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वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट (2025): भारत की स्थिति में दो अंक की गिरावट

Lokesh Pal July 12, 2025 05:15 33 0

संदर्भ:

भारत अब एक वैश्विक आर्थिक शक्ति, एक डिजिटल नवप्रवर्तक और दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी का घर है। लेकिन विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट (2025) एक गंभीर चेतावनी है कि लैंगिक समानता के मामले में भारत अभी भी बहुत पीछे है।

वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट के बारे में:

  • वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित की जाती है।
  • यह किसी देश की आय या विकास के समग्र स्तर की परवाह किए बिना महिलाओं और पुरुषों के बीच सापेक्ष अंतराल का मापन है।
  • रिपोर्ट में चार प्रमुख आयाम शामिल हैं: आर्थिक भागीदारी और अवसर, शैक्षिक उपलब्धि, स्वास्थ्य और जीवन रक्षा, तथा राजनीतिक सशक्तीकरण।
  • सूचकांक स्कोर 0 (पूर्ण असमानता) से 1 (पूर्ण समता) तक होता है।

भारत की चिंताजनक स्थिति के वास्तविक कारण:

  • ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2025 में भारत 148 देशों में 131वें स्थान पर है, जो पिछले वर्ष की तुलना (129) में दो स्थान नीचे है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, मात्र 64.1% के समता स्कोर के साथ भारत दक्षिण एशिया में सबसे निचले स्थान वाले देशों में से एक है।
  • हालांकि इसमें पिछले वर्ष भारत 129वें स्थान पर था।
  • इस रिपोर्ट में भारत के अंक दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विशेष रूप से कम हैं: आर्थिक भागीदारी और स्वास्थ्य एवं जीवन रक्षा। जबकि ये स्तंभ सार्थक लैंगिक समानता के लिए आवश्यक हैं।

महिलाओं के स्वास्थ्य और स्वायत्तता में चुनौतियाँ:

  • जन्म के समय विषम लिंगानुपात: जन्म के समय भारत का लिंगानुपात विश्व स्तर पर सबसे विकृत है, जो बेटों के प्रति गहरी सांस्कृतिक प्राथमिकता को उजागर करता है।
  • महिलाओं की स्वस्थ जीवन प्रत्याशा में गिरावट: भारत में महिलाओं की स्वस्थ जीवन प्रत्याशा अब पुरुषों की तुलना में कम है, जो लिंग आधारित स्वास्थ्य असमानताओं को दर्शाता है।
  • प्रजनन और निवारक स्वास्थ्य की उपेक्षा: ये प्रतिकूल परिणाम प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं, निवारक देखभाल और पोषण में दीर्घकालिक कम निवेश से, विशेष रूप से निम्न आय और ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए, उत्पन्न होते हैं।
  • महिलाओं में एनीमिया का उच्च प्रसार: 15 से 49 वर्ष की आयु की 57 प्रतिशत भारतीय महिलाएं चिंताजनक रूप से एनीमिया से पीड़ित हैं – जो एक व्यापक लेकिन रोकथाम योग्य स्थिति की ओर संकेत करता है।
  • महिला स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने में प्रणालीगत विफलता: यह स्वास्थ्य संकट राष्ट्रीय विकास नीति के मुख्य घटक के रूप में महिला स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने में गहरी संरचनात्मक विफलता को दर्शाता है।

आर्थिक बहिष्कार का मुद्दा:

  • चिंताजनक रैंकिंग: आर्थिक भागीदारी और अवसर उप-सूचकांक पर भारत का प्रदर्शन विशेष रूप से निराशाजनक है, इसमें भारत कुल 148 देशों में से 143वें स्थान पर है।
  • व्यापक वेतन अंतराल: महिलाएं लगातार पुरुषों की तुलना में एक तिहाई से भी कम कमाती हैं, तथा महिला श्रम बल में भागीदारी बहुत कम बनी हुई है।
  • आर्थिक अवसरों में निम्न भागीदारी: वर्ष 2015 में मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने अनुमान लगाया था कि लैंगिक अंतर को कम करने से वर्ष 2025 के अंत तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 770 बिलियन डॉलर की वृद्धि हो सकती है
    • दुर्भाग्यवश, 2025 में भारत इस महत्त्वपूर्ण अवसर से काफी हद तक चूक गया है।
    • प्रगति की वर्तमान दर के अनुसार, वैश्विक आर्थिक लैंगिक अंतराल को समाप्त करने में एक शताब्दी से अधिक का समय लग सकता है, भारत इस संदर्भ में काफी पीछे बना हुआ है।

अदृश्य श्रम और महत्वपूर्ण नीतिगत अंतराल:

  • अनौपचारिक क्षेत्र में कार्य: महिलाएं मुख्य रूप से अनौपचारिक और निर्वाह स्तर के रोजगार में लगी हुई हैं, जहां उनके समक्ष नौकरी की सुरक्षा और औपचारिक मान्यता का अभाव है।
  • निर्णय लेने में अल्प प्रतिनिधित्व: बोर्डरूम और बजट समितियों जैसे महत्वपूर्ण स्थानों में उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है, जिसके कारण ऐसी नीतियां बनाई जाती हैं जिनमें उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और अनुभवों की अनदेखी की जाती है।
  • अवैतनिक देखभाल कार्य का बोझ: भारतीय महिलाएं पुरुषों की तुलना में लगभग सात गुना अधिक अवैतनिक घरेलू कार्य करती हैं, जिससे उनका समय, गतिशीलता और आर्थिक भागीदारी काफी सीमित हो जाती है।
    • इस आवश्यक श्रम को राष्ट्रीय लेखांकन में बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया जाता है और सार्वजनिक नीतिगत ढांचे में इसे अपर्याप्त समर्थन प्राप्त होता है।
    • महिलाओं के बोझ को कम करने और कार्यबल में उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए बाल देखभाल केंद्रों, वृद्ध देखभाल सेवाओं और मातृत्व लाभ में निवेश करना महत्वपूर्ण है।
    • मूलभूत देखभाल सेवाओं में निवेश की कमी लैंगिक समानता की विफलता और आर्थिक अनदेखी दोनों को दर्शाती है।

लैंगिक समानता के लिए जनसांख्यिकीय अनिवार्यता:

  • जनसांख्यिकीय बदलाव: भारत में वरिष्ठ नागरिकों का प्रतिशत वर्ष 2050 तक लगभग दोगुना होकर कुल जनसंख्या का 20 प्रतिशत होने की उम्मीद है
    • इस जनसांख्यिकीय बदलाव में मुख्य रूप से बहुत वृद्ध महिलाएं, विशेषकर विधवाएं शामिल होंगी, जिन्हें अक्सर अत्यधिक निर्भरता का सामना करना पड़ता है।
  • कार्यबल में संकुचन: इसके साथ ही, प्रजनन दर पहले ही प्रतिस्थापन स्तर से नीचे गिर चुकी है।
    • इसका अर्थ यह है कि कार्यशील आयु वर्ग की जनसंख्या कम हो जाएगी, जबकि बुजुर्गों की देखभाल की जरूरतें काफी बढ़ जाएंगी।
  • वित्तीय संसाधनों पर दबाव: यदि महिलाओं को कार्यबल से बाहर रखा जायेगा या उन्हें बाहर निकलने के लिए मजबूर किया जाता रहेगा, तो निर्भरता अनुपात और भी तेजी से बढ़ेगा, जिससे श्रमिकों की घटती संख्या पर अधिक दबाव पड़ेगा और वित्तीय स्थिरता कमजोर होगी।
  • लैंगिक समानता आवश्यक: इस परिदृश्य में सतत आर्थिक विकास का एकमात्र व्यवहार्य मार्ग यह सुनिश्चित करना है कि महिलाएं स्वस्थ हों, उन्हें सहायता मिले और वे आर्थिक रूप से सक्रिय हों।

आगे की राह:

  • महिला-केंद्रित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों में निवेश: मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों की तत्काल आवश्यकता है जो महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को, विशेष रूप से प्रजनन और निवारक देखभाल में, प्राथमिकता प्रदान करे।
  • व्यापक देखभाल सेवाओं का निर्माण: अवैतनिक कार्य के बोझ को पुनर्वितरित करने और महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी को सक्षम करने के लिए बाल देखभाल, वृद्ध देखभाल और मातृत्व सहायता सेवाओं का विकास आवश्यक है।
  • मान्यता और सुधार: सरकारों को नियमित समय-उपयोग सर्वेक्षण, लिंग बजट और देखभाल बुनियादी ढांचे में प्रत्यक्ष निवेश के माध्यम से अवैतनिक देखभाल कार्य को मान्यता देनी चाहिए।
  • वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं से सीखना: उरुग्वे और दक्षिण कोरिया जैसे देश राष्ट्रीय विकास योजनाओं में देखभाल अर्थव्यवस्थाओं को एकीकृत करने के सफल मॉडल पेश करते हैं अतः उनसे सीख ली जानी चाहिए।

निष्कर्ष:

वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट सिर्फ़ एक रैंकिंग न होकर उससे अधिक महत्त्वपूर्ण है; यह देश के लिए एक कड़ी चेतावनी है। अगर भारत लैंगिक समानता को अपने आर्थिक और जनसांख्यिकीय भविष्य के केंद्र में नहीं रखता, तो अब तक हासिल की गई महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बर्बाद होने का ख़तरा है। अगर अभी कार्रवाई नहीं की गई, तो देश की विकास और प्रगति की आकांक्षाएँ ख़तरे में पड़ सकती हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट (2025) में भारत का निम्न स्थान महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को सीमित करने वाली निरंतर बाधाओं को उजागर करता है। इस कम प्रतिनिधित्व के प्रमुख कारणों की पहचान कीजिए और भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं व प्रमुख महिला संगठनों की भूमिका बढ़ाने के लिए केंद्रित उपाय सुझाइए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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