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परमाणु अप्रसार संधि

Lokesh Pal June 25, 2025 03:10 15 0

संदर्भ

ईरान की संसद इजरायल के साथ बढ़ते तनाव और अपने परमाणु कार्यक्रम पर अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की जाँच के कारण परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से हटने के लिए एक विधेयक का मसौदा तैयार कर रही है।

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी  (IAEA) के बारे में

  • यह संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध एक स्वायत्त अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के वियना में स्थित है।
  • स्थापना: वर्ष 1957 में
  • आदर्श वाक्य: ‘शांति और विकास के लिए परमाणु’
  • प्राथमिक अधिदेश: परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना और परमाणु हथियारों सहित सैन्य उद्देश्यों के लिए इसके उपयोग को रोकना।
  • सदस्य: 180 (भारत इसका सदस्य है)
  • उत्तर कोरिया: वर्ष 1974 में शामिल हुआ, वर्ष 1994 में वापस ले लिया।
  • सामान्य सम्मेलन: सभी सदस्य देश वियना में वार्षिक रूप से बैठक करते हैं।
    • IAEA, NPT का सदस्य नहीं है, जिसे संधि के तहत प्रमुख सत्यापन जिम्मेदारियाँ सौंपी गई हैं।
  • प्रत्येक गैर-परमाणु-हथियार राज्य पक्ष को NPT के तहत IAEA के साथ एक व्यापक सुरक्षा समझौते (Comprehensive Safeguards Agreement- CSA) को समाप्त करना आवश्यक है।
  • मान्यता: शांतिपूर्ण परमाणु उपयोग और वैश्विक सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2005 में नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त किया।

परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के बारे में

  • NPT एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देना और निरस्त्रीकरण को प्रोत्साहित करना है।
  • इस पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किए गए थे और यह वर्ष 1970 में लागू हुई।
  • वर्ष 2025 तक, 191 देश इस पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।
  • चार देशों (भारत, इजराइल, पाकिस्तान और दक्षिण सूडान) ने कभी भी इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी संस्था, IAEA, वैश्विक परमाणु अप्रसार संधि की निगरानी करती है।
  • NPT के उद्देश्य
    • अप्रसार: परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना।
    • निरस्त्रीकरण: परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में कार्य करना।
    • शांतिपूर्ण उपयोग: सुरक्षा उपायों के तहत शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना।
  • NPT की संरचना
    • परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र (NWS): यह संधि परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों को उन राष्ट्रों के रूप में परिभाषित करती है जिन्होंने 1 जनवरी, 1967 से पहले परमाणु विस्फोटक उपकरण का निर्माण एवं परीक्षण किया हो।
      • ये देश हैं- संयुक्त राज्य अमेरिका (1945), रूस (1949), यूनाइटेड किंगडम (1952), फ्राँस (1960) और चीन (1964), लेकिन इन्हें निरस्त्रीकरण की दिशा में कार्य करना होगा।
    • गैर-परमाणु हथियार राष्ट्र (Non-Nuclear Weapon States-NNWS): वे देश जो परमाणु हथियार विकसित या अधिग्रहित न करने पर सहमत हैं।
      • वे IAEA सुरक्षा उपायों के तहत शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकते हैं। 
      • NNWS को IAEA के साथ एक व्यापक सुरक्षा समझौता (Comprehensive Safeguards Agreement- CSA) करना होगा, जो यह सुनिश्चित करता है कि उनके परमाणु कार्यक्रमों का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाए।
  • प्रमुख प्रावधान
    • अनुच्छेद I: NWS, NNWS को परमाणु हथियार हस्तांतरित नहीं करेगा।
    • अनुच्छेद II: NNWS परमाणु हथियार विकसित नहीं करेगा।
    • अनुच्छेद III: NNWS को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए IAEA सुरक्षा उपायों को स्वीकार करना चाहिए।
    • अनुच्छेद VI: परमाणु निरस्त्रीकरण पर वार्ता का आह्वान करता है।
    • अनुच्छेद X: राष्ट्रीय हितों को खतरा होने पर तीन महीने की सूचना के साथ संधि से हटने की अनुमति देता है।
  • वापसी के उदाहरण: उत्तर कोरिया (जो वर्ष 1985 में शामिल हुआ) वर्ष 2003 में NPT से हट गया तथा बाद में उसने परमाणु हथियार विकसित कर लिए।
    • ईरान ने विशेष रूप से इजरायल के सैन्य हमलों और अमेरिका के साथ तनाव के बाद NPT से हटने की धमकी दी है।

अन्य परमाणु निरस्त्रीकरण संधियाँ

  • व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty- CTBT): इसका उद्देश्य सैन्य और नागरिक दोनों उद्देश्यों के लिए सभी परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाना है।
    • यह सभी परमाणु परीक्षण विस्फोटों पर प्रतिबंध लगाता है, चाहे वे सैन्य या शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हों।
    • इस संधि को वर्ष 1996 में अपनाया गया था और इस पर 185 राज्यों ने हस्ताक्षर किए हैं और 170 राज्यों ने इसकी पुष्टि की है।
    • इस पर हस्ताक्षर न करने वाले उल्लेखनीय देशों में भारत, चीन, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान शामिल हैं।
  • परमाणु हथियार निषेध संधि (Treaty on the Prohibition of Nuclear Weapons- TPNW): इसका उद्देश्य परमाणु हथियारों के उपयोग, विकास, उत्पादन और अधिकार पर प्रतिबंध लगाकर विश्व स्तर पर उन्हें समाप्त करना है।
    • वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र के 122 सदस्य देशों द्वारा अपनाई गई यह संधि परमाणु हथियारों पर व्यापक प्रतिबंध लगाने वाला पहला कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
    • मार्च 2025 तक, 94 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं और 73 देशों ने इसकी पुष्टि की है।
    • भारत ने अभी तक इस संधि पर हस्ताक्षर या पुष्टि नहीं की है।
  • सामरिक शस्त्र न्यूनीकरण संधि (Strategic Arms Reduction Treaty- START): START संधियों, विशेषकर वर्ष 2010 में अमेरिका और रूस के बीच हस्ताक्षरित नई START का उद्देश्य परमाणु शस्त्रागार को कम करना एवं सीमित करना है।
    • START I (वर्ष 1991): अमेरिका और रूस के परमाणु हथियारों की संख्या को 6,000 तक सीमित कर दिया गया।
    • START II (वर्ष 1993): मिसाइल रक्षा पर मतभेदों के कारण इसे कभी लागू नहीं किया गया, हालाँकि इसने भविष्य में कटौती के लिए मंच तैयार किया।
    • न्यू START (वर्ष 2010): दोनों देशों की परमाणु हथियारों की संख्या को 1,550 और डिलीवरी सिस्टम की संख्या को 700 तक सीमित कर दिया गया। वर्ष 2021 में इसे और पाँच वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया।
  • ट्लाटेलोल्को की संधि (1967): ट्लाटेलोल्को की संधि लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में एक परमाणु-हथियार-मुक्त क्षेत्र का निर्माण करती है।
    • इस संधि पर वर्ष 1967 में हस्ताक्षर किए गए थे और इस क्षेत्र के सभी देशों द्वारा इसकी पुष्टि की गई थी, जिससे यह पहला परमाणु-हथियार-मुक्त क्षेत्र बन गया।

NPT का महत्त्व

  • परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना: NPT का प्राथमिक उद्देश्य परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना है, जिससे वैश्विक हथियारों की होड़ शुरू हो सकती है और परमाणु संघर्ष का जोखिम बढ़ सकता है।
    • वर्ष 1970 में अपनी स्थापना के बाद से, NPT ने परमाणु-सशस्त्र राष्ट्रों की संख्या को सफलतापूर्वक सीमित कर दिया है। वर्ष 2025 तक, केवल नौ देशों के पास परमाणु हथियार हैं।
  • परमाणु निरस्त्रीकरण को बढ़ावा देना: NPT (अनुच्छेद VI) परमाणु-सशस्त्र राज्यों से निरस्त्रीकरण की दिशा में कार्य करने का आह्वान करती है, जिससे वैश्विक स्तर पर परमाणु शस्त्रागार के विस्तार को धीमा करने में मदद मिलती है।
    • हालाँकि निरस्त्रीकरण धीमा रहा है, इसने यू.एस.ए और रूस के बीच ‘स्टार्ट संधि’ और ‘न्यू स्टार्ट संधि’ जैसे समझौतों के लिए एक रूपरेखा तैयार की है।
  • परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को सुविधाजनक बनाना: NPT, IAEA सुरक्षा उपायों के तहत गैर-परमाणु राष्ट्रों द्वारा परमाणु प्रौद्योगिकी के शांतिपूर्ण उपयोग की अनुमति देता है।
    • दक्षिण कोरिया और ब्राजील जैसे देशों ने NPT के तहत नागरिक उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम विकसित किए हैं, जिससे परमाणु हथियारीकरण के जोखिम के बिना ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा मिलता है।
  • वैश्विक सुरक्षा को मजबूत करना: NPT परमाणु हथियारों को अधिक देशों और गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं तक फैलने से रोककर वैश्विक सुरक्षा बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 191 देश NPT में शामिल हो चुके हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की आधारशिला के रूप में देखा जाता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना: NPT परमाणु प्रौद्योगिकी और अनुसंधान, विशेष रूप से शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है।
    • IAEA यह सत्यापित करने में केंद्रीय भूमिका निभाता है कि परमाणु ऊर्जा परियोजनाएँ शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हैं, जिससे सदस्य देशों के बीच सहयोग बढ़ता है।
  • परमाणु अप्रसार के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान करना: NPT हस्ताक्षरकर्ता देशों के लिए परमाणु हथियार विकसित करने से परहेज करने और IAEA निरीक्षणों को प्रस्तुत करने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रतिबद्धता स्थापित करता है।
    • ईरान का परमाणु कार्यक्रम NPT के गैर-अनुपालन संबंधी चिंताओं के कारण गहन जाँच के दायरे में रहा है।
  • वैश्विक अप्रसार व्यवस्था की अखंडता को बनाए रखना: NPT वैश्विक अप्रसार प्रयासों का आधार है। यदि यह नष्ट हो जाता है, तो अप्रसार संधियों एवं तंत्रों की पूरी संरचना ध्वस्त हो सकती है, जिससे परमाणु युद्ध का खतरा बढ़ सकता है।

पृष्ठभूमि: ईरान और परमाणु अप्रसार संधि (NPT)

  • NPT के साथ प्रारंभिक जुड़ाव: ईरान ने वर्ष 1968 में NPT पर हस्ताक्षर किए और वर्ष 1970 में इसकी पुष्टि की, जिससे परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने और शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने के संधि के लक्ष्य का समर्थन हुआ।
  • क्रांति के बाद का बदलाव: वर्ष 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद, अयातुल्ला खुमैनी शुरू में परमाणु हथियारों के संबंध में असमंजस में थे, लेकिन बाद में ईरान-इराक युद्ध और इराक द्वारा रासायनिक हथियारों के प्रयोग के कारण उन्होंने इस पर पुनर्विचार किया।
    • ईरान का परमाणु कार्यक्रम अधिक गोपनीय हो गया, जिससे परमाणु हथियारों के विकास पर संदेह उत्पन्न हो गया।
  • गुप्त परमाणु गतिविधियाँ: वर्ष 2002 में, नतांज और अराक में ईरान की गोपनीय परमाणु प्रतिष्ठानों का खुलासा हुआ, जो NPT सुरक्षा उपायों का उल्लंघन करती थीं।
    • इसके बावजूद, ईरान ने कहा कि उसकी परमाणु महत्त्वाकांक्षाएँ शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए थीं।
  • तनाव और IAEA निरीक्षण: वर्ष 2005 में, IAEA ने ईरान द्वारा NPT सुरक्षा उपायों का पालन न करने की रिपोर्ट दी, जिसके कारण संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंध लगा।
    • राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद के कार्यकाल में ईरान की परमाणु नीति को लेकर अवज्ञापूर्ण दृष्टिकोण बना रहा, और केवल वर्ष 2013 में हसन रूहानी के राष्ट्रपति बनने के बाद ईरान ने संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) पर वार्ता करने पर सहमति व्यक्त की।
  • संयुक्त व्यापक कार्य योजना (Joint Comprehensive Plan of Action- JCPOA): वर्ष 2015 में, P5+1 देशों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्राँस, जर्मनी) ने प्रतिबंधों में राहत के बदले ईरान की परमाणु गतिविधियों को सीमित करते हुए JCPOA पर हस्ताक्षर किए।
    • वर्ष 2018 में अमेरिका के हटने से तनाव पुनः बढ़ गया और ईरान ने JCPOA की सीमाओं से परे यूरेनियम का संवर्द्धन करना पुनः शुरू कर दिया।
  • वर्तमान तनाव और NPT वापसी का खतरा: वर्ष 2025 में, ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर इजरायल के हमलों ने ईरान की संसद के भीतर NPT से हटने का आह्वान किया, जिसमें इजरायल की आक्रामकता को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया।
  • ईरान का तर्क है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है, लेकिन बढ़ती अंतरराष्ट्रीय जाँच का सामना कर रहा है और पारदर्शिता की माँग कर रहा है।

वापसी के निहितार्थ

  • निगरानी का नुकसान: ईरान अब IAEA निरीक्षण की अनुमति नहीं देगा। विश्व को इसकी परमाणु गतिविधियों के बारे में जानकारी नहीं होगी, जिससे गोपनीय हथियार विकास की चिंताएँ बढ़ेंगी।
    • पिछले वर्ष ईरान में IAEA निरीक्षकों ने औसतन प्रतिदिन 1.4 परमाणु-स्थल का दौरा किया।
  • NPT का कमजोर होना
    • हथियारों की क्षेत्रीय प्रतिस्पर्द्धा: सऊदी अरब या तुर्किए जैसे अन्य देश ईरान के संभावित परमाणु कार्यक्रम से डरकर जवाब में परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर सकते हैं। 
      • ईरान के बाहर निकलने से अन्य देश NPT छोड़ने के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं, जिससे वैश्विक परमाणु अप्रसार प्रयास कमजोर हो सकते हैं।
  • कूटनीतिक अलगाव: अगर ईरान में अस्थिरता उत्पन्न होती है तो रूस एवं चीन उसका समर्थन नहीं कर सकते है। NPT के बिना ईरान कूटनीतिक लाभ खो सकता है।
  • तनाव में वृद्धि: इजरायल एवं अमेरिका ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई को बढ़ा सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय संघर्ष बढ़ सकता है।
  • परमाणु हथियारों का विकास: NPT प्रतिबंधों के बिना, ईरान परमाणु हथियारों के विकास में तेजी ला सकता है।

NPT पर भारत का दृष्टिकोण

  • गैर-हस्ताक्षरकर्ता स्थिति: भारत ने कभी भी NPT पर हस्ताक्षर नहीं किए और इसे भेदभावपूर्ण मानता है।
    • भारत विश्व को परमाणु संपन्न एवं वंचितों में विभाजित करने पर आपत्ति जताता है, जहाँ पाँच देशों को परमाणु हथियार रखने की अनुमति है जबकि अन्य पर प्रतिबंध है।
  • असमानता की आलोचना: भारत का तर्क है कि NPT पाँच परमाणु-सशस्त्र राष्ट्रों को निरस्त्रीकरण के बिना परमाणु हथियार रखने की अनुमति देता है, जिससे परमाणु असमानता उत्पन्न होती है।
  • वैश्विक निरस्त्रीकरण का समर्थन: भारत सभी राष्ट्रों के लिए पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण का आह्वान करता है, लेकिन उसका मानना ​​है कि इसे सभी के लिए समान स्तर पर अपनाया जाना चाहिए।
  • परमाणु सिद्धांत: भारत परमाणु हथियारों पर ‘नो फर्स्ट यूज’ दृष्टिकोण के साथ एक विश्वसनीय न्यूनतम निवारक नीति का पालन करता है।
    • परमाणु हथियारों को आक्रामकता के लिए नहीं, बल्कि निवारक के रूप में देखा जाता है।
  • शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के लिए समर्थन: भारत IAEA सुरक्षा उपायों के तहत सभी देशों के परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण तरीके से उपयोग करने के अधिकार का समर्थन करता है।
    • यह ऊर्जा उत्पादन जैसे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु प्रौद्योगिकी तक पहुँच चाहता है।
  • NPT के बाहर परमाणु कार्यक्रम: भारत ने वर्ष1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया और NPT ढाँचे के बाहर परमाणु हथियार विकसित किए, जिससे एक जिम्मेदार परमाणु दृष्टिकोण बना रहा।
  • NSG सदस्यता के लिए प्रयास: भारत असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी तक पहुँच के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में सदस्यता चाहता है।
    • इसका तर्क है कि इसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है और अप्रसार मानदंडों के अनुरूप है।

परमाणु ढाँचा और निर्यात नियंत्रण व्यवस्था

संधि / रूपरेखा

उद्देश्य

भारत की सदस्यता स्थिति

परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) परमाणु निर्यात और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर नियंत्रण रखना। सदस्य नहीं हैं।
IAEA सुरक्षा समझौता परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना। इसके अंतर्गत नागरिक सुविधाओं का चयन करना।
भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता (2008) सुरक्षा उपायों के तहत असैन्य परमाणु सहयोग को सक्षम बनाना। IAEA प्रोटोकॉल के साथ लागू
मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (Missile Technology Control Regime- MTCR) – 1987 मिसाइलों और मिसाइल प्रौद्योगिकी के प्रसार को सीमित करना। जून 2016 से सदस्य
वासेनार व्यवस्था (Wassenaar Arrangement- WA) – 1996 हथियारों एवं दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं/प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण में पारदर्शिता को बढ़ावा देना। वर्ष 2017 से सदस्य हैं।

परमाणु अप्रसार के प्रति भारत का वैकल्पिक दृष्टिकोण

  • वैश्विक निरस्त्रीकरण के प्रति प्रतिबद्धता: भारत सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण का समर्थन करता है, परमाणु हथियारों से मुक्त विश्व की आवश्यकता पर बल देता है।
    • भारत क्रमिक और न्यायसंगत निरस्त्रीकरण का आह्वान करता है, जहाँ परमाणु शक्तियों सहित सभी देश अपने शस्त्रागार को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाएँ।
  • विश्वसनीय न्यूनतम निवारण: भारत एक विश्वसनीय न्यूनतम निवारण नीति का पालन करता है, संभावित खतरों को रोकने के लिए एक छोटा लेकिन प्रभावी परमाणु शस्त्रागार बनाए रखता है।
    • भारत की परमाणु स्थिति ‘नो-फर्स्ट-यूज’ (NFU) के सिद्धांत पर आधारित है, यह सुनिश्चित करते हुए कि परमाणु हथियारों का उपयोग केवल परमाणु हमले के सामने अंतिम उपाय के रूप में किया जाता है।
  • शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा: भारत अपने ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्यों के अनुरूप, शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा विकसित करने का अधिकार चाहता है।
  • अप्रसार पर क्षेत्रीय नेतृत्व: भारत क्षेत्रीय अप्रसार प्रयासों का समर्थन करता है और दक्षिण एशिया में परमाणु मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान को प्रोत्साहित करता है।
    • भारत ने संभावित परमाणु हथियारों की दौड़ से बचने के लिए क्षेत्र में, विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ, परमाणु विश्वास-निर्माण उपायों की दिशा में कदम उठाए हैं।
  • परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) सदस्यता: भारत, असैन्य परमाणु सहयोग को बढ़ाने के लिए परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) की सदस्यता प्राप्त करने हेतु निरंतर कूटनीतिक प्रयास करता रहा है, जिससे वह परमाणु प्रौद्योगिकी और सामग्रियों तक निर्बाध पहुँच सुनिश्चित कर सके।
    • भारत का तर्क है कि एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में, इसे अप्रसार मानदंडों का पालन करते हुए वैश्विक परमाणु व्यापार में शामिल किया जाना चाहिए।
  • अंतरराष्ट्रीय अप्रसार ढाँचे को मजबूत करना: NPT का हिस्सा न होते हुए भी, भारत वैश्विक अप्रसार पहलों का समर्थन करता है और परमाणु ऊर्जा के सुरक्षित एवं संरक्षित उपयोग के लिए IAEA के साथ कार्य करता है।
    • भारत ने सख्त सुरक्षा उपायों के तहत परमाणु ऊर्जा सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए अमेरिका, फ्राँस और रूस जैसे देशों के साथ विभिन्न द्विपक्षीय परमाणु समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।

परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के लिए चुनौतियाँ

  • भेदभावपूर्ण प्रकृति: NPT देशों को परमाणु-सशस्त्र और गैर-परमाणु राज्यों में विभाजित करता है।
    • भारत, पाकिस्तान और इजराइल का तर्क है कि यह असमान और भेदभावपूर्ण है, जो संधि की वैधता को कमजोर करता है।
  • निरस्त्रीकरण की धीमी प्रगति: परमाणु शक्तियों द्वारा निरस्त्रीकरण की दिशा में उठाए गए कदमों की गति धीमी रही है, जिससे वैश्विक परमाणु खतरे में ठोस कमी लाने में अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है।
    • NPT के निरस्त्रीकरण के आह्वान के बावजूद, अमेरिका और रूस जैसे देश अपने परमाणु बलों का आधुनिकीकरण जारी रखते हैं।
  • गैर-हस्ताक्षरकर्ता: भारत, पाकिस्तान और इजराइल जैसे देशों ने कभी भी NPT पर हस्ताक्षर नहीं किए।
    • उत्तर कोरिया ने संधि को वापस ले लिया और परमाणु हथियार विकसित किए, जिससे संधि का अधिकार कमजोर हो गया।

‘फिशाइल मैटेरियल कट-ऑफ ट्रीटी’ (Fissile Material Cut-off Treaty – FMCT) के बारे में  

  • यह एक प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय समझौता है जो परमाणु हथियारों के दो मुख्य घटकों के उत्पादन पर प्रतिबंध लगाएगा:
    • अत्यधिक संवर्द्धित यूरेनियम (Highly-Enriched Uranium- HEU) और प्लूटोनियम
  • यह पाँच मान्यता प्राप्त परमाणु हथियार राष्ट्रों (Nuclear Weapon States- NWS) और उन चार देशों के लिए नए प्रतिबंध प्रदान करेगा जो NPT के सदस्य नहीं (इजराइल, भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया) हैं।

  • प्रवर्तन चुनौतियाँ: NPT में मजबूत प्रवर्तन तंत्र का अभाव है।
    • ईरान एवं उत्तर कोरिया जैसे देशों द्वारा किए गए उल्लंघनों पर बड़े पैमाने पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती, जिससे संधि की विश्वसनीयता कमजोर होती है।
  • FMCT प्रगति का अभाव: ‘फिशाइल मैटेरियल कट-ऑफ ट्रीटी’ (FMCT) पर वार्ताएँ लंबे समय से गतिरोध की स्थिति में हैं, जिसके परिणामस्वरूप परमाणु शस्त्रों के उत्पादन पर नियंत्रण हेतु वैश्विक प्रयासों को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है।
    • यह वैश्विक निरस्त्रीकरण में प्रगति को रोकता है और गैर-परमाणु राष्ट्रों के बीच अविश्वास का कारण बनता है।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दे: ईरान एवं उत्तर कोरिया जैसे देश तर्क देते हैं कि उनके परमाणु कार्यक्रम सुरक्षा कारणों से संबंधित हैं।
    • क्षेत्रीय तनाव परमाणु प्रसार को रोकना मुश्किल बनाते हैं।
  • राजनीतिक और भू-राजनीतिक तनाव: भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता NPT की प्रभावशीलता को प्रभावित करती है।
    • राजनीतिक कारक प्रायः अप्रसार लक्ष्यों को प्रभावित करते हैं, जिससे वैश्विक अनुपालन सीमित हो जाता है।

आगे की राह

  • समावेशी सुरक्षा ढाँचे को बढ़ावा देना: NPT को सभी देशों को परमाणु सुरक्षा चर्चाओं में शामिल करने के लिए विकसित किया जाना चाहिए।
    • एक न्यायसंगत प्रणाली का निर्माण करना जहाँ भारत, पाकिस्तान और इजराइल जैसे देश पारदर्शिता और विश्वास निर्माण को बढ़ावा देते हुए वैश्विक सुरक्षा में सक्रिय रूप से योगदान दें।
  • परमाणु निरस्त्रीकरण पर प्रगति: परमाणु-सशस्त्र राष्ट्रों को निरस्त्रीकरण प्रक्रियाओं में तेजी लानी चाहिए और अपने परमाणु शस्त्रागार को कम करने के लिए स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित करनी चाहिए।
    • निरस्त्रीकरण उपायों को लागू करने के लिए परमाणु राष्ट्रों की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करना, जैसे कि वारहेड की संख्या में कटौती और प्रणाली को निष्क्रिय करना
  • प्रवर्तन तंत्र को मजबूत करना: IAEA की भूमिका को मजबूत करना और NPT के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले देशों के लिए अधिक प्रभावी प्रवर्तन तंत्र विकसित करना।
    • संधि का उल्लंघन करने वाले देशों के लिए दंड लागू करना तथा सुनिश्चित करना कि प्रतिबंधों को लागू किया जाए।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करना: ईरान और उत्तर कोरिया जैसे देशों को उनके परमाणु कार्यक्रमों के मूल कारणों को संबोधित करने और क्षेत्रीय तनावों का शांतिपूर्ण समाधान खोजने के लिए सुरक्षा वार्ता में शामिल करना।
    • मध्य पूर्व और उत्तर पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में क्षेत्रीय सुरक्षा ढाँचे और विश्वास-निर्माण उपायों को मजबूत करना, सैन्य समाधानों की तुलना में कूटनीतिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • ‘फिशाइल मैटेरियल कट-ऑफ ट्रीटी’ (Fissile Material Cut-off Treaty- FMCT): वैश्विक निरस्त्रीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में FMCT को प्राथमिकता देना।
    • निरस्त्रीकरण सम्मेलन में FMCT पर वार्ता पुनः शुरू करना, जिसका उद्देश्य वैश्विक सहमति प्राप्त करना है।
  • बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ाना: परमाणु अप्रसार पर अधिक सहयोगी प्रयासों को प्रोत्साहित करने के लिए NPT समीक्षा सम्मेलनों जैसे बहुपक्षीय परमाणु ढाँचों की भूमिका को मजबूत करना।
    • परमाणु और गैर-परमाणु राष्ट्रों के बीच अधिक पारदर्शी संवाद और सहयोगी निरस्त्रीकरण उपायों को बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र और IAEA जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से वैश्विक सहयोग बढ़ाना।

निष्कर्ष 

NPT से ईरान के संभावित रूप से पीछे हटने से वैश्विक अप्रसार प्रयासों को खतरा है, जिससे क्षेत्रीय हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा और भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने का खतरा है। भारत को एक गैर-हस्ताक्षरकर्ता देश के रूप में सार्वभौमिक निरस्त्रीकरण का समर्थन करते हुए, अपने रणनीतिक हितों, विशेष रूप से ऊर्जा सुरक्षा और चाबहार बंदरगाह योजना को आगे बढ़ाना चाहिए, साथ ही वैश्विक अप्रसार व्यवस्था को मजबूत करने के लिए कूटनीतिक समाधानों को बढ़ावा देना चाहिए।

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