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भारत में सड़क सुरक्षा और गुड सेमेरिटन कानून

Lokesh Pal June 21, 2025 05:00 49 0

संदर्भ:

वर्ष 2022 में, देश में 4.6 लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएं और 1.68 लाख विनाशकारी मौतें दर्ज की गईं।

भारत में सड़क सुरक्षा संकट:

  • संकट की गंभीरता: वर्तमान समय में, भारत गंभीर सड़क सुरक्षा संकट से जूझ रहा है, जिसका प्रमाण सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के चिंताजनक आंकड़े हैं।
  • आपातकालीन प्रतिक्रिया: सड़क सुरक्षा के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे सड़क इंजीनियरिंग, प्रवर्तन और सार्वजनिक शिक्षा में उल्लेखनीय सुधार के बावजूद, आपातकालीन प्रतिक्रिया और दुर्घटना के बाद की देखभाल प्रणाली में सबसे कमजोर कड़ी बनी हुई है।
  • दुर्घटना के बाद देखभाल: इस महत्वपूर्ण अंतर को दूर करने और सार्वजनिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए, गुड सेमेरिटन कानून और हाल ही में कैशलेस उपचार योजना जैसे उपाय शुरू किए गए हैं।

सड़क सुरक्षा के चार ‘ई’ (4 E)

  • इंजीनियरिंग: यह स्तंभ सड़क डिजाइन और सुरक्षा सुधार पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य सुरक्षित बुनियादी ढांचे का निर्माण करना है जो दुर्घटना के जोखिम को कम करता है।
  • प्रवर्तन: इसमें प्राधिकारियों द्वारा यातायात कानूनों के सख्त क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है ताकि अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके और खतरनाक या घातक ड्राइविंग को रोका जा सके।
  • शिक्षा: यह घटक सड़क नियमों और सुरक्षित ड्राइविंग प्रथाओं पर जागरूकता अभियान से संबंधित है, जिसका उद्देश्य जिम्मेदार सड़क उपयोगकर्ता व्यवहार को विकसित करना है।
  • आपातकालीन प्रतिक्रिया: यह महत्वपूर्ण पहलू दुर्घटना के बाद त्वरित चिकित्सा सहायता से संबंधित है। वर्तमान में, इसे भारत के सड़क सुरक्षा ढांचे के भीतर सबसे कमज़ोर घटक के रूप में पहचाना जाता है।

सड़क दुर्घटनाओं का प्रभाव:

  • दुर्घटना सांख्यिकी (MoRTH 2022): सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के वर्ष 2022 के आँकड़ों के मुताबिक 4.6 लाख से अधिक सड़क दुर्घटनाएं हुईं।
    • इन दुर्घटनाओं में 1.68 लाख लोगों की मृत्यु हुई।
    • इसके अतिरिक्त 4.43 लाख लोग घायल हुए।
  • जनसांख्यिकीय प्रभाव: इन घटनाओं के पीड़ितों में से 66.5% की आयु 18-45 वर्ष के बीच थी। यह जनसांख्यिकीय समूह भारत के सबसे अधिक आर्थिक रूप से उत्पादक समूह का प्रतिनिधित्व करता है।
  • आर्थिक नुकसान: विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को सालाना 3-5% जीडीपी का नुकसान होता है। यह इन दुर्घटनाओं से होने वाले भारी आर्थिक बोझ को दर्शाता है।

भारत में गुड सेमेरिटन कानून

  • सर्वोच्च न्यायालय की मान्यता (2016): गुड सेमेरिटन कानून की अवधारणा को पहली बार सर्वोच्च न्यायालय ने 2016 में सेवलाइफ फाउंडेशन बनाम भारत संघ के मामले में अपने निर्देशों के माध्यम से मान्यता दी थी।
  • संहिताकरण (2019): इन सुरक्षाओं को बाद में मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 की धारा 134 ए के तहत संहिताबद्ध किया गया, जो विभिन्न मानदंडों के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
  • परिचालन सुरक्षा उपाय: गुड समैरिटन कानून के लिए आगे की परिचालन सुरक्षा उपाय और प्रक्रियाएं केंद्रीय मोटर वाहन नियम 168 और 169 के तहत प्रदान की गई हैं।
  • कार्यान्वयन में कमी (नियम 168 (5)): एक उन्नत कानूनी ढांचे के बावजूद, नियम 168(5) जो सभी अस्पतालों को गुड सेमेरिटन अधिकारों को प्रदर्शित करने के लिए अनिवार्य करता है, का शायद ही कभी कार्यान्वयन किया जाता है।
    • जागरूकता की इस कमी का अर्थ यह है कि अनेक संभावित नेक लोग अपनी सुरक्षा के बारे में अनभिज्ञ रहते हैं, जिससे कानून की प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न होती है।
  • गुमनामी: हालांकि किसी अच्छे व्यक्ति की पहचान का खुलासा करने की आवश्यकता को महत्त्व नहीं दिया जाता है। परंतु यह सुरक्षा कानूनी संलिप्तता या उत्पीड़न के डर को कम करने के लिए बनाई गई है।
  • दायित्व का अभाव: अच्छे लोगों को उनके कार्यों के कारण पीड़ित की किसी भी चोट या मृत्यु के लिए नागरिक या आपराधिक दायित्व से संरक्षित किया जाता है, जब तक कि घोर लापरवाही या नुकसान पहुंचाने का इरादा साबित न हो जाए। यह प्रावधान मदद करने के वास्तविक प्रयासों के लिए कानूनी नतीजों के डर के बिना हस्तक्षेप को प्रोत्साहित करता है।
  • स्वतंत्र प्रस्थान का अधिकार: एक अच्छे व्यक्ति को मदद करने के तुरंत बाद दुर्घटना स्थल या अस्पताल छोड़ने का अधिकार है। औपचारिकताएँ पूरी करने या पूछताछ के लिए अस्पताल में रुकने की कोई बाध्यता नहीं है, जब तक कि वे प्रत्यक्षदर्शी न हों और ऐसा करने के लिए रुचि नहीं जताते हैं।

कानूनी प्रभावशीलता के मार्ग में चुनौतियाँ:

  • जागरूकता का अभाव: गुड सेमेरिटन कानून के अस्तित्व और प्रावधानों के संबंध में जनता और संस्थाओं (पुलिस और अस्पतालों सहित) में जागरूकता का अभाव है।
  • भय का वातावरण: पुलिस उत्पीड़न और कानूनी झंझटों का डर एक प्रमुख बाधा बना हुआ है। कानूनी सुरक्षा के बावजूद, कई नागरिक अभी भी पुलिस जांच, अदालत में पेश होने या संदिग्धों के रूप में व्यवहार किए जाने से डरते हैं।
  • सांस्कृतिक झिझक: अज्ञात पीड़ितों की मदद करने में सांस्कृतिक झिझक या हिचकिचाहट भी एक भूमिका निभाती है, क्योंकि लोग अक्सर विभिन्न सामाजिक कारकों के कारण अजनबियों से जुड़ी स्थितियों में शामिल होने से हिचकते हैं।
  • संस्थागत गैर-अनुपालन: केंद्रीय मोटर वाहन नियम के 168(5) नियम के अनुसार, अस्पतालों द्वारा गुड सेमेरिटन के अधिकारों का प्रदर्शन करने में गैर-अनुपालन किया जा रहा है।

सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार योजना (2025)

  • लॉन्च तिथि: यह योजना 5 मई, 2025 को राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) द्वारा लॉन्च की गई थी।
  • उपचारात्मक कवरेज राशि: यह सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए 1.5 लाख रुपये तक के कैशलेस उपचार का प्रावधान करता है। यह कवरेज दुर्घटना के बाद 7 दिनों के लिए वैध है, बशर्ते पुलिस को घटना के 24 घंटे के भीतर सूचित किया जाए।
  • हिट-एंड-रन मुआवजा: इस योजना में हिट-एंड-रन पीड़ितों के लिए मुआवजे को भी मजबूत किया गया है, जिसमें मृत्यु के लिए ₹2 लाख और गंभीर चोट के लिए ₹50,000 की पेशकश की गई है।
  • डिजिटल समर्थन (ई-डीएआर): यह योजना ई-डीएआर प्रणाली (इलेक्ट्रॉनिक विस्तृत दुर्घटना रिपोर्ट) द्वारा महत्वपूर्ण रूप से समर्थित की गई है।
    • यह प्रणाली वास्तविक समय पर दुर्घटना की रिपोर्टिंग और दावों के प्रसंस्करण की सुविधा प्रदान करती है, जिससे लाभों का शीघ्र और अधिक कुशल वितरण सुनिश्चित होता है।
  • ‘गोल्डन ऑवर’: इस योजना का मुख्य ध्यान ‘गोल्डन ऑवर’ पर है, जो दुर्घटना के बाद के पहले घंटे को संदर्भित करता है।
    • यह अवधि दुर्घटना पीड़ितों के लिए जीवन रक्षा हेतु महत्वपूर्ण मानी जाती है, तथा इस योजना का उद्देश्य इस महत्वपूर्ण समय के दौरान तत्काल चिकित्सा हस्तक्षेप सुनिश्चित करना है।

भारत की प्रमुख ट्रॉमा देखभाल सुविधाएँ:

  • विशेषज्ञता का अभाव: भारत में अधिकांश ट्रॉमा सेंटरों में वर्तमान में 24/7 आपातकालीन स्टाफ, पर्याप्त न्यूरोसर्जरी क्षमता या समर्पित ट्रॉमा वार्डों का अभाव है।
    • इसका अर्थ यह है कि गंभीर चोटों के लिए महत्वपूर्ण देखभाल चौबीसों घंटे या विशेषज्ञ कर्मियों द्वारा उपलब्ध नहीं हो सकती।
  • भौगोलिक कमज़ोरियाँ: ये कमियाँ विशेष रूप से राजमार्गों और जिला अस्पतालों में विशेष रूप से कमज़ोर बनी हुई हैं।
    • हालांकि यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि अधिकतर सड़क दुर्घटनाएं राजमार्गों पर घटित होती हैं और ग्रामीण तथा अर्ध-शहरी क्षेत्रों में पीड़ितों के लिए जिला अस्पताल ही प्रायः प्रथम राहत संपर्क बिंदु होते हैं।
  • ट्रॉमा केयर नेटवर्क: देश भर में ट्रॉमा केयर नेटवर्क की नितांत आवश्यकता है। इस नेटवर्क को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि देश भर में गुणवत्तापूर्ण ट्रॉमा केयर उपलब्ध हो सके, तथा प्रमुख जिलों में सुविधाओं की स्थापना और सुदृढ़ीकरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • जिला प्राथमिकता पर ध्यान देना: नेटवर्क को विशेष रूप से जिला प्राथमिकता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक जिले में आपातकालीन स्थितियों से निपटने में सक्षम पर्याप्त रूप से सुसज्जित और स्टाफ युक्त ट्रॉमा देखभाल इकाइयाँ हों।
  • आयुष्मान भारत के साथ एकीकरण: यह एक प्रभावी सुझाव हो सकता है कि आयुष्मान भारत के साथ ट्रॉमा देखभाल को एकीकृत किया जाए क्योंकि;
    • इससे स्वास्थ्य बीमा कवरेज के मौजूदा ढांचे का लाभ उठाया जा सकेगा (पीएम-जेएवाई द्वितीयक और तृतीयक देखभाल के लिए 5 लाख रुपये तक प्रदान करता है) जिससे आबादी के बड़े हिस्से के लिए आघात उपचार तक वित्तीय पहुंच सुनिश्चित हो सकेगी।

दुर्घटना के बाद उत्पन्न देखभाल चुनौतियाँ

  • डब्ल्यूएचओ का रुख: डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) का मानना है कि दुर्घटना के बाद अपर्याप्त देखभाल सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है। यह समय पर और प्रभावी आपातकालीन प्रतिक्रिया की वैश्विक मान्यता को दर्शाता है जो प्रत्येक स्थिति में सर्वप्रथम जीवन बचाने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • पुडुचेरी शोध-अध्ययन के निष्कर्ष: पुडुचेरी में किए गए एक अध्ययन में समय पर चिकित्सा पहुंच में महत्वपूर्ण अंतराल को चिन्हित किया गया, जिसमें दर्शाया गया कि सड़क दुर्घटना के केवल 55% पीड़ित ही महत्वपूर्ण ‘गोल्डन ऑवर’ के भीतर अस्पताल पहुंचने में कामयाब होते हैं।
  • अलीगढ़ शोध-अध्ययन के निष्कर्ष: अलीगढ़ में किए गए एक अध्ययन में प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता के रूप में आम नागरिकों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया। इसमें पाया गया कि 67% मामलों में, सड़क दुर्घटनाओं के प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता प्रशिक्षित आपातकालीन कर्मी नहीं बल्कि आम नागरिक थे।

अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाएँ:

  • जर्मनी: जर्मनी में ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने के लिए व्यक्तियों के लिए प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नए ड्राइवरों के पास बुनियादी जीवन-रक्षक कौशल हों।
    • सहायता करने का कानूनी कर्तव्य: देश दुर्घटना की स्थिति में सहायता करने का कानूनी कर्तव्य भी लागू करता है। इसके साथ ही यह सहायता प्रदान करने में विफल रहने पर दंड का प्रावधान है, जिससे तत्काल हस्तक्षेप की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
  • स्वीडन: स्वीडन ने विज़न जीरो की रणनीति का बीड़ा उठाया है, जो इस नैतिक सिद्धांत पर काम करती है कि सड़क परिवहन प्रणाली में किसी भी प्रकार की प्राणी जीवन की हानि स्वीकार्य नहीं है।
    • वे विश्लेषण और रोकथाम के लिए वास्तविक समय दुर्घटना डेटा का उपयोग करते हैं, तथा जोखिमों को पहले से कम करने के लिए वाहन में अलर्ट जैसी उन्नत सुरक्षा सुविधाओं को शामिल करते हैं।

आगे की राह:

  • जागरूकता अभियान: पारंपरिक और डिजिटल मीडिया दोनों का उपयोग करके एक व्यापक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान लागू किया जाना चाहिए। इसका लक्ष्य जनता को गुड सेमेरिटन कानून, इसकी सुरक्षा और दुर्घटना पीड़ितों को समय पर सहायता के महत्व के बारे में शिक्षित करना है।
  • अनुपालन: अस्पतालों और पुलिस के लिए अनुपालन ऑडिट आयोजित किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे गुड समैरिटन कानून और संबंधित प्रोटोकॉल के प्रावधानों का पालन करते हैं।
    • कार्यान्वयन की निगरानी करने तथा गैर-अनुपालन या उत्पीड़न की घटनाओं से निपटने के लिए नागरिक फीडबैक हेतु तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।
  • नेक लोगों के लिए प्रोत्साहन: नेक लोगों के लिए वार्षिक पुरस्कार और सार्वजनिक सम्मान की शुरुआत की जानी चाहिए। इससे अधिक से अधिक लोगों को आगे आकर दुर्घटना पीड़ितों की मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा और उनके निस्वार्थ कार्यों को सामाजिक नैतिकता का प्रतीक माना जा सकेगा।

निष्कर्ष:

अतः प्रतिक्रियात्मक से संवेदनशील आपातकालीन प्रणाली में बदलाव की बहुत आवश्यकता है। इसके लिए सांस्कृतिक परिवर्तन और कानूनी परिवर्तन को शामिल करते हुए बहुआयामी परिवर्तन की आवश्यकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस उपचार योजना सही दिशा में उठाया गया कदम है, लेकिन इसे भी परिचालन संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ा है। इस योजना की सीमाओं पर चर्चा करें और इसके प्रभावी नियमन के लिए उचित उपाय सुझाएँ।

(10 अंक, 150 शब्द)

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