Foundational Literacy & Numeracy- FLN)
    • निपुण भारत मिशन: सुनिश्चित करना कि ग्रेड 3 के छात्र वर्ष 2026-27 तक FLN प्राप्त करें। 
    • FLNAT (मूल्यांकन परीक्षा): 1.11 करोड़ शिक्षार्थी उपस्थित हुए, 88.89 लाख प्रमाणित (वर्ष 2024) हुए।
  • परख (राष्ट्रीय मूल्यांकन केन्द्र): स्कूल बोर्डों में मूल्यांकन को मानकीकृत करना।
    • परख (PARAKH) राष्ट्रीय सर्वेक्षण 2024: 23 लाख छात्रों (ग्रेड 3, 6, 9) का मूल्यांकन किया गया।
    • समग्र प्रगति कार्ड (Holistic Progress Card- HPC): छात्र प्रगति की योग्यता-आधारित ट्रैकिंग।
  • डिजिटल पहल
    • दीक्षा (DIKSHA): शिक्षक प्रशिक्षण और ई-सामग्री के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म।
    • स्वयं (SWAYAM): कक्षा IX-XII के लिए ऑनलाइन पाठ्यक्रम।
    • पीएम ई-विद्या (PM e-Vidya): दूरस्थ शिक्षा के लिए DTH चैनल।
    • अपार आईडी (APAAR ID): प्रगति पर नजर रखने के लिए अद्वितीय छात्र आईडी (दिसंबर 2024 तक 7 करोड़ उत्पन्न)।
    • मिशन लाइफ के लिए इको क्लब: 7 स्थिरता थीम (जैसे- जल बचाओ, अपशिष्ट कम करो) के साथ संरेखित।
  • जनजातीय एवं ग्रामीण शिक्षा
    • पीएम-जनमन: 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTGs) पर केंद्रित है।
      • 100 छात्रावास स्वीकृत (2023-24) किये गए हैं।
    • धरती आबा जनजाति ग्राम उत्कर्ष अभियान (Dharti Aaba Janjatiya Gram Utkarsh Abhiyan- DA-JGUA): एसटी छात्रों के लिए 1,000 छात्रावासों का निर्माण।

भारत में स्कूली शिक्षा की चुनौतियाँ

  • खराब शिक्षण परिणाम: छात्रों को बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता में महत्त्वपूर्ण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
    • ग्रेड I के 60% छात्र बुनियादी जोड़ के साथ संघर्ष करते हैं, और ग्रेड III के 50% छात्र ग्रेड I-स्तर का पाठ नहीं पढ़ सकते हैं।
  • उच्च ड्रॉपआउट दर: छात्रों के ग्रेड में आगे बढ़ने के साथ अवधारण दर में काफी कमी आती है।
    • प्राथमिक स्तर पर 85.4% अवधारण, लेकिन उच्चतर माध्यमिक स्तर पर केवल 45.6% अवधारण।
  • शिक्षकों की कमी: भारत में सरकारी स्कूलों में योग्य शिक्षकों की महत्त्वपूर्ण कमी है।
    • 1 मिलियन से अधिक शिक्षकों के पद रिक्त हैं, और कई शिक्षकों के पास अपने विषयों के लिए पर्याप्त योग्यता नहीं है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: स्कूलों में अक्सर बुनियादी ढाँचे की कमी होती है, विशेषकर दिव्यांग छात्रों के लिए।
    • 58.5% सरकारी स्कूलों में रैंप की कमी है और 31.1% में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए अनुकूल शौचालय नहीं हैं।
  • लैंगिक असमानता: लड़कियों को शिक्षा में बाधाओं का सामना करना पड़ता है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
    • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV) जैसी योजनाएँ मददगार हैं, लेकिन लड़कियों के लिए पहुँच और प्रतिधारण में अंतर बना हुआ है।
  • प्रौद्योगिकी का खराब एकीकरण: स्कूलों में प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच है, जिससे डिजिटल शिक्षा में बाधा आ रही है।
    • 91.8% स्कूलों में बिजली है, लेकिन केवल 38.5% में कंप्यूटर हैं।
  • जवाबदेही और निगरानी का अभाव: कमजोर शासन एवं निगरानी सुधार प्रयासों में बाधा डालती है।
    • वास्तविक समय के आँकड़ों की कमी से प्रगति को ट्रैक करना और शैक्षिक अंतराल को प्रभावी ढंग से संबोधित करना मुश्किल हो जाता है।

केस स्टडीज: भारत में स्कूली शिक्षा में नवीन दृष्टिकोण

  • मध्य प्रदेश और गुजरात में मिशन अंकुर: प्रारंभिक बचपन की शिक्षा और बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता (FLN)।
    • मिशन अंकुर (Mission Ankur) स्कूलों और समुदायों को समग्र विकास के लिए जोड़ता है, व्यक्तिगत शिक्षण विधियों और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से प्राथमिक छात्रों के लिए FLN सुनिश्चित करता है।
  • बिहार में मिशन दक्ष: खराब प्रदर्शन करने वाले छात्रों के लिए व्यक्तिगत सलाह सुनिश्चित करना।
    • इस पहल का उद्देश्य पिछड़ रहे छात्रों को व्यक्तिगत सहायता प्रदान करना है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2025 तक उन्हें ग्रेड-स्तर की दक्षताओं को पूरा करने में मदद करना है।
  • कर्नाटक में नल्ली-काली कार्यक्रम: प्राथमिक शिक्षा में सहकर्मी और समूह-आधारित शिक्षा।
    • यह कार्यक्रम छात्र जुड़ाव को बढ़ाने के लिए सहकर्मी शिक्षण और सहयोगी शिक्षा का उपयोग करता है, जो ग्रेड 1 से 3 तक के बच्चों के लिए स्व-गति सीखने पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • शिक्षा का प्रेरणा मॉडल: आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों में सहकर्मी सीखना और समूह कार्य।
    • छोटे समूह की गतिविधियाँ छात्रों को सहयोग करने और एक-दूसरे को सिखाने में मदद करती हैं, जिससे उनकी समझ और समस्या-समाधान कौशल में सुधार होता है।
  • टिम टिम तारे पहल: किशोरों को जीवन कौशल प्रदान करना।
    • यह कार्यक्रम किशोरों को संवादात्मक और गतिविधि-आधारित शिक्षा के माध्यम से भावनात्मक बुद्धिमत्ता, समस्या-समाधान और सामाजिक कौशल सिखाता है।
  • प्रभाव: 10 करोड़ से अधिक छात्रों को लाभ हुआ है, जिससे उन्हें बेहतर संचार और आत्म-प्रबंधन के साथ आधुनिक जीवन की जटिलताओं से निपटने में मदद मिली है।
  • तमिलनाडु में इल्लम थेडी कलवी (घर-घर शिक्षा): कोविड-19 महामारी और डिजिटल विभाजन के कारण उत्पन्न हुए शैक्षिक अंतर को पाटना।
    • स्वयंसेवक छात्रों के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, खेल-आधारित शिक्षा और शारीरिक तरीकों का उपयोग करके घर-घर जाकर शिक्षा देते हैं।
  • शांति भवन स्कूल, तमिलनाडु: वंचित बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा।
    • शांति भवन समग्र विकास पर जोर देते हुए मूल्य-आधारित शिक्षा प्रदान करता है। पाठ्यक्रम में नेतृत्व प्रशिक्षण और सामुदायिक भागीदारी शामिल है।

वैश्विक नवीन उदाहरण

  • द खान एकेडमी मॉडल (USA): फ़्लिप्ड क्लासरूम और ऑनलाइन लर्निंग।
    • छात्र घर पर खान अकादमी पर पहले से रिकॉर्ड किए गए पाठ और निर्देशात्मक वीडियो एक्सेस करते हैं। कक्षा का समय चर्चा, अभ्यास एवं सहकर्मी सीखने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • हाई टेक हाई (USA) में प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षा: सहयोग और वास्तविक दुनिया की समस्या-समाधान।
    • छात्र उन परियोजनाओं में संलग्न होते हैं जिनमें उन्हें सहयोग करने, शोध करने और वास्तविक दुनिया की समस्याओं के लिए ठोस समाधान बनाने की आवश्यकता होती है। परियोजनाएँ विज्ञान, गणित और मानविकी जैसे कई विषयों को एकीकृत करती हैं।
  • द ग्रीन स्कूल, बाली (इंडोनेशिया): संधारणीयता एवं पर्यावरण शिक्षा।
    • स्कूल का पाठ्यक्रम पर्यावरणीय संधारणीयता के साथ गहनता से एकीकृत है। छात्र जैविक खेती, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे व्यावहारिक अनुभवों के माध्यम से सीखते हैं।
  • द कैलम क्लासरूम (USA) में माइंडफुलनेस शिक्षा: सामाजिक-भावनात्मक शिक्षा (Social-emotional learning- SEL) और माइंडफुलनेस।
    • द कैलम क्लासरूम कार्यक्रम छात्रों को तनाव को प्रबंधित करने और माइंडफुलनेस अभ्यास, गहरी साँस लेने और ध्यान अभ्यास के माध्यम से ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
  • समिट लर्निंग प्रोग्राम (USA): व्यक्तिगत शिक्षण और छात्र-केंद्रित शिक्षा।
    • समिट लर्निंग छात्रों को व्यक्तिगत शिक्षण योजनाएँ (Personalized Learning Plans- PLP) प्रदान करता है जो उन्हें अपनी गति से प्रगति करने की अनुमति देता है। छात्र लक्ष्य निर्धारित करते हैं और अपने स्वयं के शिक्षण का प्रबंधन करते हैं, जो सलाहकारों और अनुकूली आकलन द्वारा समर्थित होता है।
  • रेगियो एमिलिया दृष्टिकोण (इटली): रचनात्मकता और पूछताछ के माध्यम से प्रारंभिक बचपन की शिक्षा।
    • रेगियो एमिलिया दृष्टिकोण बच्चों को खेल, अन्वेषण और व्यावहारिक अनुभवों के माध्यम से सीखने के लिए प्रोत्साहित करता है। शिक्षक मार्गदर्शक और सह-शिक्षक के रूप में कार्य करते हैं, जो बाल-केंद्रित, इंटरैक्टिव पाठ्यक्रम को बढ़ावा देते हैं।

भारत में स्कूली शिक्षा के लिए आगे की राह

  • प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education- ECCE) को मजबूत करना: जन्म से लेकर 6 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए योग्यता-आधारित शिक्षा को लागू करना, जिसमें मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
  • डिजिटल डिवाइड को पाटना: ग्रामीण स्कूलों में इंटरनेट की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए DIKSHA और PM eVidya जैसी डिजिटल शिक्षा पहलों का विस्तार करना, जिससे डिजिटल साक्षरता में सुधार किया जा सकता है।
  • शिक्षक प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास को बढ़ाना: निरंतर सीखने के लिए AI और डिजिटल उपकरणों को शामिल करते हुए NISHTHA और PRERANA जैसे शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाना।
  • समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देना: सहायक तकनीकों के साथ सुलभ स्कूलों की संख्या बढ़ाना और विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (Children with Special Needs-CwSN) के लिए समावेशी कक्षाएँ लागू करना।
  • सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा (SEL) पर ध्यान देना: छात्रों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता, लचीलापन और समग्र कल्याण का निर्माण करने के लिए स्कूलों में SEL कार्यक्रमों का विस्तार करना।
  • बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं में सुधार करना: सभी स्कूलों में, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में शौचालय, बिजली और ICT उपकरण जैसी बुनियादी सुविधाएँ सुनिश्चित करना।
  • व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास को एकीकृत करना: विद्यार्थियों को भविष्य के कार्यबल के लिए तैयार करने हेतु स्कूल पाठ्यक्रम में व्यावसायिक प्रशिक्षण और जीवन कौशल को एकीकृत करके बहु-विषयक शिक्षा को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष 

वर्ष 2022-23 और वर्ष 2023-24 के लिए PGI 2.0 रिपोर्ट भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण प्रगति को उजागर करती है, जिसमें चंडीगढ़ जैसे शीर्ष प्रदर्शनकर्ता बुनियादी ढाँचे और शासन में अग्रणी हैं, फिर भी सीखने के खराब परिणाम और उच्च ड्रॉपआउट दर जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। NEP 2020 को लागू करने, शिक्षक प्रशिक्षण को बढ़ाने और डिजिटल डिवाइड को पाटने के निरंतर प्रयास सभी के लिए समान, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

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