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परिवर्तित वैश्विक व्यवस्था में भारत का भू-रणनीतिक पुनर्गठन

Lokesh Pal June 30, 2025 02:28 13 0

संदर्भ

शोधकर्त्ताओं का आग्रह है कि भारत को अपनी विदेश नीति को तेजी से विकसित हो रहे वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप ढालना चाहिए तथा शीतयुद्ध की रणनीतियों तथा काल्पनिक ऐतिहासिक आख्यानों से आगे बढ़कर व्यावहारिक, बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

  • हाल ही में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी विश्व व्यवस्था को एक पश्चिमी मिथक बताते हुए कहा था कि यह पुरानी हो चुकी है तथा वैश्विक नियमों को वर्तमान वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए विकसित किया जाना चाहिए।

परिवर्तित वैश्विक व्यवस्था

  • यूरेशिया में भू-राजनीतिक परिवर्तन: यूरेशिया में हाल ही में हुए प्रमुख संघर्ष, जैसे कि रूस-यूक्रेन युद्ध, इजरायल-गाजा और इजराइल-ईरान-अमेरिका संघर्ष, वैश्विक भू-राजनीति को नया आकार दे रहे हैं।
    • ये संघर्ष न केवल गठबंधनों का पुनर्गठन कर रहे हैं, बल्कि अर्थव्यवस्थाओं में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं, वैश्विक शक्ति संतुलन को परिवर्तित कर रहे हैं एवं एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ बना रहे हैं।
  • चीन का उदय और वैश्विक पुनर्गठन: चीन एक प्रमुख आर्थिक और तकनीकी महाशक्ति के रूप में उभरा है, जिससे वैश्विक शक्ति का पुनर्संतुलन हुआ है।
    • वर्ष 2023 में, यूरोपीय संघ के साथ चीन का व्यापार $1 ट्रिलियन से अधिक हो गया, जबकि भारत का आसियान के साथ व्यापार $120 बिलियन है।
  • पश्चिमी पतन: ट्रंप के अधीन अमेरिका (2025) बहुपक्षवाद से पीछे हटने का संकेत देता है, जिसमें ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीतियों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिससे वैश्विक शासन में अनिश्चितता पैदा होती है।
    • यूरोपीय संघ आर्थिक ठहराव का सामना कर रहा है, जिसकी वृद्धि लगभग 1% है, जिससे इसका वैश्विक प्रभाव और चीन का मुकाबला करने की क्षमता सीमित हो गई है।
  • विवैश्वीकरण: विवैश्वीकरण की दिशा में बढ़ती प्रवृत्तियाँ पश्चिमी देशों द्वारा अपनाई जा रही अधिक राष्ट्रवादी और अंतर्मुखी नीतियों के रूप में प्रकट होकर लगातार सशक्त होती जा रही हैं।
    • उदाहरण: अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत सहित कई देशों पर टैरिफ व्यापार युद्ध की घोषणा की (26 प्रतिशत टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है)।
  • बहुध्रुवीयता: उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था है, जिसमें विभिन्न शक्ति केंद्र अपनी स्वायत्तता और प्रभाव का दावा करते हैं।

वैश्विक व्यवस्था के बारे में

  • यह शक्ति और अधिकार की व्यवस्था को संदर्भित करता है, जो वैश्विक कॉमन्स, जैसे- पर्यावरण, व्यापार, सुरक्षा और मानवाधिकारों के प्रबंधन तथा वैश्विक स्तर पर कूटनीति एवं वैश्विक राजनीति के संचालन के लिए रूपरेखा प्रदान करता है।
  • इसमें मानदंड, नियम, संस्थाएँ और शक्ति की गतिशीलता शामिल है, जो वैश्विक मंच पर देशों और अन्य संस्थाओं के व्यवहार और अंतःक्रियाओं को आकार देती है।
  • आधुनिक इतिहास में वैश्विक व्यवस्था के उदाहरण
    • वेस्टफेलियाई विश्व व्यवस्था; अंतर-विश्वयुद्ध वैश्विक व्यवस्था; द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था; शीतयुद्ध के बाद की विश्व व्यवस्था।

    • क्षेत्रीय शक्तियों का उदय और ब्रिक्स, अफ्रीकी संघ, आसियान आदि जैसे ब्लॉकों का गठन।
  • मिनीलेटरलिज्म का उदय: यह एक कूटनीतिक दृष्टिकोण है, जिसमें देशों का एक छोटा समूह विशिष्ट मुद्दों या चुनौतियों पर सहयोग करता है, साझा हितों और लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिससे तेजी से निर्णय लेने और अधिक कुशल परिणाम प्राप्त करने की अनुमति मिलती है।
    • भारत क्वाड में पश्चिमी शक्तियों के साथ और शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) में प्रतिद्वंद्वी एशियाई शक्तियों के साथ सहयोग कर रहा है।
  • क्षेत्रीय भू-राजनीति पर ध्यान: उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था क्षेत्रीय भू-राजनीति के विकास, क्षेत्रीय लाभ को सुरक्षित करने पर जोर देती है।
    • क्षेत्रीय सहयोग और कनेक्टिविटी को बढ़ाने में अफ्रीकी संघ और आसियान की सफलता समग्र विकास को सक्षम बनाती है।
  • बहु संकट की स्थिति: जलवायु परिवर्तन, महामारी, आतंकवाद, युद्ध, संघर्ष और आर्थिक संकट जैसी साझा वैश्विक चुनौतियाँ राष्ट्रों के बीच अधिक सहयोग और सहभागिता की आवश्यकता की मांग करती हैं
  • आत्मनिर्भरता: प्रत्येक देश और क्षेत्र को खाद्यान्न, ईंधन, उर्वरक, प्रौद्योगिकी, टीके या त्वरित आपदा प्रतिक्रिया आदि के लिए स्वयं पर निर्भर रहना होगा।
    • भारत ने पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद, राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए, रियायती मूल्य पर रूसी कच्चा तेल प्राप्त किया।

भारत के लिए अवसर

  • आर्थिक विकास और विविधीकरण: भारत का आर्थिक उत्थान (अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी) वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति मजबूत करने का एक बड़ा अवसर प्रदान करता है।
    • भारत में FDI वर्ष 2024 में 81 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जो निवेशकों के बढ़ते विश्वास को दर्शाता है।
    • भारत आसियान, अफ्रीका और ग्लोबल साउथ के साथ व्यापार बढ़ाकर वैश्विक स्तर पर अपनी आर्थिक स्थिति का विस्तार कर सकता है।
      • आसियान में चीन का व्यापार हिस्सा 1 ट्रिलियन डॉलर होने के कारण, इस क्षेत्र में भारत का विकास एक चुनौती तो है, लेकिन एक बड़ा अवसर भी है।
  • क्षेत्रीय नेतृत्व और वैश्विक दक्षिण का समर्थन: वैश्विक दक्षिण में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका इसे विकासशील देशों की अभिव्यक्ति के रूप में स्थापित करती है, जो अधिक समावेशी वैश्विक शासन का समर्थन करता है।
    • जलवायु परिवर्तन, व्यापार समानता और स्थिरता जैसे वैश्विक मुद्दों पर भारत की नेविगेट करने की क्षमता वैश्विक मंचों पर इसके प्रभाव को बढ़ा सकती है।
    • IMEC दक्षिण एशिया, खाड़ी और यूरोप के बीच नए व्यापार मार्ग प्रदान करता है।
  • रणनीतिक साझेदारी और रक्षा सहयोग: F-35 जेट और प्रीडेटर ड्रोन जैसे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सैन्य सहयोग के माध्यम से अमेरिका के साथ भारत के गहराते रक्षा संबंध न केवल इसकी रक्षा क्षमताओं को सुदृढ़ करेंगे, बल्कि इसकी रणनीतिक स्वायत्तता को भी बढ़ावा देंगे।।
    • भारत इन संबंधों का लाभ उठाकर एक मजबूत सैन्य-औद्योगिक आधार हासिल कर सकता है, किसी एक आपूर्तिकर्ता पर निर्भरता को कम कर सकता है और अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ा सकता है।
  • तकनीकी और डिजिटल नेतृत्व: भारत UPI, आधार और CoWIN जैसी पहलों के साथ डिजिटल शासन में अग्रणी के रूप में उभर रहा है।
    • भारत इन डिजिटल समाधानों को वैश्विक स्तर पर निर्यात कर सकता है, विशेषतः विकासशील देशों को, जो शासन और प्रौद्योगिकी के लिए स्केलेबल समाधान चाहते हैं।
    • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), सेमीकंडक्टर और अंतरिक्ष अन्वेषण पर भारत का ध्यान तकनीकी महाशक्ति बनने और वैश्विक नवाचार में एक प्रमुख अभिकर्ता बनने के अवसर प्रदान करता है।
  • वैश्विक मंच पर स्वयं को फिर से स्थापित करना: भारत G20 और ब्रिक्स जैसे वैश्विक मंचों पर स्वयं को स्थापित कर सकता है।
    • गुटनिरपेक्षता और रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति भारत की ऐतिहासिक प्रतिबद्धता इसे प्रमुख शक्तियों के बीच तनाव को दूर करने और वैश्विक नेता के रूप में अपनी जगह बनाने की अनुमति देती है।

भारत की भू-रणनीतिक चुनौतियाँ

  • चीन के साथ तनाव: चीन के साथ सीमा विवाद, विशेष रूप से लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र में, अनसुलझे हैं, जिससे सैन्य टकराव हो रहे हैं।
    • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (China-Pakistan Economic Corridor- CPEC) जैसी परियोजनाओं के माध्यम से हिंद महासागर में चीन का बढ़ता प्रभाव, भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है।
  • अस्थिर पड़ोस: भारत को पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और म्याँमार तथा श्रीलंका में राजनीतिक अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है, जिससे इसकी सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभाव प्रभावित हो रहे हैं।
    • पाकिस्तान से सीमा पार आतंकवाद (जैसे- वर्ष 2025 पहलगाम हमला) और कश्मीर में चल रहे तनाव भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाते हैं।
  • प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों को संतुलित करना: भारत को अमेरिका, रूस और चीन के साथ जटिल संबंधों को प्रबंधित करना होगा। इसे रणनीतिक स्वायत्तता और रक्षा सहयोग के लिए अमेरिका जैसी शक्तियों के साथ तालमेल बिठाने के लिए एक संवेदनशील स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
    • रूस का घटता प्रभाव और भारत की अपनी रक्षा आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने की आवश्यकता भी संबंधों को जटिल बनाती है।
  • वैश्विक आर्थिक बदलाव: भारत की आर्थिक वृद्धि को वैश्विक व्यापार, विशेष रूप से आसियान और यूरोप में चीन के प्रभुत्व से चुनौती मिल रही है।
    • टैरिफ युद्धों सहित पश्चिम में संरक्षणवादी नीतियों ने वैश्विक बाजारों तक भारत की पहुँच को और सीमित कर दिया है।
  • यूरेशिया और मध्य पूर्व में अस्थिरता: रूस-यूक्रेन संकट और मध्य पूर्व में तनाव जैसे यूरेशियाई संघर्ष भारत की ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीतिक संबंधों को प्रभावित करते हैं।
    • ईरान-सऊदी प्रतिद्वंद्विता तथा अमेरिका-मध्य पूर्व की गतिशीलता भारत को ईरान और सऊदी अरब से ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करते हुए दोनों पक्षों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने के लिए मजबूर करती है।
    • वर्ष 2025 में, भारत ने तेल आयात में विविधता लाकर और आपूर्ति स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए रणनीतिक भंडार का लाभ उठाकर इजरायल-ईरान संघर्ष से प्रेरित ऊर्जा बाजार में व्यवधानों को दूर किया।
  • जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा: जलवायु परिवर्तन एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है, जिसमें भारत प्राकृतिक आपदाओं, जल की कमी और खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताओं का सामना कर रहा है, जो क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
    • भारत को अपने विकास लक्ष्यों को सुनिश्चित करते हुए वैश्विक जलवायु परिवर्तन वार्ता का भी नेतृत्व करना चाहिए।
  • साइबर सुरक्षा और तकनीकी चुनौतियाँ: बढ़ते साइबर खतरे और तकनीकी वर्चस्व की दौड़ (विशेष रूप से AI, 5G और साइबर सुरक्षा में) के लिए भारत को अपने डिजिटल बुनियादी ढाँचे और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने की आवश्यकता है।

भारतीय विदेश नीति में ऐतिहासिक सोच की आलोचना

  • शीतयुद्ध के समय के गठबंधन: बदलती वैश्विक व्यवस्था के बावजूद भारत की विदेश नीति प्रायः शीतयुद्ध के दौर के गठबंधनों और विचारधाराओं से प्रेरित है।
    • ये पुराने गठबंधन नई भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का जवाब देने में भारत के लचीलेपन को सीमित करते हैं।
  • ऐतिहासिक संबंधों पर अत्यधिक निर्भरता: रूस और यूरोप के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंधों पर कभी-कभी अत्यधिक जोर दिया जाता है, तब भी जब वे वर्तमान वैश्विक गतिशीलता के साथ संरेखित नहीं होते।
    • उदाहरण के लिए, रूस पर भारत का ध्यान पश्चिम और चीन के साथ जुड़ाव में बाधा बन सकता है।
  • अतीत के व्यापार मार्गों को प्रासंगिक बनाना: कुछ विद्वान आधुनिक भू-राजनीतिक वास्तविकताओं पर विचार किए बिना, खाड़ी और यूरोप के माध्यम से प्राचीन व्यापार मार्गों को प्रासंगिक बनाते हैं।
    • अतीत, वर्तमान के साथ संरेखित नहीं है, जहाँ चीन जैसे देश प्रमुख बाजारों पर प्रभावी हैं।
  • बहुध्रुवीयता के अनुकूल होने में विफलता: भारत नई वैश्विक व्यवस्था में बहुध्रुवीयता के महत्त्व को पहचानने में प्रायः विफल रहा है, जिसके लिए अपनी कूटनीति को पुनः तैयार करने की आवश्यकता होती है। 
    • अमेरिका या रूस के प्रभाव से परे, कई शक्ति केंद्रों वाले विश्व में भारत की भूमिका पर पुनर्विचार करने की निरंतर आवश्यकता है।
  • क्षेत्रीय एकीकरण का अभाव: भारत की पारंपरिक नीतियाँ, जैसे कि लुक ईस्ट और एक्ट ईस्ट, आसियान और पूर्वी एशिया के साथ सार्थक जुड़ाव में पूरी तरह से परिवर्तित नहीं हुई हैं, जबकि चीन इस क्षेत्र में आगे बढ़ गया है।
    • भारत को क्षेत्रीय संरचनाओं में स्वयं को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिए पुरानी रणनीतिक रूपरेखाओं से आगे बढ़ना चाहिए।
  • वैश्विक आर्थिक परिवर्तनों को कम आँकना: परंपरागत वैश्विक दृष्टिकोण चीन और ग्लोबल साउथ के उभरते आर्थिक प्रभाव को कमतर आँकने की प्रवृत्ति रखती है, जिससे विश्व अर्थव्यवस्था में हो रहे वास्तविक और संरचनात्मक बदलावों की उपेक्षा हो जाती है।
    • भारत को आर्थिक विविधीकरण और वैश्विक साझेदारी पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो वर्तमान वैश्विक शक्ति संरचनाओं को प्रतिबिंबित करती हैं।

पिछली पहलों के प्रदर्शन में कमी

  • उत्तर-दक्षिण गलियारा (INSTC): वर्ष 2000 में शुरू किए गए उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे का उद्देश्य भारत, रूस और ईरान को जोड़ना था ताकि दक्षिण एशिया और यूरोप के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाया जा सके।
    • वर्ष 2000 में समझौते पर औपचारिक हस्ताक्षर होने के बावजूद, परियोजना की प्रगति धीमी रही।
    • चीन ने इस क्षेत्र का तुरंत लाभ उठाया तथा रूस और ईरान पर अपना प्रभाव मजबूत किया।
  • लुक ईस्ट पॉलिसी: भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी (1990 के दशक) का उद्देश्य आसियान और पूर्वी एशिया के साथ मजबूत संबंध स्थापित करना था। यह पीएम मोदी के नेतृत्व में एक्ट ईस्ट पॉलिसी के रूप में विकसित हुई। 
    • हालाँकि, आसियान के साथ भारत का व्यापार 120 बिलियन डॉलर है, जबकि आसियान के साथ चीन का व्यापार 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गया है, जिससे क्षेत्रीय प्रभाव के मामले में भारत पीछे रह गया है।
  • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा  (India-Middle East-Europe Economic Corridor- IMEC): वर्ष 2023 में शुरू किए जाने वाले IMEC का उद्देश्य दक्षिण एशिया को मध्य पूर्व और यूरोप से जोड़ना है तथा स्वेज नहर को पार करते हुए एक नया व्यापार मार्ग उपलब्ध कराना है।
    • प्रारंभिक उत्साह के बावजूद, यूरेशिया में अस्थिरता और इसमें शामिल देशों के परस्पर विरोधी हितों के कारण इस पहल को महत्त्वपूर्ण संभार-तंत्र संबंधी चुनौतियों और भू-राजनीतिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • अफ्रीका में व्यापार और अवसंरचना परियोजनाएँ: भारत ने ‘एक्ट अफ्रीका’ के तहत अफ्रीका में कई व्यापार पहल शुरू कीं, लेकिन चीन के  BRI से प्रतिस्पर्द्धा और अवसंरचना विकास में चुनौतियों के कारण ये परियोजनाएँ काफी हद तक कमजोर रहीं।
  • क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाएँ (SAARC, BIMSTEC): दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) और बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation- BIMSTEC) के माध्यम से दक्षिण एशिया को एकीकृत करने के भारत के प्रयास क्षेत्रीय तनावों (विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ) के कारण बाधित हैं।
    • BIMSTEC ने कुछ प्रगति की है, लेकिन पूर्ण क्षेत्रीय सहयोग की कमी इसकी प्रभावशीलता में बाधा डालती है।
    • भारत-म्याँमार-थाइलैंड त्रिपक्षीय मोटर वाहन समझौते (India–Myanmar–Thailand Trilateral Motor Vehicle Agreement – IMT-TMVA) को अपर्याप्त अवसंरचना, नौकरशाही बाधाओं और सुरक्षा चिंताओं से चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

बदलती विश्व व्यवस्था में भारत की वैश्विक भागीदारी

  • रणनीतिक साझेदारियाँ
    • अमेरिका-भारत संबंध: रक्षा (जैसे- प्रीडेटर ड्रोन) और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर महत्त्वपूर्ण समझौतों के साथ, अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी मजबूत हुई है।
      • दोनों देश समुद्री सुरक्षा, अंतरिक्ष अन्वेषण और आतंकवाद विरोध पर भी सहयोग करते हैं।
    • रूस-भारत संबंध: अमेरिका के साथ संभावित तनावों के बावजूद, भारत रूस के साथ अपने मजबूत रक्षा और ऊर्जा संबंधों को निरंतर बनाए रखता है, जो उसके रणनीतिक संतुलन और राष्ट्रीय हितों की प्राथमिकता को दर्शाता है।
      • भारत रूसी हथियारों और ऊर्जा का एक महत्त्वपूर्ण आयातक है।
    • चीन: जबकि दोनों देश ब्रिक्स और SCO जैसे मंचों के माध्यम से जुड़ते हैं, सीमा विवादों पर तनाव और दक्षिण एशिया में चीन का प्रभाव संबंधों को जटिल बनाता है।
  • क्षेत्रीय सहभागिताएँ
    • आसियान: भारत की एक्ट ईस्ट नीति आसियान के साथ संबंधों को गहरा करने पर केंद्रित है, लेकिन आसियान के साथ भारत का व्यापार अभी भी चीन से बहुत पीछे है।
      • हालाँकि, भारत-आसियान मुक्त व्यापार क्षेत्र (वर्ष 2009 में हस्ताक्षरित) जैसी पहलों का उद्देश्य आर्थिक सहयोग बढ़ाना है।
    • मध्य पूर्व: भारत ने खाड़ी सहयोग परिषद (Gulf Cooperation Council- GCC), विशेष रूप से सऊदी अरब और यू.ए.ई. के साथ अपने संबंधों को बढ़ाया है। भारत ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (India-Middle East-Europe Economic Corridor- IMEC) में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • बहुपक्षीय अनुबंध
    • G20: भारत G20 में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, वैश्विक वित्तीय संस्थानों में सुधार और सतत् विकास का समर्थन करता है। वर्ष 2023 में G20 शिखर सम्मेलन में वैश्विक जलवायु कार्रवाई और आर्थिक सुधारों में भारत के नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • ब्रिक्स: भारत ब्रिक्स का एक सक्रिय सदस्य है, जो अधिक आर्थिक सहयोग की दिशा में कार्य कर रहा है और समूह के भीतर व्यापार बाधाओं एवं सुरक्षा खतरों जैसे मुद्दों को संबोधित कर रहा है।
    • संयुक्त राष्ट्र: भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए अधिक प्रतिनिधित्व के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। भारत अफ्रीका और वैश्विक दक्षिण में शांति और सुरक्षा का समर्थन करता है।
  • आर्थिक कूटनीति
    • व्यापार समझौते: भारत ने आर्थिक संबंधों को बढ़ाने के लिए यू.ए.ई., ऑस्ट्रेलिया और कई अफ्रीकी देशों जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreements – FTA) पर हस्ताक्षर किए हैं।
      • यह इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (Indo-Pacific Economic Framework- IPEF) जैसे क्षेत्रीय समूहों में शामिल होने पर भी काम कर रहा है।
    • ऊर्जा कूटनीति: भारत अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता ला रहा है, रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच रियायती कीमत पर रूसी तेल हासिल कर रहा है और सऊदी अरब एवं यू.ए.ई. के साथ ऊर्जा साझेदारी बढ़ा रहा है।
  • प्रौद्योगिकी और डिजिटल कूटनीति
    • डिजिटल गवर्नेंस: भारत UPI, आधार और कोविन जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म में अग्रणी है, जो डिजिटल गवर्नेंस में स्वयं को वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित कर रहा है।
      • भारत अपने डिजिटल नवाचारों को अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका के देशों के साथ साझा कर रहा है।
    • प्रौद्योगिकी सहयोग: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), 5G तकनीक और सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ भारत की साझेदारी इसके भविष्य के वैश्विक जुड़ाव का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।
  • सुरक्षा एवं शांति स्थापना
    • शांति स्थापना में भूमिका: भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है और इसे वैश्विक शांति तथा सुरक्षा में अग्रणी के रूप में देखा जा रहा है।
    • समुद्री सुरक्षा: अमेरिका और आसियान देशों के साथ नौसैनिक सहयोग के माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का नेतृत्व वैश्विक व्यापार मार्गों को सुरक्षित करने तथा समुद्री डकैती का मुकाबला करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

भारत के लिए आगे की राह

  • क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करना: पड़ोसियों के साथ कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को गहरा करके दक्षिण एशिया में स्थिरता सुनिश्चित करना।
    • सीमा विवादों को सुलझाने और पड़ोस प्रथम नीति और सार्क के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करना।
    • अफगानिस्तान और श्रीलंका के साथ सुरक्षा सहयोग को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाना ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह क्षेत्र आतंकवादी संगठनों के लिए पनाहगाह न बन जाए।
  • प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों का प्रबंधन: भारत को अमेरिका, चीन और रूस के बीच संतुलन को बनाए रखना होगा।
    • भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह रक्षा और व्यापार के क्षेत्र में अमेरिका के साथ अपने संबंधों को सुदृढ़ बनाए रखे, साथ ही अपनी ऊर्जा और रक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी को भी संतुलित रूप से कायम रखे।
  • विगत पहलों के खराब प्रदर्शन पर ध्यान देना
    • उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर को पुनः स्थापित करना: बुनियादी ढाँचे के विकास और व्यापार दक्षता पर ध्यान केंद्रित करना ।
    • IMEC पर पुनः कार्य करना: भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर (India-Middle East-Europe Economic Corridor- IMEC) को सफल बनाने के लिए भू-राजनीतिक मुद्दों और रसद चुनौतियों को नियंत्रित करना।
  • आर्थिक आधुनिकीकरण और ऊर्जा सुरक्षा: वैश्विक तनाव के बीच रियायती रूसी तेल को सुरक्षित करके ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाना, साथ ही सऊदी अरब, ईरान और अन्य खाड़ी देशों के साथ ऊर्जा साझेदारी को गहरा करना।
    • चीनी विनिर्माण पर निर्भरता कम करने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ के साथ आगे बढ़ना जारी रखना और आपूर्ति शृंखला विविधीकरण के माध्यम से वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • वैश्विक शासन और बहुपक्षीय जुड़ाव: आधुनिक भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने और वैश्विक दक्षिण को बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN Security Council- UNSC) में सुधार करना।
    • वैश्विक शासन में भारत की भूमिका को पुष्ट करने के लिए G20, ब्रिक्स और क्वाड जैसे बहुपक्षीय मंचों में भागीदारी बढ़ाना।
  • भू-राजनीतिक रणनीति और चीन पर नियंत्रण: चीन के समुद्री विस्तार और ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (Belt and Road Initiative- BRI) का मुकाबला करने के लिए जापान, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया के साथ रक्षा संबंधों को मजबूत करना।
    • नौवहन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए शिपिंग लेन और रणनीतिक चोक पॉइंट को सुरक्षित करने के लिए हिंद महासागर में उपस्थिति तथा प्रभाव बढ़ाना।
  • जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास: भारत को जलवायु वार्ता संबंधी मुद्दों पर नेतृत्व करना जारी रखना चाहिए।
    • जलवायु न्याय पर ध्यान केंद्रित करना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहे विकासशील देशों के लिए समान दायित्वों का समर्थन करना।
    • भारत को हरित प्रौद्योगिकियों, स्मार्ट शहरों और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करते हुए सतत् विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  • पुरातन मानसिकता से मुक्त होना: चीन की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान, माओत्से तुंग ने “चार पुरानी” अवधारणाओं को समाप्त करने का आह्वान किया: पुरानी विचारधारा, पुरानी संस्कृति, पुरानी आदतें और पुराने रीति-रिवाज।
  • विकसित हो रहे वैश्विक भू-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य के साथ तालमेल बिठाने के लिए रणनीतियों पर पुनर्विचार करना और उन्हें पुनः परिभाषित करना महत्त्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

भारत को क्षेत्रीय अस्थिरता, वैश्विक तनाव और घरेलू बाधाओं को संबोधित करते हुए अपनी आर्थिक वृद्धि और रणनीतिक साझेदारी का लाभ उठाने के लिए एक व्यावहारिक, बहुआयामी विदेश नीति अपनानी चाहिए। अपनी कूटनीति को आधुनिक बनाकर और IMEC जैसी पहलों को पुनर्जीवित करके, भारत स्वयं को नई बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में एक अग्रणी शक्ति के रूप में स्थापित कर सकता है।

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