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हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की घटना और फ्लैश फ्लड

Lokesh Pal June 28, 2025 02:31 13 0

संदर्भ

हिमाचल प्रदेश में कई बार बादल फटने के कारण भारी मानसूनी वर्षा से फ्लैश फ्लड (Flash Floods) की स्थिति उत्पन्न हो गई, जिससे संपत्तियों को व्यापक नुकसान पहुँचा और जान-माल की हानि हुई।

इंदिरा प्रियदर्शिनी जलविद्युत परियोजना: 4.8 मेगावाट (2.4 x 2) रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत संयंत्र का विकास मनुनी खड्ड धारा (Manuni Khad Stream) पर किया जा रहा है।

संबंधित तथ्य

  • इससे इंदिरा प्रियदर्शिनी जलविद्युत परियोजना प्रभावित हुई है।

बदल फटना (क्लाउडबर्स्ट) के बारे में

  • बादल फटने को “लगभग 10 किमी. x 10 किमी. क्षेत्र में एक घंटे में 10 सेमी. या उससे अधिक की वर्षा” के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • तंत्र: पर्वतीय उत्थान (Orographic Lift) नामक प्रक्रिया के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में सामान्यत:
    • गर्म वायु पहाड़ी ढलानों के साथ ऊपर उठती है।
    • यह ऊँचाई पर कम दबाव के कारण फैलती है और ठंडी हो जाती है।
    • ठंडा होने से संघनन होता है और आर्द्रता उत्पन्न होती है।
    • अगर गर्म आर्द्र वायु का आरोहण होता है, तो यह वर्षा में देरी कर सकती है जब तक कि एक बड़ी मात्रा अचानक संघनित होकर मूसलाधार वर्षा के रूप में न गिर जाए।
  • भारत में घटनाएँ: भारत में, विशेषतः हिमालय, पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर पहाड़ी राज्यों जैसे क्षेत्रों में मानसून के मौसम में बादल फटने की घटनाएँ प्रायः देखी जाती हैं।
  • फ्लैश फ्लड से संबंध: बादल फटने की घटनाएँ प्रायः ‘फ्लैश फ्लड’ का कारण बनती हैं और मई-सितंबर के बीच यह घटनाएँ सामान्य हो गई हैं, जब देश के अधिकांश हिस्सों में दक्षिण-पश्चिम मानसून का मौसम होता है।
  • प्रभाव
    • अचानक, स्थानीय स्तर पर भारी वर्षा।
    • प्रायः जल निकासी के अधिक होने और तेजी से जल जमा होने के कारण बाढ़ और भूस्खलन होता है।
  • पूर्वानुमान: छोटे क्षेत्र और कम समय सीमा के कारण पता लगाना कठिन है।

फ्लैश फ्लड (Flash Floods) 

 

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department-IMD) के अनुसार, फ्लैश फ्लड एक अचानक, तीव्र बाढ़ की घटना है, जो आमतौर पर थोड़े समय के भीतर, आमतौर पर 6 घंटे से भी कम समय में, तीव्र वर्षा के कारण होती है, जो प्रायः बादल फटने या भारी आंधी के साथ होती है।

फ्लैश फ्लड के कारण

फ्लैश फ्लड वर्षा के अलावा अन्य कारणों से भी आ सकती है।

  • बांध या तटबंध की विफलताएँ: संरचनात्मक दरारों से भारी जल प्रवाह हो सकता है, जिससे अचानक नीचे की ओर बाढ़ आ सकती है।
  • बादल फटना: भारत में, फ्लैश फ्लड प्रायः बादल फटने से जुड़ी घटना होती है, जो अचानक, तीव्र वर्षा की घटनाएँ होती हैं, जो थोड़े समय के अंतर्गत होती हैं।
  • पिघलते ग्लेशियर: हिमालयी राज्यों को ग्लेशियरों के पिघलने के कारण बनी ग्लेशियल झीलों की चुनौती का सामना करना पड़ता है।
  • मलबे का प्रवाह और मृदा का धँसना: भूस्खलन या मलबे के जाम से जल का प्रवाह बदल सकता है या अवरुद्ध हो सकता है, जिससे ‘फ्लैश फ्लड’ आ सकती है।
  • शहरीकरण और खराब जल निकासी व्यवस्था: व्यापक कंक्रीट सतहों और अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियों वाले शहरी क्षेत्रों में ‘फ्लैश फ्लड’ आने की संभावना होती है। अभेद्य सतहें जल को जमीन में निस्पंदन करने से रोकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप तीव्र बहाव होता है और बाढ़ का जोखिम बढ़ जाता है।
  • स्थलाकृति और मृदा का प्रकार: खड़ी ढलान, मृदा का खराब अवशोषण और अवरोधक संरचनाएँ फ्लैश फ्लड के जोखिम को और बढ़ा देती हैं।

हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने और फ्लैश फ्लड आने की बढ़ती घटनाओं के कारण

हिमालयी राज्यों में बादल फटने और फ्लैश फ्लड की बढ़ती आवृत्ति और गंभीरता कई प्राकृतिक और मानवजनित कारकों का परिणाम है।

  • ये कारक आपस में जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे को बढ़ाते हैं, जिससे क्षेत्र की संवेदनशीलता बढ़ती है।

1. पर्वतीय और स्थलाकृतिक कारक (Orographic and Topographical Factors)

  • हिमालय क्षेत्र की खड़ी ढलानें और संकरी घाटियाँ बादल फटने के लिए विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
  • जब बंगाल की खाड़ी से आर्द्र वायु पहाड़ों पर अवरोहित होती हैं, तो वे ठंडी होकर संघनित हो जाती हैं, जिससे थोड़े समय के लिए तीव्र वर्षा होती है।
  • हालिया उदाहरण: जून 2025 में, हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और कांगड़ा जिलों में कई बादल फटने से भयंकर बाढ़ आई, जिससे बुनियादी ढाँचा नष्ट हो गया और जान-माल का नुकसान हुआ।

2. जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग

  • वैश्विक तापमान में वृद्धि ने जल चक्र को तीव्र कर दिया है, जिससे वाष्पीकरण दर और वायुमंडलीय आर्द्रता की मात्रा बढ़ गई है।
  • हिमालयी क्षेत्र वैश्विक औसत से अधिक दर से गर्म हो रहा है, जिससे बादल फटने की घटनाएँ और वर्षा की तीव्रता बढ़ रही है।
  • हालिया उदाहरण: सिक्किम और उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में देखी गई ग्लेशियल बर्स्ट की घटना और वर्षा की तीव्रता में वृद्धि को वैश्विक तापमान वृद्धि से जोड़ा गया है।
    • अक्टूबर 2023 में सिक्किम में ल्होनक झील में प्रस्फुटन जलवायु-प्रेरित प्राकृतिक आपदाओं का एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।

3. ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOFs)

  • बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण हिमालय में ग्लेशियल झीलें बन गई हैं। ये झीलें विशेष रूप से खतरनाक हैं क्योंकि इनके प्राकृतिक बाँध टूट सकते हैं, जिससे भारी मात्रा में जल निकल सकता है।
  • वर्तमान उदाहरण: वर्ष 2023 में सिक्किम में ल्होनक झील में प्रस्फुटन से भारी बाढ़ आई, बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचा और जानमाल का नुकसान हुआ।

4. वनों की कटाई और भूमि उपयोग में परिवर्तन

  • अनियंत्रित निर्माण, वनों की कटाई और नदी के किनारों पर अतिक्रमण ने भूमि की प्राकृतिक अवशोषण क्षमता को कम कर दिया है।
    • बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में शहरी विस्तार और बुनियादी ढाँचे के विकास ने अपवाह को बढ़ाकर भारी बारिश के प्रभावों को बढ़ा दिया है।
  • हाल ही का उदाहरण: अगस्त 2024 में, हिमाचल प्रदेश के कुल्लू-मनाली क्षेत्र में कई बादल फटने से विनाशकारी बाढ़ आई।
    • पहाड़ी राज्यों में, बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में सड़कों, इमारतों और अन्य बुनियादी ढाँचे के निर्माण ने इस क्षेत्र की ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा दिया है।

आगे की राह

  • उन्नत मौसम पूर्वानुमान और निगरानी: अधिकारियों और पर्यटकों को वास्तविक समय पर मौसम संबंधी अपडेट और प्रारंभिक चेतावनी प्रदान करने के लिए उन्नत मौसम विज्ञान प्रणालियों को लागू करना।
  • आपातकालीन प्रतिक्रिया अभ्यास: अप्रत्याशित घटनाओं के लिए तैयारियों को सुनिश्चित करने के लिए सभी हितधारकों को शामिल करते हुए नियमित रूप से मॉक ड्रिल आयोजित करना।
  • सामुदायिक जागरूकता: आपदा की तैयारी और प्रतिक्रिया के बारे में स्थानीय आबादी को शिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना।
  • बुनियादी ढाँचे की योजना बनाना: सुनिश्चित करना कि हिमालयी क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे का विकास आपदा जोखिमों को कम करने के लिए पर्यावरणीय दिशा-निर्देशों का पालन करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: आपदा प्रबंधन में सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना।

निष्कर्ष

बादल फटने और फ्लैश फ्लड जैसी चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और गंभीरता हिमालयी क्षेत्र में जीवन और बुनियादी ढाँचे दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न करती है। भविष्य में ऐसी आपदाओं के प्रभावों को कम करने के लिए बेहतर आपदा प्रबंधन रणनीतियों और सतत् विकास प्रथाओं की तत्काल आवश्यकता है।

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