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भारत में जल संकट

Lokesh Pal June 27, 2025 05:30 13 0

संदर्भ:

विश्व की 18 % जनसंख्या के निवास स्थान के साथ, केवल 4 % ताजे जल संसाधनों के साथ, भारत गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है, जो जलवायु परिवर्तन के निरंतर प्रभावों से और भी अधिक बढ़ गया है।

भारत के जल संसाधनों की स्थिति:

  • व्यापक जल तनाव: नीति आयोग द्वारा प्रकाशित वर्ष 2018 समग्र जल प्रबंधन सूचकांक इंगित करता है कि भारत की आबादी का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा उच्च से लेकर चरम जल तनाव का सामना कर रहा है, लगभग 600 मिलियन भारतीय जल की कमी का सामना कर रहे हैं।
  • बढ़ती मांग: अनुमान एक गंभीर भविष्य की ओर संकेत करते हैं: वर्ष 2030 तक भारत में जल की मांग इसकी उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी हो जाने की उम्मीद है, जिससे लाखों लोगों के लिए गंभीर कमी पैदा हो जाएगी।
  • वैश्विक रैंकिंग: विश्व संसाधन संस्थान ने वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक जल-तनावग्रस्त देशों के अपने आकलन में, भारत को अत्यधिक जल-तनाव का सामना कर रहे 17 देशों में 13वां स्थान दिया है।
  • संकटग्रस्त शहर: बेंगलुरु, चेन्नई और दिल्ली जैसे शहर शहरी जल संकट के प्रतीक बन गए हैं। चेन्नई ने वर्ष 2019 में गंभीर जल संकट का अनुभव किया, जिससे लाखों लोगों को जल की कमी से जूझना पड़ा।
  • शहरों में भूजल का ह्रास: नीति आयोग ने चेतावनी दी है कि वर्ष 2030 तक 21 भारतीय शहरों में भूजल पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा, जिससे अनुमानित 100 मिलियन लोग प्रभावित होंगे

भारत में जल संकट के कारण:

  • भूजल का ह्रास: भारत की जल आवश्यकताओं का एक महत्वपूर्ण भाग भूजल से पूरा होता है, लेकिन इसका स्तर तेजी से घट रहा है।
    • भारत में सिंचित कृषि का 60% भाग भूजल पर निर्भर है।
    • देश की 85% पेयजल आवश्यकताएं भूजल स्रोतों से पूरी होती हैं।
  • भूजल प्रदूषण: भूजल गुणवत्ता पर वर्ष 2024 की वार्षिक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत के 70% जल संसाधन दूषित हैं
    • प्रतिवर्ष 200,000 लोग जलजनित बीमारियों के कारण मर जाते हैं (नीति आयोग, 2018)।
    • फ्लोराइड और आर्सेनिक संदूषण से 19 राज्यों के 230 मिलियन लोग प्रभावित हैं
    • यमुना जैसी नदियाँ भी गंभीर रूप से प्रदूषित हैं।
  • अनियमित मानसून: मानसून का पैटर्न अप्रत्याशित हो गया है, समय से पहले या देर से आना, और वर्षा की मात्र में भिन्नता (बहुत अधिक या बहुत कम) होना। यह सीधे कृषि उत्पादन को नुकसान पहुंचाता है, जो मानसून की वर्षा पर बहुत अधिक निर्भर है।
  • सूखा-प्रभावित क्षेत्र: भारत की 33% भूमि सूखा-प्रभावित है, जिसके कारण मृदा में नमी की कमी हो रही है और फसल की वृद्धि में बाधा आ रही है।
  • पिघलते ग्लेशियर: हालांकि ग्लेशियर पिघलने से अस्थायी रूप से नदी का प्रवाह बढ़ सकता है, लेकिन दीर्घावधि में, उनके भंडार के समाप्त होने के कारण जल उपलब्धता में कमी आ सकती है।
  • कृषि पद्धति: चावल और गन्ना जैसी फसलें, जिनके लिए भारी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है
  • जल निर्यात: नीति आयोग और आर्थिक सर्वेक्षण में यह उल्लेख किया गया है कि चावल का निर्यात करना जल निर्यात करने के समान है, क्योंकि इसकी खेती में बहुत अधिक जल का उपयोग किया जाता है।
    • पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जल-संकटग्रस्त होने के बावजूद, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी सरकारी नीतियों के कारण भूजल का अत्यधिक दोहन करके धान की खेती करते हैं।
  • सीमित सूक्ष्म सिंचाई: यद्यपि ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों से 50% जल की बचत हो सकती है, लेकिन वर्तमान में इनका उपयोग केवल 9% कृषि योग्य भूमि पर ही किया जाता है।

जल की कमी का आर्थिक प्रभाव:

  • विश्व बैंक का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जल की कमी से वर्ष 2050 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 12% की हानि हो सकती है, जो अरबों डॉलर की आर्थिक हानि होगी।
    • किसान विशेष रूप से असुरक्षित हैं, क्योंकि वर्षा में 100 मिमी की कमी से खरीफ सीजन के दौरान उनकी आय में 15% और रबी सीजन के दौरान 7% की कमी आ सकती है
  • असिंचित क्षेत्रों में आय में 25% तक की गिरावट देखी जा सकती है।

सरकारी पहल:

  • अटल भूजल योजना: विश्व बैंक द्वारा समर्थित यह पहल समुदाय-नेतृत्व वाले भूजल प्रबंधन को बढ़ावा देती है। यह वर्तमान में सात जल-संकटग्रस्त राज्यों में 8,000 ग्राम पंचायतों में सक्रिय है।
  • राष्ट्रीय जल मिशन: इसका लक्ष्य वर्ष 2025 तक जल उपयोग दक्षता में 20% सुधार करना है
  • बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना (DRIP): विश्व बैंक ने भारत में 300 बड़े बांधों के आधुनिकीकरण के लिए 1 बिलियन डॉलर का निवेश किया है।
  • मेघालय जल संचयन: एशियाई विकास बैंक ने मेघालय में जल संचयन परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए 50 मिलियन डॉलर का ऋण प्रदान किया है
  • सौर ऊर्जा चालित सिंचाई: सौर ऊर्जा चालित सिंचाई प्रणालियों को बढ़ावा देने से अत्यधिक भूजल निष्कर्षण और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है।

जल संकट के प्रबंधन में विद्यमान चुनौतियाँ:

  • वित्त पोषण का अंतर: जल अवसंरचना में सुधार के लिए वर्ष 2030 तक 6.7 ट्रिलियन डॉलर का भारी वित्तीय घाटा विद्यमान है। यह चिली और पेरू जैसे देशों से सबक लेते हुए, बढ़े हुए निजी निवेश की आवश्यकता को उजागर करता है।
  • जल लेखांकन का अभाव: एक बड़ी बाधा जल उपयोग के लिए उचित लेखांकन का अभाव है, जिससे यह पता लगाना कठिन हो जाता है कि कहां और कितना जल उपभोग किया जा रहा है।

आगे की राह:

  • जन भागीदारी: प्रभावी जल संरक्षण और प्रबंधन के लिए सक्रिय सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण है।
    • अटल भूजल योजना और जल शक्ति अभियान जैसी योजनाओं को, जिनमें जल संचयन में समुदायों को शामिल किया जाता है, जागरूकता और प्रोत्साहन बढ़ाकर मजबूत किए जाने की आवश्यकता है।
  • नीति संरेखण: जल, ऊर्जा और जलवायु नीतियों को एकीकृत करना आवश्यक है।
  • एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण: जैसा कि विश्व बैंक द्वारा वकालत की गई है, “एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण” मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के अंतर्संबंध को मान्यता देता है।

निष्कर्ष:

भारत में जल संकट एक जटिल और गंभीर मुद्दा है। एक सतत जल भविष्य को सुरक्षित करने के लिए मजबूत नीतियों, महत्वपूर्ण निवेश, तकनीकी अपनाने और सबसे महत्वपूर्ण रूप से व्यापक जन भागीदारी का संयोजन आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: अनेक राष्ट्रीय नीतियों के बावजूद, भारत को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस संकट के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारकों पर चर्चा करें। उभरती जल चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिए आवश्यक सुधारों का सुझाव दें।

(10 अंक, 150 शब्द)

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