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वैश्विक शिपिंग को कार्बन मुक्त करना

Lokesh Pal July 17, 2025 03:50 24 0

संदर्भ

वैश्विक शिपिंग क्षेत्र का लक्ष्य वर्ष 2040-50 तक कार्बन-मुक्त होना है, जिसमें अति निम्न सल्फर ईंधन तेल (Very Low Sulphur Fuel Oil-VLSFO) और LNG जैसे जीवाश्म ईंधनों से अमोनिया, ई-मेथनॉल और जैव ईंधन जैसे हरित ईंधनों का उपयोग शामिल है।

ग्रीन शिपिंग क्या है?

  • ग्रीन शिपिंग, जिसे सतत् शिपिंग भी कहा जाता है, एक व्यापक दृष्टिकोण को संदर्भित करता है, जिसका उद्देश्य माल परिवहन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है, विशेष रूप से समुद्री उद्योग में।
  • ग्रीन शिपिंग के मुख्य लक्ष्यों में शामिल हैं:-
    • कार्बन उत्सर्जन में कमी: वैश्विक CO2 उत्सर्जन में शिपिंग का महत्त्वपूर्ण योगदान है, और ग्रीन शिपिंग इस उत्सर्जन को काफी कम करने का प्रयास करती है।
    • वायु और जल प्रदूषण को कम करना: इसमें SOx और NOx जैसे हानिकारक उत्सर्जन में कटौती के साथ-साथ आक्रामक प्रजातियों के प्रसार को रोकने के लिए ब्लॅास्ट वाटर (Ballast Water)​​ का प्रबंधन शामिल है।
    • पारिस्थितिकी संतुलन को बढ़ावा देना: समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और तटीय समुदायों को शिपिंग के नकारात्मक प्रभावों से बचाना।

वैश्विक शिपिंग उत्सर्जन की स्थिति

  • वैश्विक शिपिंग ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है, जो कुल वैश्विक उत्सर्जन का लगभग 3% है।
  • पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्यों में वर्ष 2008 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक कार्बन तीव्रता (प्रति परिवहन कार्य CO2 उत्सर्जन) को कम-से-कम 40% और वर्ष 2040 तक 70% कम करने का लक्ष्य तय करने पर सहमति बनी है, जिससे अंततः वर्ष 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन प्राप्त होगा।
  • अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) इन उत्सर्जनों को कम करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है और इस क्षेत्र के लिए वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लक्ष्य निर्धारित कर रहा है।

हरित ईंधन के बारे में

  • यह नवीकरणीय ऊर्जा से प्राप्त कार्बन-तटस्थ/सिंथेटिक ईंधन है।
  • उद्देश्य: ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करना।
  • महत्त्व: शिपिंग, विमानन और भारी उद्योग जैसे कठिन-से-कम करने वाले क्षेत्रों को कार्बन-मुक्त करने की कुंजी है।

हरित ईंधन का उत्पादन

  • हरित हाइड्रोजन का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके जल के विद्युत अपघटन द्वारा किया जाता है।
    • भंडारण और परिवहन संबंधी चुनौतियों (उच्च अस्थिरता) के कारण इसका सीधे तौर पर शिपिंग में उपयोग नहीं किया जाएगा।
  • ग्रीन अमोनिया, ग्रीन हाइड्रोजन और नाइट्रोजन से बनता है, जिससे इसकी स्थिरता अधिक होती है।
    • भारत उर्वरक निर्माण में LNG आयात के विकल्प के रूप में इसके उत्पादन को प्रोत्साहित करता है।
  • हरित मेथनॉल (ई-मेथनॉल) औद्योगिक स्रोतों से प्राप्त हरित हाइड्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइड द्वरा निर्मित किया जाता है।
  • पॉवर-टू-एक्स (P2X): हरित हाइड्रोजन को अन्य ईंधनों में परिवर्तित करता है।
  • ई-मेथेन/SNG: प्राकृतिक गैस का सिंथेटिक विकल्प।
  • ई-केरोसिन: सिंथेटिक विमानन ईंधन।
  • जैव ईंधन
    • पहली पीढ़ी: खाद्य फसलों (जैसे- मक्का, गन्ना) से।
    • दूसरी पीढ़ी: कृषि अपशिष्ट, लकड़ी के बायोमास, प्रयुक्त तेलों से।
    • तीसरी पीढ़ी: शैवाल से।
    • चौथी पीढ़ी: CO₂ अवशोषण के लिए इंजीनियर्ड सूक्ष्मजीवों का उपयोग करना।

शिपिंग उद्योग में अनुकूल हरित ईंधन

  • शिपिंग उद्योग आमतौर पर नई तकनीकों को अपनाने में रूढ़िवादी है।
  • ग्रीन मेथेनॉल को शुरुआती प्राथमिकता दी जा रही है, जो लगभग 10% कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है।
    • यह VLSFO का लगभग एक प्रतिस्थापन है, जिसे पर्यावरण तापमान पर तरल रूप में संगृहीत किया जाता है।
    • 360+ मेथेनॉल-सक्षम जहाज सेवारत हैं या इनका ऑर्डर प्राप्त हो चुका  हैं।
    • प्रमुख कंटेनर शिपिंग कंपनियाँ (Maersk, CMA, CGM, Evergreen) मेथेनॉल का समर्थन करती हैं।
  • बाद में ग्रीन अमोनिया के आने की उम्मीद है, क्योंकि यह कोई ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जित नहीं करता है।
    • इसके लिए व्यापक ऑन-बोर्ड प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है, जिसमें एक समर्पित भंडारण टैंक और इंजन/ईंधन प्रबंधन प्रणाली में बदलाव शामिल हैं।
  • मूल्य निर्धारण में विसंगति: सतत् ई-मेथेनॉल की लागत $1,950 प्रति टन (VLSFO समतुल्य) है, जबकि VLSFO की $560 प्रति टन है।
    • इसका कारण नवीकरणीय विद्युत की ऊँची कीमत (ई-मेथेनॉल के प्रति टन 10-11 मेगावाट घंटा) और इलेक्ट्रोलाइजर सुविधाओं के लिए महत्त्वपूर्ण अग्रिम पूँजीगत लागत है।
  • अनुमान है कि वर्ष 2028 तक हरित मेथोनॉल की माँग 14 मिलियन टन से अधिक हो जाएगी, जबकि आपूर्ति केवल 11 मिलियन टन होने का अनुमान है, जिससे मूल्य पर दबाव उत्पन्न होगा।

शिपिंग के लिए भारत की डीकार्बोनाइजेशन योजनाएँ

  • प्रतिबद्धता: भारत अपने घरेलू शिपिंग को कार्बन-मुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • बुनियादी ढाँचा: योजनाओं में घरेलू कंटेनर जहाजों को हरित ईंधन से सहायता प्रदान करना और हरित ईंधन बंकरिंग पॉइंट (जैसे- तूतीकोरिन वी. ओ. चिदंबरनार बंदरगाह और कांडला) स्थापित करना शामिल है।
  • निर्यात पर ध्यान: भारत का लक्ष्य सिंगापुर, जो एक प्रमुख वैश्विक जहाज ईंधन स्टेशन है, को हरित ईंधन का उत्पादन और आपूर्ति करना है।
  • रणनीतिक बढ़त: भारत की भूमि और सौर ऊर्जा विशेषज्ञता को देखते हुए, यह वैश्विक शिपिंग के लिए हरित ईंधन का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता बन सकता है।

भारत डीकार्बोनाइजेशन कैसे प्राप्त कर सकता है?

  • अधिक उत्पादन: हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए सौर पैनल और इलेक्ट्रोलाइजर आयात करने की आवश्यकता है।
  • भारत की सौर ऊर्जा क्रांति का लाभ उठाना: 2.82 गीगावाट (2014) से 105 गीगावाट (2025) तक की वृद्धि, संप्रभु गारंटी (Sovereign Guarantees), ऑफ-टेक आश्वासन और मजबूत आपूर्ति शृंखला समर्थन के माध्यम से सफलता को दर्शाती है।
    • संप्रभु गारंटी कम ब्याज दरों पर अंतरराष्ट्रीय पूँजी बाजारों तक पहुँच को सक्षम करके कीमतों को उल्लेखनीय रूप से कम कर सकती है।
  • नवीन वित्तीय उपकरण
    • इलेक्ट्रोलाइजर के लिए उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ आपूर्ति शृंखला की बाधाओं को कम कर सकती हैं।
    • कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) का प्रोत्साहन, संगृहीत CO2 से हरित मेथेनॉल की व्यवहार्यता को बढ़ाते हैं।
    • भारत द्वारा 1.5 गीगावाट की स्थानीय इलेक्ट्रोलाइजर निर्माण क्षमता और बढ़ते औद्योगिक CO2 स्रोतों (इस्पात, सीमेंट) के लिए आक्रामक प्रयास, इसे रणनीतिक रूप से एकीकृत हरित ईंधन केंद्रों के रूप में स्थापित करते हैं।
    • बहुपक्षीय विकास बैंक, घरेलू ऋणदाताओं (11-12%) की तुलना में कम दरों (4% तक) पर वित्तपोषण प्रदान करते हैं।

हरित ईंधन और भारतीय जहाज स्वामित्व/जहाज निर्माण पुनरुद्धार

  • माँग समर्थन: जहाज निर्माताओं के लिए सरकार का माँग-पक्ष समर्थन और विदेशी सहयोग के लिए प्रोत्साहन, पैमाने की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देंगे तथा वैश्विक जहाज निर्माताओं को आकर्षित करेंगे।
  • वैश्विक साझेदारियाँ: विदेशी जहाज निर्माताओं (दक्षिण कोरिया, जापान) के साथ साझेदारियाँ की जा रही हैं।
  • हरित रणनीति: इस रणनीति में नए निर्माणों का समर्थन करना और मौजूदा जहाजों को हरित ईंधन अनुकूलता के लिए पुनर्निर्मित करना शामिल है।
  • वित्तीय प्रतिबद्धता: भारत ने 110 से अधिक जहाजों की खरीद के लिए 10 अरब डॉलर प्रदान करने की प्रतिबद्धता जाहिर की है।
  • हरित प्रोत्साहन: प्रोत्साहन यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि इनमें से 10-20% जहाज हरित ईंधन-सक्षम हों, भारतीय शिपयार्ड में निर्मित हों ।

COP28 में मैरीटाइम डीकार्बोनाइजेशन पर चर्चा

  • वैश्विक व्यापारिक व्यापार के 80% के लिए जिम्मेदार समुद्री परिवहन को COP28 में कार्बन-मुक्त करने के लिए अत्यधिक  दबाव का सामना करना पड़ा।
  • वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में शिपिंग उद्योग का योगदान 3% है, जो पिछले एक दशक में 20% बढ़ा है।

UNCTAD की नीतिगत सिफारिशें

  • सार्वभौमिक नियामक ढाँचा: सभी जहाजों पर एक समान डीकार्बोनाइजेशन मानक लागू करके खंडित नियमों से बचना।
  • विनियमों में निश्चितता: समय सीमा और लक्ष्यों को स्पष्ट करके निवेश सुनिश्चित करना।
  • अनुसंधान एवं विकास निधि को बढ़ावा देना: स्वच्छ ईंधन प्रौद्योगिकियों और बुनियादी ढाँचे में निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • कार्बन मूल्य निर्धारण/लेवी: हरित ईंधन को प्रतिस्पर्द्धी बनाना और कमजोर अर्थव्यवस्थाओं के लिए धन जुटाना।

नई IMO-UNCTAD साझेदारी

  • लॉन्च: विकासशील देशों पर कार्बन-मुक्ति के प्रभावों का आकलन करने के लिए COP28 में लॉन्च किया गया।
  • फोकस: ग्रीनहाउस गैस मूल्य निर्धारण, व्यापार, सकल घरेलू उत्पाद और उपभोक्ता मूल्य।
  • 5,00,000 डॉलर के IMO अनुदान द्वारा समर्थित यह परियोजना मार्च 2025 तक संचालित होगी, जिसका उद्देश्य वैश्विक सहमति बनाना और अनिश्चितता को कम करना है।

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