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द्वितीयक प्रदूषक

Lokesh Pal July 02, 2025 02:42 20 0

संदर्भ 

ऊर्जा और स्वच्छ वायु अनुसंधान केंद्र (CREA) द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में भारत भर में PM 2.5 वायु प्रदूषण में योगदान देने वाले द्वितीयक प्रदूषकों, विशेष रूप से अमोनियम सल्फेट की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।

प्राथमिक बनाम द्वितीयक प्रदूषक

  • प्राथमिक प्रदूषक सीधे वाहनों, कोयला संचालित विद्युत् संयंत्रों और बायोमास दहन जैसे स्रोतों से उत्सर्जित होते है (उदाहरण के लिए, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड)।

  • द्वितीयक प्रदूषक वे रासायनिक पदार्थ होते हैं जो वायुमंडल में प्राथमिक प्रदूषकों की जलवाष्प, सूर्य के प्रकाश अथवा अन्य वायुमंडलीय घटकों के साथ अभिक्रिया करने पर बनते हैं। इनमें अमोनियम सल्फेट, ओजोन तथा अमोनियम नाइट्रेट जैसे हानिकारक यौगिक शामिल होते हैं।

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पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) के बारे में

  • PM का आशय पार्टिकुलेट मैटर (जिसे पार्टिकल प्रदूषण भी कहा जाता है): वायु में पाए जाने वाले ठोस कणों और तरल बूँदों के मिश्रण के लिए यह शब्द है। धूल, गंदगी, कालिख और धुआँ वायु प्रदूषण के प्रमुख कणीय तत्व (Particulate matter) हैं, जो वाहनों, निर्माण गतिविधियों, औद्योगिक प्रक्रियाओं और प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न होते हैं।
  • अन्य इतने छोटे होते हैं कि उन्हें केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके ही देखा जा सकता है।

कण प्रदूषण में शामिल हैं

  • PM10: साँस के साथ अंदर जाने वाले कण, जिनका व्यास आम तौर पर 10 माइक्रोमीटर और उससे छोटा होता है; और
  • PM2.5: साँस के साथ अंदर जाने वाले महीन कण, जिनका व्यास आम तौर पर 2.5 माइक्रोमीटर और उससे छोटा होता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • द्वितीयक प्रदूषक, विशेष रूप से अमोनियम सल्फेट, भारत के PM2.5 प्रदूषण का लगभग एक-तिहाई (34%) हिस्सा है।
  • अमोनियम सल्फेट की औसत राष्ट्रीय सांद्रता: 11.9 μg/m³।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के अंतर्गत शामिल 130 शहरों में से 114 शहरों में PM2.5 कणों में अमोनियम सल्फेट की हिस्सेदारी 30% से अधिक पाई गई है, जो द्वितीयक प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है।
  • एक अन्य द्वितीयक प्रदूषक अमोनियम नाइट्रेट अत्यधिक योगदान देता है , जो कुछ मामलों में 50% तक है।
  • कोयला आधारित बिजली संयंत्र – प्रमुख स्रोत
    • भारत में SO2 उत्सर्जन का 60% से अधिक हिस्सा कोयला संचालित ताप विद्युत संयंत्रों से आता है।
    • कोयला संयंत्रों के 10 किमी. के भीतर अमोनियम सल्फेट का स्तर 10 किमी. से आगे (6 μg/m³) की तुलना में 2.5 गुना अधिक है।
    • कोयला संयंत्रों के पास 36%, जबकि दूर के क्षेत्रों में 23%, जो प्रदूषकों के स्थानीय और लंबी दूरी के परिवहन दोनों को दर्शाता है।

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme- NCAP)

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जनवरी 2019 में शुरू किए गए इस कार्यक्रम का लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक 131 शहरों में PM10 और PM2.5 के स्तर को 20% तक कम करना है, जिसके लिए वर्ष 2017 को आधार रेखा माना गया है।
  • इस लक्ष्य को संशोधित कर वर्ष 2025-26 तक PM10 के स्तर में 40% की कमी या राष्ट्रीय मानकों (60 µg/m³) को पूरा करना कर दिया गया है।


  • NCAP शहरों पर प्रभाव
    • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme-NCAP) के तहत 130 शहरों को वर्ष 2025-26 तक प्रदूषण को 20-30% तक कम करने का काम सौंपा गया है।
    • अमोनियम सल्फेट की सांद्रता 3.9 से 22.5 μg/m³ तक होती है। PM2.5 में इसका योगदान 20% से 43% तक होता है।

फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन: यह निकास उत्सर्जन से सल्फर यौगिकों को समाप्त करने की एक तकनीक है।

    • 130 शहरों में से 114 में, यह कुल PM2.5 का >30% था।
    • अमोनियम नाइट्रेट के साथ संयुक्त रूप से, द्वितीयक प्रदूषक शहरी PM2.5 के 50% तक के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।
  • प्रदूषण नियंत्रण में कार्यान्वयन अंतराल
    • हालाँकि, कोयला बिजली संयंत्रों के लिए SO2 उत्सर्जन को रोकने के लिए ‘फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन’ (FGD) अनिवार्य है, लेकिन केवल 8% संयंत्रों ने इसे स्थापित किया है।
    • इस आवश्यकता की अपरिहार्यता सिद्ध होने के बावजूद, सरकार इसके प्रावधानों को शिथिल करने पर विचार कर रही है।

CREA की नीतिगत सिफारिशें

  • उत्सर्जन मानदंडों का सख्त प्रवर्तन: विनियामक शिथिलता से बचते हुए FGD स्थापना जनादेशों का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करना।
  • अमोनिया उत्सर्जन को कम करने के लिए कुशल उर्वरक उपयोग को बढ़ावा देना।
  • लक्षित और स्रोत-विशिष्ट कार्रवाई: प्राथमिक उत्सर्जन और प्रतिक्रियाशील गैसों (SO₂, NH₃) दोनों को नियंत्रित करना।
  • अंतर-राज्यीय समन्वय: सीमापार प्रदूषकों के प्रबंधन के लिए क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।
  • निगरानी और अनुसंधान: साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को निर्देशित करने के लिए वास्तविक समय आधारित वायु गुणवत्ता निगरानी और निरंतर अनुसंधान में निवेश करना।

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