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नीति आयोग की रिपोर्ट: भारत के लिए डेटा अनिवार्य

Lokesh Pal June 27, 2025 02:52 8 0

संदर्भ

नीति आयोग ने अपनी तिमाही के तीसरे संस्करण के रूप में 24 जून 2025 को ‘भारत की डेटा अनिवार्यता: गुणवत्ता की ओर धुरी’ (India’s Data Imperative: The Pivot Towards Quality) रिपोर्ट जारी की

संबंधित तथ्य

  • इस रिपोर्ट में डिजिटल गवर्नेंस को मजबूत करने, जनता का विश्वास जीतने और कुशल सेवा वितरण सुनिश्चित करने के लिए मजबूत डेटा गुणवत्ता की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया है। 
  • यह रिपोर्ट खराब डेटा गुणवत्ता से उत्पन्न व्यापक चुनौतियों की आलोचनात्मक जाँच करती है और व्यावहारिक, उपयोग में आसान उपकरण प्रस्तुत करती है।

डेटा के बारे में

  • डेटा कच्चे तथ्यों तथा आँकड़ों को संदर्भित करता है जिन्हें एकत्र किया जाता है, मापा जाता है या देखा जाता है।
  • यह मात्रात्मक (संख्यात्मक मान) या गुणात्मक (वर्णनात्मक विशेषताएँ) हो सकता है।
  • अपने कच्चे रूप में डेटा न तो अर्थपूर्ण होता है और न ही प्रासंगिक, जब तक कि उसे उपयुक्त रूप से संसाधित, विश्लेषित और व्याख्यायित न किया जाए।

मुख्य बिंदु

  • एकीकृत भुगतान इंटरफेस (Unified Payments Interface- UPI)
    • संसाधित लेनदेन: अप्रैल 2025 में 17.89 बिलियन लेन-देन। 
    • कुल मूल्य: ₹23.9 ट्रिलियन, जो कई मध्यम आकार की अर्थव्यवस्थाओं के मासिक सकल घरेलू उत्पाद के बराबर है।
  • आधार प्रमाणित: वित्त वर्ष 2024-25 में 27.07 बिलियन। 
    • प्रचलन में आयुष्मान कार्ड: 369 मिलियन से अधिक कार्ड।
  • डिजिलॉकर: 1 फरवरी 2025 तक 46.52 करोड़ उपयोगकर्ता।
  • इंटरनेट कनेक्शन: जून 2024 में 96.96 करोड़ कनेक्शन।
  • ब्रॉडबैंड कनेक्शन: अगस्त 2024 में 94.92 करोड़ कनेक्शन।

डेटा गुणवत्ता: पैमाने से सटीकता की ओर परिवर्तन

  • डेटा गुणवत्ता से तात्पर्य डेटा की सटीकता, स्थिरता, पूर्णता, समयबद्धता, वैधता और विश्वसनीयता से है।
  • उच्च गुणवत्ता युक्त डेटा वास्तविक दुनिया की संस्थाओं या घटनाओं का सटीक रूप से प्रतिनिधित्व करता है, जिसका वर्णन किया जाना चाहिए, यह उपयोगकर्ताओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करता है, और निर्णय लेने, नीति निर्माण एवं सेवा वितरण का समर्थन करने के लिए प्रभावी रूप से उपयोग किया जा सकता है।
  • भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे (जैसे- UPI, आधार, आयुष्मान भारत) ने अभूतपूर्व मानक हासिल किए हैं, लेकिन अगले दशक में विश्वास और दक्षता बनाए रखने के लिए डेटा गुणवत्ता में बदलाव की आवश्यकता है।

डेटा गुणवत्ता का महत्त्व

  • राजकोषीय दक्षता और संसाधन आवंटन
    • राजकोषीय रिसाव (कुप्रबंधन): गलत डेटा, जैसे कि डुप्लिकेट लाभार्थी रिकॉर्ड, अनावश्यक राजकोषीय रिसाव (कुप्रबंधन) की ओर ले जाते हैं।
      • उदाहरण स्वरूप, गलत या दोहराए गए रिकॉर्ड के कारण वार्षिक कल्याण व्यय में लगभग 4 से 7 प्रतिशत तक की अनावश्यक वृद्धि हो जाती है।

    • व्यर्थ संसाधन: गलत डेटा के परिणामस्वरूप संसाधनों का अकुशल आवंटन होता है।
      • उदाहरण: प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना की सूची से 1.71 करोड़ अपात्र लाभार्थियों को हटाने से सरकार को ₹90 बिलियन की अनुमानित बचत हुई, जो डेटा शुद्धता के प्रभावशाली उदाहरणों में से एक है।
  • नीति प्रभावशीलता और सटीकता: असंगत डेटा नीतिगत निर्णयों को विकृत करता है और आवश्यक समायोजन में देरी करता है।
    • उदाहरण: भूमि शीर्षकों में डेटा असंगति के कारण एक जिले में फसल-हानि मुआवजा वितरण में महत्त्वपूर्ण देरी हुई।
  • सार्वजनिक विश्वास और शासन: डिजिटल प्रणालियों में बेमेल रिकॉर्ड या अनुचित दावों की अस्वीकृति से नागरिकों का विश्वास प्रभावित होता है, जिससे सार्वजनिक भागीदारी और सेवा वितरण की प्रभावशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • नागरिकों का विश्वास कम हो जाता है, जिससे कल्याणकारी पहलों पर प्रभाव पड़ता है।
    • उदाहरण: गलत आधार विवरण के कारण कई नागरिकों को पेंशन और स्वास्थ्य लाभ नहीं प्राप्त हो पा रहे हैं।
  • सेवा वितरण में दक्षता: खराब डेटा सेवा वितरण को धीमा कर देता है।
    • उदाहरण: पीएम-किसान योजना में गलत IFSC कोड के कारण सब्सिडी हस्तांतरण में देरी होती है।
  • AI और डेटा-संचालित शासन
    • AI मॉडल डेटा की गुणवत्ता पर निर्भर करते हैं: गलत या अधूरा डेटा यदि AI मॉडल में प्रयुक्त हो, तो उससे उत्पन्न निर्णय न केवल भ्रामक होते हैं, बल्कि वे जनहित को भी नुकसान पहुँचा सकते हैं।
    • AI मतिभ्रम: AI सिस्टम में खराब डेटा मतिभ्रम का कारण बन सकता है, जब AI गलत या भ्रामक सूचना उत्पन्न करता है।
  • खराब डेटा गुणवत्ता की लागत: गलत लाभार्थी जानकारी, कल्याण भुगतान को रोक सकती है और डुप्लिकेट रिकॉर्ड सरकारी व्यय को बढ़ा सकते हैं।
    • डेटा त्रुटियों का सुधार प्रायः महंगी मैन्युअल प्रक्रियाओं पर निर्भर होता है, जिससे सार्वजनिक धन और समय दोनों की अतिरिक्त हानि होती है।
    • डेटा त्रुटियों के कारण बड़ी संख्या में LPG अस्वीकृतियों को ठीक करने में 2 वर्ष लग गए।
  • डेटा गुणवत्ता ऋण: लंबे समय तक अनदेखी की गई डेटा त्रुटियाँ व अक्षमताएँ ‘डेटा ऋण’ का निर्माण करती हैं, जो न केवल प्रणाली की विश्वसनीयता को क्षीण करता है, बल्कि भविष्य के सुधार प्रयासों को भी कठिन बना देता है।
    • इससे एक जटिल समस्या उत्पन्न होती है, जहाँ सिस्टम में अधिक डेटा जोड़े जाने पर समस्याओं को ठीक करना कठिन हो जाता है।

भारत के डेटा इकोसिस्टम में चुनौतियाँ

  • सिस्टमिक डिजाइन की खामियाँ: डेटा प्लेटफॉर्म अक्सर सटीकता की तुलना में मात्रा को प्राथमिकता देते हैं, जिससे डेटा की गुणवत्ता खराब होती है। सटीकता के बजाय गति पर ध्यान केंद्रित करने वाले प्रोत्साहनों के कारण बार-बार त्रुटियाँ होती हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2017 में पीएम-किसान लिंकेज अभियान के दौरान, 4.4 लाख फर्जी छात्र मध्याह्न भोजन निधि का दावा करते पाए गए।
  • डेटा विखंडन: डेटा को मंत्रालयों और विभागों में असंगत प्रारूपों के साथ समूह में संगृहीत किया जाता है। डेटा साझा करना और उसका एकीकरण मैन्युअल और समय लेने वाला हो जाता है।
  • विरासत प्रणाली, आधुनिक दबाव: कई कोर सिस्टम पुरानी तकनीक पर आधारित हैं, जिनमें कोई सत्यापन या ऑडिट ट्रेल नहीं है। मामूली अपडेट सिस्टम को बाधित कर सकते हैं, जिससे डेटा त्रुटियाँ और सेवा में देरी हो सकती है।
    • उदाहरण: वर्ष 2024 में, राशन कार्ड रीडर बुजुर्गों के फिंगरप्रिंट को पहचानने में विफल रहे, जिससे सब्सिडी युक्त अनाज के वितरण में देरी हुई।
  • जवाबदेही की कमी: सिस्टम में स्पष्ट डेटा स्वामित्व नहीं होने से अनसुलझे त्रुटियाँ होती हैं। त्रुटियाँ बनी रहती हैं, और उन्हें ठीक करने के लिए कोई जवाबदेही नहीं है।
    • उदाहरण: वर्ष 2022 के अंत में, पहचान संबंधी समस्याओं के कारण 17,000 स्वास्थ्य बीमा कार्ड ब्लॉक कर दिए गए, जबकि समस्या को ठीक करने के लिए कोई स्पष्ट स्वामी नहीं था।
  • जब गति को सटीकता पर प्राथमिकता दी जाती है, तो जल्दबाजी में की गई डेटा प्रविष्टियाँ खराब गुणवत्ता का डेटा उत्पन्न करती हैं। तीव्र नामांकन लक्ष्य प्रायः सटीकता से रहित होते हैं, जिससे दीर्घकालिक लागत और नीतिगत त्रुटियाँ बढ़ती हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2013 में LPG सब्सिडी रोलआउट के दौरान, केवल 60% घरों को सही तरीके से जोड़ा गया था, और 40% को गति लक्ष्यों को पूरा करने के लिए थोक में अस्वीकार कर दिया गया था।
  • कम उम्मीदें: 80% सटीकता को अक्सर पर्याप्त माना जाता है, जिससे त्रुटियाँ बनी रहती हैं। यह कम-बार मानसिकता पुरानी डेटा त्रुटियों की ओर ले जाती है जो समय के साथ बढ़ती जाती हैं।
    • उदाहरण: वर्ष 2019 में, एक राज्य ने खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया, लेकिन वर्ष 2020 में एक ऑडिट में पाया गया कि लगभग आधे ग्रामीण घरों में अभी भी शौचालय नहीं हैं।

भारत में डेटा गवर्नेंस

  • डेटा संग्रह और प्रबंधन में भारत की यात्रा वर्ष 1881 में पहली जनगणना के साथ शुरू हुई।
  • पिछले कुछ वर्षों में, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organization- NSSO) और केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organization- CSO) जैसी संस्थाओं ने डेटा-संचालित शासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उदय के साथ, प्रबंधन सूचना प्रणाली (Management Information Systems- MIS) अधिक प्रचलित हो गई है, जिससे सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को इनपुट, आउटपुट और परिणामों की निगरानी करने में मदद मिलती है।
  • उदाहरण के लिए
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली  (Health Management Information System- HMIS) विभिन्न स्तरों (गाँव, जिला, राज्य) पर स्वास्थ्य सेवा संकेतकों की निगरानी करती है।
    • डिजिटल इंडिया कार्यक्रम (वर्ष 2015 से) का उद्देश्य सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन सुलभ बनाना है, जिसे कर्नाटक में ‘प्रतिभा डैशबोर्ड’ जैसी पहलों द्वारा समर्थित किया गया है।

डेटा गवर्नेंस गुणवत्ता सूचकांक (Data Governance Quality Index- DGQI) 

  • डेटा गवर्नेंस क्वालिटी इंडेक्स (Data Governance Quality Index- DGQI) को वर्ष 2020 में विकास निगरानी और मूल्यांकन कार्यालय (Development Monitoring & Evaluation Office- DMEO), नीति आयोग द्वारा लॉन्च किया गया था। 
  • यह सरकारी मंत्रालयों और विभागों की डेटा तैयारियों का आकलन करने के लिए एक व्यापक उपकरण है।
  • पहला चरण, DGQI 1.0, डेटा सिस्टम पर केंद्रित था, जबकि वर्ष 2021 में लॉन्च किए गए DGQI 2.0 में डेटा रणनीति और डेटा-संचालित परिणामों को शामिल करने के लिए विस्तार किया गया।

डेटा प्रबंधन और विश्लेषण केंद्र (Centre for Data Management and Analytics- CDMA) 

  • इसकी स्थापना जून 2016 में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) के अधीन बिग डेटा प्रबंधन नीति के कार्यान्वयन पर गठित टास्क फोर्स की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
  • CDMA भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा विभाग में डेटा एनालिटिक्स के लिए नोडल केंद्र है एवं डेटा एनालिटिक्स पर क्षेत्रीय कार्यालयों को मार्गदर्शन प्रदान करता है।

डेटा की गुणवत्ता सुधारने के लिए सरकारी उपाय

  • राष्ट्रीय डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क नीति (National Data Governance Framework Policy- NDGP 2022): वर्तमान डेटा गवर्नेंस पारिस्थितिकी तंत्र की कमियों को दूर करना और सरकारी विभागों में डेटा की गुणवत्ता को बढ़ाना।
    • डेटा मानकों और साझाकरण की देखरेख के लिए भारत डेटा प्रबंधन कार्यालय (India Data Management Office- IDMO) की स्थापना की जाएगी।
    • कार्यान्वयन: अभी तक पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है, लेकिन भविष्य में डेटा शासन में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होने की उम्मीद है।
  • ओपन डेटा इनिशिएटिव (data.gov.in): डेटा पारदर्शिता, पहुँच और मानकीकरण को बढ़ावा देना।
    • data.gov.in उच्च-मूल्य वाले सरकारी डेटा को मशीन-पठनीय प्रारूपों में साझा करने के लिए एक सार्वजनिक मंच प्रदान करता है।
    • शोध, नवाचार और नीति-निर्माण के लिए डेटा का उपयोग करने के लिए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • राष्ट्रीय डेटा एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म (National Data Analytics Platform – NDAP 2022): NDAP को नीति आयोग द्वारा सरकारी डेटासेट की खोज और पहुँच में सुधार लाने के लिए लॉन्च किया गया था।
    • विभिन्न मंत्रालयों और विभागों से मानकीकृत सरकारी डेटा तक पहुँचने के लिए एक केंद्रीकृत मंच प्रदान करता है।
    • वास्तविक समय डेटा अपडेट सुनिश्चित करता है और डेटा-संचालित अनुसंधान,  विश्लेषण का समर्थन करता है।
  • ओपन डेटा तेलंगाना (2016): शासन में डेटा पारदर्शिता और सार्वजनिक भागीदारी में सुधार करना।
    • यह वर्ष 2017 से सफलतापूर्वक चल रहा है और सरकारी विभागों और नागरिकों के बीच डेटा पारदर्शिता और सहयोग का समर्थन करता है।
  • मंत्रालयों में मुख्य डेटा अधिकारी (Chief Data Officers- CDO): विभागीय स्तर पर डेटा शासन को संस्थागत बनाना और डेटा गुणवत्ता में सुधार करना।
    • डेटा गुणवत्ता और डेटा प्रबंधन की देखरेख के लिए मंत्रालयों में CDO की नियुक्ति।
    • CDO अपने संबंधित विभागों में डेटा मानकों, सत्यापन और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं।

वैश्विक उदाहरण

  • सिंगापुर – डेटा गवर्नेंस और पारदर्शिता
    • सरकारी डेटा कार्यालय मंत्रालयों के बीच डेटा साझा करने का प्रबंधन करता है। 
    • पारदर्शी, मानकीकृत डेटा सुनिश्चित करता है, जिससे सेवाओं में जनता का विश्वास और दक्षता बढ़ती है।
  • न्यूजीलैंड – एकीकृत डेटा अवसंरचना
    • IDI विभिन्न क्षेत्रों (स्वास्थ्य, शिक्षा, आदि) से डेटा को एकीकृत करता है। 
    • नीति-निर्माण और लक्षित हस्तक्षेपों के लिए व्यापक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • ऑस्ट्रेलिया – डेटा रणनीति और मुख्य डेटा अधिकारी
    • डेटा की गुणवत्ता का प्रबंधन करने के लिए विभागों में मुख्य डेटा अधिकारियों की नियुक्ति करता है।
    • विभागवार सहयोग और डेटा अंतर-संचालन को बढ़ाता है।
  • एस्टोनिया – डिजिटल गवर्नेंस और ई-निवास
    • वैश्विक पहुँच के लिए डिजिटल सरकारी सेवाएँ और ई-निवास।
    • सुरक्षित, गुणवत्तापूर्ण डेटा के साथ कुशल सेवा वितरण को सुव्यवस्थित करता है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका – खुला डेटा और डेटा गुणवत्ता मूल्यांकन ढाँचा
    • डेटा की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए ओपन डेटा इनिशिएटिव और DQAF।
    • सार्वजनिक सेवाओं में डेटा पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बढ़ावा देता है।
  • यूनाइटेड किंगडम – राष्ट्रीय डेटा रणनीति
    • सरकारी डेटा कार्यालय राष्ट्रीय डेटा रणनीति को लागू करता है। 
    • डेटा मानकों को सुनिश्चित करता है, समन्वय और सेवा वितरण में सुधार करता है।

डेटा गुणवत्ता में सुधार के लिए आगे की राह

  • डेटा स्वामित्व को संस्थागत बनाना: राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर डेटा संरक्षकों को नामित करना।
    • डेटा गुणवत्ता बनाए रखने के लिए स्पष्ट जवाबदेही सुनिश्चित करना।
  • डेटा गुणवत्ता को प्रोत्साहित करना: गति के बजाय डेटा की सटीकता और पूर्णता को पुरस्कृत करना।
    • प्रदर्शन समीक्षाओं को त्रुटि दर और समयबद्धता जैसे डेटा गुणवत्ता मीट्रिक के साथ संरेखित करना।
    • डेटा गुणवत्ता की निगरानी और सुधार के लिए कल्याण कार्यक्रमों में डेटा स्कोरकार्ड का उपयोग करना।
  • अंतरसंचलनीयता को बढ़ाना: इंटरऑपरेबिलिटी को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि विभिन्न सूचना प्रणालियों के बीच डेटा साझा करने हेतु सामान्य डेटा प्रारूप (Common Data Formats) और स्कीमा (Schemas) विकसित किए जाएँ, जिससे सूचना का सतत्, सुसंगत और विश्वसनीय प्रवाह संभव हो सके।
    • विभागों और प्लेटफॉर्म में डेटा का सुचारू एकीकरण सुनिश्चित करना।

डेटा की गुणवत्ता सुधारने के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरण: नीति आयोग

  • डेटा गुणवत्ता स्कोरकार्ड: सरकारी विभागों में सटीकता, पूर्णता और समयबद्धता जैसी प्रमुख डेटा गुणवत्ता विशेषताओं की निगरानी करता है।
    • उपयोग: कमियों की पहचान करने और सुधारात्मक कार्रवाई करने में मदद करता है।
  • डेटा गुणवत्ता परिपक्वता ढाँचा: डेटा प्रथाओं और परिपक्वता स्तरों (आधारभूत से संस्थागत) का आकलन करता है।
    • उपयोग: प्रगति की निगरानी करने और सुधार योजनाएँ बनाने में मदद करता है।
  • त्वरित सुधारों हेतु ‘स्टार्टर किट’: त्वरित डेटा गुणवत्ता सुधार के लिए व्यावहारिक कार्रवाई प्रदान करता है।
    • विशेषताएँ: वास्तविक समय सत्यापन, डेटा स्टीवर्ड को असाइन करना और शिकायत निवारण को डेटा सुधारों से जोड़ना।
  • डेटा कस्टोडियनशिप और स्वामित्व उपकरण: डेटा अखंडता सुनिश्चित करने के लिए डेटा स्टीवर्ड को असाइन करता है।
    • उपयोग: निरंतर अपडेट और सुधारों की देखरेख करता है, विशेष रूप से आधार जैसे उच्च-मूल्य वाले डेटासेट में।
  • डेटा इंटरऑपरेबिलिटी फ्रेमवर्क: अखंडता बनाए रखते हुए सिस्टम में सुचारू डेटा एक्सचेंज सुनिश्चित करता है।
    • उपयोग: आधार, UPI और पीएम-किसान प्रणालियों के बीच एकीकरण की सुविधा देता है।
  • स्वचालित डेटा प्रविष्टि और सत्यापन उपकरण: वास्तविक समय सत्यापन के साथ डेटा प्रविष्टि के दौरान मानवीय त्रुटियों को कम करता है।
    • उपयोग: पीएम-किसान में गलत लाभार्थी डेटा जैसी त्रुटियों को रोकने के लिए उपयोग किया जाता है।

    • DBT जैसी आधार-लिंक्ड योजनाओं को सभी प्रणालियों में एक समान डेटा प्रारूप के साथ संचालित किया जाना चाहिए।
  • डेटा सत्यापन को स्वचालित करना: डेटा कैप्चर बिंदु पर वास्तविक समय सत्यापन लागू करना।
    • सिस्टम में गलत डेटा को प्रवेश करने से रोककर डेटा प्रविष्टि त्रुटियों को कम करना।
    • ट्रांसपोज्ड अंकों को रोकने हेतु पीएम-किसान के लिए डेटा प्रविष्टि जाँच को स्वचालित करना।
  • डेटा प्रबंधन संस्कृति को बढ़ावा देना: सरकारी स्तरों पर डेटा प्रबंधन की संस्कृति का निर्माण करना। डेटा गुणवत्ता के लिए साझा जिम्मेदारी को बढ़ावा देना, इसे सार्वजनिक सेवा वितरण का अभिन्न अंग बनाना।
    • मंत्रालयों में डेटा प्रबंधन प्रथाओं का आकलन और सुधार करने के लिए डेटा गुणवत्ता ढाँचे का उपयोग करना।
  • डेटा सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करना: डेटा शासन ढाँचे का विकास करना, जो सुरक्षा और गोपनीयता को प्राथमिकता देते हैं।
    • सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया जैसे डेटा गोपनीयता के लिए वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन करना।
  • नियमित ऑडिट और गुणवत्ता जाँच: उच्च-मूल्य वाले डेटासेट के लिए आवधिक ऑडिट तथा गुणवत्ता जाँच स्थापित करना।
    • डेटा स्थिरता बनाए रखने के लिए आधार जैसे डेटाबेस को नियमित रूप से अपडेट एवं सत्यापित करना।

निष्कर्ष:

डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने से लेकर डेटा क्वालिटी को प्राथमिकता देने तक भारत का बदलाव विश्वास को बनाए रखने, शासन को बढ़ाने और AI-संचालित सार्वजनिक सेवाओं को आगे बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण है। स्वामित्व को संस्थागत बनाने, सटीकता को प्रोत्साहित करने और अंतर-संचालन को बढ़ावा देने के जरिए, भारत एक मजबूत डेटा इकोसिस्टम का निर्माण कर सकता है जो सटीकता, दक्षता और समान सेवा वितरण सुनिश्चित करता है।

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