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लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) प्रौद्योगिकी हस्तांतरण

Lokesh Pal June 23, 2025 02:32 13 0

संदर्भ

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के बाद इसरो के लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (Small Satellite Launch Vehicle- SSLV) के व्यावसायीकरण एवं निर्माण के लिए एक महत्त्वपूर्ण निविदा के विजेता के रूप में घोषित किया गया।

  • SSLV की अब तक तीन विकास उड़ानें पूर्ण हो चुकी हैं, जिससे इसके व्यावसायिक उपयोग का मार्ग प्रशस्त हो गया है।

संबंधित तथ्य

  • अगले दो वर्षों में, इसरो प्रौद्योगिकी हस्तांतरित करेगा और HAL का मार्गदर्शन करेगा।
  • HAL को इसरो की विकास प्रक्रिया को दोहराते हुए दो SSLV का निर्माण करना होगा।
  • वर्ष 2027 के बाद: HAL को वैश्विक स्तर पर SSLV के डिजाइन, निर्माण और विपणन की पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त होगी।

लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV)  के बारे में

विशेषता

विवरण

चरण तीन-चरणीय ठोस प्रणोदन रॉकेट
लक्ष्य छोटे एवं नैनो उपग्रह प्रक्षेपण
पेलोड क्षमता निम्न पृथ्वी कक्षा (LEO) तक 500 किलोग्राम तक
USP त्वरित संयोजन, कम लागत, माँग पर प्रक्षेपण के लिए आदर्श, तीव्र परिवर्तन हेतु डिजाइन, न्यूनतम बुनियादी ढाँचा और एकाधिक उपग्रहों को समायोजित करने में लचीलापन।

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए महत्त्व

  1. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का व्यावसायीकरण
    • ISRO को एकमात्र प्रक्षेपण प्रदाता से वाणिज्यिक उद्यम को सक्षम करने वाला बना दिया गया है।
    • PSLV कंसोर्टियम मॉडल के विपरीत, HAL एक पूर्ण-सेवा प्रक्षेपण प्रदाता बन गया है, जबकि इस मॉडल में ISRO अब भी ग्राहक (खरीदार) की भूमिका में बना हुआ है
  2. अंतरिक्ष में आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा
    • छोटे उपग्रहों के लिए संपूर्ण स्वदेशी प्रक्षेपण क्षमता को सक्षम बनाता है।
    • कम लागत वाले उपग्रह प्रक्षेपण के लिए वैश्विक केंद्र बनने के भारत के लक्ष्य को मजबूत करता है।
  3. निजी पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूती
    • निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास, नवाचार और प्रक्षेपण अवसरों को बढ़ावा देने के लिए IN-SPACe और NSIL द्वारा किए गए प्रयासों को पूरा करता है।
    • तमिलनाडु में नियोजित अंतरिक्ष औद्योगिक क्लस्टर और तमिलनाडु में आगामी कुलशेखरपट्टनम स्पेसपोर्ट को बढ़ावा देता है।
  4. आर्थिक विकास
    • वर्तमान में, भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य लगभग 8.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो वैश्विक अंतरिक्ष बाजार का 2% हिस्सा है।
    • भारत सरकार का लक्ष्य वर्ष 2033 तक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को 44 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना है, जिसमें 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात शामिल है, जो वैश्विक हिस्सेदारी का 7-8% है।
  5. वैज्ञानिक नेतृत्व
    • अंतरिक्ष संबंधी मिशनों के माध्यम से गहन अंतरिक्ष अन्वेषण, ग्रह विज्ञान और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में प्रगति को गति प्रदान करना।
    • दीर्घावधि के लिए भारत की अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षमताओं को मजबूत करना।
  6. वैश्विक स्थिति
    • अंतरिक्ष कूटनीति में भारत की भूमिका को बढ़ाता है और अंतरिक्ष प्रशासन, स्थिरता और अंतरिक्ष संसाधनों तक समान पहुँच पर वैश्विक मंचों पर भारत के प्रतिनिधित्त्व को मजबूत करता है।
    • वैश्विक उपग्रह परिनियोजन, पृथ्वी अवलोकन और आपदा निगरानी में भारत को एक विश्वसनीय तथा किफायती भागीदार के रूप में स्थापित करता है।
      • वैश्विक एजेंसियों (जैसे- NASA के साथ NISAR) के साथ सहयोग।
      • विदेशी ग्राहकों और स्टार्ट-अप के लिए लॉन्च की मेजबानी।

अंतरिक्ष क्षेत्र में वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए सरकार के प्रयास

  • अमृत ​​काल विजन 2047 के भाग के रूप में, भारत सरकार ने वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित अंतरिक्ष यात्रा करने वाले राष्ट्र के रूप में बदलने के लिए रणनीतिक पहल की है।
  • भारतीय अंतरिक्ष विजन 2047 में प्रौद्योगिकीय आत्मनिर्भरता, अंतरिक्ष अन्वेषण में वैश्विक नेतृत्व तथा इस दीर्घकालिक मिशन के मुख्य घटकों के रूप में निजी भागीदारी में वृद्धि को रेखांकित किया गया है।
  1. अंतरिक्ष में प्रमुख उपलब्धियाँ हासिल करने का लक्ष्य
    • वर्ष 2028 में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (Bharatiya Antariksh Station- BAS) के पहले मॉड्यूल का प्रक्षेपण।
    • वर्ष 2035 में BAS की पूर्ण स्थापना।
    • वर्ष 2040 में भारतीय अंतरिक्ष यात्री का चंद्रमा पर उतरना।
  2. स्वीकृत प्रमुख मिशन और कार्यक्रम
    • गगनयान अनुवर्ती मिशन: भारत के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम (गगनयान) पर आधारित।
    • BAS मॉड्यूल-1 (वर्ष 2028): एक पूर्ण विकसित भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की नींव रखना।
    • अगली पीढ़ी का प्रक्षेपण यान (Next Generation Launch Vehicle- NGLV): वर्ष 2032 तक एक पुन: प्रयोज्य, कम लागत वाला उपग्रह प्रक्षेपण यान विकसित करना।
    • चंद्रयान-4 (2027): साक्ष्य वापसी मिशन; चंद्रमा से पृथ्वी पर उतरना और वापस आना।
    • वीनस ऑर्बिटर मिशन (2028): शुक्र की सतह, वायुमंडल और सौर अंतःक्रियाओं का अध्ययन करना।
  3. नीति एवं संस्थागत सुधार
    • अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधार (वर्ष 2020)
      • भूमिकाओं का स्पष्ट विभाजन
        • ISRO: अनुसंधान एवं विकास तथा उन्नत मिशनों पर ध्यान केंद्रित करना।
        • NSIL: ISRO प्रौद्योगिकियों का वाणिज्यिक दोहन।
        • IN-SPACe: अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना तथा उसकी देख-रेख करना, अंतरिक्ष स्टार्ट-अप तथा व्यवसायों के लिए एक प्रमुख सुविधाकर्ता के रूप में कार्य करना।
    • भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023
      • पूरे अंतरिक्ष मूल्य शृंखला में निजी क्षेत्र की भागीदारी को सक्षम बनाता है।
      • भारतीय स्टार्ट-अप, MSME और शैक्षणिक संस्थानों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराता है।
    • FDI नीति संशोधन
      • इसका उद्देश्य उच्च तकनीक वाले अंतरिक्ष क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय पूँजी और सहयोग को आकर्षित करना है।
      • अंतरिक्ष क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा बढ़ाई गई।
      • स्वचालित मार्ग के तहत 74% तक: उपग्रह-विनिर्माण एवं संचालन, उपग्रह डेटा उत्पाद तथा भू-खंड एवं उपयोगकर्ता खंड। ये गतिविधियाँ 74% से अधिक सरकारी मार्ग के अंतर्गत आती हैं।
      • स्वचालित मार्ग के तहत 49% तक: प्रक्षेपण यान और संबंधित प्रणालियाँ या उप-प्रणालियाँ, अंतरिक्ष यान को लॉन्च करने एवं प्राप्त करने के लिए स्पेसपोर्ट का निर्माण। ये गतिविधियाँ 49% से अधिक सरकारी मार्ग के अंतर्गत हैं।
      • स्वचालित मार्ग के तहत 100% तक: उपग्रहों, ग्राउंड सेगमेंट और उपयोगकर्ता सेगमेंट के लिए घटकों तथा प्रणालियों/उप-प्रणालियों का विनिर्माण।
    • स्टार्ट-अप और नवाचार के लिए समर्थन
      • अंतरिक्ष स्टार्ट-अप के लिए पाँच वर्षों में ₹1,000 करोड़ का वेंचर कैपिटल फंड।
        • IN-SPACe के तहत प्रबंधित।
        • इसका उद्देश्य अनुसंधान एवं विकास, प्रोटोटाइपिंग और प्रारंभिक चरण के व्यावसायीकरण को बढ़ावा देना है।

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