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भारतीय चिकित्सकों और नर्सों का अन्य देशों में पलायन: एक स्वास्थ्य संबंधी चिंता

Lokesh Pal July 26, 2025 05:00 17 0

संदर्भ

भारत को अपने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एक गंभीर विरोधाभास का सामना करना पड़ रहा है- जबकि देश में चिकित्सकों और नर्सों की भारी कमी है, वहीं इसके प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवरों की एक बड़ी संख्या कार्य के लिए विकसित देशों में पलायन कर जाती है।

स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की वर्तमान स्थिति

  • स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के पलायन की प्रवृत्ति: श्रीलंका में चिकित्सा कार्यबल का 10-12% विदेशी चिकित्सक हैं।
    • फिलीपींस: लगभग 85% फिलिपिनो नर्सें विदेशों में कार्यरत हैं।
  • वैश्विक स्वास्थ्य कर्मियों की कमी: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का अनुमान है, कि 2030 तक विश्व में 18 मिलियन स्वास्थ्य कर्मियों की कमी होगी।
  • विकसित राष्ट्रों में भारत का योगदान: वर्तमान में लगभग 75,000 भारतीय प्रशिक्षित चिकित्सक और 6,400 नर्सें आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) देशों में कार्यरत हैं

स्वास्थ्य कर्मियों के पलायन के कारण

  • पलायन के कारक:
    • कम वेतन और सीमित वृद्धि: भारत में स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रायः विकसित देशों की तुलना में कम वेतन मिलता है और कई लोगों के लिए तेजी से करियर प्रगति या वेतन वृद्धि की संभावना सीमित मानी जाती है।
    • खराब कार्य स्थितियाँ: भारत के अस्पतालों में आधुनिक उपकरणों का अभाव तथा कार्य वातावरण चुनौतीपूर्ण हो सकता है, साथ ही मरीजों के रिश्तेदारों द्वारा चिकित्सकों के विरुद्ध हिंसा की घटनाएँ भी सामने आ चुकी हैं।
    • राजनीतिक अस्थिरता: हालाँकि भारत में यह कम देखने के मिलता है, लेकिन कुछ विकासशील देशों (जैसे- म्याँमार या फिलीपींस) में राजनीतिक अस्थिरता भी स्वास्थ्य कर्मियों को अन्यत्र अवसर तलाशने के लिए प्रेरित कर सकती है।
  • आकर्षित करने वाले कारक (विकसित देशों की ओर उनका आकर्षण):
    • उच्च वेतन: विकसित देश काफी अधिक वेतन देते हैं
    • अधिक सम्मान और बेहतर कार्य स्थितियाँ: इन देशों में स्वास्थ्य पेशेवरों को आमतौर पर अधिक सम्मान मिलता है और बेहतर बुनियादी ढाँचे एवं आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं का लाभ मिलता है
    • स्वास्थ्य कर्मियों की व्यापक कमी: विकसित देशों में वृद्ध आबादी और निम्न जन्म दर के कारण चिकित्सकों और नर्सों की लगातार कमी बनी हुई है। इससे विदेशी स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी माँग उत्पन्न होती है।
    • उदार भर्ती नीतियाँ: यूके जैसे देश जानबूझकर उदार भर्ती नीतियाँ अपनाते हैं, जिससे विदेशी चिकित्सकों और नर्सों के लिए वीज़ा तथा वर्क परमिट प्राप्त करना आसान हो जाता है। COVID-19 महामारी के दौरान, यूनाइटेड किंगडम ने नर्सों के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक वीज़ा की भी पेशकश की।

भारत में इस प्रवास के लाभ

  • धन प्रेषण: विदेशों में कार्यरत चिकित्सकों द्वारा भेजा गया धन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार और आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
  • कौशल विकास: जब चिकित्सक भारत लौटते हैं, तो वे विकसित स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में काम करने से अर्जित उन्नत कौशल और ज्ञान लेकर आते हैं, जो भारत की चिकित्सा पद्धतियों में विस्तार कर सकता है।
  • राजनयिक प्रभाव (सॉफ्ट पावर): विदेशों में भारतीय पेशेवरों की उपस्थिति द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत कर सकती है और वैश्विक स्तर पर भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ा सकती है
    • उदाहरण: भारत ने COVID-19 महामारी के दौरान अफ्रीका और पड़ोसी देशों में चिकित्सकों को तैनात किया।

प्रवास से होने वाली हानि

  • कार्यबल में कमी: इसका सबसे प्रत्यक्ष परिणाम यह है, कि भारत की अपनी जनसंख्या के उपचार के लिए कुशल स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या कम हो गई है।
  • ग्रामीण और छोटे शहरों में उपेक्षा: इसका प्रभाव विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में गंभीर है, जहाँ चिकित्सकों की पहुँच पहले से ही सीमित है। इससे स्वास्थ्य सेवा में मौजूदा शहरी-ग्रामीण अंतराल और भी गहरा हो जाता है।
  • आपात स्थिति में संकट: चिकित्सकों की कमी से देश में स्वास्थ्य संकट या आपातकालीन स्थिति के दौरान लोग “असहाय” महसूस कर सकते हैं।
  • नैतिक दुविधा: अक्सर यह देखा जाता है, कि भारतीय चिकित्सक अन्य देशों में लोगों का इलाज कर रहे हैं, जबकि उनके अपने देश में नागरिकों को पर्याप्त चिकित्सा देखभाल नहीं मिल पा रही है।
  • प्रतिभा पलायन: अंततः उच्च शिक्षित और कुशल पेशेवरों की हानि एक महत्त्वपूर्ण “प्रतिभा पलायन” का प्रतिनिधित्व करती है, जो भारत के समग्र विकास और स्वास्थ्य सेवा में प्रगति में बाधा डालती है।

आगे की राह

  • द्विपक्षीय समझौते: भारत को गंतव्य देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते करने चाहिए।
    • इन समझौतों से भारतीय चिकित्सकों के लिए उचित मुआवजा सुनिश्चित होगा, भारत के मेडिकल कॉलेजों में निवेश को अनिवार्य बनाया जाएगा तथा चिकित्सा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुगम बनाया जाएगा
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन भेजने वाले और प्राप्त करने वाले देशों के बीच ऐसे समझौतों को सुगम बनाने के लिए एक मंच के रूप में काम कर सकता है।
  • घरेलू सुधार:
    • मेडिकल कॉलेजों की सीटों में वृद्धि: अधिक चिकित्सक और नर्स तैयार करने के लिए मेडिकल कॉलेजों में सीटों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि करें।
    • ग्रामीण सुविधाओं में सुधार: स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे और सुविधाओं को बढ़ाना, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में।
    • प्रोत्साहन प्रदान करना: स्वास्थ्य कर्मियों को भारत में बने रहने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु बेहतर वेतन, बेहतर कार्य स्थितियाँ और स्पष्ट योग्यता-आधारित विकास पथ प्रदान करें।
  • चक्रीय प्रवास को बढ़ावा देना: ऐसी प्रणाली को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, जिसमें चिकित्सक अनुभव प्राप्त करने के लिए कुछ वर्षों तक विदेश में कार्य करें और फिर अपने उन्नत कौशल का उपयोग करने के लिए भारत लौट आएँ।
    • इससे रैखिक प्रवासन को रोका जा सकता है, जहाँ पेशेवर स्थायी रूप से नौकरी छोड़ देते हैं।
  • एक केन्द्रीकृत एजेंसी की स्थापना: खाड़ी प्रवासियों के लिए केरल की एजेंसी या फिलीपींस के प्रवासी श्रमिक विभाग के समान एक राष्ट्रीय एजेंसी का निर्माण करें।
    • यह एजेंसी विदेशों में भारतीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की शिकायतों पर ध्यान केंद्रित करेगी और भारत लौटने वालों को सहायता प्रदान करेगी।
  • टेलीमेडिसिन का लाभ उठाएँ: ऐसे मॉडलों का पता लगाएँ, जहाँ भारतीय चिकित्सक भारत के भीतर से टेलीमेडिसिन के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय रोगियों को चिकित्सा परामर्श प्रदान कर सकें
    • इससे उन्हें देश में रहते हुए प्रतिस्पर्धी वेतन प्राप्त करने का अवसर मिलता है।
  • प्रतिभा पलायन के विरुद्ध वैश्विक सहयोग: भारत को फिलीपींस और श्रीलंका जैसे अन्य “वैश्विक दक्षिण” देशों के साथ सहयोग करना चाहिए, जो समान चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, ताकि स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के अनियंत्रित प्रतिभा पलायन के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सामूहिक कार्यवाही की जा सके।

निष्कर्ष

भारत को अपने स्वास्थ्य कर्मियों के प्रवास के प्रति सक्रिय और संतुलित प्रतिक्रिया अपनानी होगी। रणनीतिक द्विपक्षीय समझौतों और मजबूत घरेलू सुधारों को लागू करके, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है, कि उसके उच्च कुशल स्वास्थ्य पेशेवर मुख्य रूप से अन्य देशों की बजाय राष्ट्रीय कल्याण में महत्त्वपूर्ण योगदान दें।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारतीय चिकित्सकों और नर्सों का विकसित देशों की ओर बड़े पैमाने पर पलायन एक विरोधाभास उत्पन्न करता है, जहाँ भारत घरेलू स्तर पर स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की कमी का सामना करते हुए उनका वैश्विक आपूर्तिकर्ता बन जाता है। इस प्रवृत्ति के कारणों और परिणामों पर चर्चा कीजिए। घरेलू स्वास्थ्य सेवा आवश्यकताओं और वैश्विक संबंधों के बीच संतुलन बनाने के लिए नीतिगत उपाय सुझाइए। (15 अंक, 250 शब्द)

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