100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के चिकित्सक: भूमिका एवं सीमाएँ

Lokesh Pal July 29, 2025 05:00 19 0

संदर्भ

हाल ही में X (पूर्व नाम ट्विटर) पर एक हेपेटोलॉजिस्ट और एक भारतीय शतरंज ग्रैंड मास्टर के बीच इस बात पर विवाद छिड़ गया था कि क्या पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के चिकित्सक डॉक्टर होने का दावा कर सकते हैं। इस घटना से भारत में आयुर्वेद और यूनानी जैसी पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों की भूमिका और स्थिति पर चर्चा को बल दिया है।

आयुष पद्धति का अवलोकन

  • आयुर्वेद: 3000 वर्ष से अधिक पुरानी एक भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली, जो आहार, जीवनशैली में परिवर्तन और जड़ी-बूटियों के माध्यम से शरीर के संतुलन पर केंद्रित है
  • योग और प्राकृतिक चिकित्सा: योग में व्यायाम और श्वास तकनीक शामिल हैं, जबकि प्राकृतिक चिकित्सा में उपचार के लिए प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है।
  • यूनानी: यह ग्रीक-अरबी मूल की एक प्राचीन चिकित्सा प्रणाली हैं। यह पद्धति उत्तम स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और बीमारियों से बचाव के लिए शरीर के चार स्वभावों (गर्म, ठंडा, सूखा, और नम) और चार द्रव्यों (खून, कफ, पीला पित्त, और काला पित्त) के संतुलन पर जोर देती है
  • सिद्ध: यह एक पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित है।
  • होम्योपैथी: इसका मूल सिद्धांत है “सिमिलिया सिमिलिबस क्यूरेंटुर” जिसका अर्थ है “समान को समान से ठीक किया जाता है।” यह एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है, जिसकी शुरुआत 18वीं सदी के अंत में जर्मन चिकित्सक डॉ. सैमुअल हैनीमैन ने की थी

वर्तमान विवाद का मुद्दा

  • प्राथमिक विवाद यह है कि क्या इन आयुष प्रणालियों का अभ्यास करने वाले डॉक्टर आधुनिक एलोपैथिक दवाएं लिख सकते हैं, जो आमतौर पर साक्ष्य-आधारित होती हैं और MBBS डिग्री धारकों द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
  • हालांकि यह विवाद नया नहीं है; क्योंकि लगभग पिछले आठ दशक से ऐसे विवाद समय-समय होते रहे हैं।

आयुष पद्धति की मान्यता का ऐतिहासिक अवलोकन व प्रावधान

  • भोरे समिति (1946): आधिकारिक तौर पर स्वास्थ्य सर्वेक्षण और विकास समिति के रूप में जानी जाने वाली यह समिति आधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा (एलोपैथी) के पक्ष में थी।
    • इस समिति ने अपने अध्ययन में पाया कि कई देश पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को समाप्त कर रहे हैं तथा उन्होंने यह निर्णय राज्यों पर छोड़ दिया कि पारंपरिक चिकित्सा उनकी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों में किस हद तक भूमिका निभाती है।
  • स्वदेशी चिकित्सा समिति (1948): पारंपरिक डॉक्टरों ने भोरे समिति की रिपोर्ट का विरोध किया।
    • दबाव में आकर सरकार ने स्वदेशी चिकित्सा समिति का गठन किया।
    • इस समिति ने आयुर्वेद को वेदों और हिंदू राष्ट्रवाद से जोड़ते हुए तर्क दिया कि इसका पतन ब्रिटिश शासन के कारण हुआ।
    • परस्पर विरोधी सिफारिशों के कारण तत्कालीन सरकार इस बात पर अनिर्णीत रही कि आयुष प्रणालियों को हटाया जाए या मान्यता दी जाए।
  • भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद अधिनियम 1970: हालांकि भारतीय चिकित्सा केन्द्रीय परिषद अधिनियम 1970 के साथ एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया, जिसने आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी चिकित्सकों को मान्यता और विनियमन प्रदान किया।
  • भारतीय राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति आयोग अधिनियम 2020 (NCISM Act, 2020): आयुष प्रणाली को और अधिक समर्थन 1970 के अधिनियम के स्थान पर राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग अधिनियम 2020 द्वारा दिया गया

आयुष और आधुनिक चिकित्सा के बीच वैचारिक विभाजन

आयुष और आधुनिक चिकित्सा के बीच मूलभूत अंतर सैद्धांतिक ढांचे में निहित है:

  • आयुर्वेद: अवधारणाएं ‘दोषों’ पर आधारित हैं – तीन प्रकार की ऊर्जाएं (वात, पित्त, कफ) जो असंतुलित होने पर बीमारी का कारण बनती हैं।
    • इसमें परमात्मा और जीवात्मा के बीच अंतर जैसे आध्यात्मिक पहलुओं को भी शामिल किया गया है।
  • आधुनिक चिकित्सा: यह पद्धति कोशिका शरीर क्रिया विज्ञान, मानव शरीर रचना विज्ञान और रोगाणुओं (बैक्टीरिया, वायरस) के कारण होने वाली बीमारियों पर केंद्रित है।
    • अतः दोनों ही प्रणालियों की अलग-अलग अवधारणाएं एकीकृत चिकित्सा (दोनों प्रणालियों को मिलाकर) को लागू करना कठिन बनाती हैं, क्योंकि “दोनों प्रणालियाँ एक साथ नहीं चल सकती”।

पर्चे के अधिकारों पर कानूनी रुख

  • ड्रग्स और कॉस्मेटिक नियम 1945: नियम 2, अनुभाग EE, “पंजीकृत चिकित्सा व्यवसायीको किसी सिस्टम द्वारा आधिकारिक रूप से लाइसेंस प्राप्त व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है।
    • यह नियम राज्य सरकारों को ऐसे चिकित्सकों को पंजीकृत करने की अनुमति देता है जो आधुनिक दवाएं लिख सकते हैं। अतः यह इसे केवल MBBS डॉक्टरों तक ही सीमित नहीं करता।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (1998): डॉ. मुख्तियार चंद एवं अन्य बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य के ऐतिहासिक मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि “दवा का नुस्खा उसी चिकित्सा प्रणाली का हिस्सा है ”।
    • इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आयुर्वेदिक चिकित्सकों को आधुनिक चिकित्सा संबंधी पर्चा लिखने का अधिकार नहीं है।
    • वे केवल आयुर्वेदिक दवाइयां ही लिख सकते हैं, और इसी प्रकार यूनानी चिकित्सक भी यूनानी दवाइयाँ लिख सकते हैं।
  • निरंतर गैर-अनुपालन: सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्णय के बावजूद, कई राज्य सरकारों ने आयुष डॉक्टरों को एलोपैथिक दवाएं लिखने की अनुमति देना जारी रखा है, जो अक्सर राजनीतिक कारणों से आयुष डॉक्टरों के दबाव के कारण होता है।
    • भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) अक्सर इन कार्यवाहियों को उच्च न्यायालयों में चुनौती देता है।

सर्जिकल प्रक्रियाओं का प्रश्न

वर्तमान समय में, बहस इस तथ्य पर भी है कि क्या आयुष डॉक्टर सर्जरी या इंट्यूबेशन (श्वास नली में ट्यूब डालना) जैसी प्रक्रियाएं कर सकते हैं।

  • अस्पताल पद्धतियाँ: यह एक “खुला रहस्य” है कि कुछ अस्पताल चिकित्सा कार्य करने के लिए कम वेतन पर MBBS डॉक्टरों के बजाय आयुर्वेदिक डॉक्टरों (BAMS स्नातकों) को नियुक्त करते हैं।
  • सरकारी आदेश (2020): सरकार ने एक आदेश जारी कर आयुर्वेदिक P.G. (स्नातकोत्तर) डॉक्टरों को 58 छोटी सर्जरी करने की अनुमति दी है। इनमें पित्ताशय की सर्जरी, अपेंडिक्स की सर्जरी और साधारण ट्यूमर को हटाना शामिल है।
    • हालांकि इस अधिसूचना को अदालत में चुनौती दी गई है।
    • परंतु इस प्रणाली की एक प्रमुख चिंता यह है कि यदि आयुर्वेदिक चिकित्सक सर्जरी करते हैं, तो वे अनिवार्य रूप से आधुनिक चिकित्सा तकनीकों जैसे एनेस्थीसिया और एंटीबायोटिक्स का उपयोग करेंगे, भले ही उन्हें इन पद्धतियों के लिए आधुनिक चिकित्सा में शिक्षा न मिली हो।

आयुष निवेश पर पुनर्विचार

  • आयुष प्रणाली का राजनीतिकरण: आयुष प्रणाली को अक्सर राजनीतिक आख्यानों में उलझा दिया जाता है, इसे हिंदू गौरव और प्राचीन भारतीय विरासत के प्रतीक के रूप में पेश किया जाता है
    • जैसा कि रामायण कालीन पुष्पक विमान या महाभारत कालीन कौरवों के टेस्ट-ट्यूब बेबी होने के दावों का सहारा भारत के अतीत को महिमामंडित करने के लिए किया जाता है।
    • यह भावनात्मक और सांस्कृतिक संबंध कठोर वैज्ञानिक सत्यापन की आवश्यकता को दबा सकता है, जो किसी भी चिकित्सा प्रणाली को आधुनिक स्वास्थ्य सेवा में एकीकृत करने के लिए आवश्यक है।
  • बिना सिद्ध परिणामों के सार्वजनिक वित्तपोषण: सरकार ने आयुष के अंतर्गत कार्यरत अनुसंधान परिषदों पर करदाताओं के लगभग 20,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
    • हालाँकि, स्वास्थ्य परिणामों या प्रभावकारिता के संदर्भ में इस तरह के निवेश को उचित ठहराने के लिए सीमित साक्ष्य हैं।

निष्कर्ष

यद्यपि आयुष प्रणालियों की एक ऐतिहासिक विरासत है और उनका प्रचलन जारी है, फिर भी आधुनिक एलोपैथिक चिकित्सा के साथ उनके एकीकरण या उनके साथ ओवरलैप होने में उन्हें महत्वपूर्ण वैचारिक, कानूनी और व्यावहारिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत में आयुष चिकित्सकों की भूमिका पर बहस पारंपरिक चिकित्सा और साक्ष्य-आधारित आधुनिक स्वास्थ्य सेवा के बीच तनाव को उजागर करती है। आयुष चिकित्सकों को मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवा में शामिल करने की कानूनी, शैक्षिक और नैतिक चुनौतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। साथ ही, आगे बढ़ने के लिए एक संतुलित तरीका भी सुझाइए।

(250 शब्द, 15 अंक)

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.