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भारतीय उच्च शिक्षा क्षेत्र और क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2026

Lokesh Pal June 25, 2025 03:30 14 0

संदर्भ

नवीनतम QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग, 2026 भारत की उच्च शिक्षा की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण विचलन प्रस्तुत करती है। 54 संस्थानों के साथ, देश ने वैश्विक रैंकिंग में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दर्ज किया है।

  • भारत अब अमेरिका, ब्रिटेन और चीन के बाद चौथे सबसे अधिक प्रतिनिधित्व वाले देश के रूप में स्थान पर है। यह न केवल मात्रा में वृद्धि बल्कि भारतीय संस्थानों के बारे में वैश्विक शैक्षणिक धारणा में गुणात्मक बदलाव का भी संकेत देता है।

QS रैंकिंग 2026 में भारत का प्रदर्शन

  • वर्ष 2026 की रैंकिंग में 8 नए भारतीय विश्वविद्यालयों ने प्रवेश किया जो किसी भी देश द्वारा किया गया सर्वाधिक योगदान है। इनमें से 7 निजी विश्वविद्यालय हैं, जो निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका को प्रदर्शित करते हैं।

संस्था

वैश्विक रैंक

भारतीय रैंक

IIT दिल्ली 123 1
IIT बॉम्बे 129 2
IIT मद्रास 180 3

बेहतर रैंकिंग के कारण

  1. नियोक्ता की प्रतिष्ठा में सुधार
    • IIT दिल्ली नियोक्ता प्रतिष्ठा के मामले में विश्व स्तर पर 50वें स्थान पर है।
    • भारतीय STEM स्नातकों की वैश्विक माँग ने संस्थागत विश्वसनीयता को बढ़ावा दिया है।
  2. उच्च शोध परिणाम
    • IIT दिल्ली अब प्रति संकाय उद्धरणों में 86वें स्थान पर है।
    • शोध उत्पादकता में वृद्धि और अधिक अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक दृश्यता ने इसमें महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  3. अंतरराष्ट्रीय सहयोग
    • वैश्विक विश्वविद्यालयों के साथ समझौता ज्ञापन और अनुसंधान साझेदारी ने भारत के शैक्षणिक पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत किया है।
  4. स्थिरता मेट्रिक्स
    • QS ने स्थिरता को रैंकिंग कारक के रूप में प्रस्तुत किया है।
    • IIT दिल्ली वैश्विक स्तर पर 172वें स्थान पर है, जो हरित परिसरों और SDG अनुपालन पर भारत के बढ़ते ध्यान को दर्शाता है।
  5. संस्थागत सुधार
    • सरकारी पहल जैसे कि ‘इंस्टिट्यूशन ऑफ एमिनेंस’ (IoE) ने चुनिंदा विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्तता प्रदान की है, जिससे उत्कृष्टता को बढ़ावा मिला है।

उच्च शिक्षा क्षेत्र में चुनौतियाँ

वैश्विक मान्यता के बावजूद, महत्त्वपूर्ण मुद्दे बने हुए हैं:

  1. निजी उच्च शिक्षा संस्थानों में गुणवत्ता संबंधी चिंताएँ
    • हालाँकि वर्ष 2011-12 और 2021-22 के बीच निजी विश्वविद्यालयों में नामांकन में 497% की वृद्धि हुई है, कई विश्वविद्यालय नियामक ‘ग्रे क्षेत्रों’ में कार्य करते हैं, शैक्षणिक कठोरता, पारदर्शिता और अनुसंधान मानकों से समझौता करते हैं।
  2. बुनियादी ढाँचे एवं संकाय की कमी
    • राज्य और केंद्रीय सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हैं, बुनियादी ढाँचे की कमी है और उन्हें पर्याप्त धन नहीं मिल रहा है।
    • नीति आयोग की रिपोर्ट में विशेष रूप से राज्य विश्वविद्यालयों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है (चित्र देखें)
    • राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालय (SPU) में 40% शिक्षक पद रिक्त हैं, जिससे छात्र-शिक्षक अनुपात खराब है।
  3. कम सरकारी खर्च
    • शिक्षा पर सरकारी व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3% बना हुआ है, जो बढ़ती माँग और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है (NEP ने सकल घरेलू उत्पाद का 6% अनुशंसित किया है)।
  4. विनियामक असंगतताएँ
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के तहत प्रमुख सुधारों के विलंबित कार्यान्वयन से संस्थागत विकास में बाधा आती है। 
      • उदाहरण के लिए, मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) विधेयक, 2018 को पारित करने में विफल रहा, जिसका उद्देश्य सात दशक पुराने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अधिनियम, 1956 को निरस्त करना है।

आगे की राह

  • NEP का त्वरित कार्यान्वयन: बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय (Multidisciplinary Education and Research Universities- MERU) और शैक्षणिक क्रेडिट प्रणाली जैसे सुधारों के लिए स्पष्ट समय-सीमा और रूपरेखा की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक संस्थाओं को मजबूत करना: योग्य संकाय की नियुक्ति, प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों और डिजिटल बुनियादी ढाँचे को उन्नत करने के लिए बढ़े हुए शिक्षा बजट (वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 50,077.95 करोड़ रुपये) का प्रभावी उपयोग।
  • निजी उच्च शिक्षा संस्थानों की नियामक निगरानी को बढ़ावा देना: शैक्षणिक अखंडता बनाए रखने के लिए मान्यता, गुणवत्ता जाँच एवं आवधिक समीक्षा सुनिश्चित करना।
  • उद्योग-अकादमिक संबंधों को बढ़ावा देना: पाठ्यक्रम को बाजार की जरूरतों के अनुरूप बनाने के लिए अनुसंधान पार्कों, नवाचार केंद्रों और इंटर्नशिप को बढ़ावा देना।
  • अंतरराष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देना: शीर्ष विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ विनिमय कार्यक्रम, संयुक्त डिग्री और संकाय सहयोग को प्रोत्साहित करना।
  • नीति आयोग की सिफारिशें 
    • NEP 2020 के अनुसार, उच्च शिक्षा में सार्वजनिक निवेश को GDP के 6% तक बढ़ाना।
    • शोध और शैक्षणिक गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिए प्रदर्शन-आधारित वित्त पोषण को लागू करना।
    • SPU को 13,000 से अधिक वैश्विक पत्रिकाओं तक पहुँच प्रदान करने के लिए वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन (ONOS) का विस्तार करना।
    • शासन, संकाय भर्ती और पाठ्यक्रम डिजाइन के लिए SPU को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना।
    • कौशल विकास और रोजगार क्षमता में सुधार के लिए उद्योग-अकादमिक साझेदारी को मजबूत करना।

निष्कर्ष

QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग, 2026 में भारत का प्रदर्शन एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है, जो वर्षों के वृद्धिशील सुधार, संस्थागत नवाचार और वैश्विक जुड़ाव को दर्शाता है।

  • हालाँकि, इस अकादमिक दृश्यता को शिक्षा में स्थायी गुणवत्ता और समानता में बदलने के लिए, नीति कार्यान्वयन, मजबूत सार्वजनिक वित्त पोषण और विनियामक सुधार इन उपलब्धियों के साथ होने चाहिए तभी भारत वास्तव में एक वैश्विक ज्ञान केंद्र बन सकता है और अपने जनसांख्यिकीय लाभांश को प्राप्त कर सकता है।

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