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सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग

Lokesh Pal July 17, 2025 03:30 17 0

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय ने सोशल मीडिया पोस्ट पर कई FIR से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग तेजी से हो रहा है और आत्म-संयम एवं विनियमन की आवश्यकता पर बल दिया।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या हैं?

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग जिम्मेदारी के साथ किया जाना चाहिए: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद-19(1)(क) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है। नागरिकों को आत्म-संयम बरतना चाहिए और अनुच्छेद-19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के दायरे में रहकर कार्य करना चाहिए।
    • यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो राज्य का हस्तक्षेप आवश्यक हो सकता है, जो लोकतंत्र में अवांछनीय है।
  • राष्ट्रीय एकता के लिए विभाजनकारी सामग्री पर अंकुश लगाना आवश्यक: न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सोशल मीडिया पर विभाजनकारी सामग्री संवैधानिक कर्तव्यों, विशेष रूप से एकता और अखंडता (अनुच्छेद-51A(c)) को बनाए रखने के कर्तव्य को कमजोर करती है।
    • ऐसी प्रवृत्तियाँ भाईचारे और धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को नुकसान पहुँचाती हैं।
  • अदालतों पर भाषण संबंधी मुकदमों का अत्यधिक बोझ: पीठ ने ऑनलाइन भाषण से उत्पन्न होने वाली प्राथमिकी और कानूनी विवादों की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त की।
    • यह अतिभार पुलिस और न्यायिक संसाधनों को अधिक गंभीर मामलों से हटा देता है, जिससे कानूनी व्यवस्था अनावश्यक रूप से बाधित होती है।
  • नागरिकों को आत्म-नियमन करना होगा: राज्य की सेंसरशिप पर निर्भर रहने के बजाय, न्यायालय ने नागरिकों से आत्म-नियमन की भावना विकसित करने का आग्रह किया। इससे स्वतंत्रता का दुरुपयोग कम होगा और कानूनी अतिक्रमण को रोका जा सकेगा।
  • अधिकारों का क्षैतिज उल्लंघन: अधिकारों के क्षैतिज अनुप्रयोग के आधार पर, न्यायालय ने कहा कि नागरिक एक-दूसरे के अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं।
    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा न केवल ऊर्ध्वाधर (राज्य के विरुद्ध) है, बल्कि नागरिकों पर भी लागू होती है।

भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को समझना

  • स्वतंत्र अभिव्यक्ति से तात्पर्य सरकारी सेंसरशिप या दंड के भय के बिना अपनी राय और विचार व्यक्त करने के अधिकार से है।

संवैधानिक ढाँचा

  • अनुच्छेद-19(1)(a) सभी नागरिकों को वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। यह संविधान की प्रस्तावना में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की प्रतिबद्धता में निहित है।
    • यह अधिकार केवल मौखिक या लिखित शब्दों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें रचनात्मक अभिव्यक्ति, पत्रकारिता, डिजिटल सामग्री, फिल्में और सोशल मीडिया पोस्ट भी शामिल हैं।
  • अनुच्छेद-19(2) राज्य को निम्नलिखित के हित में उचित प्रतिबंध आरोपित करने की अनुमति देता है:
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, मानहानि, किसी अपराध के लिए उकसाना।

सोशल मीडिया क्या है?

  • सोशल मीडिया उन डिजिटल प्लेटफॉर्म को संदर्भित करता है, जो उपयोगकर्ताओं को सामग्री साझा करने, वास्तविक समय में वार्ता करने और आभासी समुदाय बनाने की अनुमति देते हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स (पूर्व में ट्विटर), यूट्यूब, व्हाट्सऐप और लिंक्डइन जैसे प्लेटफॉर्म आज लोगों के संचार के केंद्र में हैं।
  • भारत में, जहाँ 80 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, सोशल मीडिया संचार, सक्रियता, मार्केटिंग और राजनीतिक जुड़ाव का एक शक्तिशाली माध्यम बन गया है।

सोशल मीडिया और लोकतंत्र: लोकतंत्र का प्रहरी या चुनौती

सकारात्मक प्रभाव

  • जन सहभागिता और संवाद: सोशल मीडिया चर्चाओं को एकदिशीय संदेश से द्विदिशीयसंवाद में बदल देता है। यह नागरिकों को अपनी राय व्यक्त करने और नेतृत्वकर्ताओं को जवाबदेह ठहराने का अवसर प्रदान करता है।
  • चुनाव प्रचार और लामबंदी: राजनीतिक दल मतदाताओं तक पहुँचने, धन जुटाने और सीधे संदेश प्रसारित करने के लिए मंचों का उपयोग करते हैं।
    • उदाहरण: बराक ओबामा के वर्ष 2008 के अभियान ने फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से डिजिटल पहुँच का बीड़ा उठाया।
  • शासन और शिकायत निवारण: कई सरकारी अधिकारी अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जन शिकायतों का समाधान करते हैं।
    • उदाहरण: दिवंगत सुषमा स्वराज ने विदेश में फँसे भारतीयों की सहायता के लिए ट्विटर का प्रभावी ढंग से उपयोग किया।
  • सक्रियता और जागरूकता: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सामाजिक आंदोलनों और कम प्रतिनिधित्व को सशक्त बनाते हैं।
    • उदाहरण: #MeToo आंदोलन और #JusticeFor अभियानों ने प्रणालीगत अन्याय की ओर ध्यान आकर्षित किया।
  • नागरिक शिक्षा: यूट्यूब चैनल, पॉडकास्ट और फोरम राजनीतिक जागरूकता को बढ़ावा देते हैं।
    • उदाहरण: कई ‘कंटेंट क्रिएटर्स’ जनता के लिए जटिल राजनीतिक मुद्दों को सरल बनाते हैं।

नकारात्मक प्रभाव

  • गलत सूचना और फर्जी खबरें: असत्यापित सामग्री तेजी से फैलती है, जिसके कई बार खतरनाक परिणाम भी हो सकते हैं।
    • उदाहरण: फर्जी व्हाट्सऐप फॉरवर्ड से जुड़ी मॉब लिंचिंग।
  • ऑनलाइन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न: सोशल मीडिया पर गुमनामी, खास तौर पर महिलाओं, पत्रकारों और अल्पसंख्यकों के साथ लक्षित दुर्व्यवहार को बढ़ावा देती है।
    • उदाहरण: समन्वित ट्रोलिंग अभियान प्रायः असहमति संबंधी अभिव्यक्तियों को दबा देते हैं।
  • प्रतिध्वनि और ध्रुवीकरण: एल्गोरिदम आधारित सामग्री वैचारिक स्थान का निर्माण करती है, जहाँ उपयोगकर्ता केवल उन्हीं विचारों को देखते हैं, जिनसे वे सहमत होते हैं, जिससे विभाजन गहरा होता है और विविध विचारों तक पहुँच कम होती है।
    • उदाहरण: राजनीतिक सामग्री प्रायः “हम बनाम वे” मानसिकता को मजबूत करती है।
  • संस्थागत विश्वास को खतरा: इन प्लेटफॉर्म का प्रयोग लोकतांत्रिक संस्थाओं को बदनाम करने या षड्यंत्र के सिद्धांत फैलाने के लिए किया जा सकता है।
    • उदाहरण: चुनावों के दौरान, फर्जी बयान प्रायः न्यायपालिका, चुनाव आयोग या मीडिया को निशाना बनाते हैं।
  • गोपनीयता का उल्लंघन: लीक हुई या बिना सहमति वाली सामग्री स्थायी मनोवैज्ञानिक और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकती है।
    • उदाहरण: ‘रिवेंज पोर्न’ या ‘डॉक्सिंग’ की घटनाएँ प्रायः पीड़ितों की सहमति के बिना वायरल हो जाती हैं।

भारत में डिजिटल भाषण को विनियमित करने के लिए कानूनी और नीतिगत ढाँचा

  1. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 – धारा 69A: सरकार को निम्नलिखित आधारों पर ऑनलाइन सामग्री को अवरुद्ध करने का अधिकार देता है:
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता
    • राज्य की रक्षा और सुरक्षा
    • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
    • लोक व्यवस्था
    • संज्ञेय अपराध के लिए उकसावे की रोकथाम।
  2. सूचना प्रौद्योगिकी (जनता द्वारा सूचना तक पहुँच अवरुद्ध करने की प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009: धारा 69A के अंतर्गत अवरोधन आदेश जारी करने की प्रक्रिया की रूपरेखा प्रस्तुत करता है।
  3. IT (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: ये नियम अनिवार्य करते हैं:
    • मध्यस्थों (सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित) द्वारा उचित परिश्रम।
    • शिकायत निवारण तंत्र।
    • डिजिटल समाचार मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए आचार संहिता।
  4. सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) नियम, 2023
    • सोशल मीडिया मध्यस्थों (Social Media Intermediaries- SMI), महत्त्वपूर्ण SMI (जैसे- ट्विटर, फेसबुक) और ऑनलाइन गेमिंग मध्यस्थों को उपयोगकर्ताओं को यह सूचित करने की आवश्यकता है कि वे केंद्र सरकार की ‘फैक्ट चेक यूनिट’ द्वारा फर्जी या भ्रामक के रूप में चिह्नित सामग्री को होस्ट अथवा साझा न करें, विशेष रूप से सरकारी कार्यों से संबंधित।
    • हालाँकि, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की कमी का हवाला देते हुए, केंद्र को ऐसी तथ्य-जाँच इकाई स्थापित करने की अनुमति देने वाले संशोधित प्रावधानों को रद्द कर दिया।

डिजिटल भाषण पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ और प्रमुख मामले

  • फहीमा शिरीन बनाम केरल राज्य (वर्ष 2019): केरल उच्च न्यायालय ने इंटरनेट के उपयोग के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया।
  • कौशल किशोर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य: न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अनुच्छेद-19(2) से आगे प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता, भले ही इससे दूसरों के अधिकार प्रभावित हों। इसने सरकारी अधिकारियों से आत्मसंयम बरतने और आचार संहिता बनाने का आग्रह किया।
  • वजाहत खान मामला (वर्ष 2025): न्यायालय ने कहा कि नागरिकों को जिम्मेदारी से अधिकारों का महत्त्व समझना चाहिए और सांप्रदायिक तनाव भड़काने से बचना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विभाजन का साधन नहीं बननी चाहिए।
  • हेमंत मालवीय मामला (वर्ष  2025): यद्यपि अनुच्छेद-19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति की रक्षा करता है, तथापि सार्वजनिक संवाद की गरिमा एवं सामाजिक सौहार्द बनाए रखने हेतु इसका प्रयोग आत्म-नियंत्रण एवं अनुशासन के साथ किया जाना आवश्यक है।
  • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (वर्ष 2015): IT अधिनियम की धारा 66A को रद्द कर दिया, जो अस्पष्ट ऑनलाइन भाषण को अपराध घोषित करती थी। डिजिटल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को बरकरार रखा और उन कानूनों के प्रति चेतावनी दी जो अस्पष्ट, अतिव्यापक या अभिव्यक्ति को बाधित करने वाले हैं।
  • अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (वर्ष 2020) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने पुष्टि की कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए इंटरनेट कनेक्टिविटी आवश्यक है।
  • एस. रंगराजन बनाम पी. जगजीवन राम (वर्ष 1989): न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को तब तक दबाया नहीं जा सकता, जब तक कि कोई स्पष्ट खतरा न हो।

आगे की राह 

  • सामग्री मॉडरेशन में सुधार: प्लेटफॉर्म को हानिकारक, अवैध या आपत्तिजनक सामग्री की सक्रिय रूप से समीक्षा करनी चाहिए और उसे हटाना चाहिए। यह काम लोगों, स्वचालित उपकरणों या दोनों द्वारा किया जा सकता है।
  • पारदर्शिता बढ़ाना: सोशल मीडिया कंपनियों को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि उनके एल्गोरिदम कैसे काम करते हैं, वे सामग्री का मॉडरेशन कैसे करते हैं और उपयोगकर्ता डेटा का प्रबंधन कैसे करते हैं।
    • उदाहरण: इंस्टाग्राम अब उपयोगकर्ताओं को अपनी पसंद की सामग्री को नियंत्रित करने की अनुमति देता है।
  • जवाबदेही को बढ़ावा देना: प्लेटफॉर्म को अपने सुरक्षा नियमों को निष्पक्ष और नियमित रूप से लागू करना चाहिए। सामग्री के दुरुपयोग या अनुचित निष्कासन जैसे मुद्दों से निपटने के लिए स्वतंत्र ऑडिट और उपयोगकर्ता-अनुकूल शिकायत प्रणाली लागू होनी चाहिए।
  • मीडिया साक्षरता को मजबूत करना: लोगों को सिखाया जाना चाहिए कि वे फर्जी खबरों की पहचान कैसे करें, तथ्यों की जाँच कैसे करें और विभिन्न विचारों के साथ सम्मानपूर्वक सामंजस्य कैसे स्थापित करें। इससे सूचित और जिम्मेदार उपयोगकर्ता बनाने में मदद मिलती है।
  • सुरक्षित तकनीक में निवेश करना: प्लेटफॉर्म को सुरक्षा में सुधार और झूठी या हानिकारक सामग्री के प्रसार को कम करने के लिए स्वचालित तथ्य-जाँच एवं उपयोग में आसान रिपोर्टिंग सिस्टम जैसे उपकरण अपनाने चाहिए।

PIB फैक्ट चेक यूनिट

  • स्थापना: नवंबर 2019 में प्रेस सूचना ब्यूरो (Press Information Bureau -PIB) द्वारा।
  • उद्देश्य: भारत सरकार, उसके मंत्रालयों, विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र के निकायों से संबंधित फेक न्यूज का मुकाबला करना।
  • कार्य: सरकारी नीतियों, योजनाओं और घोषणाओं पर दावों की पुष्टि करना; गलत सूचनाओं का निराकरण करना; नागरिकों में तथ्यात्मक जागरूकता को बढ़ावा देना।
  • तथ्य-जाँच तंत्र
    • नागरिक व्हाट्सऐप, ईमेल या वेब पोर्टल के माध्यम से सामग्री प्रस्तुत कर सकते हैं।
    • केवल सरकार से संबंधित प्रश्नों पर ही कार्रवाई की जाती है।
    • सत्यापन में शामिल हैं: आधिकारिक ओपन-सोर्स जानकारी, तकनीक-आधारित उपकरण और संबंधित सरकारी विभागों से पुष्टि।
    • सत्यापित स्पष्टीकरण PIB के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किए जाते हैं।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंतरराष्ट्रीय मानक

  • मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR) – अनुच्छेद-19
    • सभी को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है।
    • इसमें किसी भी माध्यम से और सीमाओं के पार जानकारी प्राप्त करने और प्रदान करने का अधिकार शामिल है।
  • मानव और जन अधिकारों पर अफ्रीकी चार्टर – अनुच्छेद-9
    • कानून के दायरे में सूचना प्राप्त करने और राय व्यक्त करने का अधिकार।
    • प्रस्ताव 169 (वर्ष 2010): अफ्रीकी राज्यों से प्रेस की स्वतंत्रता में बाधा डालने वाले आपराधिक मानहानि कानूनों को निरस्त करने का आग्रह करता है।
  • अमेरिकी मानवाधिकार सम्मेलन – अनुच्छेद-13
    • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए सशक्त सुरक्षा।
    • पूर्व सेंसरशिप निषिद्ध है (कुछ अपवादों को छोड़कर)।
    • घृणा या हिंसा भड़काने की कोई भी वकालत दंडनीय है।

सोशल मीडिया के राजनीतिक प्रभाव को विनियमित करना – वैश्विक उदाहरण

  • ऑस्ट्रेलिया
    • ‘रुको और विचार करो’ अभियान: मतदाताओं को भ्रामक चुनावी सामग्री के बारे में शिक्षित करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा शुरू किया गया।
    • समाचार मीडिया सौदेबाजी संहिता: साझा सामग्री के लिए जवाबदेही को प्रोत्साहित करने हेतु गूगल और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्मों  को समाचार प्रकाशकों को भुगतान करना चाहिए।
  • बेल्जियम
    • वर्ष 2018 में, डिजिटल एजेंडा मंत्रालय ने एक फेक न्यूज जागरूकता वेबसाइट शुरू की।
    • सामग्री की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने हेतु ‘रेडिट-सदृश’ अपवोट/डाउनवोट आधारित सामुदायिक मूल्यांकन प्रणाली प्रारंभ की गई, जो सार्वजनिक संवाद में तथ्यात्मकता एवं उत्तरदायित्व को प्रोत्साहित करती है।
  • कनाडा: फेक न्यूज के प्रसार पर नजर रखने और संबंधित एजेंसियों तथा जनता को इसके बारे में सचेत करने के लिए ‘महत्त्वपूर्ण चुनाव घटना सार्वजनिक प्रोटोकॉल’ बनाया गया।

निष्कर्ष

भारत एक ऐसे डिजिटल युग में प्रवेश कर रहा है, जहाँ अभिव्यक्ति सामाजिक विश्वास को बना या बिगाड़ सकती है, ऐसे में नागरिक-नेतृत्व वाला विनियमन, नागरिक जागरूकता और न्यायिक स्पष्टता अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। अधिकारों को अधिकार के रूप में देखने से लेकर उन्हें साझा जिम्मेदारियों के रूप में अपनाने तक का बदलाव भारत के संवैधानिक लोकतंत्र के परिपक्व विकास का प्रतीक है।

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