100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

त्रि-भाषा नीति

Lokesh Pal July 01, 2025 02:10 21 0

संदर्भ

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने दो सरकारी प्रस्तावों (Government Resolutions-GRs) को रद्द कर दिया, जिनमें हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में प्रस्तुत किया गया था।

महाराष्ट्र का भाषा नीति संबंधी विवाद

  • 29 जून, 2025 को महाराष्ट्र सरकार ने 16 अप्रैल के सरकारी प्रस्ताव (GRs) को वापस ले लिया, जिसमें हिंदी को अनिवार्य बना दिया गया था, जबकि दूसरे (17 जून) में इसे वैकल्पिक बनाया गया, लेकिन प्रतिबंधात्मक धाराओं के साथ।
  • डॉ. नरेंद्र जाधव समिति: समिति को हितधारकों से परामर्श करना था और परिचय एवं भाषा विकल्पों की कक्षा सहित त्रि-भाषा नीति के कार्यान्वयन की सिफारिश करनी थी।

हालिया तमिलनाडु विवाद

  • केंद्र सरकार ने तमिलनाडु द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 को लागू करने का विरोध करने के कारण 2,152 करोड़ रुपये की धनराशि का आवंटन रोक दिया है।
  • हालाँकि NEP में कहा गया है कि तीसरी भाषा कोई भी भारतीय भाषा हो सकती है, लेकिन राज्य इसे हिंदी थोपने की चाल के रूप में देख रहा है।

त्रि-भाषा नीति के बारे में

  • त्रि-भाषा नीति (फॉर्मूला) एक शैक्षिक ढाँचा है, जिसे पहली बार वर्ष 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में प्रस्तुत किया गया था।
    • इसमें गैर-हिंदी भाषी राज्यों में अंग्रेजी और एक क्षेत्रीय भाषा के साथ-साथ हिंदी पढ़ाने को अनिवार्य बनाया गया था।

भाषायी संघवाद (Linguistic Federalism)

  • भाषायी संघवाद एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करता है, जिसमें राज्यों को राष्ट्रीय एकता के व्यापक ढाँचे के भीतर क्षेत्रीय भाषाओं को मान्यता देने, संरक्षित करने और बढ़ावा देने की स्वायत्तता होती है।
  • संवैधानिक आधार: अनुच्छेद-345 (राज्य की आधिकारिक भाषाएँ), 350A और 350B (भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा और सुरक्षा उपाय), और अनुसूची VIII इस सिद्धांत को पुष्ट करते हैं।
  • संघ-राज्य संतुलन: केंद्र हिंदी को बढ़ावा देता है (अनुच्छेद-351), लेकिन राज्य अपनी आधिकारिक भाषाएँ चुनते हैं (अनुच्छेद-345)
    • दोहरी संरचना सांस्कृतिक संरक्षण और प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित करती है।
  • मुख्य विचार: भारत की विविधता को बाधा के रूप में नहीं बल्कि संवैधानिक शक्ति के रूप में मान्यता दी गई है। भाषा नीति में सहकारी संघवाद को बढ़ावा दिया गया है।

त्रि-भाषा सूत्र का ऐतिहासिक संदर्भ और नीतिगत विकास

  • भाषायी बहुलवाद के लिए संवैधानिक दृष्टिकोण: संविधान के अनुच्छेद-344 और अनुच्छेद-351 में आधिकारिक उद्देश्यों के लिए हिंदी के प्रगतिशील उपयोग की परिकल्पना की गई है, लेकिन स्पष्ट रूप से यह आदेश दिया गया है कि इसे आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध अन्य भारतीय भाषाओं के रूपों, शैलियों और शब्दावली को आत्मसात् करके विकसित किया जाना चाहिए।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद-351 का उद्देश्य हिंदी को भारत की विविध और समग्र संस्कृति की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाना है, न कि उसे किसी एक भाषा या समुदाय के प्रभुत्व का प्रतीक बनाना।
  • प्रथम राजभाषा आयोग और मुंशी-अयंगर फॉर्मूला (1950 का दशक) (के. एम. मुंशी और एन. गोपालस्वामी अयंगर)
    • स्वतंत्रता के पश्चात्, दक्षिण भारतीय राज्यों-विशेष रूप से तमिलनाडु-से हिंदी के अनन्य प्रचार के लिए कड़े प्रतिरोध ने मुंशी-अयंगर समझौते को जन्म दिया, हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाया गया, जबकि अंग्रेजी को सहयोगी भाषा के रूप में रखा गया।
    • राजभाषा अधिनियम, 1963 (संशोधित 1967) ने आधिकारिक उद्देश्यों के लिए अनिश्चित काल तक हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी के निरंतर उपयोग को औपचारिक रूप दिया।
  • कोठारी आयोग (1964-66): त्रि-भाषा सूत्र का जन्म।
    • शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) ने सबसे पहले त्रि-भाषा फार्मूले को औपचारिक रूप से प्रस्तुत किया।
    • उद्देश्य
      • राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना।
      • क्षेत्रीय भाषा में प्रवीणता सुनिश्चित करना।
      • हिंदी या किसी अन्य भारतीय भाषा और अंग्रेजी को वैश्विक भाषा के रूप में समझने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • कोठारी आयोग द्वारा दिया गया त्रि-भाषा फॉर्मूला (1964-66)
      1. प्रथम भाषा: यह मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी।
      2. द्वितीय भाषा: हिंदी भाषी राज्यों में यह अन्य आधुनिक भारतीय भाषाएँ या अंग्रेजी होगी।
        • गैर-हिंदी भाषी राज्यों में यह हिंदी या अंग्रेजी होगी।
      3. तृतीय भाषा: हिंदी भाषी राज्यों में यह अंग्रेजी या आधुनिक भारतीय भाषा होगी।
        • गैर-हिंदी भाषी राज्य में यह अंग्रेजी या आधुनिक भारतीय भाषा होगी।
  • वर्ष 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में नीति संहिताकरण: कोठारी आयोग के आधार पर, वर्ष 1968 की NPE ने औपचारिक रूप से इस फॉर्मूले को अपनाया।
    • उद्देश्य हैं:-
      • हिंदी बनाम गैर-हिंदी भाषायी तनाव को कम करना।
      • संस्कृत को अतिरिक्त भाषा के रूप में उपलब्ध कराना।
      • आठवीं अनुसूची की भाषाओं की भाषायी समृद्धि को संरक्षित करना।
  • वर्ष 1986 और वर्ष 1992 में संशोधन: वर्ष 1986 के NPE और इसके वर्ष 1992 के संशोधन में फॉर्मूले को दोहराया गया और स्वीकार किया गया:-
    • कार्यान्वयन में खामियाँ, विशेषतः हिंदी भाषी राज्यों में।
    • तमिलनाडु जैसे राज्यों ने द्वि-भाषा नीति (तमिल + अंग्रेजी) जारी रखी, लेकिन लोकप्रिय प्रतिरोध के कारण हिंदी को अस्वीकार कर दिया।
  • NEP 2020: पारंपरिक ढाँचे को बनाए रखते हुए नवाचार
    • NEP 2020 में त्रि-भाषा फार्मूले की भावना बरकरार रखी गई है, लेकिन कठोरता संबंधी प्रावधान को हटा दिया गया है:
      • राज्य किसी भी दो भारतीय भाषाओं और एक विदेशी भाषा को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं।
      • कोई भी भाषा थोपी नहीं जाएगी, जिससे संघीय और सांस्कृतिक संवेदनशीलता की पुष्टि होगी।
    • न्यूनतम कक्षा 5 तक, वैकल्पिक रूप से कक्षा 8 तक मातृभाषा/घरेलू भाषा में सीखने को प्रोत्साहित किया जाता है।

भाषा पर संवैधानिक प्रावधान

  • आठवीं अनुसूची: मराठी, हिंदी, तमिल आदि सहित 22 भाषाओं को आधिकारिक मान्यता प्रदान करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
    • प्रारंभ में इसमें 14 भाषाएँ शामिल की गईं; सिंधी को वर्ष 1967 में, कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को वर्ष 1992 में तथा बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को वर्ष 2004 में शामिल किया गया। वर्तमान में 38 भाषाओं को शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।
  • अनुच्छेद-120(1): संसद में कामकाज हिंदी या अंग्रेजी में किया जाएगा।
  • अनुच्छेद-210(1): राज्य विधानमंडल में कामकाज राज्य की आधिकारिक भाषा या भाषाओं में या हिंदी अथवा अंग्रेजी में किया जाएगा।
  • अनुच्छेद-344(1): संघ के उद्देश्यों के लिए हिंदी के प्रगतिशील उपयोग की सिफारिश करने के लिए एक आयोग की स्थापना करता है, जिसके सदस्य आठवीं अनुसूची की भाषाओं का प्रतिनिधित्व करेंगे।
  • अनुच्छेद-351: संघ को निर्देश देता है कि वह भारत की समग्र संस्कृति के लिए अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में हिंदी को बढ़ावा दे, इसकी प्रतिभा में हस्तक्षेप किए बिना आठवीं अनुसूची की अन्य भाषाओं (मुख्य रूप से संस्कृत, गौण रूप से अन्य) के तत्त्वों को आत्मसात् करे।
  • अनुच्छेद-343: देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की आधिकारिक भाषा घोषित करता है, जबकि अंग्रेजी 15 वर्ष तक जारी  (कानून द्वारा विस्तार योग्य) रहेगी।
    • खंड: (1) संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। 
    • खंड: (2) इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के सभी राजकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिसके लिए उसका प्रयोग किया जा रहा था।
  • अनुच्छेद-345: राज्यों को आधिकारिक उद्देश्यों के लिए एक या अधिक भाषाओं (हिंदी सहित) को अपनाने की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद-346: एक राज्य और संघ के बीच संचार के लिए आधिकारिक भाषा।
  • अनुच्छेद-347: किसी राज्य की आबादी के एक हिस्से द्वारा बोली जाने वाली भाषा से संबंधित विशेष प्रावधान प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद-350A: राज्यों को भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का आदेश देता है।
  • अनुच्छेद-350B: भाषायी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए उनके लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति करता है।
  • राजभाषा अधिनियम, 1963: संघ के प्रयोजनों और गैर-हिंदी राज्यों के साथ संचार के लिए हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी के निरंतर उपयोग की अनुमति देता है, जहाँ आवश्यक हो वहाँ अनुवाद सुनिश्चित करता है।

त्रि-भाषा फार्मूला लागू करने का महत्त्व

  • विविधता को संरक्षित करते हुए राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना: यह सुनिश्चित करता है कि हिंदी भाषी और गैर-हिंदी भाषी राज्यों के छात्र अन्य भारतीय भाषाओं की आपसी समझ विकसित करें तथा अंतर-सांस्कृतिक सद्भाव को बढ़ावा दें।
    • कोठारी आयोग (1964-66) ने राष्ट्रीय एकता को क्षेत्रीय भाषायी स्वायत्तता के साथ संतुलित करने के लिए त्रि-भाषा फॉर्मूला की सिफारिश की।
    • हिंदी और अंग्रेजी सीखने वाला एक मराठी छात्र मराठी पहचान खोए बिना हिंदी क्षेत्र और वैश्विक संदर्भों दोनों के साथ संवादात्मक संबंध स्थापित करता है।
  • भाषायी समावेशन के माध्यम से संघवाद को सशक्त करना: संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को समान रूप से बढ़ावा देने की बात कही गई है; इस फॉर्मूले के कार्यान्वयन से यह संवैधानिक आदर्श लागू होता है।
    • अनुच्छेद-351 अन्य भाषाओं को विस्थापित किए बिना हिंदी को बढ़ावा देने का आग्रह करता है, इस प्रकार यह फॉर्मूला राज्यों को संघीय ढाँचे का सम्मान करते हुए दूसरी और तीसरी भाषा चुनने की अनुमति देता है।
  • सभी क्षेत्रों में शैक्षिक समानता: यह राष्ट्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में हिंदी और गैर-हिंदी दोनों राज्यों के छात्रों के लिए समान अवसर प्रदान करता है।
    • NEP, 2020 इस बात का समर्थन करता है कि पूरे भारत में छात्रों को तीन भाषाएँ सीखनी चाहिए, जिनमें से कम-से-कम दो भारतीय हों। इसका उद्देश्य भाषा तक पहुँच में क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्त करना है।
  • भारतीय भाषाओं का संरक्षण और संवर्द्धन: यह सूत्र अल्पसंख्यक और शास्त्रीय भाषाओं के लिए कार्यात्मक माँग पैदा करता है, जिससे भाषा की विलुप्ति को रोका जा सकता है और भाषायी शोध में सहायता मिलती है।
    • संस्कृत या तमिल को तीसरी भाषा के रूप में शामिल करने से शास्त्रीय शिक्षा और साहित्य को बनाए रखा जा सकता है, जबकि युवाओं की भागीदारी बढ़ सकती है।
  • ग्रामीण-शहरी और सरकारी-लोगों की भाषा के बीच के अंतराल को पाटता है: हिंदी और अंग्रेजी आधिकारिक संचार पर प्रभावी हैं, जबकि कई भारतीय क्षेत्रीय भाषाएँ बोलते हैं। बहुभाषी शिक्षा राज्य सेवाओं तक बेहतर पहुँच और आधिकारिक संचार में साक्षरता की अनुमति देती है।
    • राजभाषा अधिनियम (1963) को लागू करने में मदद करता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग संघ-स्तरीय संचार के लिए किया जाए।
  • रोजगार और गतिशीलता को बढ़ाता है: भाषा कौशल सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों, सांस्कृतिक उद्योगों और अंतर-राज्यीय गतिशीलता तक पहुँच में सुधार करते हैं।
    • NEP, 2020 संज्ञानात्मक विकास और राष्ट्रीय/वैश्विक जुड़ाव के लिए आवश्यक 21वीं सदी के कौशल के रूप में बहुभाषी दक्षता पर जोर देता है।
    • हिंदी और अंग्रेजी में धाराप्रवाह एक तमिल भाषी छात्र महाराष्ट्र, दिल्ली या विदेश जैसे किसी भी क्षेत्र में भाषायी बाधाओं के बिना सहजता से कार्य कर सकता है, जिससे राष्ट्रीय श्रम गतिशीलता को प्रोत्साहन मिलता है।
  • भाषायी आधिपत्य को कम करता है: सभी अनुसूचित भाषाओं के लिए समान सम्मान के साथ एक नीति को औपचारिक रूप देने से किसी भी एक भाषा (जैसे- हिंदी) को थोपे जाने से रोका जा सकता है।
    • राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्यों (जैसे- महाराष्ट्र) में, यह हिंदी सांस्कृतिक प्रभुत्व की धारणा से बचाता है तथा लोकतांत्रिक सहमति को बनाए रखता है।

भारत में भाषा विविधता

सूचक

आँकड़े / तथ्य

भाषाओं की कुल संख्या (जनगणना, 2011) 121 भाषाएँ, जिनमें से प्रत्येक को 10,000 से अधिक लोग बोलते हैं।
कुल दर्ज मातृभाषाएँ 1,369 अलग-अलग मातृभाषाओं की पहचान की गई।
सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी (43.63%), उसके बाद बंगाली (8.03%), मराठी (6.86%), तेलुगु (6.70%)।
त्रि-भाषावाद प्रवृत्ति (शहरी भारत) जनगणना, 2011: 7% भारतीय त्रिभाषी हैं; 26% द्विभाषी।

त्रि-भाषा फार्मूले में प्रमुख चिंताएँ और मुद्दे

  • गैर-हिंदी राज्यों में प्रतिरोध: तमिलनाडु ने ऐतिहासिक रूप से हिंदी थोपे जाने का विरोध किया है, जिसका इतिहास हिंदी विरोधी आंदोलन (1937, 1965) से जुड़ा है। राज्य इसके बजाय द्वि-भाषा नीति (तमिल और अंग्रेजी) का पालन करता है।
    • वर्ष 2025 में महाराष्ट्र द्वारा कक्षा 5 तक हिंदी को दूसरी भाषा बनाने के निर्णय ने राजनीतिक प्रतिक्रिया को जन्म दिया, विशेषतः क्षेत्रीय दलों से।
  • उत्तर-दक्षिण विभाजन: उत्तर भारत में, हिंदी प्रमुख भाषा है, लेकिन दक्षिण भारत में, तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ जैसी क्षेत्रीय भाषाएँ अधिक सशक्त हैं।
    • दक्षिण में नीति को हिंदी भाषियों के पक्ष में माना जाता है, जबकि उत्तर में कई लोग दक्षिण भारतीय भाषा सीखने की आवश्यकता महसूस नहीं करते हैं।
  • कार्यान्वयन की एकरूपता का अभाव: इस फॉर्मूले को राज्यों में असमान रूप से लागू किया जाता है।
    • तमिलनाडु ने लंबे समय से द्वि-भाषा नीति (तमिल + अंग्रेजी) के पक्ष में फॉर्मूले को अस्वीकार कर दिया है। इस बीच, हिंदी भाषी राज्य शायद ही कभी दक्षिण भारतीय भाषा पढ़ाते हैं।
  • व्यवहार में सीमित भाषा विकल्प: हालाँकि NEP, 2020 कई भारतीय भाषा विकल्पों की अनुमति देती है, लेकिन स्कूल वास्तविक रूप से 15 से अधिक भाषाओं की पेशकश नहीं कर सकते हैं।
    • क्षेत्रीय भाषाओं (जैसे- बिहार में तमिल) की कम माँग वास्तविक विकल्प को असंभव बना देती है।
    • छात्रों को हिंदी या अंग्रेजी चुनने के लिए मजबूर किया जाता है, जो सूत्र के बहुलवादी उद्देश्य को विफल करता है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और शिक्षकों की कमी: प्रशिक्षित भाषा शिक्षकों की कमी और क्षेत्रीय या आदिवासी भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों/सामग्री की कमी।
    • कोठारी आयोग ने पहले ही तीन भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण प्रदान करने में कठिनाई की चेतावनी दी थी, जो आज भी बनी हुई है।
  • भाषायी असमानता और भाषा पदानुक्रम: हिंदी और अंग्रेजी शासन, शिक्षा और रोजगार में प्रभुत्व रखते हैं, जिससे अनुसूचित और आदिवासी भाषाएँ हाशिए पर हैं।
    • अनुच्छेद-351 सभी अनुसूचित भाषाओं के साथ हिंदी को समृद्ध करने की बात करता है, लेकिन कार्यान्वयन ने हिंदी के आधिपत्य को सशक्त किया है, न कि विविधता को।
  • संघीय और सांस्कृतिक स्वायत्तता को कमजोर करता है: भाषा पर केंद्रीय निर्देशों को शिक्षा और संस्कृति पर राज्य की शक्तियों का उल्लंघन करने के रूप में देखा जाता है।
    • महाराष्ट्र का हिंदी को बढ़ावा देने से पीछे हटना यह दर्शाता है कि भाषायी निर्णय हितधारकों द्वारा संचालित होने चाहिए।

अन्य देशों में बहुभाषी शिक्षा नीतियाँ

कनाडा: संघीय समर्थन के साथ द्विभाषिकता

  • आधिकारिक भाषा अधिनियम (1969) के तहत आधिकारिक द्विभाषिकता (अंग्रेजी और फ्रेंच)।
  • शिक्षा मॉडल: कई प्रांत, अंग्रेजी-प्रधान क्षेत्रों में भी, फ्रेंच इमर्सन (French Immersion) कार्यक्रम प्रदान करते हैं ताकि द्विभाषिकता को प्रोत्साहित किया जा सके।।

स्विट्जरलैंड: बहुलवादी संघीय भाषा मॉडल

  • चार आधिकारिक भाषाएँ – जर्मन, फ्रेंच, इतालवी, रोमन।
  • शिक्षा की भाषा कैंटन के अनुसार अलग-अलग होती है; छात्रों को कम-से-कम एक अन्य राष्ट्रीय भाषा सीखनी चाहिए।

दक्षिण अफ्रीका: रंगभेद-पश्चात् न्याय के रूप में बहुभाषावाद

  • नीति: वर्ष 1996 के संविधान के तहत 11 आधिकारिक भाषाएँ।
  • शिक्षार्थियों को जहाँ संभव हो, अपनी घरेलू भाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।

सिंगापुर: ‘मातृभाषा’ + अंग्रेजी द्विभाषी मॉडल

  • मुख्य माध्यम के रूप में अंग्रेजी + अनिवार्य मातृभाषा (चीनी, मलय या तमिल)।
  • उद्देश्य: अंग्रेजी वैश्विक प्रासंगिकता सुनिश्चित करती है; मातृभाषा सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करती है।

त्रि-भाषा फार्मूले को सशक्त करने की दिशा में आगे की राह

  • वास्तविक संघीय परामर्श और राज्य स्वायत्तता सुनिश्चित करना: भाषा से संबंधित सभी नीतिगत निर्णय राज्य सरकारों और स्थानीय हितधारकों के परामर्श से पहले लिए जाने चाहिए।
    • महाराष्ट्र की स्थिति से शीर्ष स्तरीय निर्देशों के बजाय आम सहमति-आधारित कार्यान्वयन की आवश्यकता का पता चलता है।
  • क्षेत्रीय संदर्भ में लचीला भाषा विकल्प: राज्यों को अपने स्थानीय जनसांख्यिकी के अनुकूल कोई भी दो भारतीय भाषाएँ चुनने के लिए प्रोत्साहित (उदाहरण के लिए, आदिवासी क्षेत्रों में संथाली या गोंड शामिल हो सकती हैं) करना।
    • इससे नीति भाषायी वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने में सक्षम होगी, जिससे हिंदी पर निर्भरता से बचा जा सकेगा।
  • केंद्र से भाषा संबंधी बुनियादी ढाँचा समर्थन: केंद्र सरकार को सभी अनुसूचित और प्रमुख आदिवासी भाषाओं के लिए शिक्षक भर्ती और पाठ्यपुस्तक विकास को वित्तपोषित करना चाहिए।
    • NEP, 2020 के जीडीपी के 6% शिक्षा लक्ष्य को प्राप्त करना, विशेष रूप से बहुभाषी शिक्षाशास्त्र के लिए।
  • प्रारंभिक शिक्षा में मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा को प्राथमिकता देना: NEP 2020 के अनुसार, सुनिश्चित करना कि कम-से-कम ग्रेड 5 तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा ही शिक्षा का माध्यम हो।
  • राष्ट्रीय भाषा विविधता सूचकांक और निगरानी स्थापित करना: प्रतिवर्ष रिपोर्ट किए जाने वाले भाषा विविधता सूचकांक (LDI) के माध्यम से शिक्षा में विभिन्न भारतीय भाषाओं के वास्तविक उपयोग की निगरानी करना।
    • जैव विविधता और लैंगिक समानता सूचकांक मौजूद हैं, भाषा के संदर्भ में भी ऐसे माध्यमों को अपनाया जा सकता है।
  • भाषायी समानता पर जन जागरूकता अभियान: साहित्य अकादमी जैसे सांस्कृतिक निकायों द्वारा समर्थित सभी भारतीय भाषाओं के सम्मान को बढ़ावा देने वाले अभियान शुरू करना।
    • अंग्रेजी और हिंदी के प्रति सामाजिक पूर्वाग्रह को कम करता है और भारत की बहुलवादी भाषायी पहचान की संवैधानिक दृष्टि की पुष्टि करता है।
  • स्वाभाविक रूप से बहुभाषावाद को बढ़ावा देना: वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों से पता चलता है कि 26% भारतीय द्विभाषी हैं और 7% त्रिभाषी हैं, शहरी क्षेत्रों में यह दर अधिक है।
    • तेजी से बढ़ते शहरीकरण और श्रम प्रवास से बहुभाषावाद में स्वाभाविक रूप से वृद्धि होने की संभावना है, जिससे अनिवार्य भाषा नीतियों की आवश्यकता कम हो जाएगी।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा: अंग्रेजी में दक्षता वैश्विक सेवा उद्योगों में भारत की सफलता का एक प्रमुख कारक रही है।
    • जबकि अतिरिक्त भारतीय भाषाओं को सीखना वांछनीय है, लेकिन यह अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषा दक्षता की कीमत पर नहीं आना चाहिए।
  • पारस्परिक शिक्षा: हिंदी भाषी राज्यों को आपसी सम्मान को बढ़ावा देने के लिए दक्षिणी भाषाएँ (जैसे- तमिल, कन्नड़) सीखने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • कोठारी आयोग की सिफारिशों के अनुसार, संस्कृत को एक सांस्कृतिक कड़ी के रूप में बढ़ावा देना।

निष्कर्ष 

संवैधानिक और शैक्षिक ढाँचे में निहित त्रि-भाषा नीति, भाषायी विविधता को संरक्षित करते हुए राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने का प्रयास करती है। हालाँकि, इसकी सफलता क्षेत्रीय संवेदनशीलता को संबोधित करने, संसाधन उपलब्धता सुनिश्चित करने और संघीय सहयोग के माध्यम से समान भाषा विकल्पों को बढ़ावा देने पर निर्भर करती है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.