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Lokesh Pal
July 19, 2025 03:02
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हाल ही में महाराष्ट्र में हिंदी-मराठी तनाव ने भारत में भाषा, संस्कृति और पहचान पर बहस को पुनः उत्पन्न कर दिया है, जिस पर गहन विचार-विमर्श की आवश्यकता है।
भारत की भाषायी धर्मनिरपेक्षता इसकी बहुलवादी पहचान की आधारशिला है, जो यह सुनिश्चित करती है कि शासन, शिक्षा या संस्कृति में किसी भी भाषा को दूसरों पर विशेषाधिकार न दिया जाए। क्षेत्रीय प्रतिरोध, अंग्रेजी के प्रभुत्व और कम बोली जाने वाली भाषाओं के हाशिए पर होने जैसी चुनौतियों के बावजूद, संवैधानिक प्रावधान, नीतियाँ तथा साहित्य अकादमी जैसी संस्थाएँ भाषायी तटस्थता को बनाए रखती हैं।
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