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वर्ष 2025 विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति

Lokesh Pal July 30, 2025 03:47 38 0

संदर्भ

संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘विश्व में खाद्य एवं पोषण की स्थिति’ (SOFI) 2025 रिपोर्ट जारी की गई है।

संबंधित तथ्य

  • वर्ष 2006 से अब तक अल्पपोषण में लगभग 30% की गिरावट दर्ज की गई है, फिर भी ‘वर्ष 2025 की विश्व में खाद्य एवं पोषण की स्थिति रिपोर्ट’ के अनुसार, वर्ष 2024 में भारत में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में वेस्टिंग (Wasting) की दर वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक रहने की आशंका है। इसके अतिरिक्त, अन्य प्रमुख पोषण-संबंधी संकेतक भी गहरी चिंता का विषय बने हुए हैं।
  • वर्ष 2024 में विश्व भर में 720 मिलियन लोग भूख से प्रभावित होंगे, जो वैश्विक जनसंख्या का लगभग 8.2 प्रतिशत है।

विश्व में खाद्य एवं पोषण की स्थिति रिपोर्ट के बारे में

  • पाँच संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों द्वारा निर्मित: खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (FAD), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF ), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP), और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)।
  • अधिदेश: SDG 2.1 (भुखमरी समाप्त करना) और SDG 2.2 (कुपोषण का उन्मूलन) पर वैश्विक प्रगति की निगरानी करता है।
  • संबंधित क्षेत्र: भुखमरी, खाद्य असुरक्षा, कुपोषण, कृषि उत्पादकता तथा संबंधित जनसांख्यिकीय और समष्टि आर्थिक चर।

प्रमुख वैश्विक निष्कर्ष

  • दीर्घकालिक भुखमरी: अनुमान है कि वर्ष 2024 में 72 करोड़ लोग दीर्घकालिक भुखमरी का अनुभव करेंगे, जो वैश्विक जनसंख्या का 8.2% है।
  • मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा: वैश्विक स्तर पर लगभग 2.3 अरब लोगों को मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा।
  • वर्ष 2015 के बाद वृद्धि: वर्ष 2024 में भुखमरी महामारी-पूर्व स्तर से अधिक रही और वर्ष 2015 में  लगभग 9.6 करोड़ से अधिक लोग दीर्घकालिक भुखमरी से पीड़ित थे।
  • खाद्य असुरक्षा में वृद्धि: वर्ष 2019 की तुलना में वर्तमान में वैश्विक स्तर पर 33.5 करोड़ अधिक लोग खाद्य-असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, जबकि वर्ष 2015 की तुलना में यह संख्या 68.3 करोड़ थी।

क्षेत्रीय वितरण

  • असमान प्रगति: वर्ष 2022 में 8.7% और वर्ष 2023 में 8.5% की वैश्विक गिरावट के बावजूद, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण के संदर्भ में क्षेत्रीय विषमताएँ अब भी व्याप्त हैं, अफ्रीका और एशिया अभी भी सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल हैं।
  • एशिया: जनसंख्या के आकार के कारण, अल्पपोषित लोगों की सबसे बड़ी संख्या 323 मिलियन है।
  • अफ्रीका: लगभग 307 मिलियन लोग अल्पपोषण से पीड़ित हैं, और विश्व में सर्वाधिक व्यापकता दर वाले क्षेत्रों में प्रत्येक पाँच में से एक व्यक्ति भुखमरी का सामना कर रहा है।
  • लैटिन अमेरिका और कैरिबियन: 34 मिलियन प्रभावित।
  • रुझान: दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिणी एशिया और दक्षिण अमेरिका में भुखमरी में कमी आई है, लेकिन कई अफ्रीकी क्षेत्रों में खाद्य असुरक्षा बनी हुई है।

वर्ष 2030 के अनुमान और वैश्विक लक्ष्य

  • अल्पपोषण पूर्वानुमान: वर्ष 2030 तक, 512 मिलियन लोग (वैश्विक जनसंख्या का 6%) दीर्घकालिक रूप से अल्पपोषित हो सकते हैं।
  • धीमी प्रगति: वर्ष 2015 के स्तर (577 मिलियन से 512 मिलियन) से वर्ष 2030 तक केवल 65 मिलियन की कमी की संभावना है।
  • वर्ष 2030 के लिए क्षेत्रीय दृष्टिकोण
    • अफ्रीका: वैश्विक अल्पपोषण का 60% हिस्सा इसी क्षेत्र में होगा, इसकी 17.6% आबादी को दीर्घकालिक भुखमरी का सामना करना पड़ सकता है।
    • एशिया और लैटिन अमेरिका: अल्पपोषण 5% से भी कम होने की संभावना है।

वर्ष 2024 में भारत की पोषण स्थिति

अल्पपोषण (Undernourishment)

  • उल्लेखनीय गिरावट: अल्पपोषित जनसंख्या 243 मिलियन (वर्ष 2006) से घटकर 172 मिलियन (वर्ष 2024) हो गई, अर्थात् वर्ष 2024 में भारत की लगभग 12% जनसंख्या कुपोषित है।
  • वैश्विक एवं क्षेत्रीय रैंकिंग
    • 204 देशों में से वैश्विक स्तर पर 48वें स्थान पर।
    • एशिया में: भारत में अल्पपोषित जनसंख्या का अनुपात एशिया में सातवें स्थान पर है, जो सीरिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे संघर्षग्रस्त देशों के बाद आता है।

बाल पोषण संकेतक

  • वेस्टिंग (ऊँचाई के अनुपात में कम वजन): वर्ष 2024 में पाँच वर्ष से कम आयु के 18.7% भारतीय बच्चे वेस्टिंग से पीड़ित होंगे, जो वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक दर है, जिससे 2.1 करोड़ से अधिक बच्चे प्रभावित होंगे।
  • स्टंटिंग (उम्र के अनुपात में कम ऊँचाई): पाँच वर्ष से कम आयु के 37.4 मिलियन भारतीय बच्चे अविकसित हैं, जो दीर्घकालिक अल्पपोषण का संकेत है।
  • ओवरवेट: यह संख्या वर्ष 2012 में 27 लाख से बढ़कर वर्ष 2024 में 42 लाख हो गई, जो बढ़ते दोहरे बोझ को दर्शाती है।

महिला स्वास्थ्य संकेतक

  • एनीमिया का प्रसार (15-49 वर्ष की महिलाएँ): वर्ष 2023 में 53.7% भारतीय महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित थे, जो एशिया में सर्वाधिक और वैश्विक स्तर पर चौथी सर्वाधिक है।
  • संख्या: एनीमिया से पीड़ित महिलाओं की संख्या 164 मिलियन (वर्ष 2012) से बढ़कर 203 मिलियन (वर्ष 2023) हो गई।
  • वैश्विक रैंकिंग: महिलाओं में एनीमिया के प्रसार के मामले में भारत केवल गैबॉन, माली और मॉरिटानिया से पीछे है।

एनीमिया  (Anaemia)

  • यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो जाती है या हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है।
  • हीमोग्लोबिन फेफड़ों से शरीर के ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुँचाने के लिए आवश्यक है।
  • एनीमिया में, ऊतकों तक ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित होती है, जिससे थकान, कमजोरी और शारीरिक प्रदर्शन में कमी आती है।

पोषण असमानता और प्रणालीगत चुनौतियाँ

  • स्थायी कारण: अल्पपोषण की उच्च दर गरीबी, असमानता और पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा तक सीमित पहुँच से जुड़ी है।
  • राष्ट्रीय डेटा संकेतक: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (वर्ष 2019–21) के अनुसार, भारत में 35.5% बच्चे स्टंटिंग और 19.3% बच्चे वेस्टिंग से ग्रस्त पाए गए, जो वैश्विक खाद्य एवं पोषण सुरक्षा पर रिपोर्ट (SOFI) के निष्कर्षों के अनुरूप हैं।

स्वस्थ आहार की क्षमता 

  • वर्ष 2024 में, 42.9% भारतीय स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा पा रहे थे।
  • स्वस्थ आहार की लागत वर्ष 2017 में $2.77 (PPP) से बढ़कर वर्ष 2024 में $4.07 हो जाएगी।
  • प्रमुख कारक: उच्च खाद्य कीमतें, गरीबी, असमानता और पौष्टिक भोजन और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुँच है।

कुपोषण का दोहरा बोझ

  • बढ़ता मोटापा: मोटे वयस्कों की संख्या 33.6 मिलियन (वर्ष 2012) से दोगुनी होकर 71.4 मिलियन (वर्ष 2024) हो गई है।
  • भुखमरी और अतिपोषण का सह-अस्तित्व: आर्थिक असमानताओं और परिवर्तित आहार के कारण अल्पपोषण तथा अतिपोषण दोनों ही के संबंध में गंभीर चिंताएँ बनी हुई हैं।

कुपोषण: परिभाषा एवं प्रकार (विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार)

  • कुपोषण: पोषक तत्त्वों के सेवन या उपयोग में कमी, अधिकता अथवा असंतुलन को संदर्भित करता है।
  • दोहरा बोझ: इसमें कुपोषण और अधिक वजन/मोटापा, दोनों के साथ-साथ आहार संबंधी गैर-संचारी रोग भी शामिल हैं।

कुपोषण चार व्यापक रूपों में प्रकट होता है: स्टंटिंग, वेस्टिंग , अंडरवेट, तथा सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी।

वेस्टिंग

  • कद के हिसाब से कम वजन।
  • अनुचित आहार या बीमारी के कारण गंभीर रूप से वजन कम होने का संकेत।
  • मृत्यु का जोखिम बढ़ जाता है, विशेषतः बच्चों में।

स्टंटिंग

  • आयु के अनुसार कम ऊँचाई।
  • दीर्घकालिक अल्पपोषण, गरीबी, मातृ स्वास्थ्य में कमी और बार-बार बीमार पड़ने के कारण।
  • शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास में बाधा।

अंडरवेट 

  • आयु के हिसाब से कम वजन।
  • यह बौनापन, कमजोरी या दोनों को प्रदर्शित कर सकता है।

सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी

  • आवश्यक विटामिन और खनिजों (जैसे- आयरन, विटामिन A, आयोडीन) की कमी।
  • एंजाइम उत्पादन, प्रतिरक्षा और विकास जैसे प्रमुख शारीरिक कार्यों को प्रभावित करता है।

मोटापा/अधिक वजन

  • अत्यधिक कैलोरी का सेवन, प्रायः एक गतिहीन जीवन शैली के साथ
  • शरीर में अतिरिक्त वसा के संचय से हृदय रोग और मधुमेह जैसे स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होते हैं।

आहार संबंधी गैर-संचारी रोग (NCD)

  • इसमें हृदय संबंधी रोग, जैसे दिल का दौरा और स्ट्रोक शामिल हैं, जो प्रायः उच्च रक्तचाप से जुड़े होते हैं तथा मुख्य रूप से अस्वास्थ्यकर आहार एवं अपर्याप्त पोषण से उत्पन्न होते हैं।

कुपोषण से निपटने के लिए सरकारी योजनाएँ

  • मध्याह्न भोजन योजना: पोषण स्तर में सुधार और स्कूल में उपस्थिति को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूली बच्चों को निःशुल्क, पौष्टिक भोजन प्रदान करती है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013: खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पात्र ग्रामीण और शहरी आबादी को रियायती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराता है।
  • पोषण अभियान (वर्ष 2018): इसका उद्देश्य एक समन्वित दृष्टिकोण के माध्यम से बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण को मिशन-मोड में कम करना है।
  • आंगनवाड़ी सेवाएँ (ICDS के अंतर्गत): बच्चों (0-6 वर्ष), गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पूरक पोषण, टीकाकरण और स्वास्थ्य जाँच प्रदान करती हैं।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार में सुधार लाने और वेतन हानि की भरपाई के लिए नकद प्रोत्साहन प्रदान करती है।
  • मिशन पोषण 2.0: एकीकृत पोषण सहायता कार्यक्रम, जिसका उद्देश्य प्रौद्योगिकी और समुदाय-आधारित प्रयासों के माध्यम से पोषण वितरण, पहुँच और परिणामों में सुधार लाना है।
  • एनीमिया मुक्त भारत: आयरन और फॉलिक एसिड की खुराक तथा व्यवहार परिवर्तन के माध्यम से बच्चों, किशोरों एवं प्रजनन आयु की महिलाओं में एनीमिया को कम करने का प्रयास करता है।
  • पोषण वाटिका: पारिवारिक पोषण में सुधार और खाद्य विविधता सुनिश्चित करने के लिए परिवारों को जैविक फल और सब्जियाँ उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

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